मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

पृथ्वी पर प्रजातियां | पुनर्जन्म : पद्म पुराण (Life Forms on Earth & Rebirth : Padma Purana)


दोस्तों आपने अपने परिवार के बड़े-बुजुर्गों के मुख से ये तो अवश्य ही सुना होगा :

"84 लाख योनियों के पश्चात ये मनुष्य जन्म प्राप्त होता है अतः मनुष्य को जीवन में उचित कर्म करने चाहिए"
अर्थात 84 लाख प्रकार के जीवों की योनि में जन्म भोगने के पश्चात मनुष्य जीवन मिलता है ।

अब सवाल ये है की उनके पास 84 लाख जैसा बड़ा आंकड़ा आया कहाँ से ? और क्या इसमें कुछ दम है ?
और दूसरा ये है एक योनि(जीवन) से दूसरी योनि में प्रवेश करना (पुनर्जन्म)।
इन दोनों बातो पर हम विचार करेंगे ।

इस प्रथ्वी पर एककोशिकीय, बहुकोशिकीय, थल चर, जल चर तथा नभ चर आदि कोटि के जिव मिलते है। इनकी न केवल संख्या अपितु वर्गीकरण की जानकारी भी हमें  पद्म पुराण में मिलती है ।

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित संस्कृत भाषा में रचे गए अठारण पुराणों में से एक पुराण ग्रंथ है। सभी अठारह पुराणों की गणना में ‘पदम पुराण’ को द्वितीय स्थान प्राप्त है। श्लोक संख्या की दृष्टि से भी इसे द्वितीय स्थान रखा जा सकता है। पहला स्थान स्कंद पुराण को प्राप्त है।

महर्षि वेदव्यास महाभारत के समय अर्थात लगभग 5000 ईसापूर्व थे अर्थात आज से 7000 वर्ष पूर्व (लगभग)

पदम् पुराण में हमें एक श्लोक मिलता है


जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यकः
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल  लक्षानी पशवः, चतुर लक्षाणी मानवः  

jalaja nava lakshani, sthavara laksha-vimshati, krimayo rudra-sankhyakah, 
pakshinam dasha-lakshanam, trinshal-lakshani pashavah, chatur lakshani manavah

जलज/ जलीय जिव/जलचर  (Water based life forms) – 9 लाख (0.9 million)
स्थिर अर्थात  पेड़ पोधे (Immobile implying plants and  trees) – 20 लाख (2.0 million)
सरीसृप/कृमी/कीड़े-मकोड़े    (Reptiles) –     
11 लाख  (1.1 million)  
पक्षी/नभचर  (Birds) – 10  लाख 1.0 million
स्थलीय/थलचर (terrestrial animals) – 30 लाख (3.0 million)
मानवीय नस्ल के (human-like animals) – 4 लाख 0.4 million
कुल = 84 लाख । 

इस प्रकार हमें 7000 वर्ष पुराने मात्र एक ही श्लोक में न केवल पृथ्वी पर उपस्थित प्रजातियों की संख्या मिलती है वरन उनका वर्गीकरण भी मिलता है । 

7000 year old texts are not only suggesting that there are 8.4 million species or 8.4 million different life forms on earth, but have also categorized them!


आधुनिक विज्ञान का मत :

आधुनिक जीवविज्ञानी लगभग 13 लाख (1.3 million) पृथ्वी पर उपस्थित जीवों तथा प्रजातियों का नाम पता लगा चुके है तथा उनका ये भी कहना है की अभी भी हमारा आंकलन जारी है  ऐसी लाखों प्रजातियाँ की खोज, नाम तथा अध्याय अभी शेष है जो धरती पर उपस्थित है । ये अनुमान के आधार पर प्रतिवर्ष लगभग 15000 नयी प्रजातियां सामने आ रही है । 
अभी तक लगभग 13 लाख की  खोज की गई है ये लगभग पिछले  200 सालो की खोज है । 

" Each year, researchers report more than 15,000 new species, and their workload shows no sign of letting up. “Ask any taxonomist in a museum, and they’ll tell you they have hundreds of species waiting to be described,” says Camilo Mora, a marine ecologist at the University of Hawaii."

चूँकि पिछले कई दशकों में विज्ञानं ने काफी प्रगति की है इसलिए जीवों के आंकलन की दर भी बढ़ी है और गणितीय तर्कों द्वारा वैज्ञानिकों ने लगभग 87 लाख जीवों के होने की संभावना बताई है। इनमे भी 13 लाख ऊपर निचे हो सकती है ।  यधपि पर्याप्त जानकारी केवल 13 की ही है। 

"On Tuesday, Dr. Worm, Dr. Mora and their colleagues presented the latest estimate of how many species there are, based on a new method they have developed. They estimate there are 8.7 million species on the planet, plus or minus 1.3 million."

आधुनिक विज्ञानं का मत पुरे 84 लाख जिव होना आवश्यक भी नही क्यू की जैसा की हम ऊपर देख चुके है की पद्म पुराण में वर्णित ये जानकारी आज से 7000 वर्ष पुरानी है । इसके पश्चात प्रथ्वी पर कई प्रकार के वातावरणीय तथा जैविक बदलाव हुए है । यदि जीवों के संख्या में बढ़ोतरी अथवा कमी पाई  जाये तो कोई बड़ी बात नही । 


23 अगस्त 2011 के  The New York Times में छपा ये लेख पढ़े :


उपरोक्त से स्पस्ट है की हमारे ग्रंथों में वर्णित ये जानकरी हमारे पुरखों के सेकड़ों वर्षों की खोज है  उन्होंने न केवल धरती पर चलने वाले अपितु आकाश में व् अथाह समुद्रों की गहराइयों में रहने वाले जीवों का भी अध्ययन किया । 
निश्चय ही उस समय पनडुब्बीयां(submarine) भी रही होंगी । विमान बना लेने वालों के लिए पनडुब्बी बनाना कोनसी बड़ी बात थी ?

पुनर्जन्म :

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।। ...गीता २ /२ २

गीता २ .२ २ में भगवान कृष्ण ने कहा है :

जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है

As a man shedding worn- out garments, takes other new ones, likewise the embodied soul, casting off worn-out bodies, enters into others which are new.

८ ४ लाख जीवों में एक मनुष्य ही है जो सबसे उतम बताया गया है इसके अतरिक्त सभी भोग योनि में है । इसी लिए मानवीय जीवन का उपयोग अच्छे कार्यों में लगाने ही हिदायत दी जाती है ।

Since being born as a human is such a rare opportunity, one should make complete use of this human life, and devout one’s lifetime to do good things, earn knowledge, help others, serve the society and try to attain moksha (salvation).

सर्वप्रथम जीवआत्मा अध्यात्मिक अवस्था में होती है तथा वही जीवआत्मा देह धारण करती है तथा उसी देह द्वारा किया गये उच्च अथवा नीच कर्मों के अनुसार गति को प्राप्त होती है जैसे कोई जिव-जंतु पेड़ पोधा आदि । तथा पूर्ण ८ ४ लाख योनियों में भटकने के पश्चात पुनः मानव शरीर ग्रहण करती है और पुनर्जन्म की प्रक्रिया से बाहर निकलने का एक अवसर और प्राप्त करती है । इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति तक इसी कालचक्र में फंसी रहती है । 
- श्रीमदभागवत 4.29.2 




महर्षि कपिल के सांख्यशास्त्र के अनुसार  :-

जीव शरीर का निर्माण इस रीति से हुआ कि :-
त्रिगुणात्मक प्रकृति से बुद्धि, अहंकार,मन,
सात्विक अहंकार से पाँच ज्ञानेंद्रिय (चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण, त्वचा),
ताम्सिक अहंकार से पाँच कर्मेंन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु),
पंच तन्मात्र (पृथ्वि, अग्नि, जल, वायु, आकाश )
पाँच विषय (रूप,रस,गंध,स्पर्श,दृष्य)
और इस चौबिस प्रकार के अचेतन जगत के अतिरिक्त पच्चीसवाँ चेतन पुरुष (आत्मा) ।

शरीर के दो भेद हैं :-
सूक्ष्म शरीर जिसमें :- [बुद्धि ,अहंकार, मन ]
स्थूल शरीर जिसमें :-[ पाँच ज्ञानेंद्रिय (चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण, त्वचा), पाँच कर्मेंन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु), पंच तन्मात्र (पृथ्वि, अग्नि, जल, वायु, आकाश ) ]

जब मृत्यु होती है तब केवल स्थूल शरीर ही छूटता है, पर सूक्ष्म शरीर पूरे एक सृष्टि काल (4320000000 वर्ष) तक आत्मा के साथ सदा युक्त रहता है और प्रलय के समय में यह सूक्ष्म शरीर भी अपने मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है । बार बार जन्म और मृत्यु का यह क्रम चलता रहता है शरीर पर शरीर बदलता रहता है पर आत्मा से युक्त वह शूक्ष्म शरीर सदा वही रहता है जो कि सृष्टि रचना के समय आत्मा को मिला था , पर हर नये जन्म पर नया स्थूल शरीर जीवात्मा को मिलता रहता है । जिस कारण हर जन्म के कुछ न कुछ विषय हमारी शूक्ष्म बुद्धि में बसे रहते हैं और कोई न कोई किसी न किसी जन्म में कभी न कभी वह विषय पुनः जागृत हो जाते हैं जिस कारण वह लोग जिनको कि शरीर परिवर्तन का वह विज्ञान नहीं पता वह लोग इसको भूत बाधा या कोई शैतान आदि का साया समझ कर भयभीत होते रहते हैं । कभी किसी मानव की मृत्यु के बाद जब उसे दूसरा शरीर मिलता है तब कई बार किसी विषय कि पुनावृत्ति होने से पुरानी यादें जाग उठती हैं , और उसका रूप एकदम बदल जाता है और आवाज़ भारी हो जाने के कारन लोग यह सोचने लगते हैं कि इसको किसी दूसरी आत्मा ने वश में कर लिया है , या कोई भयानक प्रेत इसके शरीर में प्रवेश कर गया है । परन्तु यह सब सत्य ना जानने का ही परिणाम है कि लोग भूत प्रेत, डायन, चुड़ैल,परी आदि का साया समझ भय खाते रहते हैं । पृथ्वी के सभी जीवों में यह बात देखी जाती है कि जिस विषय का अनुभव उनको होता है उस विषय कि जब पुनावृत्ति का आभास जब उन्हें होता है तब उनकी बुद्धि उस विषय में सतर्क रहती है । और देखा गया है कि पृथ्वी का हर जीव मृत्यु नामक दुख से भयभीत होता है और बचने के लिये यत्न करता है , वह उस स्थान से दूर चला जाना चाहता है जहाँ पर मृत्यु की आशंका है , उसे लगता है कि कहीं और चले जाने से उसका इस मृत्यु दुख से छुटकारा हो जायेगा । अब यहाँ समझने वाली बात यह है कि किसने उस जीव को यह प्रेरणा दी यह सब करने कि? तो यही तथ्य सामने आता है कि यह सब उसके पूर्व मृत्यु के अनुभव के कारण ही है, क्योंकि मृत्यु का अनुभव उसे पूर्व जन्म में हो चुका है जिस कारण वह अनुभव का ज्ञान जो उसकी सूक्ष्म बुद्धि में छुपा था वह उस विषय कि पुनावृत्ति के होने से दुबारा जाग्रत हो गया है । जैसा कि पहले भी कहा गया है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की हुआ करती है , तो सूक्ष्म शरीर तो वही है जो पहले था और अब भी वही है । जिस कारण यह सिद्ध होता है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से सिद्ध है 

http://www.parami.org/buddhistanswers/when_we_die.htm

आधुनिक विज्ञान का मत :

यधपि पुनर्जन्म का सत्यापन विज्ञानं द्वारा या  उपकरणों, यंत्रों आदि द्वारा किया जाना समभव तो नही परन्तु इसे Einstein के इस सिधांत द्वारा समझा जा सकता है :

Energy cannot be created or destroyed, it can only be changed from one form to another

उर्जा न ही पैदा की जा सकती है और न ही नष्ट की जा सकती है केवल एक रूप से दुसरे रूप में बदली जा सकती है । 
उदहारण के लिए विधुत उर्जा को प्रकाश उर्जा में :- बल्ब द्वारा 
विधुत उर्जा को गतिज उर्जा में :- पंखा, पानी की मोटर आदि । 

हमारे भोतिक शरीर को चलाने वाली शक्ति उर्जा ही तो है जिसे आत्मा भी कहते है जो एक रूप से दुसरे रूप में प्रवेश करती है । 

उपरोक्त सिधांत Einstein ने पूरा का पूरा गीता से चोरा था :

न जायते म्रियते वा कदाचिन्-
नायं भूत्वा भविता वा न भूय: ।
अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।। ... गीता २ /२ ० 

यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता । 

The soul is never born nor dies; nor does it become only after being born. For it is unborn, eternal, everlasting and ancient; even though the body is slain, the soul is not. - Bhagavad-Gita 2.20

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।। ...गीता २ /२ २


जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है

As a man shedding worn- out garments, takes other new ones, likewise the embodied soul, casting off worn-out bodies, enters into others which are new. - Bhagavad-Gita 2.22


Einstein ने उपरोक्त दोनों श्लोकों को मिला दिया तथा Soul को energy कहा बाकि सारा ज्यों का त्यों चेप दिया और अपना सिधांत कह कर जगत में ढंढ़ोंरा पिटा  ।


“When I read the Bhagavad-Gita and reflect about how God created this universe everything else seems so superfluous.”
― Albert Einstein



खेर मुद्दे पर आते है ।
ऐसे कई प्रमाण अवश्य है जिनमे लोगो को अपने पूर्व जन्म का आंशिक से लेकर पूर्ण स्मरण हो आया ।
इससे सम्बंधित दुनियां भर की जानकारी इन्टरनेट पर भरी पड़ी है किन्तु हम ऐसे व्यक्ति द्वारा की गई जाँच पड़ताल देखते है जिस पर मुझे तो पूर्ण विश्वास है ।
इसी प्रकार के एक केस का अध्ययन किया वेद विज्ञानं मंडल, पुणे के डॉ० पद्माकर विष्णु वार्तक जी ने ।

वार्तक जी ऐसा केस देख कर आश्चर्य चकित हुए इसी कारण  उन्होंने इसे अपने पाठकों से बाँटने के लिए अपनी साईट पर भी डाला  ।
वार्तक जी के इस केस में एक 4.5 वर्ष के बालक को अपने पूर्व जन्म (10 वर्ष पूर्व मृत्यु का ) पूर्ण रूप से स्मरण हो गया तथा उनसे अपने पूर्व जन्म के माता पिता को पहचान लिया तथा अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां दी । वर्तक जी ने इस केस को सत्यता की कसोटी पर पूर्ण रूप से खरा उतरने के बाद सब के समक्ष प्रस्तुत किया और हेरान कर देने वाली घटना और हुई जब उस बालक ने वो घटनाये भी बताई जो उसके पूर्व शरीर की मृत्यु के बाद उसके परिवार में घटित हुई । इससे ये भी सिद्ध है की आत्मा देखने में भी सक्षम होती है ।

  Presence of Soul who can see even after death is proved by this case. It is also proved that memories can be preserved and transferred without brain.

कृपया पूरा लेख यहाँ पढ़े :
https://sites.google.com/site/vvmpune/essay-of-dr-p-v-vartak/rebrith


गूगल पर rebirth scientific evidence लिखे और देखें 

इस प्रकार हमारे बुजुर्गों द्वारा कही बात
"84 लाख योनियों के पश्चात ये मनुष्य जन्म प्राप्त होता है अतः मनुष्य को जीवन में उचित कर्म करने चाहिए"
सिद्ध होती है !!!


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

ब्रह्माण्ड की आयु (Universe Age - Vedas|ShriMadBhagwatam)




श्री मदभागवतम् में ब्रह्माण्ड उत्पति का जो वर्णन मिलता है वो इस प्रकार है :
ब्रह्माण्ड उत्पति से पूर्व भगवान विष्णु ही केवल विधमान थे और शयनाधीन थे. विष्णु जी की नाभि से एक कमल अंकुरित हुआ । उसी कमल में ब्रह्मा विराजमान थे।

While Vishnu is asleep, a lotus sprouts of his navel (note that navel is symbolised as the root of creation!). Inside this lotus, Brahma resides. Brahma represents the universe which we all live in, and it is this Brahma who creates life forms. 



यहाँ नाभि से कमल अंकुरित होने का अभिप्राय एक बिंदु से ब्रह्माण्ड उत्पति है. एक बिंदु से ब्रह्माण्ड का उद्गम हुआ इसी को दर्शाने के लिए यहाँ कमल का अलंकर प्रयुक्त किया गया है ।
कमल में विराजमान ब्रह्मा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करते है अर्थात ब्रह्मा ही ब्रह्माण्ड है इसी कारण इसे ब्रह्म+अण्ड (Cosmic Egg) कहा गया है .
बिल्कुल इसी प्रकार के थ्योरी आधुनिक विज्ञानं की है जिसे बिगबेंग की संज्ञा दी गयी ।  इसमे बताया गया है की  ब्रह्माण्ड उत्पति एक बिंदु (शुन्य) से हुई .

Brahma represents our universe which has birth and death, a big bang and a big crunch from a navel singularity. Vishnu represents the eternity that lies beyond our universe which has no birth or death and that which is eternal! Many such universes like ours exist in Vishnu.

ब्रह्माण्ड उत्पति से पूर्व जो शक्ति विद्यमान थी वो विष्णु है, जिस ब्रह्माण्ड में अभी हम है ये अस्थायी है, इसका आरंभ  व् अंत  सतत रूप से होता रहता है। किन्तु ब्रह्माण्ड अंत के पश्चात पुनः सब पदार्थ व् अपदार्थ उसी शक्ति में विलीन हो जाते है जो श्री विष्णु का स्वरुप है।
शास्त्रों में ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष बताई गयी है ब्रह्मा की आयु अर्थात  ब्रह्माण्ड की आयु.
जैसा की हम ऊपर कह चुके है की चतुर्मुखी ब्रह्मा , ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करते है . चारों वेदों की उत्पति इन्ही से हुई है अतः चोरों वेदों के ज्ञाता होने के कारन ही ये चतुर्मुखी है .


इसी प्रकार की व्याख्या ऋग्वेद के १ ० वें मंडल के  १ २ ९ वें सूक्त (नासदीय सूक्त) में मिलती है ! निम्न विडियो देखें :


 इन 100 ब्रह्म वर्षों के पश्चात ब्रह्माण्ड का अंत एक महासंकुचन (big crunch)  के साथ होता है . वेदों का कहना है की अब तक कई ब्रह्मा आये और गये अर्थात जिस ब्रह्माण्ड में हम जी रहे है ये न ही प्रथम है और न ही अंतिम .

Vedas say that thousands of brahmas have passed away!  In other words, this is not the first time universe has been created.

अब हम ये देखते है की ब्रह्मा का 1 वर्ष हमारे लिए कितना बड़ा है .

ब्रह्मा का 1 वर्ष :
ब्रह्मा के प्रत्येक वर्ष में 360 दिन होते है।

ब्रह्मा का 1 दिन :
ब्रह्मा के 1 दिन में दिन +रात  होते है . जिसे एक कल्प भी कहा जाता है ,
A kalpa is made up of brahma’s one day and one night.
ब्रह्मा केवल दिन में ही स्रष्टि रचते है और रात्रि में उनके निद्राधीन होते ही ब्रह्माण्ड का अंत उंसी प्रकार होता है जैसे कोई सुन्दर स्वप्न टुटा हो .
हम, मानव दिन में कार्य करते है तथा रात्रि को नींद में स्वप्न देखते है और हमारे स्वप्न की एक अलग ही दुनिया होती है जिसे स्वप्न आकाश कहा जाता है। जो प्रतेक व्यक्ति का भिन्न होता है। किन्तु ब्रह्मा जी का हिसाब किताब मनुष्यों से उल्टा है, वे दिन समय में जो स्वप्न देकते है वह उनका स्वप्न आकाश है जो ब्रह्माण्ड है और अनंत है जिसमे सारा ब्रहमांड तथा चराचर जिव, हम मनुष्य आदि जीते है।
इसी करण हमारे यहाँ कहा गया है :- "ब्रह्म सत्य, जगह मिथ्या"

जगह को  मिथ्या इसी लिए कहा गया है क्यू की ये तो ईश्वर का एक सुन्दर स्वप्न मात्र है। और ब्रह्म सत्य इसलिए क्यू की जगत के अंत के पश्चात एक ईश्वर ही शेष रहता है।

तो कुल मिला कर बात यह है की ब्रह्मा दिन में जो स्वप्न देखते है, हम उसी में जीते है और रात्रि में निद्राधीन  होते ही ब्रह्मा (ब्रह्माण्ड) सुप्त अवस्था में चले जाते है . और अगले दिन पुनः उनका स्वप्न आरंभ होता है और ब्रहमांड उपस्थित हो जाता है .
अब देखना ये है की ब्रह्मा का एक दिन कितना बड़ा होता है ??

ब्रह्मा के एक दिन (एक कल्प) में 28 मन्वन्तर होते है . अर्थात दिन समय में 14  मन्वन्तर  और 14 ही रात्रि में .

ब्रह्मा का 1 मन्वन्तर :
ब्रह्मा के 1 मन्वन्तर  में 71 महायुग होते है ।

ब्रह्मा का १ महायुग :
ब्रह्मा के 1 महायुग में 4  युग होते है । क्रमश : सत्य(क्रेता) , त्रेता , द्वापर , कलि ।


सत्य युग महायुग का 40 % भाग होता है 
त्रेता युग  महायुग का 30 % भाग होता है 
द्वापर युग महायुग का 20 % भाग होता है 
कलि युग महायुग का 10 % भाग होता है 
यदि उपरोक्त वर्णन आपको पूर्णतया समझ आ गया है तो अभी हम जिस समय में जी रहे है वो भी समझ आ जायेगा । 
अभी हम  
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
 में है ।


ब्रह्मा से सम्बंधित डाटा एक साथ लिख लेते है :
ब्रह्मा की आयु : 100 वर्ष
1 वर्ष = 360 दिन
1 दिन = 1 कल्प =28 मन्वन्तर
1 मन्वन्तर = 71 महायुग
1 महायुग = 4 युग


गणना :

कलियुग की आयु जो बताई गई है वो है : 4,32,000 साल । 

अब तक हमने केवल थ्योरी देखि पर अब हमारे पास एक आंकड़ा " 4,32,000 साल " आ चूका है अतः अब ब्रह्मा के 100 वर्ष हम मनुष्यों के लिए कितने है ये ज्ञात कर सकते है . अब गणना निचे से ऊपर की और चलेगी और थोड़ी कठिन होगी कृपया ध्यान से समझें । 

कलि युग =  4,32,000 साल 

कलियुग महायुग का 10 % है अतः 1 महायुग कितना हुआ ?
1 महायुग का 10 % =  4,32,000
 1 महायुग कुल =  4,32,000* (100 /10 )=  4,320,000 साल । 

1 महायुग = 4,320,000 साल हमारे पास आ चूका है अब आगे की गणनाओं में ईकाई महायुग ही लेंगे । 

ब्रह्मा के 1 मन्वन्तर में 71 महायुग होते है । 
1 मन्वन्तर = 71 महायुग 

ब्रह्मा के 1 पूर्ण दिन में 28 मन्वन्तर होते है, किन्तु हमें केवल दिन अर्थात 14 मन्वन्तर ही लेने है क्यू की रात्रि अर्थात महाविनाश । 

1 दिन = 14 *71 = 994 महायुग । 

अब यहाँ एक नियतांक (Constant) और शामिल करना होगा । वेदों के अनुसार ब्रह्मा के प्रत्येक मन्वन्तर के मध्य 4 युगों का समय अंतराल होता है । अर्थात किसी मन्वन्तर के प्रारंभ होने से पूर्व तथा पश्चात ४ युगों का अंतराल ।

ब्रह्मा के दिन के 14 मन्वन्तरों में अंतराल हुए = 15
प्रत्येक  अंतराल = 4 युग 
तो 14 मन्वन्तरों में कुल अंतराल = 15 *4 = 60 युग 
60 युग = 60 /10 = 6 महायुग   {चूँकि कलि युग महायुग का 10% भाग होता है }

1 दिन = 994 +6 = 1000 महायुग । 
1000* 4,320,000= 4 ,320 ,000 ,000 साल ।   {१ महायुग =4,320,000}

ये सिर्फ ब्रह्मा के दिन का मान है अब इतना का इतना रात्रि के लिए और जोड़ने पर :
ब्रह्मा 1 एक पूर्ण दिन (दिन+रात)
 = 4 ,320 ,000 ,000 +4 ,320 ,000 ,000  =8 ,640 ,000 ,000  साल (8 अरब 64 करोड़)

ये केवल ब्रह्मा का 1 दिन है । 
ब्रह्मा का 1 वर्ष = 360 दिन 
ब्रह्मा के 100 वर्ष = 100*360 * 8 ,640 ,000 ,000

जैसा की हम ऊपर देख चुके है :
हम अभी 
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
में है । 
जितना समय ब्रह्मा के जन्म का हो चूका है उतनी ही इस ब्रह्माण्ड की आयु हो चुकी है । 
अर्थात
 ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28वे महायुग के 3 (तीसरे) युग (दवापरयुग) तक का समय बीत चूका है । और अभी चोथा (कलि) चल रहा है ।

कलि के लगभग 5000 वर्ष भी बित चुके है ।  इन 5000 वर्षों को छोड़ भी दें तो कोई खास फर्क नही पड़ेगा ।

ये ब्रह्माण्ड कितना पुराना है ? :
28 वे महायुग के तिन (सत्य, त्रेता, दवापर) बित  चुके है!
1 महायुग = 4,320,000
कलि महायुग का 10 % होता है =4,320,000*(10 /100 ) =4,32,000
कलि अभी चल रहा है इसलिए इसे महायुग मेसे घटा देते है =

 4,320,000-4,32,000= 3888000 वर्ष,  28 वे महायुग के बीत चुके है । 

बिता हुआ समय = 27 महायुग + 3888000  वर्ष

उपरोक्त समय 7 वे मन्वन्तर का है ।  इससे पहले 6 मन्वन्तर पुरे बीत चुके है । 
6 मन्वन्तर = 426 महायुग  {चूँकि 1 मन्वन्तर = 71 महायुग }

बिता हुआ समय = 426  महायुग  +27 महायुग + 3888000   वर्ष। 

ध्यान रहे हमें नियतांक और शामिल करना होगा । वेदों के अनुसार ब्रह्मा के प्रत्येक मन्वन्तर के मध्य 4 युगों का समय अंतराल होता है । 
6 मन्वन्तरों में कुल अन्तराल = 6 * 4 = 24  युग 
=2.4  महायुग  {चूँकि कलि युग महायुग का 10 % भाग होता है}

बिता हुआ समय = 2.4 महायुग+426 महायुग  +27 महायुग + 3888000 वर्ष। 

अब हम ब्रह्मा के 51 वे वर्ष के 1 दिन तक की गणना कर चुके है ।  इससे पीछे नही जाना क्यू की इससे पीछे 
ब्रह्मा के 50 वे वर्ष का 360 वां दिन की रात्रि आ जायेगी , रात्रि मतलब विनाश  । और उसे भी पूर्व जायेंगे तो 
ब्रह्मा के 50 वे वर्ष का 360 वां दिन आ जायेगा, वो दिन इस दिन से भिन्न है अर्थात ब्रह्मा का वो स्वप्न इस स्वप्न से भिन्न है अर्थात वो ब्रह्माण्ड इस ब्रह्माण्ड का भूतपूर्व है । 

इस ब्रह्माण्ड की कुल आयु = 2.4 महायुग+426 महायुग  +27 महायुग + 3888000  वर्ष। 
= 455.4 महायुग+ 3888000  वर्ष।
= 455.4  * 4,320,000 +   3888000   वर्ष             {चूँकि 1 महायुग =4,320,000 }
=1972944000 वर्ष  

इस कलि के 5000 वर्ष बित  चुके है यदि उन्हें भी जोड़े तो ब्रह्माण्ड की कुल आयु =
1972944000  वर्ष   + 5000
=1972949000 वर्ष   !

इस ब्रह्माण्ड का अंत कब  ? :

एक बार पुनः 
हम अभी 
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
में है । 
ब्रह्मा के केवल इस दिन समय तक ये ब्रह्माण्ड रहेगा । 

कलियुग के वर्ष = 4,32,000 वर्ष 
इस कलियुग के लगभग 5000 वर्ष बीत चुके है, इसे अंत में घटाएंगे । 

इसके पश्चात 29  वे महायुग का 1 (प्रथम) युग सत्ययुग प्रारंभ होगा । 
ब्रह्मा के  7 वे मन्वन्तर के पूर्ण होने में शेष महायुग :
71 - 28 = 43 महायुग + इस कलियुग के 4,32,000 वर्ष 
=43 महायुग+4,32,000 वर्ष 

इस समय के पश्चात 8 वां मन्वन्तर प्रारंभ होगा । 
ब्रह्मा के इस दिन के शेष मन्वन्तर = 14-7  =7  मन्वन्तर 
7  मन्वन्तर = 71*7  महायुग {चूँकि 1 मन्वन्तर = 71 महायुग }

ध्यान रहे हमें नियतांक और शामिल करना होगा । वेदों के अनुसार ब्रह्मा के प्रत्येक मन्वन्तर के मध्य 4 युगों का समय अंतराल होता है । 
7  मन्वन्तरों में कुल अन्तराल = 7*4 = 28 युग 
=2.8 महायुग  {चूँकि कलि युग महायुग का 10 % भाग होता है}

ब्रह्मा के इस दिन के ख़तम होने में शेष समय =
 2.8 महायुग+71*7 महायुग+43 महायुग+4,32,000 वर्ष 
=471.8 महायुग+4,32,000 वर्ष 
=471.8  *4,320,000 +4,32,000 वर्ष        {चूँकि १ महायुग =4,320,000 }
=2038607000 वर्ष    

इस कलियुग के लगभग 5000 वर्ष बीत चुके है, इसे घटाने पर :
 2038607000 -5000 =2038602000 वर्ष    


इसके पश्चात हमें और आगे नही जाना है क्यू की इसके आगे "ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन की रात्रि आयेगी । रात्रि अर्थात महाविनाश । और उसके आगे ब्रह्मा के 51वे वर्ष का 2 (दूसरा) दिन प्रारंभ होगा । वो स्वप्न इस स्वप्न से भिन्न होगा अर्थात वो ब्रह्माण्ड इस ब्रह्माण्ड के पश्चात आयेगा । 

इस प्रकार आप देख सकते है की ब्रह्मा के प्रत्येक दिन में एक नए स्वप्न (ब्रह्माण्ड ) का निर्माण होता है वो रात्रि में ख़तम हो जाता है ।  इस प्रकार कितने ही ब्रह्माण्ड जा चुके है और कितने ही आने वाले है !!!

यदि आपने कभी टीवी पर पोराणिक सीरियल देखें हो तो आपको स्मरण होगा ब्रह्मा जी अपनी पत्नी सरस्वती से कहते है की अभी कुछ समय पश्चात में सो जाऊंगा और उसके साथ ही स्रष्टि का अंत हो जायेगा । 
उमीद है ब्रह्मा जी के इस वाक्य का अर्थ आपको समझ आ गया होगा !

अब एक प्रशन ये भी उठता है की यदि 2038602000  वर्ष   पश्चात प्रलय होनी है तो इस कलियुग के पश्चात अर्थात 4,32,000 वर्ष पश्चात प्रलय क्यू बताई जाती है ?

मेंरे मतानुसार 4,32,000 वर्ष पश्चात प्रलय नही होगी अपितु प्रलय सामान ही एक महापरिवर्तन होगा । पुराणो  के अनुसार जैसे जैसे कलियुग प्रभावी (जवान) होगा वैसे वैसे समाज में गंदगी बढेगी । घोर कलियुग में एक भी अच्छा मनुष्य ढुंढने पर भी नही मिलेगा । गंदे काम खुल्लम खुल्ला होंगे ।  तब श्री विष्णु का अंतिम "कल्कि" अवतार होगा । कल्कि पुराण के अनुसार उनका जन्म शम्भल गाँव में होगा और पिता (एक ब्राह्मण) का नाम होगा विष्णु यशा । शम्भल गाँव शायद मध्यप्रदेश में है अथवा होगा । 
और इसके साथ ही 29 वे महायुग का सत्य युग प्रारंभ होगा । 


उपरोक्त आंकड़े आज की विज्ञानं को भी टक्कर दे रहे है । या यूँ कहा जाये की आधुनिक विज्ञानं वेदों के आगे पाणी भरती है। 
17वी - 18 वि शताब्दी के आसपास  जब अंगेजों का पाला इन तथ्यों से पड़ा तो उन्होंने इसका मजाक उड़ाया । मैक्स मुलर जैसे कीड़ों ने वेदों को बदनाम किया गलत सलत व्याख्या की । और इस मुर्ख ने मरने से पहले अपनी डायरी में ये और लिखा की मैंने अपने जीवन में कभी संस्कृत नही सीखी । :D

आज भी यही हो रहा है  संस्कृत न जानने वाले मुर्ख हिन्दुओं को वेदों के अर्थ बता रहे है । 

किन्तु आज की विज्ञानं में अनुसन्धान के पश्चात जब यही थ्योरी वैज्ञानिकों के समक्ष आयी तो वे दंग रह गये  । 
प्रसिद्ध ब्रह्माण्ड विज्ञानी कार्ल सेगन ने अपनी पुस्तक Cosmos में लिखा है :

The Hindu religion is the only one of the world’s great faiths dedicated to the idea that the Cosmos itself undergoes an immense, indeed an infinite, number of deaths and rebirths. It is the only religion in which the time scales correspond, to those of modern scientific cosmology. Its cycles run from our ordinary day and night to a day and night of Brahma, 8.64 billion years long. Longer than the age of the Earth or the Sun and about half the time since the Big Bang. And there are much longer time scales still. - Carl Sagan, Famous Astrophysicist


मेरा दावा है हिन्दू ग्रंथों के अतिरिक्त किसी अन्य ग्रंथों में ऐसी थ्योरी मिलना संभव ही नही !!


ऐसे कितने ब्रह्माण्ड?:
जैसा की हम देख चुके है की न तो वर्तमान ब्रह्माण्ड प्रथम है और न ही अंतिम । 
परन्तु पुराणों में एक और रोचक तथ्य मिलता है वो ये है की एक समय में भी एक से अधिक ब्रह्माण्ड अस्तित्व में रहते है प्रत्येक के ब्रह्मा भिन्न होते है । इसलिए कहा गया है की महाविष्णु के उदर में असंख्य ब्रह्माण्ड वास करते है । इसे निम्न फोटो द्वारा समझे :
इस सागर को महाविष्णु माने और प्रत्येक बूंद के प्रतिरूप को एक ब्रह्माण्ड !

आधुनिक विज्ञानी इसे Multiverse कहते है । 
"The multiverse (or meta-universe) is the hypothetical set of multiple possible universes"

http://en.wikipedia.org/wiki/Multiverse


ब्रह्मलोक ब्रह्माण्ड का केंद्र है :
वैदिक ऋषियों के अनुसार वर्तमान सृष्टि पंच मण्डल क्रम वाली है। चन्द्र मंडल, पृथ्वी मंडल, सूर्य मंडल, परमेष्ठी मंडल और स्वायम्भू मंडल। ये उत्तरोत्तर मण्डल का चक्कर लगा रहे हैं।
जैसी चन्द्र प्रथ्वी के, प्रथ्वी सूर्य के , सूर्य परमेष्ठी के, परमेष्ठी स्वायम्भू के|  
चन्द्र की प्रथ्वी की एक परिक्रमा -> एक मास 
प्रथ्वी की सूर्य की एक परिक्रमा -> एक वर्ष 
सूर्य की परमेष्ठी (आकाश गंगा) की एक परिक्रमा ->एक मन्वन्तर 
परमेष्ठी (आकाश गंगा) की स्वायम्भू (ब्रह्मलोक ) की एक परिक्रमा ->एक कल्प
स्वायम्भू  मंडल ही ब्रह्मलोक  है । स्वायम्भू  का अर्थ स्वयं (भू) प्रकट होने वाला ।  यही ब्रह्माण्ड का उद्गम स्थल या केंद्र है । 




ऋषियों की अद्भुत खोज:
जैसा की हम उपर देख चुके है :
अभी हम  
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
 में है ।
संकल्प। Sankalpa
हमारे पूर्वजों ने जहां खगोलीय गति के आधार पर काल का मापन किया, वहीं काल की अनंत यात्रा और वर्तमान समय तक उसे जोड़ना तथा समाज में सर्वसामान्य व्यक्ति को इसका ध्यान रहे इस हेतु एक अद्भुत व्यवस्था भी की थी, जिसकी ओर साधारणतया हमारा ध्यान नहीं जाता है। हमारे देश में कोई भी कार्य होता हो चाहे वह भूमिपूजन हो, वास्तुनिर्माण का प्रारंभ हो- गृह प्रवेश हो, जन्म, विवाह या कोई भी अन्य मांगलिक कार्य हो, वह करने के पहले कुछ धार्मिक विधि करते हैं। उसमें सबसे पहले संकल्प कराया जाता है। यह संकल्प मंत्र यानी अनंत काल से आज तक की समय की स्थिति बताने वाला मंत्र है। इस दृष्टि से इस मंत्र के अर्थ पर हम ध्यान देंगे तो बात स्पष्ट हो जायेगी।

संकल्प मंत्र में कहते हैं.... 
ॐ अस्य श्री विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्राहृणां द्वितीये परार्धे
अर्थात् महाविष्णु द्वारा प्रवर्तित अनंत कालचक्र में वर्तमान ब्रह्मा की आयु का द्वितीय परार्ध-वर्तमान ब्रह्मा की आयु के 50 वर्ष पूरे हो गये हैं।
श्वेत वाराह कल्पे-कल्प याने ब्रह्मा के 51वें वर्ष का पहला दिन है।

वैवस्वतमन्वंतरे- ब्रह्मा के दिन में 14 मन्वंतर होते हैं उसमें सातवां मन्वंतर वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है।

अष्टाविंशतितमे कलियुगे- एक मन्वंतर में 71 चतुर्युगी होती हैं, उनमें से 28वीं चतुर्युगी का कलियुग चल रहा है।

कलियुगे प्रथमचरणे- कलियुग का प्रारंभिक समय है।

कलिसंवते या युगाब्दे- कलिसंवत् या युगाब्द वर्तमान में 5104 चल रहा है।

जम्बु द्वीपे, ब्रह्मावर्त देशे, भारत खंडे- देश प्रदेश का नाम

अमुक स्थाने - कार्य का स्थान
अमुक संवत्सरे - संवत्सर का नाम
अमुक अयने - उत्तरायन/दक्षिणायन
अमुक ऋतौ - वसंत आदि छह ऋतु हैं
अमुक मासे - चैत्र आदि 12 मास हैं
अमुक पक्षे - पक्ष का नाम (शुक्ल या कृष्ण पक्ष)
अमुक तिथौ - तिथि का नाम
अमुक वासरे - दिन का नाम
अमुक समये - दिन में कौन सा समय

उपरोक्त में अमुक के स्थान पर क्रमश : नाम बोलने पड़ते है ।
जैसे अमुक स्थाने : में जिस स्थान पर अनुष्ठान किया जा रहा है उसका नाम बोल जाता है ।
उदहारण के लिए दिल्ली स्थानेग्रीष्म ऋतौ आदि  |

अमुक - व्यक्ति - अपना नाम, फिर पिता का नाम, गोत्र तथा किस उद्देश्य से कौन सा काम कर रहा है, यह बोलकर संकल्प करता है।

इस प्रकार जिस समय संकल्प करता है,  सृष्टि आरंभ से उस समय तक  का स्मरण सहज व्यवहार में भारतीय जीवन पद्धति में इस व्यवस्था के द्वारा आया है।



उपनिषद | The Upanishads

वही एक सत्य है - वही आत्मा है - वही सत्य तुम स्वयं हो ! तत् त्वम् असि !

 Dr Richard Thompson ने वेदों के अध्यन के पश्चात निम्न विडियो बनाया है : 


इसके अतिरिक्त पोराणिक कथाओं में सापेक्षता का सिधांत (
Theory of relativity) भी मिलता है यहाँ देखें :
http://www.vedicbharat.com/2013/03/theory-of-relativity.html



In English:
http://mathomathis.blogspot.in/2010/09/universe-age-as-per-vedas.html


भागवत में भ्रूण विज्ञानं (
Embryology 
) की भी अच्छी खासी व्याख्या मिलती है यहाँ देखें :

http://bharatbhartivaibhavam.blogspot.in/2013/04/Embryology-in-ShriMad-Bhagwatam-and-Mahabharata.html


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्


रविवार, 21 अप्रैल 2013

ॐ, साइमेटिक्स और श्री यन्त्र (Om, Cymatics and Shri Yantra)

ॐ  ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। इसे अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है।
इस प्रणवाक्षर (प्रणव+अक्षर) भी कहते है प्रणव का अर्थ होता है तेज गूंजने वाला अर्थात जिसने शुन्य में तेज गूंज कर ब्रह्माण्ड की रचना की |
वैसे तो इसका महात्म्य वेदों, उपनिषदों, पुराणों तथा योग दर्शन में मिलता है परन्तु खासकर माण्डुक्य उपनिषद में इसी प्रणव शब्द का बारीकी से समझाया गया है  |
माण्डुक्य उपनिषद  के अनुसार यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ, म. प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है. जैसे “अ” से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है. “उ” से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है. “म” से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है. तथा यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतिक भी है |
आसान भाषा में कहा जाये तो निराकार इश्वर को एक शब्द में व्यक्त किया जाये तो वह शब्द ही है |

तपस्वी और योगी  जब ध्यान की गहरी अवस्था में उतरने लगते है तो यह नाद (ध्वनी) हमारे भीतर तथापि बाहर कम्पित होती स्पष्ट प्रतीत होने लगती है | साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है |


हाल ही में हुए प्रयोगों के निष्कर्षों के आधार पर सूर्य से आने वाली रश्मियों में अ उ म की ध्वनी होती है इसकी पुष्टि भी हो चुकी है ।


ॐ को केवल सनातनियों के ईश्वरत्व का प्रतिक मानना उचित नही । जिस प्रकार सूर्य, वर्षा, जल तथा प्रकृति आदि किसी से भेदभाव नही करती, उसी प्रकार ॐ, वेद आदि भी समस्त मानव जाती के कल्याण हेतु है | यदि कोई इन्हें  केवल सनातनियों के ईश्वरत्व का प्रतिक मानें  तो इस हिसाब से सूर्य तथा समस्त ब्रह्माण्ड भी केवल हिन्दुओं का ही हुआ ना ? क्योकि सूर्य व ब्रहमांड सदेव ॐ का उद्घोष करते है (उपरोक्त फोटो देखें)


ॐ और Cymatics 
दोस्तों सर्वप्रथम समझते है की Cymatics क्या होता है ? ध्वनी से उत्पन्न तरंगों को मूरत रूप देना (making sound visible) Cymatics Science कहलाता है |
उदहारण के लिए यदि जल से भरे पात्र की दीवार पर चम्मच आदि से चोट करने पर जल में तरंगे प्रत्यक्ष दिखाई पड़ती है परन्तु यदि पात्र खाली हो तो ध्वनी तो सुनाई पड़ेगी किन्तु तरंग देखना संभव नही होगा । बस यही Cymatics  है | यह प्रयोग रेत के बारीख कणों, जल, पाउडर तथा ग्लिसरीन आदि पर किया जाता है |

 Cymatics Science  की आवश्यकता की अनुभूति इसलिए हुई क्यू की विभिन्न धार्मिक ग्रंथो में एक बात तो समान है की स्रष्टि की उत्पति एक 'शब्द' से हुई है !

“In the beginning was the Word, and the Word was with God, and the Word was God. He was in the beginning with God; all things were made through Him, and without him was not anything made that was made.”
– Bible, John 1:1


यहाँ प्रारंभिक ईश्वरीय शब्द का उल्लेख तो मिलता है किन्तु वो शब्द है क्या ? उसका गुण, उच्चारण कैसा है ? इस सन्दर्भ में जानकारी नही मिलती !
वो जानकरी मिलती है हमारे वैदिक ग्रंथो में ! और वो शब्द है ॐ (ओ३म्)

Quantum physics agrees that vibration (sound) is the essence of all forms in the creation. Sound vibration brings into being the visual world of forms.

The Rig Veda revealed long ago that this primal sound, this ‘Word of God’, is AUM (OM).


प्रक्रति  की उत्पत्ति तथा विकास को समझने में Cymatics ने अहम् भूमिका अदा की है और अभी भी इस पर अनेकों अनुसन्धान जारी है !


आधुनिक काल में  Hans Jenny (1904) जिन्हें cymatics का जनक कहा जाता है, ने ॐ ध्वनी से प्राप्त तरंगों पर कार्य किया ।
 Hans Jenny ने जब ॐ ध्वनी को रेत के बारीक़ कणों पर स्पंदित किया (resonate om sound in sand particles) तब उन्हें वृताकार रचनाएँ तथा उसके मध्य कई निर्मित त्रिभुज दिखाई दिए | जो आश्चर्यजनक रूप से श्री यन्त्र से मेल खाते थे । इसी प्रकार ॐ की  अलग अलग आवृति पर उपरोक्त प्रयोग करने पर अलग अलग परन्तु गोलाकार आकृतियाँ प्राप्त होती है ।
http://www.youtube.com/watch?v=a0h9-b5Knvg

इसके पश्चात तो बस जेनी आश्चर्य से भर गये और उन्होंने संस्कृत के प्रत्येक अक्षर (52 अक्षर होते है जैसे अंग्रेजी में 26 है) को इसी प्रकार रेत के बारीक़ कणों पर स्पंदित किया तब उन्हें उसी अक्षर की रेत कणों द्वारा लिखित छवि प्राप्त हुई । 


"Jenny also discovered that when the individual sounds of the Vedic Sanskrit alphabet are spoken, the written form of the letter appeared in the tonoscope. The sound of the letter is the vibratory form of the letter."



निष्कर्ष :
1. ॐ ध्वनी को रेत के बारीक़ कणों पर स्पंदित करने पर प्राप्त छवि --> श्री यन्त्र 
2. जैसा की हम जानते है श्री यन्त्र संस्कृत के 52 अक्षरों को व्यक्त करता है |
3.  -->श्री यन्त्र-->संस्कृत वर्णमाला
4. ॐ --> संस्कृत 
संस्कृत के संर्भ में हमने सदेव यही सुना की यह इश्वर प्रद्त  भाषा है ।
 ब्रह्म द्वारा सृष्टि उत्पति समय संस्कृत की वर्णमाला का अविर्भाव हुआ !
यह बात इस प्रयोग से स्पस्ट है की ब्रह्म (ॐ मूल) से ही संस्कृत की उत्पति हुई ।
 अब समझ में आ गया होगा संस्कृत क्यों देव भाषा/ देव वाणी कही जाती है !! 


 http://aumstar.com/the-big-bang-how-aum-created-the-cosmos/#2
http://shivyogi.weebly.com/srichakra.html

 
इसके पश्चात एक अन्य वैज्ञानिक Dr. Howard Steingeril ने कई मन्त्रों पर शोध किया और पाया की  गायत्री मन्त्र   सर्वाधिक शक्तिशाली है इसके द्वारा निर्मित तरंग देध्र्य   में 110,000 तरंगे/सेकंड की गति से प्राप्त हुई ।
http://mahamantragayatri.com/glossary.html  


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । । 

गायत्री मंत्र ऋग्वेद के छंद 'तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्' 3.62.10 और यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः से मिलकर बना है। 
इस मंत्र की सत्ता भी महामंत्र "" के समान मानी गयी है ! 

ॐ  के उच्चारण के कई शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक लाभ हैं । पढने के लिए यहाँ जाएँ :
vaidikdharma.wordpress.com/2013/01/16/ओ३म्-ॐ-मानवता-का-सबसे-बड़ा-धन 
 
कुण्डलिनी और Cymatics :
 योग विज्ञानं में मानव शरीर में सात उर्जा के केंद्र बताये गये है यथा मूलाधार चक्र,स्वाधिष्ठान, मणिपूर,
अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र तथा  सहस्रार । जिनके जाग्रति के अलग अलग मंत्र भी दिए गये है ।
प्रथम चक्र  मूलाधार चक्र है जहाँ शक्ति वास करती है और इसे कुण्डलिनी शक्ति कहते है । मूलाधार चक्र द्वारा इस शक्ति को क्रमश एक एक कर प्रत्येक चक्र को पार करना होता है । हम यहाँ इस विषय की ओर न जाकर Cymatics की ओर चलते है । 

कुण्डलिनी योग में शरीर में स्थित सात चक्रों को अलग प्रतिक तथा उनके मंत्र दिए गये  है  |
जिसका वर्णन हमें इस प्रकार मिलता है की प्रथम चक्र का नाम मूलाधार चक्र है ये चार  पंखुड़ियों का  कमल होता है । और इसकी जाग्रति का मंत्र ' लं ' (Lam) है ।

यदि इन सात चक्रों के सात मन्त्रों पर उपरोक्त(
Cymatics) प्रयोग किया जाये तो प्राप्त आकृतियाँ इसी प्रकार की होंगी जैसी चित्र में दर्शाई गई है |  इन सातों कमलों की प्रत्येक पंखुड़ी पर संस्कृत का एक अक्षर स्थित होता है अर्थात चक्र से
उच्चारित होता है | किन्तु अतिअल्प होने के कारन कानो द्वारा सुने जाने का तो प्रश्न ही नही ।
 इसी तथ्य पर आधारित आधुनिक अल्ट्रासाउंड, इकोग्राफी तथा सोनोग्राफी आदि के माध्यम से  शरीर के अंगो से उच्चारित ध्वनी को  सुना जाता है और प्राप्त ध्वनी तरंगो की गणना के पश्चात रोग का पता लगाकर निदान किया जाता है ।
इस प्रकार 6 चक्रों तक में संस्कृत के कुल 52 अक्षर तथा अंतिम चक्र में पुरे 52 अक्षर होते है जिसका मूल मंत्र है ॐ । जैसा की हम ऊपर देख चुकें है ।



 हमारे ऋषियों ने  इन  यंत्रों की संरचनाओं को जान लिया था । अब या तो वे दिव्य द्रष्टा थे अथवा ये प्रयोग वे हजारों वर्षों पूर्व  कर चुके थे जिस समय विदेशी डिनर के लिए भालू के पीछे भागते थे |
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...