tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post3344640012463472631..comments2023-08-21T20:08:03.188+05:30Comments on ॥ भारत-भारती वैभवं ॥: शिवभक्त दशानन की रस साधनाAmit Sharmahttp://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comBlogger58125tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-82232910871693382092013-07-20T17:49:55.188+05:302013-07-20T17:49:55.188+05:30thanks for the link sugya bhaiya :)thanks for the link sugya bhaiya :)Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-33564082039059852572013-07-20T17:19:18.221+05:302013-07-20T17:19:18.221+05:30http://www.indiblogger.in/iba/entry.php?edition=1&...http://www.indiblogger.in/iba/entry.php?edition=1&entry=38076सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-46624801193461689452013-07-20T16:37:16.140+05:302013-07-20T16:37:16.140+05:30i think today is my day to read old posts here.
p...i think today is my day to read old posts here.<br /><br />please support niramish at indiblogger awards. i do not know how to give the link - the link is at sugya ji's wallShilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-41555216780253044742012-05-18T11:36:43.056+05:302012-05-18T11:36:43.056+05:30ब्लॉगर डैश बोर्ड --> कमेंट्स --> स्पैम -->...ब्लॉगर डैश बोर्ड --> कमेंट्स --> स्पैम --> जो कमेन्ट छपने हो उन्हें क्लिक करें --> "not spam " क्लिक करें | टिप्पणियां प्रकाशित हो जायेंगी |<br /><br />by the way - my last comment has also gone to spam :)Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-21218263638067744772012-05-18T11:33:40.809+05:302012-05-18T11:33:40.809+05:30@ चर्चा ज़ारी रहनी चाहिये ..तब तक जब तक कि ज़मीनों...@ चर्चा ज़ारी रहनी चाहिये ..तब तक जब तक कि ज़मीनों के छोर एक न हो जायें। <br />आभार आपका |<br /><br />@ पूर्वाग्रह त्याग कर पढ़िये। <br />:) बात मेरे पूर्वाग्रह की नहीं है | पूर्वाग्रह है - इससे मैं इनकार नहीं करती - यही आरोप जमाल जी ने भी मुझ पर लगाया था की मैं कृष्ण को ईश्वर मानने का पूर्वाग्रह रखती हूँ | लेकिन यहाँ वह बात नहीं | यहाँ बात सीता माँ की कर रही हूँ मैं, और आप रावण के ज्ञानी होने की बात समझ रहे हैं | उस बात से तो मैं इनकार कर ही नहीं रही हूँ | <br /> <br />@ हमने रावण के वैज्ञानिक पक्ष और उसके अतिवाद दोनो को सामने लाने का प्रयास किया है। हठ करना एक अवैज्ञानिक प्रक्रिया है। आप रावण के चिकित्सक स्वरूप को स्वीकारना ही नहीं चाहतीं। <br />मैं चिकित्सीकीय बातों पर कुछ भी कहने की अधिकारी नहीं हूँ - क्योंकि मेरी इस विषय में कोई जानकारी ही नहीं है | {हाँ - यदि ऐसा था - तो श्री राम - जिन्होंने युद्ध जीतने केबाद लक्ष्मण को उससे नीतिज्ञान लेने भेजा - वे उसके इस वैज्ञानिक पक्ष को दबा देते - जिससे लाखों लोगों का भला हो सकता था - कुछ बात हजम नहीं होती |} फिर भी - मैं नहीं जानती इस बारे में - और मेरी आपत्ति इस पर है भी नहीं |<br /><br /><br />@ कोई बात नहीं आपके अस्वीकार से चौखम्भा प्रकाशन, वाराणसी वाले "रावणकृत नाड़ी विज्ञानम" नामक पुस्तक छापना बन्द नहीं करेंगे और न आयुर्वेद के चिकित्सक रावण द्वारा बनायी प्रसवोत्तर ज्वर के लिये सुविख्यात औषधि"प्रताप लंकेश्वर रस" का प्रयोग करना छोड़ेंगे। <br />मैं उनसे कह भी नहीं रही हूँ - यह उनके specialization के अंतर्गत आता है - मैं इसमें अधिकारी नहीं | लेकिन आप यहाँ रावण के चिकित्सिकीय पक्ष की ही नहीं - सीता / हनुमान / राम / अंगद / भक्त / भक्ति आदि की भी बातें कर रहे हैं | <br /><br />@ यदि यह चिट्ठा आज्ञा देगा तो हम तुरंत कूच करने के लिये तैयार हैं। <br />इस चिट्ठे और उस चिट्ठे की बात ही नहीं है | यह चिटठा आप ही का है - बाहरी तो यहाँ मैं लग रही हूँ | वैसे भी - मैं ही यहाँ अल्पमत में हूँ - बाकी सब की सोच तो आप ही को समर्थन देती हुई लग रही है | आपत्ति तो मैं अकेली ही कर रही हूँ | तो कूच यदि किसीको करना ही है - तो मेरे लिए अधिक उचित होगा शायद | <br /><br />@ जड़ता के विरुद्ध हमारा वैचारिक संघर्ष हमारे अपने ब्लॉग पर चलता रहेगा। <br />आप इसे भले ही मेरी जड़ता माने - यह आपका दृष्टिकोण है | मुझे ऐसा नहीं लगता | परन्तु यह भी वही बात है - इस पर आप कह सकते हैं कि जड़ता करने वाला यह कभी नहीं मानेगा की वह ऐसा कर रहा है | तो - let us agree to disagree on this point ....Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-12431266847613549682012-05-18T11:17:54.694+05:302012-05-18T11:17:54.694+05:30आदरणीय कौशलेन्द्र जी
मैं आपका बहुत आदर करती हूँ |...आदरणीय कौशलेन्द्र जी <br />मैं आपका बहुत आदर करती हूँ | आपका आदर सम्मान अपनी जगह है - मुद्दा अपनी जगह है | विमर्श से हाथ खींच लेने से अब कुछ होगा नहीं - क्योंकि एक बार इस तरह के तीर का संधान हो जाए - तो उसे वापस लेना संभव नहीं है | श्री राम ने भी परशुराम जी के कहने पर तीर साधा - तो उसे वापस नहीं लिया था (धनुष भंग के बाद) | मैं तो अब तक इस ब्लॉग के व्यवस्थापक भी आप ही को समझती थी | बात आप चाहे यहाँ लिखें या बस्तर की अभिव्यक्ति पर - बात वही रहती है | <br /><br />पिछली बार भी आपकी बात पर भी मैंने मुद्दे पर विरोध किया - तो आपने यही कहा की आप लिखना बंद कर देंगे | तब बात **निजी तौर** पर मेरे लिए लिखे जा रहे अपशब्दों की थी - तो मैं पीछे हट गयी थी | मैंने आपसे सार्वजनिक मंच पर माफ़ी भी मांगी, और आपने लेखन जारी भी रखा | लेकिन यहाँ बात मेरी नहीं, मेरी सीता मैया की है | <br /><br /><b>यदि ऐसे मुद्दों पर लेखन होगा - तो सहमती और असहमति तो अपेक्षित होगी ही | आप यदि सिर्फ रावण के योगदान तक ही बात कर रहे होते - तो बात और थी |</b> रावण महत ज्ञानी था - इसमें किसीको कोई इनकार शायद ही हो | ( यदि किसी को इनकार है - तो इस विषय में आप मुझे अपने साथ ही खडा पायेंगे - उन लोगों का विरोध करने में | मैं व्यक्ति पर नहीं - मुद्दे पर साथ भी होती हूँ, विरुद्ध भी | )<br /><br />किन्तु उसकी महानता दिखाते दिखाते आपने सीता माँ को उसका <b>गिनी पिग</b> बना दिया, उसके प्रयोगों से उन्हें जन्मा दिखा दिया ? भक्त अतिशयोक्ति करते हैं - यह जनरलाइज़ कर दिया ? क्या आप स्वयं भी यहाँ अतिशयोक्ति नहीं कर रहे ? क्या विज्ञान सिर्फ "scientific" अंदाजों के बल पर यह कह देने का साथ देता है कि ऐसा हुआ ही था ? क्या विज्ञान जेनेटिक टेस्ट्स के बिना वह सब मान लेगा जो आप सीता के विषय में कह रहे हैं ? आपके पास सुबूत हैं उस बात को सिद्ध करने के लिए जो आपने सीता जन्म के विषय में लिखी है ? आप खुद ही डॉक्टर हैं, जानते ही हैं कि विज्ञान किसी भी चीज़ को सिर्फ लोजिकल लगने की वजह से नहीं, बल्कि ठोस प्रमाण पर ही लिखने की इजाज़त देता है | are you (or me, or anyone of us here ) authorized to declare these things as universal truths ? <br /> <br />इश्वर के अवतार, और उनके संगी, जब भी आते हैं - उनके आने से चमत्कार जुड़े होते हैं | सीता जी के आने की कथा भी है - यहाँ उसकी चर्चा करना संभव ही नहीं है, रामायण पर मैं एक कविता शृंखला लिख रही हूँ (आप भी उसे पढ़ रहे थे पहले) - परन्तु उसमे भी मैंने इस विषय को छूने का साहस नहीं किया | इसके लिए एक अलग ही शृंखला चाहिए होगी शायद | <br /><br />गीता जी में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं (जन्म कर्म च में दिव्यम .... वाले श्लोक में ) - कि मेरा आना हमेशा मेरा अपना निर्णय है, मैं साधारण जीव की तरह कर्म फल में बंध कर / अज्ञान में जन्म नहीं लेता, - बल्कि मैं अपनी प्रकृति को अपने अधीन कर के प्रकट होता हूँ, और यहाँ विचरता हूँ | मुझे मनुष्य रूप में विचरते देख कर मूर्ख जन मुझे साधारण मनुष्य समझ कर बहुत कुछ कहते हैं मेरे बारे में | ..... ठीक यही बात सीता जी और राधा जी पर भी लागू है | आप वैज्ञानिक दृष्टि से इसे किसी भी रूप में समझने के प्रयास करें, उसे समझना विज्ञान के बस में ही नहीं है | <br /><br />जीज़स भी "virgin mary " के ईश्वर दत्त पुत्र हैं - यह भी चमत्कार ही है | आप खुद ही डॉक्टर हैं, जानते ही हैं कि विज्ञान तो यह बात मान ही नहीं सकता | किन्तु मेरा दृढ़ विश्वास है कि वे "virgin mary " के ईश्वर दत्त पुत्र ही हैं, और ऐसे दिव्य जन्मों के सम्बन्ध में ऐसा होना न सिर्फ संभव है, बल्कि अपेक्षित भी है | इसकी वैज्ञानिक विवेचना भी हो सकती है - बड़ी आसानी से | लेकिन क्या इसाई जन इस बात की वैज्ञानिक विवेचना करते दीखते हैं ? यदि करते भी हैं, तो वे यह नहीं कहते कि हम इसाई धर्म को विनष्ट होने से बचाने के लिए यह कर रहे हैं |<br /><br />@ आदरणीय प्रतुल जी <br />इस विमर्श से हाथ खींचना अब संभव है क्या प्रतुल जी ? may be अच्छा होता यदि यह शुरू न होता - परन्तु आरम्भ के बाद इसे पीछे लेना संभव है ?Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-24684258379621971602012-05-17T19:46:52.802+05:302012-05-17T19:46:52.802+05:30@ तब तो मेरे लिए इसके आगे चर्चा ही संभव नहीं होगी,...@ तब तो मेरे लिए इसके आगे चर्चा ही संभव नहीं होगी, हम दो अलग अलग ज़मीनों पर खड़े हैं |<br />शिल्पा जी! यदि आपको लगता हैकि हम अलग-अलग ज़मीनों पर हैं तब तो चर्चा ज़ारी रहनी चाहिये ..तब तक जब तक कि ज़मीनों के छोर एक न हो जायें। <br />आपने एक और आपत्ति की है मैने राम को दोषी और रावण को निर्दोष ठहाराने का प्रयास किया है। कृपा करके अंतिम पैरा फिर से पढें,और देखें कि मैने क्या सन्देश देने का प्रयास किया है। <br />आपकी ताज़ी प्रतिक्रिया देखी,लगता हैकि आपने ज़ल्दी में आलेख पढ़ा है। पुनाः ध्यान से और पूर्वाग्रह त्याग कर पढ़िये।<br />हमने रावण के वैज्ञानिक पक्ष और उसके अतिवाद दोनो को सामने लाने का प्रयास किया है। हठ करना एक अवैज्ञानिक प्रक्रिया है। आप रावण के चिकित्सक स्वरूप को स्वीकारना ही नहीं चाहतीं। कोई बात नहीं आपके अस्वीकार से चौखम्भा प्रकाशन, वाराणसी वाले "रावणकृत नाड़ी विज्ञानम" नामक पुस्तक छापना बन्द नहीं करेंगे और न आयुर्वेद के चिकित्सक रावण द्वारा बनायी प्रसवोत्तर ज्वर के लिये सुविख्यात औषधि"प्रताप लंकेश्वर रस" का प्रयोग करना छोड़ेंगे। यदि पूरा विश्व नेत्ररोगों के लिये राजा जनक का ऋणी है तो प्रसूति और कौमार्भृत्य के लिये रावण और महर्षि कष्यप का ऋणी रहेगा। विज्ञान के क्षेत्र में रावण के योगदान की सराहना न करना हमारे लिये अकृतज्ञता होगी। हम खिड़कियाँ खोलकर चिंतन करने में विश्वास रखते हैं। वैचारिक पूर्वाग्रह जड़ता है जोकि हमारे स्वभाव में नहीं है। यदि यह चिट्ठा आज्ञा देगा तो हम तुरंत कूच करने के लिये तैयार हैं। जड़ता के विरुद्ध हमारा वैचारिक संघर्ष हमारे अपने ब्लॉग पर चलता रहेगा।बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-73029546707041683742012-05-17T19:24:13.244+05:302012-05-17T19:24:13.244+05:30शिल्पा जी! श्रद्धा के मूल्यांकन पर एक लम्बी टिप्पण...शिल्पा जी! श्रद्धा के मूल्यांकन पर एक लम्बी टिप्पणी लिखी थी जब क्लिक किया तो नेटवर्क गोल..और टिप्पणी हज़म। प्रतुल जी की चिट्ठी मिली कि इस विमर्श से मुझे हाथ खीच लेना चाहिये ....हाथ तो नहीं खीचूँगा पर अपने ब्लॉग पर शीघ्र ही एक लेख लिखूँगा। <br />इस चिट्ठे के प्रबन्धनकर्ताओं से विनम्र निवेदन हैकि यदि उन्हें ऐसा प्रतीत भी हो कि मेरे लेख उनकी मर्यादा और चिट्ठे के उद्देश्य से अलग हैं तो वे निःसंकोच मुझे सूचित करदें। मैं आपके चिट्ठे की मर्यादाओं का सम्मान करूँगा। तब तक इस कड़ी का अगला लेख "श्रद्धा का मूल्याँकन" मेरे अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया जायेगा।बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-6682936064014318962012-05-17T16:43:47.500+05:302012-05-17T16:43:47.500+05:30एक अपील :
यदि अमित शर्मा जी इस चर्चा पर दृष्टि र...एक अपील : <br /><br />यदि अमित शर्मा जी इस चर्चा पर दृष्टि रखें हैं तो इतना अवश्य करें कि वे स्पाम में जाती हुई टिप्पणियों को जाने से रोकें... इसे रोकने का मुझे कोई तकनीकी उपाय नहीं आता.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-73106082930035082792012-05-17T16:39:15.714+05:302012-05-17T16:39:15.714+05:30शिल्पा जी, अवसर तो दीजिये अपनी बात पूरी तरह स्पष्ट...शिल्पा जी, अवसर तो दीजिये अपनी बात पूरी तरह स्पष्ट करने का... पूर्वाग्रह इस कदर भी नहीं होना चाहिए कि सामने वाले वक्ता की हर बात कुफ्र लगे..... वे वर्तमान सन्दर्भ की बात कर रहे हैं... आजादी मिलने के बाद क्या हुआ.... बलिदानी भाव रखने वालों को सत्ता हवाले नहीं हुई और न ही उन्हें कोई विशेष तमगे मिले... अपनी आस्था को अंधत्व की और नहीं धकेलिए.... जब आरम्भ में कबीर ने अपने 'राम' को 'दशरथ नंदन राम' से भिन्न कहा तो लोग उन्हें मारने दौड़े.... लेकिन आज जब कबीर पढ़े जाते हैं तब लगता है वास्तव में उनके 'राम' का कद 'तुलसी के 'राम' के कद से कतई कमतर नहीं.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-59716855879744712102012-05-17T16:27:04.732+05:302012-05-17T16:27:04.732+05:30आप सब मुझ से बहुत वरिष्ठ और अनुभवी हैं ब्लॉग जगत म...आप सब मुझ से बहुत वरिष्ठ और अनुभवी हैं ब्लॉग जगत में | मैं तो यहाँ बहुत नयी हूँ | आपका आदर भी अपनी जगह है, स्वतंत्र चिंतन की और स्वतंत्र अभिव्यक्ति की अवधारणायें भी अपनी जगह हैं | न तो मैं आपको यह सब लिखने से रोक सकती हूँ, न रोक रही हूँ - मुझे इसका अधिकार है ही नहीं | परन्तु जो मुझे hurting लगेगा - कहूँगी ज़रूर |<br /><br />@ शिल्पा जी, वैचारिक धरातल पर हम सब एक समान हैं... वरिष्ठ और कनिष्ठ होने का प्रश्न नहीं.... हमारी आयु अथवा अनुभव की वरिष्ठता मात्र इतनी छूट चाहती है कि वह यह बता सके कि हमारे प्रयास छोटे-बड़े के भेद को समाप्त करने वाले हैं. इसलिये आपको हर्ट नहीं होना चाहिए. आप जानते ही होंगे कि महात्मा कबीर के राम तुलसी के राम से भिन्न थे.. और तुलसी के राम वाल्मीकि के राम से भिन्न रहे. <br /><br />पिछले दिनों संसद की षष्टिपूर्ति के अवसर पर लालकृष्ण आडवानी ने संसद में के बात कही जो काफी सराही गई - "भारत में विपरीत मत वालों को भी सम्मान दिया जाता रहा है. सम्मान ही नहीं बहुत आदर दिया जाता है." उन्होंने फिर ऋषि चार्वाक का दृष्टांत दिया जो कि वैदिक ऋषियों से ठीक उलट बात करता था. फिर भी उन्हें ऋषि कहा गया. यहाँ पर फिर भी हम कथाओं की वैज्ञानिक विवेचना मात्र चाहते हैं. मैं इतना विश्वास दिलाता हूँ कि कुछ भी अनुचित नहीं होगा. फिर भी यदि इस वैचारिक शृंखला पर अपनी खिन्नता व्यक्त करती हैं तो उसका भी सम्मान है... मैं आचार्य कौशलेन्द्र जी कहूँगा कि वे अपना मंतव्य रखते हुए अपने इस महती कार्य से हाथ खींच लें.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-82925536632548117022012-05-17T16:07:12.625+05:302012-05-17T16:07:12.625+05:30@ राम को ब्रह्महत्या के कारण प्रायश्चित भी करना ...@ राम को ब्रह्महत्या के कारण प्रायश्चित भी करना पड़ा था। <br />बिलकुल सच है | मर्यादा पुरुषोत्तम थे राम - उन्होंने वह किया जो मानव मर्यादा करने को कहती है | सिर्फ उन्हें ही नहीं - इससे पहले इन्द्रदेव ने भी ब्रह्महत्या के पाप को अपने सर पर लिया था - जिसे उतारने के लिए वे नदियों आदि के ऋणी हुए | रावण ब्राह्मण पुत्र तो था ही - इसमें किसी तरह का कोई संदेह है ही नहीं | <br /><br />@ यह भी हम नहीं कह रहे, तुलसी जी कह रहे हैं।<br />वही तुलसी जी ही राम को प्रभु भी कहते हैं - और रावण को पापी भी | लेकिन वहां शायद आप तुलसी से सहमत न होंगे | वह आपको भक्त की अतिशयोक्ति लगे शायद ? निश्चित ही रावण ज्ञानी था - इसमें तुलसी भी विरोध नहीं करते - न ही वाल्मीकि जी | किन्तु वह पापी था - यह भी वे ही ज्ञानीगुरु कह रहे हैं | <br /><br /><br />@ राम ने लक्ष्मण को नीति सीखने भेजा था |<br />- हाँ - भेजा था | तो ? उसका पाप पाप न रहा यदि वह नीति का ज्ञाता था ? राम की पत्नी (स्त्री) सीता का धोखे से अपहरण करना पापी नहीं बनाता उसे ? <br /><br />वैसे मैं आपके लिखे से सहमत तो नहीं हूँ - परन्तु यदि उसपर भी हम चलें - तो - आप कह रहे हैं की वह एक doctor था जो test tube babies पर experiment करने के लिए यह सब कर रहा था | आप स्वयं एक डॉक्टर भी हैं | क्या मेडिकल साइंस इजाज़त देती है एक स्त्री का अपहरण कर के ऐसे एक्सपेरिमेंट्स करने की ? ऐसे doctors के लाइसेंस कैंसल नहीं किये जाते ? क्या यह आपकी परिभाषा में "पाप" की श्रेणी में नहीं आता ? <br /><br />@ प्रभु तो निर्दोष होता है जबकि प्रायश्चित किसे करना पड़ता है यह सबको पता है।<br /> किसे करना पड़ता है ? पापी को ? तो क्या आप कह रहे हैं कि राम पापी और रावण निर्दोष (बल्कि आपके शब्दों में - "योग्य व्यक्ति" ) थे ?Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-17234384375728966422012-05-17T15:48:10.318+05:302012-05-17T15:48:10.318+05:30अच्छा | तो इस तर्ज़ पर क्या रावण "योग्य व्यक्...अच्छा | तो इस तर्ज़ पर क्या रावण "योग्य व्यक्ति" है - जिसे अवसरवादी राम ने सिंहासनारूढ़ होने के power के कारण पीछे धकेल दिया ? तब तो मेरे लिए इसके आगे चर्चा ही संभव नहीं होगी, हम दो अलग अलग ज़मीनों पर खड़े हैं | आप लोग अपनी चर्चा जारी रखिये | <br /><br />आभार |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-75487405931613928412012-05-17T15:34:30.361+05:302012-05-17T15:34:30.361+05:30त्रुटि सुधार- "नकारात्मक पक्ष" के स्थान ...त्रुटि सुधार- "नकारात्मक पक्ष" के स्थान पर 'सकारात्मक पक्ष' पढ़ा जाय।बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-76783387948384743262012-05-17T15:31:46.888+05:302012-05-17T15:31:46.888+05:30प्रतुल भाई! थोड़ा सा विषयांतर करने के लिये क्षमाप्र...प्रतुल भाई! थोड़ा सा विषयांतर करने के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ। हम सब जानते हैं कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय के कई अवसरवादी लोग भारत के नायक बन गये। आने वाले दो हज़ार साल बाद वे भी अवतार घोषित हो जायं तो आश्चर्य नहीं। यह भारत का दुर्भाग्य रहा है कि यहाँ सत्य को नेपथ्य में धकेलने के प्रयास होते रहे हैं। भारत सरकार की दृष्टि में चन्द्रशेखर,सुभाष, और भगत सिंह जैसे लोग सेनानी की श्रेणी में हैं ही नहीं। दो हज़ार साल बाद ये भी पापियों और राक्षसों की श्रेणी में होंगे। सिंहासनारूढ़ होते समय भी योग्य व्यक्तियों को पीछे धकेल दिया गया....और तथाकथित महान लोग देश के भाग्यविधाता बन बैठे।बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-53982895782114761102012-05-17T15:22:18.645+05:302012-05-17T15:22:18.645+05:30मैने किसी चरित्र का अपमान नहीं किया है। हाँ केवल र...मैने किसी चरित्र का अपमान नहीं किया है। हाँ केवल रावण के नकारात्मक पक्ष को सामने लाने का प्रयास भर किया है। और यह प्रयास करने से तुलसीदास भी स्वयं को रोक नहीं पाये। उन्होंने दुनिया को बताया हैकि रावण के अंतिम समय में राम ने लक्ष्मण को नीति सीखने भेजा था। जो नीति सिखाने वाला है वह गुरु है। गुरु पापी कैसे हो सकता है शिल्पा जी? यह तो भारत की आर्षपराम्परा में नहीं है। न हमारा धर्म ही ऐसा हमें सिखाता है । इतना ही नहीं राम को ब्रह्महत्या के कारण प्रायश्चित भी करना पड़ा था। यह भी हम नहीं कह रहे, तुलसी जी कह रहे हैं। प्रभु तो निर्दोष होता है जबकि प्रायश्चित किसे करना पड़ता है यह सबको पता है।बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-86054535846010131712012-05-17T14:49:31.101+05:302012-05-17T14:49:31.101+05:30प्रतुल जी - आपका आभार |
क्या ऐसा कोई "रचनात...प्रतुल जी - आपका आभार | <br /><br /><b>क्या ऐसा कोई "रचनात्मक" लेख, जीज़स या मुहम्मद के बारे में, कोई इसाई या मुसलमान लिख सकता है ?</b> ---- कभी नहीं !!! यह सिर्फ हम हैं जो अपने आराध्यों को इस तरह से "स्वतंत्र चिंतन" के नाम पर "नाटिका के पात्रों" मात्र में बदलने का सोच भी पाते हैं | :(<br /><br />आप सब मुझ से बहुत वरिष्ठ और अनुभवी हैं ब्लॉग जगत में | मैं तो यहाँ बहुत नयी हूँ | आपका आदर भी अपनी जगह है, <b>स्वतंत्र चिंतन की और स्वतंत्र अभिव्यक्ति की अवधारणायें भी अपनी जगह हैं </b> | न तो मैं आपको यह सब लिखने से रोक सकती हूँ, न रोक रही हूँ - मुझे इसका अधिकार है ही नहीं | परन्तु जो मुझे hurting लगेगा - कहूँगी ज़रूर |<br /><br />मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा की "हल्ला बोल" जैसे ब्लॉग के व्यवस्थापक ऐसा लेख लिख सकते हैं | :( | यह भी देखती हूँ की मेरे अतिरिक्त यहाँ सभी इस लेख की प्रशंसाओं के कसीदे पढ़ रहे हैं - तो शायद मैं "दकियानूसी" दिख रही होउंगी यह टिप्पणियां लिख कर - परन्तु क्या करूँ | मेरी धार्मिक भावनाएं तो आहत कर ही रहा है यह लेख | वैसे भी in this blog world, अभी तो मुझ पर बड़े शब्द बाण बरस रहे हैं कई ओर से - तो यहाँ से भी सही | जो मुझे मेरी आत्मा ने कहा - मैंने यहाँ कह दिया | आप इसे मेरा ईमानदार expression समझें, या इसे interference मानें - यह आपका अधिकार और नजरिया रहेगा | <br /> <br />किन्तु आप खुद ही सोचिये - की यह लेख "भारत भारती वैभवं" नामक ब्लॉग पर है | हमारे ब्लॉग जगत में कितने ही महाज्ञानी (???) हैं जो पहले ही यह साबित करने के प्रयासों में लगे हैं की श्री राम और सीता ( सिर्फ अतिरिक्त प्रतिभावान ) मानवमात्र थे - जो लोग "राम, सीता, जनक, रावण" आदि नामों को गूगल सर्च में ढूंढते हुए हर वह "हिन्दू" लिखित लेख ढूंढते हैं - जिसमे किंचित भी इशारा किया गया हो उनके व्यक्तित्व पर | अब इस लेख को तो वे कुबेर के खजाने की तरह publicise करेंगे |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-14757415950070588062012-05-17T13:14:14.331+05:302012-05-17T13:14:14.331+05:30बाक़ी चर्चा थोड़ी देर में...बाक़ी चर्चा थोड़ी देर में...प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-16995456812738952832012-05-17T13:11:32.777+05:302012-05-17T13:11:32.777+05:30किसी को कोई अधिकार नहीं बनता in general भक्ति पर स...किसी को कोई अधिकार नहीं बनता in general भक्ति पर सवालिया निशान लगाने का | <br /><br />@ वैसे कौशलेन्द्र जी भली प्रकार कह सकते हैं.... फिर भी मैं इतना तो कह सकता हूँ कि 'भक्ति के ड्रामे' में तमाम कर्मकांड अपेक्षित हैं. भौतिक वस्तुओं की चाहना है. भीड़ चाहिए, मध्यस्थ चाहिए... घंटे-घड़ियाल चाहिए... किन्तु 'दिखावटी नास्तिक की भक्ति' में मात्र मन चाहिए. पाखंडों की पोल खोल यदि विमर्श से दूरी बनाएगी... तब निर्मल बाबाओं के दरबार बंद ऑडिटोरियम में सजते रहेंगे. हम तो मात्र विमर्श कर रहे हैं... हमारी सोच कई मंचों [निरामिष और नारी जैसे] पर समान हो सकती है फिर भी इस मंच पर असमान होते हुए भी सभा योग्य है. सभा में भाँति-भाँति के विचारक होते हैं.वे सब किसी एक विषय पर मत देने के लिये स्वतंत्र हैं, तर्क ही एकमात्र कसौटी होती है, जिससे वे पक्ष और विपक्ष में बँटते हैं. फिर भी सभा भंग नहीं होती. <br /><br />यहाँ लेखक पुरानी सामग्री को नये साँचों में ढाल रहा है.... और उसका इरादा बहुत ही नेक है... भक्ति पर सवालिया निशान कतई नहीं है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-2031684743622273012012-05-17T12:52:25.733+05:302012-05-17T12:52:25.733+05:30बात करने के प्रवाह में व्याकरणिक दोहरावट की त्रुटि...बात करने के प्रवाह में व्याकरणिक दोहरावट की त्रुटियाँ होती चल रही हैं... कृपया उस बात को नज़रअंदाज़ करियेगा.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-12644116528856836062012-05-17T12:49:44.259+05:302012-05-17T12:49:44.259+05:30i object - आप इस ब्लॉग को भारत भारती वैभवं कहते है...i object - आप इस ब्लॉग को भारत भारती वैभवं कहते हैं - कृपया इसे हिन्दू धार्मिक कथाओं को science fiction में convert करने की खेलस्थली न बनाएं |<br /><br />@ शिल्पा जी, यहाँ वास्तविक रामराज्य है... अर्थात खुले द्वार की नीति है... यहाँ सभी लेखनधर्मियों के विचार प्रदर्शित होने के लिये तालों के खुलने की प्रतीक्षा नहीं करते. <br /><br />जहाँ प्रतिबंध होगा.. वहाँ छोटी-से-छोटी अभिव्यक्ति भी आने से घबराएगी. प्रतिबंधों में ग़लत मंसूबे अपना घर बनायेंगे. मैं कहता हूँ कि लगभग हिन्दू कथाएँ वैज्ञानिक हैं... बस उनकी आलंकारिक भाषा को व्याख्या चाहिए. <br /><br />जब अलंकार टूटता है तभी कथा का वास्तविक सौन्दर्य प्रकट होता है. बौद्धिक विचार-विमर्श की ही भूमि ही तो है ये सामूहिक ब्लॉग. बस इस बात का ध्यान रखना सभी का दायित्व है कि चर्चा का स्वास्थ्य बरकरार रहे.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-60927559858714950882012-05-17T12:36:57.572+05:302012-05-17T12:36:57.572+05:30आप सब ज्ञानीजन हैं - एक दुसरे को बढ़ावा दे रहे हैं...आप सब ज्ञानीजन हैं - एक दुसरे को बढ़ावा दे रहे हैं - किन्तु यही experimentation mentality ही हमारी धार्मिक कथाओं के रूप को बिगाड़ रही हैं |<br /><br />@ ज्ञानीजन में जनानियाँ भी शामिल हैं... चर्चा सुख तभी मिलता है जब समर्थन के साथ आपत्ति भी दर्ज होती रहे. <br /><br />शिल्पा जी, यदि धार्मिक कथाएँ यदि बेतुकी लगती हों, जटिल आवरण में कैद होने के कारण से वे असहज और अस्वभाविक प्रतीत होती हों, तब हम सब का यह कर्तव्य होना चाहिए कि कुछ उनपर बात की जाये. समय-समय पर ऐसा होता भी रहा है. तभी तो रामकथा के एकाधिक रूप उपलब्ध हैं. फादर कामिल बुल्के ने 'रामकथा' पर जितना शोध किया उतना शायद ही किसी ने किया हो... भारत में वे ही एक ऐसे हैं जिनका शोधग्रंथ प्रथम बार हिंदी में और देवनागरी लिपि में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रतुत हुआ, बेशक उसके प्रकाशन में काफी समय लगा.... 'रामकथा' पर आज किसी एक का अधिकार नहीं रहा... सभी अपने प्रयासों से 'रामकथा' कहकर भारत के वैभव को ही बढ़ा रहे हैं.<br /><br />— कुत्सित प्रयास पथम दृष्टि में ही पहचान लिये जाते हैं... 'धर्म' और 'मूल्यों' को लेकर जितना आप सचेत हैं... उतना ही ब्लॉग का हर लेखक है.... ऐसा मुझे विश्वास है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-12072654368459011512012-05-17T12:19:22.537+05:302012-05-17T12:19:22.537+05:30अवतार गाथाओं को, माता सीता जी को, पापी रावण को, प्...अवतार गाथाओं को, माता सीता जी को, पापी रावण को, प्रभु राम को, भक्त हनुमान को ....... - इस तरह से - दर्शाने के मैं सख्त खिलाफ हूँ | <br /><br />@ आदरणीया शिल्पा जी, <br /><br />आपकी आपत्ति का सम्मान करते हुए आपसे अनुरोध करता हूँ.... कि आप ब्लॉग लेखकों के स्वतंत्र चिंतन को विमर्श करने दें.... मुझे विश्वास है कि इससे धर्म को किसी प्रकार की क्षति न होने पायेगी. न ही किसी प्रकार के सत-आचरणों, मूल्यों की खिलाफत होने पायेगी. जो हमारे वैदिक धर्म के नियामक तत्व हैं उनसे विपरीत हम सोच भी नहीं सकते.<br /><br />व्यवस्थापक होने के कारण मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ भविष्य में हम अपनी कथाओं को नये सिरे से खंगालेगे जरूर लेकिन बेतुके कयास नहीं लगायेंगे. हर युग में इस तरह की छूट तो लेखक लेता रहा है. <br /><br />— 'भारत भारती वैभवं' ऎसी कोई क्रीड़ास्थली नहीं बनेगी जिसमें 'वास्तविक धर्म' का निरादर किया जायेगा. <br /><br />— भीड़ तो मदारी भी लगा लेता है लेकिन संख्या बल होने से ही कोई अनुचित बात सही साबित नहीं हो जाती. तर्क सबकी कसौटी है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-1448118370334129542012-05-17T10:51:11.077+05:302012-05-17T10:51:11.077+05:30@ @ अनुराग जी उवाच-
@ भक्तों की श्रद्धा का मूल्य ...@ @ अनुराग जी उवाच-<br />@ भक्तों की श्रद्धा का मूल्य जानना चाहता हूँ ...<br />@ उस श्रद्धा का मूल्य ही क्या ...<br /><br />श्रद्धा का भी मूल्यांकन होता है ? प्रेम, भक्ति और श्रद्धा के मूल्य नापे जा सकते हैं ?<br /><br />अपने निजी विश्वासों और मतभेदों के चलते आप लोग भक्ति को ही कटघरे में खड़ा कर रहे हैं ?<br /><br />अनुराग जी क्या मानते हैं / आप (कौशलेन्द्र जी) क्या मानते हैं / प्रतुल जी क्या मानते हैं / मैं क्या मानती हूँ - ये हम निजी व्यक्तियों के अपने निजी विचार हैं | किसी को कोई अधिकार नहीं बनता in general भक्ति पर सवालिया निशान लगाने का | लोक कहानियाँ भरी पड़ी हैं इन बातों से, कि भक्त की भक्ति और श्रद्धा को साबित करने के लिए उनके आराध्य देवी / देवता खुद कई बार कई चमत्कार दिखाए रहे | इनमे से कई बातें अतिशयोक्ति भी हो सकती हैं - तो कई नहीं भी होंगी | अब रामसेतु पर ही - सुप्रीम कोर्ट तक में बहस चली - कि वह है क्या ? परन्तु उत्तर अब तक न आये | <br /><br />@ प्रतुल जी - आप ने कई उदाहरण दिए जिनमे भक्त कहलाने वालों ने अतिशयोक्तियाँ की | इसका अर्थ यह नहीं की आप सब अपने आप को judge and jury बना कर भक्ति की परिभाषाएं गढ़ने लगें, सभी भक्त अतिशयोक्ति करते हैं ऐसा axiom स्थापित कर दें | भक्तों को अपनी भक्ति / अतिशयोक्ति आदि आदि के लिए किसी से certificate नहीं चाहिए |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-34153855405676595962012-05-17T10:18:30.626+05:302012-05-17T10:18:30.626+05:30अवतार गाथाओं को, माता सीता जी को, पापी रावण को, प्...अवतार गाथाओं को, माता सीता जी को, पापी रावण को, प्रभु राम को, भक्त हनुमान को ....... - इस तरह से - दर्शाने के मैं सख्त खिलाफ हूँ | आप सब ज्ञानीजन हैं - एक दुसरे को बढ़ावा दे रहे हैं - किन्तु यही experimentation mentality ही हमारी धार्मिक कथाओं के रूप को बिगाड़ रही हैं |<br /><br />i object - आप इस ब्लॉग को भारत भारती वैभवं कहते हैं - कृपया इसे हिन्दू धार्मिक कथाओं को science fiction में convert करने की खेलस्थली न बनाएं |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.com