tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post6188037362168613744..comments2023-08-21T20:08:03.188+05:30Comments on ॥ भारत-भारती वैभवं ॥: प्राचीन भारतीय शोध परम्परा और विकास की अवधारणाAmit Sharmahttp://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-32676796967412252962012-04-12T07:47:40.523+05:302012-04-12T07:47:40.523+05:30अनाज की बात छोड़िये, लोगों ने तो पूरक आहार के नाम प...अनाज की बात छोड़िये, लोगों ने तो पूरक आहार के नाम पर गाय को ही मांसाहारी बना दिया है। ऐसी गायों के दूध और मूत्र में किन औषधीय गुणों की अपेक्षा की जा सकती है?बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-2984064514233306782012-04-12T07:41:24.777+05:302012-04-12T07:41:24.777+05:30सभी सुधीजनों को नमस्कार! सुज्ञ जी! इस आलेख का कथ्य...सभी सुधीजनों को नमस्कार! सुज्ञ जी! इस आलेख का कथ्य आपने और भी सुबोध कर दिया है। जिस तरह एक झूठ को सच प्रमाणित करने के लिये झूठों की एक बड़ी श्रंखला निर्मित होती जाती है उसी तरह आधुनिक वैज्ञानिक शोध अंतहीन तृष्णा और भटकाव को ही जन्म देते हैं। शोध की दिशा गलत है यही मैं कहना चाहता था। हमें पुनः प्रकृति की ओर वापस जाना होगा इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय है ही नहीं। हर नयी वैज्ञानिक उपलब्धि अपने साथ कुछ नई समस्यायें साथ लेकर आती है उन समस्याओं के समाधान के लिये पुनः कई शोध और नई उपलब्धियों से "विकास" के साथ छल किया जाता है। पृथिवी के न जाने कितने जीव जंतुओं और वनस्पतियों की प्रजातियों को सदा के लिये समाप्त कर देने और जेनेटिक म्यूटेशन के लिये आधुनिक विज्ञान ही उत्तरदाई है। जैविक असंतुलन ने मनुष्य के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। पर ये तथाकथित वैज्ञानिक अभी तक अपने शोध की दिशा तय नहीं कर सके हैं। इस लेख के माध्यम से मैं सभी शोध वैज्ञानिकों से आग्रह करना चाहता हूँ कि जगत के कल्याण के लिये वे चमत्कार के मोह को छोड़ कर सत्यम-शिवम-सुन्दरम की दिशा में आगे बढ़ने की दिशा में प्रयास करें।बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-54511822736367969122012-04-04T20:08:17.403+05:302012-04-04T20:08:17.403+05:30भौतिकवादियों और साम्यवादियों नें कभी सोचा भी न होग...भौतिकवादियों और साम्यवादियों नें कभी सोचा भी न होगा कि आधुनिक साधन प्रधान विज्ञान संसाधनों के अन्यायपूर्ण वितरण और शोषण को प्रोत्साहित करता है। इस विकसित नवीनत्तम साधन सामग्री पर हर व्यक्ति अपना एकाधिकार जमाना चाहता है।<br />वायुयान में हर यात्री बादशाही महत्व चाहता है तो कर्मचारी उन्हें राजसी ठाठ महसुस करवाने को मजबूर।<br />एक सॉफ्ट्वेयर इंजिनियर बिल गैट्स विश्व का धनपति बनता है इसी विकास के कारण तो करोड़ों सॉफ्ट्वेयर इंजिनियर उसको और भी बडा बनाने का कर्म करने के लिए अभिशप्त।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-7214525315450197702012-04-02T18:29:59.292+05:302012-04-02T18:29:59.292+05:30परमानन्द प्रतुल जी,
"आधुनिक विज्ञान विकास ...परमानन्द प्रतुल जी,<br />"आधुनिक विज्ञान विकास 'सुख-साधन लक्षी' ही है"<br />वस्तुतः यह इस तरह शृंखला का निर्माण करते है। सुख- साधन तृष्णा को जन्म देते है। तृष्णा घोर प्रतिस्पृदा को जन्म देती है, मानव दौडता ही रहता है असंतोष से अंतहीन क्षितिज की ओर। हर साधन एक मृगजाल। अगर एक साधन सभी के पास हो जाय तो श्रेष्टतावादी को और भी उन्नत साधन चाहिए। मिले तब भी तनाव, न मिले तब भी तनाव। बस तनाव भरी मशीनी जिन्दगी। एक रोटी एक लंगोटी और दो गज कच्ची जमीन की आवश्यकता के लिए निकला मानव वापस "घर" (शान्ति) नहीं लौटता।<br />लोग अक्सर व्यंग्य करते है कि भारतीयों की आधुनिक विज्ञान को देन क्या है? भारतीय मनीषी और साधारण ज्ञानी भी छल नहीं करते, वे मानवता को कोई ऐसा चक्र नहीं देते जो दूरगामी मृगजल साबित हो। उनका विज्ञान जीवन-मूल्यों, नैतिकताओं और शान्ति की केन्द्रीय भावनाओं पर आधारित था। जिसे आज व्यवहारिक नहीं माना जाता और इसीलिए प्राच्य भारतीय विज्ञान चित्र-विचित्र सा लगता है।<br />भारतीय मनीषी सलाह देते कि गाय को हरी घास खिलाओ यह मानवता के लिए अच्छा कार्य है। आधुनिक लोग इसे कर्मकाण्ड और निर्थक पुण्यायी समझ कर नाक-भौ सिकोडते है। किन्तु अब यह स्पष्ट है कि हरी घास खाने वाले पशु अपने व्यर्थ से बहुत ही कम ग्रीन हाउस गैस का विसर्जन करते है, जबकि पशुओं को अनाज दिया जाय तो उनके गोबर मांसादि व्यर्थ से बहुत अधिक मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का विसर्जन होता है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-88693247071938784282012-04-02T17:52:11.567+05:302012-04-02T17:52:11.567+05:30आनंदम!!!आनंदम!!!प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-33795199604099546442012-04-02T17:51:28.167+05:302012-04-02T17:51:28.167+05:30आचार्य जी,
प्रश्नों की रज्जू से
स्व-मूल विचारों ...आचार्य जी, <br />प्रश्नों की रज्जू से <br />स्व-मूल विचारों और <br />निज उद्भावक विचारों का <br />मंथन कराके <br />आप कौन देश में दूर प्रवास को गये ?....<br /><br />यदि इस मंथन में कोई रत्न निकलियावे तो कौन निर्णय करेगा कि कौन-सा किसके पास रहेगा?<br />हंसराज जी ने मंथन कर कई रत्न निकाल भी दिये हैं... <br />मैं लोभवश उन्हें लिये जा रहा हूँ : <br />" आधुनिक विज्ञान विकास 'सुख-साधन लक्षी' ही है वास्तविक शान्ति लक्षी नहीं। <br />साधन हमें अल्पकालिन सुख अवश्य प्रदान कर देते है <br />पर दुखों की एक अंतहीन शृंखला का भी निर्माण कर देते हैं,<br />जैसे — आराम पसंद जीवन शैली से स्वास्थ्य समस्याएँ।<br />— कीटनाशकों के प्रयोग से मानव आरोग्य समस्या।<br />— जीव जगत के विनाश से प्राकृतिक संतुलन समस्या।<br />— रोगाणुओं विषाणुओं की प्रतिकार समस्या का विकास।<br />— प्रत्येक विकास से पर्यावरण को भंयकर क्षति।<br />^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^<br />यह सभी 'साधन-सुखों' से उपजे भयंकर परिणाम है, <br />जो कभी शान्ति पर समाप्त नहीं होंगे।<br />प्रमुख कारण वही है <br />— आधुनिक विज्ञान में नैतिकता, <br />— सहजीवन उत्तरदायित्व की सम्वेदनाओं का न होना, और <br />— अहिंसा का अभाव।प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-42371762319722454732012-04-02T07:48:14.423+05:302012-04-02T07:48:14.423+05:30जिन्हें आधुनिके मात्र कल्पना का मेघ मानते हैं, उसम...जिन्हें आधुनिके मात्र कल्पना का मेघ मानते हैं, उसमें ही भविष्य के बीज छिपे हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-4301830992398199622012-04-02T03:58:44.142+05:302012-04-02T03:58:44.142+05:30@प्रश्न वाकई ज्वलंत हैं। उत्तर ढूंढने के प्रयास जा...@प्रश्न वाकई ज्वलंत हैं। उत्तर ढूंढने के प्रयास जारी रहने चाहिये, शुभकामनायें!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-23874989898739860582012-04-01T15:51:07.844+05:302012-04-01T15:51:07.844+05:30समीक्षा तो विद्वजन ही करेंगे, आमजन तो प्रभावित मात...समीक्षा तो विद्वजन ही करेंगे, आमजन तो प्रभावित मात्र होता है।<br />प्रवास सुखद रहे, शुभकामना।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-37005327460162727742012-04-01T14:34:14.848+05:302012-04-01T14:34:14.848+05:30बहुत ही सुन्दर विवेचन हुआ है आधुनिक भौतिक शोधप्रणा...बहुत ही सुन्दर विवेचन हुआ है आधुनिक भौतिक शोधप्रणाली और विकास की दिशा का।<br />आधुनिक विज्ञान विकास सुख-साधन लक्षी ही है वास्तविक शान्ति लक्षी नहीं। साधन हमें अल्पकालिन सुख अवश्य प्रदान कर देते है पर दुखों की एक अंतहीन शृंखला का भी निर्माण कर देते है<br />जैसे आराम पसंद जीवन शैली से स्वास्थ्य समस्याएं।<br />किटनाशकों के प्रयोग से मानव आरोग्य समस्या।<br />जीव जगत के विनाश से प्राकृतिक संतुलन समस्या।<br />रोगाणुओं विषाणुओं की प्रतिकार समस्या का विकास।<br />प्रत्येक विकास से पर्यावरण को भंयकर क्षति।<br /><br />यह सभी साधन-सुखों से उपजे भयंकर परिणाम है। जो कभी शान्ति पर समाप्त नहीं होगें।<br />प्रमुख कारण वही है आधुनिक विज्ञान में नैतिकता, सहजीवन उत्तरदायित्व की सम्वेदनाओं का न होना, अहिंसा का अभाव।<br /><br />जबकि हमारा प्रचीन विज्ञान इन सारे तत्वों को आगे रखकर विकास करता था।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-91808159580929438692012-04-01T12:57:12.149+05:302012-04-01T12:57:12.149+05:30आभार ||
रामनवमी की शुभकामनायें|आभार ||<br />रामनवमी की शुभकामनायें|रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.com