tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post5610290127359482694..comments2023-08-21T20:08:03.188+05:30Comments on ॥ भारत-भारती वैभवं ॥: क्षुद्रता के विविध रूपAmit Sharmahttp://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-22102912807967921462010-11-14T16:08:29.688+05:302010-11-14T16:08:29.688+05:30उत्तम विचार !
बाल दिवस की शुभकामनायें !उत्तम विचार !<br />बाल दिवस की शुभकामनायें !Indranil Bhattacharjee ........."सैल"https://www.blogger.com/profile/01082708936301730526noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-18956127733624630522010-11-14T15:25:53.287+05:302010-11-14T15:25:53.287+05:30प्रतुल जी,
अर्थार्त, मायापूर्ण स्वीकारोक्ति, और प...प्रतुल जी,<br /><br />अर्थार्त, मायापूर्ण स्वीकारोक्ति, और परिमार्जन ध्येयी स्वालोचना ?सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-37641586823098961462010-11-14T14:10:25.135+05:302010-11-14T14:10:25.135+05:30..
सुज्ञ जी,
क्षुद्रताओं की स्वयं द्वारा सहज स्व.....<br /><br />सुज्ञ जी, <br />क्षुद्रताओं की स्वयं द्वारा सहज स्वीकृति सज्जनता है, <br />किन्तु परिमार्जन का भाव उसकी अनिवार्यता है अन्यथा वह यशलोलुपतापूर्ण स्पष्टवादिताकहलायेगी. <br /><br /><br />@ हमें अपने जीवन में ऐसे सज्जन बड़ी संख्या में मिलते हैं जो अपनी विगत बुराइयों और कुकर्मों को गाते हैं और भोले और सरल ह्रदय वालों का वर्तमान विश्वास अर्जित करते हैं. वे वास्तव में सज्जन तब कहलाने योग्य माने जाने चाहिए जब उनकी विगत बुराइयों में परिमार्जन का भाव निहित हो, मतलब वे बुराइयों को छोड़ने के हिमायती हों. <br />जैसे कोई पुराना शराबी शराब के नुकसान बताये और कहे कि मैं पहले बहुत शराब पीता था. पीकर गाली-गलौज करता था, मारता-पीटता था, लेकिन मुझे अब शराब के नुकसान पता चल गये हैं. मैं जान गया हूँ कि शराब आत्मा का नाश करती है. <br /><br />.................. ये स्पष्टवादिता है प्रसिद्धि पाने के लिये. <br /><br />ब्लॉग जगत से उदाहरण : <br />यदि मो सम कौन वाले संजय जी अपनी कारगुजारियों की लगातार पोस्टें लगाएँ और कहें मैं बेहद शरारती और उच्छृंखल रहा हूँ जीवन में. और उनकी पोस्टों को पढ़कर टिप्पणीकार उनकी स्पष्टवादिता के कायल होकर प्रशंसा करें. <br />लेकिन संजय जी में अपनी विगत बुराइयों को पहचानकर भी परिमार्जन का भाव न हो. तब यह स्पष्टवादिता यशलोलुपतापूर्ण कहलायेगी. <br />________________<br /><br />मित्र संजय, आप बुरा नहीं मानियेगा क्योंकि मुझे समझाने में आस-पास के घटक लेकर समझना पसंद है. मेरी जानकारी में आप ही एक ऐसे व्यक्ति हैं जो स्वयं को अपशब्दों से जोड़कर ब्लॉगजगत में घूम रहे हैं. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-18516162194339322122010-11-14T13:45:26.352+05:302010-11-14T13:45:26.352+05:30..
सुज्ञ G,
आपने मेरी विस्तार शैली को कुछ संक्षे.....<br /><br />सुज्ञ G, <br />आपने मेरी विस्तार शैली को कुछ संक्षेप कर दिया. <br />वाह! <br />मनोगत और व्यवहारगत ............... ठीक शब्द लगते हैं <br />मेरे भावों के लिये एकदम उपयुक्त आवरण दिया है आपने. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-59246974131458121522010-11-14T13:25:31.825+05:302010-11-14T13:25:31.825+05:30किन्तु परिमार्जन का भाव उसकी अनिवार्यता है अन्यथा ...किन्तु परिमार्जन का भाव उसकी अनिवार्यता है अन्यथा वह यशलोलुपतापूर्ण स्पष्टवादिता कहलायेगी. <br /><br />इसे थोडा स्पष्ठ करें।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-19331252410224265672010-11-14T13:22:06.612+05:302010-11-14T13:22:06.612+05:30@ छिपाकर रखने में वैयक्तिक प्रयास [स्वाभावगत] किये...@ छिपाकर रखने में वैयक्तिक प्रयास [स्वाभावगत] किये जाते हैं जबकि उजागर ना होने देने में योजनायें [बाह्य प्रयास] बनानी होती हैं. वृहत प्रयास होते हैं, समाज का सहयोग लेना होता है. <br /><br />छिपाकर रखना: मनोगत और उजागर ना होने देना : व्यवहारगत। क्या यह ठिक है ?सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-65176485425715336442010-11-14T11:57:22.246+05:302010-11-14T11:57:22.246+05:30..
आदरणीय महेंद्र वर्मा जी,
सचमुच,हीरा भी कोयले .....<br /><br />आदरणीय महेंद्र वर्मा जी, <br />सचमुच,हीरा भी कोयले का ही प्रतिरूप है। ...<br />@ क्या रूपकात्मक प्रतिक्रिया दी है आपने ! आनंद आया. <br />आपने क्षुद्रता को जिस सन्दर्भ में हीरा ठहराया है काबिले तारीफ़ है. <br />अपने कई कोयलीय अर्थों के साथ क्षुद्रता अपने विशाल और बहु अर्थीय हीरीय चमक को दे पाया. इसे पारखी दृष्टि वाले जौहरी ही जानते हैं. <br />आपका पोस्ट पर आना मेरे लिये पोस्ट लिखना सार्थक कर गया. धन्यवाद.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-82229039419687570602010-11-14T11:46:48.523+05:302010-11-14T11:46:48.523+05:30???
त्रुटि संशोधन :
*साधता को सधता समझें.
वाक्य...???<br /><br />त्रुटि संशोधन : <br />*साधता को सधता समझें. <br />वाक्य है : <br />ऐसे कार्य जिनसे केवल अपना हेतु सधता हो बेशक दूसरे के दस काम बिगड़ते हों, <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-20441191401709028182010-11-14T11:42:47.317+05:302010-11-14T11:42:47.317+05:30..
सुज्ञ जी, एकदम सही कहते हैं आप.
क्षुद्रता मतल.....<br /><br />सुज्ञ जी, एकदम सही कहते हैं आप. <br />क्षुद्रता मतलब कलुषित मन का स्वार्थपूर्ण ओछा व्यवहार. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-27380198228664636822010-11-14T11:08:10.941+05:302010-11-14T11:08:10.941+05:30वाह,... क्षुद्रता जैसे तुच्छ शब्द के साथ इतने विशा...वाह,... क्षुद्रता जैसे तुच्छ शब्द के साथ इतने विशाल अर्थ छुपे हुए हैं...<br />सचमुच,हीरा भी कोयले का ही प्रतिरूप है।<br />सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-35349469608268703612010-11-14T11:07:07.974+05:302010-11-14T11:07:07.974+05:30प्रतुल जी,
स्वभाव की उत्कृष्ट परिभाषा।
कलुषित मन...प्रतुल जी,<br /><br />स्वभाव की उत्कृष्ट परिभाषा।<br /><br />कलुषित मन का स्वार्थपूर्ण ओछा व्यवहार ही क्षुद्रता कहलाएगा न?सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-71392849251368096022010-11-14T11:04:31.777+05:302010-11-14T11:04:31.777+05:30बडी उत्तम बात कह दी है आपने प्रतुल जी
धन्यवादबडी उत्तम बात कह दी है आपने प्रतुल जी<br />धन्यवादSANSKRITJAGAThttps://www.blogger.com/profile/12337323262720898734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-37844097455035968742010-11-14T10:43:34.254+05:302010-11-14T10:43:34.254+05:30..
आदरणीय संगीता जी,
आपका प्रोत्साहन मुझे आगे भी.....<br /><br />आदरणीय संगीता जी, <br />आपका प्रोत्साहन मुझे आगे भी इस तरह की परिभाषायें गढ़ने को प्रेरित करेगा. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-35536906113007322472010-11-14T10:37:19.537+05:302010-11-14T10:37:19.537+05:30..
भाई संजय !
आपका आरोह क्रम में यात्रा करना बेह.....<br /><br />भाई संजय ! <br />आपका आरोह क्रम में यात्रा करना बेहतर है बनस्पत अवरोह क्रम में यात्रा करने के. <br />कई साधु, स्वामी लोगों को आपने गर्त में जाते देखा होगा. उनकी पतनगामी यात्रा समाज में गुरुजनों और साधुजनों के प्रति विश्वास समाप्त करती है. <br />मैं भी आपकी तरह आरोह क्रम की यात्रा को करते आया हूँ. हाँ थोड़ा-बहुत अंतर हो सकता है चीज़ों को क्रम में लगाने का. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-30233721290938487572010-11-14T10:27:16.710+05:302010-11-14T10:27:16.710+05:30..
मित्र पंकज जी,
नारायण स्वामी जी का मैंने भजन स.....<br /><br />मित्र पंकज जी,<br />नारायण स्वामी जी का मैंने भजन सुना, स्वर पसंद आया. शास्त्रीय स्वर है. <br />आपने अपनी पहली टिप्पणी में मुझे मार्गदर्शन दिया. वह भी मेरे लिये प्रेरक है. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-42656423727328341802010-11-14T10:15:38.741+05:302010-11-14T10:15:38.741+05:30..
विचार प्रेरक मित्र!
प्रश्न : क्षुद्रताओं को छ.....<br /><br />विचार प्रेरक मित्र! <br />प्रश्न : क्षुद्रताओं को छिपाकर रखने और उन्हें उजागर ना होने देने में क्या अंतर है? <br /><br />@ छिपाकर रखने में वैयक्तिक प्रयास [स्वाभावगत] किये जाते हैं जबकि उजागर ना होने देने में योजनायें [बाह्य प्रयास] बनानी होती हैं. वृहत प्रयास होते हैं, समाज का सहयोग लेना होता है. <br />— मेरी आपसे शत्रुता है, फिर भी मैंने अपने स्वभावगत क्रोध को दबाकर आपकी बात सुनी, यह मेरी शिष्टता कहलायेगी. <br />क्योंकि 'क्रोध' मेरे मनोभाव के अलावा मेरी क्षुद्रता भी है जो मेरा संतुलन बिगाड़ता है. <br />— बाह्य आचरण में मैंने नियम-कायदे बनाए हैं जो मैं स्वयं मानता हूँ और अन्यों से पालन करवाना चाहता हूँ. यही तो सभ्यता है. मतलब 'बाह्य शिष्टता' सभ्यता कहलाती है. <br />— अपनी क्षुद्रताओं को समाप्त करते रहने से ही हम सुसंस्कृत कहलाते हैं. <br />......... शेष विस्तार पंडित वत्स जी करें तो अच्छा है. यह मेरे चिंतन से उद्भूत है इसलिये कमज़ोर चिंतन भी हो सकता है. इसे मैं स्वीकारता हूँ. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-16838084611222440112010-11-14T10:14:53.178+05:302010-11-14T10:14:53.178+05:30..
विचार प्रेरक मित्र!
प्रश्न : आप की नजर में ये.....<br /><br />विचार प्रेरक मित्र! <br />प्रश्न : आप की नजर में ये क्षुद्रता क्या है ये भी थोडा विस्तार से समझाएं ?<br />@ मेरी दृष्टि में क्षुद्रता ..........<br />— वैयक्तिक स्वार्थपूर्ति के लिये बनाई गयी छोटी-छोटी योजनायें, <br />— ऐसे कार्य जिनसे केवल अपना हेतु साधता हो बेशक दूसरे के दस काम बिगड़ते हों, <br />— उदाहरण से स्पष्ट करता हूँ : मुझे अपना घर साफ़ रखना बेहद पसंद है, इस कारण मैं अपने घर का कूढा घर से बाहर फैंकता रहता हूँ. मैं थोड़ा आलस भी करता हूँ. इसलिये उस कूढ़े को खत्ते तक न ले जाकर उसे आपके घर की छत पर फैंक देता हूँ, या फिर आपके दरवाजे पर डाल आता हूँ. मुझे आपके घर की सफाई से क्या लेना-देना. मुझसे उस गंदगी से पैदा बीमारी की कीटाणुओं से क्या लेना-देना. मुझे तो अपने घर की सफाई पसंद है. <br /><br />क्षुद्रता कई प्रकार की हो सकती हैं. ये हमारी वे दबी इच्छाएँ जो हम प्रकट नहीं करते, यदि प्रकट करते हैं तो उन्हें कोई-न-कोई आवरण पहनाकर करते हैं. यह आवरण अपनी बौद्धिकता का, तर्क का, वक्तृत्व क्षमता का, विवशता आदि का हो सकता है. या फिर, अपनी क्षुद्रता को न्यायसंगत बनने के लिये बहुमत लेने में जुट जाते हैं. एक स्वामी जी ने अपने प्रवचन में कहा कि "जो पाप में लिप्त है उससे घृणा मत करो. पाप से करो." कुछ समय बाद मीडिया ने दिखाया कि वे स्वामी जी नित्यानंद के पथ पर चल रहे थे. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-72059320144560881922010-11-14T09:33:40.167+05:302010-11-14T09:33:40.167+05:30एक और बात आप की नजर में ये क्षुद्रता क्या है ये भी...एक और बात आप की नजर में ये क्षुद्रता क्या है ये भी थोडा विस्तार से समझाएं ?VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-5160381428933547042010-11-14T09:29:58.745+05:302010-11-14T09:29:58.745+05:30"क्षुद्रताओं को छिपाकर [दबाकर] रखना शिष्टता ह..."क्षुद्रताओं को छिपाकर [दबाकर] रखना शिष्टता है, <br /><br />उन्हें उजागर न होने देना सभ्यता है"<br /><br />क्षुद्रताओं को छिपाकर रखने और उन्हें उजागर ना होने देने में क्या अंतर है? ये बात समझ नहीं आयी.VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-75999802857207395432010-11-14T07:41:10.273+05:302010-11-14T07:41:10.273+05:30मुझे मेरी मस्ती कहाँ लेके आई
मुझे मेरी मस्ती कहाँ ...मुझे मेरी मस्ती कहाँ लेके आई<br />मुझे मेरी मस्ती कहाँ लेके आई ... (2)<br />जहाँ मेरे अपने सिवा कुछ नाही .... (2)<br /><br />नारायण स्वामी की आवाज में ये भजन <<<<<< DOWNLOAD >>>>>> http://www.4shared.com/audio/_WoKhxIR/Mujhe_Meri_musti_kaha_leke_aai.htmlHindiEra.inhttps://www.blogger.com/profile/16166137654837076626noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-20858922965442270962010-11-14T07:37:26.664+05:302010-11-14T07:37:26.664+05:30इसी सन्दर्भ में एक भजन प्रसिद्द है !!@@@
दूसरों क...इसी सन्दर्भ में एक भजन प्रसिद्द है !!@@@<br /><br />दूसरों के गुण, हमेशा अपनी गलतियाँ देखा करो !!! <br /> जिंदगी की हो बहु तुम लड़कियां देखा करो !!!!!!!!!!!!!!!HindiEra.inhttps://www.blogger.com/profile/16166137654837076626noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-87036812797460345812010-11-14T07:34:42.026+05:302010-11-14T07:34:42.026+05:30प्रतुल जी क्या खूब कही >
हम मिलें या ना मिलें...प्रतुल जी क्या खूब कही > <br /><br />हम मिलें या ना मिलें विचारों का समागम ही वास्तविक मिलन है !!!<br /><br />यदि इस संसार में कुछ छुपाने की वस्तु है तो वह है पाप (अवगुण), और यदि उजागर करने के लिए कुछ है तो वह है सत्य ....HindiEra.inhttps://www.blogger.com/profile/16166137654837076626noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-16196057674878249662010-11-13T23:09:43.154+05:302010-11-13T23:09:43.154+05:30वाह प्रतुल भाई, सोचते तो रहते हैं कि अलग अलग स्टेज...वाह प्रतुल भाई, सोचते तो रहते हैं कि अलग अलग स्टेज पर क्या नाम दिया जाये लेकिन अब सब स्पष्ट हो गया। आरोह क्र्म में चलें तो यात्रा ’उच्छृंखलता’ से शुरू करके ’सुसंस्कृत’ होने की ओर चलनी चाहिये, है न?संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-56434338471648429402010-11-13T22:49:29.072+05:302010-11-13T22:49:29.072+05:30उत्तम बात कही है ...उत्तम बात कही है ...संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.com