गुरुवार, 3 नवंबर 2011

पशु-बलि : प्रतीकात्मक कुरिति पर आधारित हिंसक प्रवृति

पशु-बलि : प्रतीकात्मक कुरिति पर आधारित हिंसक प्रवृति


ईद त्याग का महान पर्व है, जो त्याग के महिमावर्धन के लिए मनाया जाता है। हमें संदेश देता है कि हर क्षण हमें त्याग हेतू तत्पर रहना चाहिए। प्रेरणा के लिए हम हज़रत इब्राहीम के महान त्याग की याद करते है। किन्तु उस महान् त्याग की महिमा और प्रेरणा की जगह, गला रेते जा रहे पशुओं की चीत्कार कानों को चीर डालती है। त्याग-परहेज के उल्हासमय प्रसंग के बीच, मन विशाल स्तर पर सामूहिक पशु-बलि के बारे में सोचकर ही व्यथित हो उठता है। अनुकंपा स्वयं कांप उठती है।
 

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत विचार पर किसी एक के कहने भर से इसका समाधान नहीं हो सकता है दोस्त , पर फिर भी आपके विचार से मैं सहमत हूँ |

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  2. मिनाक्षी जी,
    कितना परिपक्व विचार कि "किसी एक के कहने भर से इसका समाधान नहीं हो सकता है" बहुत ही आभार!!

    किन्तु एक एक सहमति, भावनाओं सम्वेदनाओं की जागृति और कारवां!!

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  3. मिनाक्षी जी,

    आपकी बात सही है की....
    "किसी एक के कहने भर से इसका समाधान नहीं हो सकता"

    लेकिन अगर ....
    अगर ये लेख पढ़ के किसी एक का भी ह्रदय परिवर्तन होता है तो समाधान की ओर बढ़ने वाला एक कदम तो है ही !!

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  4. घोर शाकाहारी हूँ...किसी भी धर्म में या किसी भी बहाने की जाने वाली जीव हत्या की धुर विरोधी..

    निरामिष ब्लॉग की फैन हो गयी हूँ...इसकी सदस्यता ले ली है मैंने...

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  5. स्वामी विवेकानंद ने पुराणपंथी ब्राह्मणों को उत्साहपूर्वक बतलाया कि वैदिक युग में मांसाहार प्रचलित था . जब एक दिन उनसे पूछा गया कि भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कौन सा काल था तो उन्होंने कहा कि वैदिक काल स्वर्णयुग था जब "पाँच ब्राह्मण एक गाय चट कर जाते थे ." (देखें स्वामी निखिलानंद रचित 'विवेकानंद ए बायोग्राफ़ी' प॰ स॰ 96)
    € @ क्या अपने विवेकानंद जी की जानकारी भी ग़लत है ?
    या वे भी सैकड़ों यज्ञ करने वाले आर्य राजा वसु की तरह असुरोँ के प्रभाव में आ गए थे ?
    2- ब्राह्मणो वृषभं हत्वा तन्मासं भिन्न भिन्नदेवताभ्यो जुहोति .
    ब्राह्मण वृषभ (बैल) को मारकर उसके मांस से भिन्न भिन्न देवताओं के लिए आहुति देता है .
    -ऋग्वेद 9/4/1 पर सायणभाष्य
    सायण से ज्यादा वेदों के यज्ञपरक अर्थ की समझ रखने वाला कोई भी नहीं है . आज भी सभी शंकराचार्य उनके भाष्य को मानते हैं । बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में भी यही पढ़ाया जाता है ।
    क्या सायण और विवेकानंद की गिनती असुरों में करने की धृष्टता क्षम्य है ?

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  6. स्वामी विवेकानंद जी स्वयं भी मांस खाया करते थे और साधारण मांस के बजाय वह गौमांस खाया करते थे।
    क्या आप लोगों को दया धर्म का ज्ञान स्वामी विवेकानंद जी से भी ज़्यादा हो गया है ?
    क्या स्वामी विवेकानंद जी की भांति अपना आहार रखने वालों की निंदा आप करते ही रहेंगे ?
    आखि़र क्यों और किस आधार पर ?

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  7. यदि कोई व्यक्ति 'संत' या 'सुधारक' रूप में स्थापित हो तो इसका यह मतलब कतई नहीं कि उसके सम्पूर्ण व्यवहार आचरण में लाने योग्य हैं ... अथवा उसके समस्त कार्य समाज के लिए अपनाने योग्य हों...
    गलत हमेशा गलत ही रहेगा.... कई गांधी छाप संत लोग भी प्रायश्चित करते हैं... कई पूज्यपाद अपनी कुत्सित प्रवृतियों के कारण ही उसके परिणामों को भोगते हैं... विवेकानंद जी ने गोमांस खाकर मनोवृत्ति पर पढ़ने वाले प्रभाव का ट्रायल किया ... वे प्रयोग के द्वारा समझने में विश्वास करते थे... कुछ लोग समझाए से समझ जाते हैं... तो कुछ लोग लाख समझाने पर समझ नहीं सकते.... एक उदाहरण तो साक्षात हम देख रहे हैं... कुतर्कों को तर्क समझकर फूले नहीं समाते..

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  8. फंसाने वाले सवाल और उलझाने वाले उत्तरों से दूरी बनाकर रखना ....... एक प्रकार का सुरक्षा कवच है... हम केवल उन महानुभावों को चुन-चुनकर लायेंगे जो मेरी सोच के पक्ष में खड़े दिखायी दें.... बेशक उनका आशय कुछ भी रहा हो... अपनी बात के पक्ष में उनके नाम लेकर अपने गदले विचारों की पुष्टि करते चलो.... गौरव अग्रवाल, विरेन्द्र सिंह चौहान, अमित शर्मा और बी.के. शर्मा जी का सारा श्रम व्यर्थ करने का एक ही उपाय है कि वो मत बोलो जो उन्होंने पूछा है... वों बोलो जो हम मानते हैं और जानते हैं...

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  9. विद्वानों के बीच समय-समय पर कितनी ही बार बहस हुई है... लेकिन कुछ प्रश्न हमेशा की तरह आज तक निरुत्तर ही रहते हैं... जो लोग शरारती लहजे से कुछ पूछ बैठते हैं उत्तर तो उनको भी दिया जाना चाहिये... लेकिन उनसे कन्नी कट जाते हैं बुद्धिजीवी लोग.... शाकाहार और मांसाहार की जंग में 'शेखर सुमन' और 'प्रश्नवादी' जैसे ब्लोगर उपेक्षित कर दिए जाते हैं...

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  10. Your thoughts are reflection of mass people. We invite you to write on our National News Portal. email us
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