tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post6531023668197794973..comments2023-08-21T20:08:03.188+05:30Comments on ॥ भारत-भारती वैभवं ॥: यज्ञ हो तो हिंसा कैसे ।। वेद विशेष ।। भाग -- २Amit Sharmahttp://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-68188224020946379042016-09-19T11:51:28.835+05:302016-09-19T11:51:28.835+05:30मैं खुद हैरान हूँ की इतना सिद्ध पुरुष मांस कैसे खा...मैं खुद हैरान हूँ की इतना सिद्ध पुरुष मांस कैसे खा सकता है लेकिन आप लोगो की बातो से लगता है की स्वामी जी ने ऐसा किया होगा. लिहाज़ा मैंने ये फैसला किया है की लोगो के सद्गुणों को अपनाओ और बुराइयों को त्याग दो.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10570931256281096854noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-12444427071229702292015-04-30T12:38:46.191+05:302015-04-30T12:38:46.191+05:30http://siddharthasinghmukt.blogspot.in/2015/04/blo...http://siddharthasinghmukt.blogspot.in/2015/04/blog-post_28.htmlSiddharthahttps://www.blogger.com/profile/02576868024692636017noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-26834429328236252172015-04-30T12:38:04.354+05:302015-04-30T12:38:04.354+05:30http://siddharthasinghmukt.blogspot.in/2015/04/blo...http://siddharthasinghmukt.blogspot.in/2015/04/blog-post_28.htmlSiddharthahttps://www.blogger.com/profile/02576868024692636017noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-89974914972330690142010-11-18T13:21:49.082+05:302010-11-18T13:21:49.082+05:30Nice post .
'शाकाहार में मांसाहार'
@ सभी...Nice post . <br />'शाकाहार में मांसाहार' <br />@ सभी साहब, आप<br />मेरे ब्लाग<br />hiremoti.blogspot.com<br />पर तशरीफ़ लाकर 'शाकाहार में मांसाहार' भी देख लें ।HAKEEM YUNUS KHANhttps://www.blogger.com/profile/11947101320031096515noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-83156885319849194452010-11-17T10:01:43.407+05:302010-11-17T10:01:43.407+05:30..
हे गूढ़ अर्थों को समझने वाले जमाल!
क्या पशुओं .....<br /><br />हे गूढ़ अर्थों को समझने वाले जमाल!<br />क्या पशुओं का स्वर समझने की आपने कोशिश की है. <br />क्या वे अपनी इच्छा रखते हैं जन्नत जाने में? <br />यदि नहीं, तो आप उनके पीछे क्यों पड़े हैं गंडासा लिये. <br />नहीं मैं भेज कर रहूँगा आज अपने प्यारे बकरे को <br />चाहे कुछ हो जाये. <br /><br />इस ऊँचे ऊँट को आज़ में जन्नत की दहलीज तक खींच कर ले चलूँगा. बड़ा बनता है. <br />ईद है कोई मामूली पर्वत नहीं. इसके तले लाकर ही रहूँगा. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-1865209454720907772010-11-17T09:55:09.215+05:302010-11-17T09:55:09.215+05:30..
हे करुणा दिल जमाल जी!
स्वामी करपात्री की परम्.....<br /><br />हे करुणा दिल जमाल जी! <br />स्वामी करपात्री की परम्परा को आप आगे लिये जा रहे हैं?<br />आप भी कुछ ऎसी पुस्तकें रच जाइए जिससे आने वाली पीढी इस बढ़ते पशु वध को रोक ना पाए. <br />आपके ये सराहनीय कार्य आपको जन्नत बक्शीश करेंगे. <br />आप अपनी समझ से चलिए न! <br />सोच कर देखिये कि <br />वह क्या पूजा या त्यौहार जो सभी का हित ना सोचे. <br />त्यौहार हों तो सभी जीव-जंतुओं के लिये होने चाहिए. <br />यदि बलि आदि क्रियायें स्वर्ग दिलाती हैं तो आप अपने परिवार को आगे कीजिये ना पहले. <br />बेजुबान पशुओं को आगे करके आप उनका मार्ग क्यों प्रशस्त कर रहे हैं. <br />जो जीव स्वयं पर हमला कर दे, आत्म रक्षा के लिये उसका वध कर देना तक तो ठीक है. लेकिन आप क्यों अपनी ईद <br />पैशाचिक कर्म बलि करने वाले हिन्दुओं के समर्थन से उचित/ न्यायसंगत ठहराना चाहते हैं. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-1565998708738187932010-11-17T07:57:58.456+05:302010-11-17T07:57:58.456+05:30@प्रिय मोहक मुस्कान स्वामी अमित जी !
@ मेरे महान प...@प्रिय मोहक मुस्कान स्वामी अमित जी !<br />@ मेरे महान पूर्वजोँ की ज्ञान संपदा के अडिग प्रहरी प्रतुल वशिष्ठ जी ! आपका स्वागत है ।<br />@ सुज्ञ जी ! स्वामी करपात्री वेदार्थ पारिजात भाग 2 पृष्ठ 1977 पर लिखते हैं -<br />यज्ञ में किया जाने वाला पशुवध भी पशुओं का स्वर्गप्रापक होने से तथा पशुयोनि निवारण पूर्वक दिव्यशरीर प्राप्ति कराने में कारण होने से पशु का उपकारक ही होता है । वह यज्ञीय पशु अपकृष्ट योनि से विमुक्त होकर देवयोनि में उत्पन्न होता है ।DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-66976313953101943192010-11-17T02:17:50.315+05:302010-11-17T02:17:50.315+05:30चीख भी सुन लो सुनो पुकार भी,
श्राप भी सुनो और हाहा...चीख भी सुन लो सुनो पुकार भी,<br />श्राप भी सुनो और हाहाकार भी।<br />ए आदम की औलाद तू क्या आदमी,<br />औलादों की तेरे भी थी क्या कमी।<br />जिन की जान के बदले आई हमारी जान पर,<br />जिएगी तेरी औलादे भी बनकर जानवर॥सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-33663662103080919332010-11-17T02:16:23.376+05:302010-11-17T02:16:23.376+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-49717972761783603082010-11-17T00:48:10.757+05:302010-11-17T00:48:10.757+05:30..
हमारी गली से कुछ दूर
हर साल की तरह
इस बार भी.....<br /><br />हमारी गली से कुछ दूर <br />हर साल की तरह <br />इस बार भी <br />चीख-पुकार होगी <br />जीव-तंतुओं द्वारा -<br />"ईद मुबारक ईद मुबारक" की. <br />इस चीख का अर्थ होगा "जाएँ तो जाएँ कहाँ" <br />यह अर्थ की चौथी शब्द शक्ति है — तात्पर्य शब्दशक्ति <br />इस शक्ति के द्वारा हम वास्तविक अर्थ तक पहुँचते हैं. <br />मुबारकबाद में भी 'बचाओ बचाओ का स्वर' सुनते हैं. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-48427016209567860952010-11-16T18:04:42.258+05:302010-11-16T18:04:42.258+05:30बहुत बढ़िया अमीत भाई असुरो की एक ही जात होती हे &q...बहुत बढ़िया अमीत भाई असुरो की एक ही जात होती हे "'''असुर" <br />जरूर पधारे http://jaishariram-man.blogspot.com/2010/11/blog-post_16.htmlManhttps://www.blogger.com/profile/04207741457433540498noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-38451761911657491712010-11-16T17:05:59.587+05:302010-11-16T17:05:59.587+05:30जमाल साहेभ क्या रट्टा लगाए हुए हैं आप किसी भी मनुष...जमाल साहेभ क्या रट्टा लगाए हुए हैं आप किसी भी मनुष्य का ज्ञान हमेशा पूर्ण नहीं होता, और ना हिन्दू किसी एक का आँख मीच कर अनुगमन करने वाली भेड़ है. (आप जैसे मेरे कुटुम्बियों के समान)<br />विवेकानंदजी क्या कहा, क्या पाया इसका उन्होंने दुराग्रह नहीं किया की मैंने जो जाना समझा है वही परीपूर्ण अंतिम सत्य है ..................और जो इसे नहीं मानेगा वह मार डाला जाएगा.<br />तो जब उन्होंने इस बात का उद्घोष ही नहीं किया की मेरा ज्ञान ही परीपूर्ण,अंतिम और सत्य है ............मैं जो कह रहा हूँ उसके इनकारी के लिए सिर्फ और सिर्फ मौत है ...................जब उनका ऐसा आग्रह नहीं था तो आप क्यों विवेकानंदजी की अवमानना को लेकर दुःख दुबले हो रहे है.<br />ऐसा ही सायण भाष्य और BHU के लिए समझे .<br />बंधुजी मेरा घर मेरे पुरखों के प्रताप से सुरक्षित है....................आप अपने पाप के ताप से अपने घर को बचाने का उपाय सोचिये .Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-74468963244203884462010-11-16T14:17:53.029+05:302010-11-16T14:17:53.029+05:30बड़े भाई साहब ! जय श्री राधे-राधे
एक छोटी सी व्य...बड़े भाई साहब ! जय श्री राधे-राधे <br /><br />एक छोटी सी व्यंग कथा -<br /><br />एक मित्र (धोबी) अपने दूसरे मित्र (किसान) को तम्बाकू खाने की लत छोड़ने के लिए कहता है, और एक उदहारण देता है - कहता है यार! कल मैंने अपने गधे के आगे तम्बाकू खाने के लिए दिया, उसने भी नहीं खाया, इसका मतलब गधे भी तम्बाकू नहीं खाते !!<br />किसान मित्र तुरंत बोला, यार सही कहा - गधे ही तम्बाकू नहीं खाते !!!!!<br /><br />अब इन शव भक्षकों की दृष्टी भी किसान जैसी ही तो है, इन्हें हर परिस्थिति में ये अनुचित कार्य तो करना ही है !!! <br />==================================================================================================================================================>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>><<<<<<<<<>>>>>>>>>>>>>><br />तो शव भक्षकों लगे रहो - <br /> मांसाहारी और शाकाहारी के संयुक्त रूप को सामाजिक रूप से हम कुत्ता (डॉग) कहतें है - शव भक्षकों "! पहुंचे तो होंगे ही यहाँ तक ! अपनी जाति का शुभ नाम भी बताते जाएँ @@@@@@@@@@@@@Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-77347937977520101582010-11-16T13:30:05.479+05:302010-11-16T13:30:05.479+05:30अनवर साहब,
सारे प्रश्न घुमा-फिरा कर एक ही आश्य के...अनवर साहब,<br /><br />सारे प्रश्न घुमा-फिरा कर एक ही आश्य के है, विवेक-बुद्धि लगाओ तो उत्तर तो मिल चुके है। खूब जानते है, आपको भ्रम है कि ये महापुरूषों की आलोचना न कर पाएंगे।<br /><br />4- शंकराचार्य जी और विवेकानंद जी के ज्ञान को नकार कर अपना घर कैसे बचा पाएँगे आप ? <br /><br />जिसने शंकराचार्य जी और विवेकानंद जी का घर आबाद ( ज्ञान व कीर्ती)दी, वे वेद सलामत है। शास्वत है। फिर बचाने की बात छोडो घर पहले से ही बुलंद है। बुलंद रहेगा।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-90419412758067690422010-11-16T12:37:15.539+05:302010-11-16T12:37:15.539+05:30शंकराचार्य जी और विवेकानंद जी के ज्ञान को नकार कर ...<b> शंकराचार्य जी और विवेकानंद जी के ज्ञान को नकार कर अपना घर कैसे बचा पाएँगे आप ?</b><br /> @ अमित जी, कृप्या मूल प्रश्नों के जवाब स्पष्ट रूप से दें कि <br />1- क्या अपने विवेकानंद जी की जानकारी भी ग़लत है ?<br />या वे भी सैकड़ों यज्ञ करने वाले आर्य राजा वसु की तरह असुरोँ के प्रभाव में आ गए थे ?<br />2- सायण से ज्यादा वेदों के यज्ञपरक अर्थ की समझ रखने वाला कोई भी नहीं है . आज भी सभी शंकराचार्य उनके भाष्य को मानते हैं । <br /><b>क्या सायण और विवेकानंद की गिनती कुक्कुरों , पशुओं और असुरों में करने की धृष्टता क्षम्य है ?</b><br />3- Banaras Hindu University में भी यही पढ़ाया जाता है ।<br />क्या BHU में भी ग़लत पढ़ाया जा रहा है ? <br />4- शंकराचार्य जी और विवेकानंद जी के ज्ञान को नकार कर अपना घर कैसे बचा पाएँगे आप ?DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-39647122348786422372010-11-16T12:35:29.142+05:302010-11-16T12:35:29.142+05:30अगर अल्लाह की राह में कुर्बानी ही करनी है तो पहले ...अगर अल्लाह की राह में कुर्बानी ही करनी है तो पहले हजरत इब्राहीम की तरह अपनी संतान की बलि देने का उपक्रम करे फिर अल्लाह पर है की वह बन्दे की कुर्बानी कैसे क़ुबूल करता है.<br /><br />अनवर साहब,<br /> <br />वेदों में तो शब्दो के कई अर्थ कई प्रयाय है, पर कुरआन में तो एकार्थ आदेश है न?<br />कुरआन की रोशनी में,हजरत इब्राहीम संग घटी,अल्लाह की राह में संतान की कुर्बानी के आदेश का सीधा अर्थ क्यों नहिं करते। क्यों सांकेतिक बताकर कुरिति पाल रहे हो?<br /><br />अमित जी,<br /><br />अनवर साहव ने यह प्रश्न मेरी पोस्ट पर भी पेस्ट किया है, आपके प्रत्युत्तर ले जाकर मैं भी प्रत्युत्तर में पेस्ट कर देता हूं।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-24751712660945307752010-11-16T12:03:51.706+05:302010-11-16T12:03:51.706+05:30प्रतुल जी व अमित जी,
अनंत साधुवाद!!, न्योछावर हूँ...प्रतुल जी व अमित जी,<br /><br />अनंत साधुवाद!!, न्योछावर हूँ आप दोनो ही प्रज्ञा पर।<br /><br />###क्या सायण और विवेकानंद की गिनती कुक्कुरों , पशुओं और असुरों में करने की धृष्टता क्षम्य है ?###<br /><br />विवेचको की आड लेकर दूषित मनोग्रंथियां फैलाने की मंशा इस प्रश्न से झलकती है। सार्थक प्रत्युत्तर दिया, सद्गुण ही स्वीकार्य है, सदैव मात्र व्यक्ति विशेष ही नहिं।<br /><br />अमित जी नें शास्त्रो के शब्द भेद के सत्य युक्तियुक्त निराकरण दिये है।<br />"फलों के गुदे को "मांस", छाल को "चर्म", गुठली को "अस्थि" , मेदा को "मेद" और रेशा को "स्नायु" कहते है"सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-64022353604404419092010-11-16T11:46:32.550+05:302010-11-16T11:46:32.550+05:30भई जमाल साहब
कदाचित् आपको वृषभ तथा मॉंस का बैल व ...भई जमाल साहब<br /><br />कदाचित् आपको वृषभ तथा मॉंस का बैल व माँस के अतिरिक्त अन्य अर्थ भी पता होता तो इस तरह के कुतर्क न करते ।<br /><br />वेदों पर तर्क करना हो तो सम्यक वेदार्थ पता होने चाहिये । <br />स्वामी विवेकानन्द ने क्या कहा ये किसे पता , जिस पुस्तक की बात आप कर रहे हैं वह किसी अन्य ने स्वामी जी के नाम से लिख दी हो ऐसा भी हो सकता है क्यूँकि आजतक स्वामी विवेकानन्द जी के बारे में ऐसा कहीं नहीं पढने को मिला कि उन्होने वेदों पर भाष्य लिखें हों या व्याख्यान दिया हो ।<br /><br /><br />रही बात हिंसा की तो जब वेद अपने प्रारम्भ में स्वयं ही हिंसा का विरोध कर रहा है तो इससे बडा प्रमाण मेरे खयाल से और कोई नहीं हो सकता है ।<br /><br /><br />रही बात आपको समझाने की तो वो तो कभी नहीं हो सकती क्यूँकि समझाया तो उसे जाता है जिसमें आस्था हो, आपमें तो दुराग्रह भरा पडा है ।<br /><br /><br />वेदों पर कमेन्ट करने से पहले अपने धर्मग्रन्थ व धर्म के बारे में ठीक से पढ लीजिये और ज्यादा मौका न हो तो सलमान रूश्दी की सैटनिक वर्सेज पढ लीजिये, अन्य पर टांट कसने से पहले अपना जरूर देख लेना चाहिये । अगर सैटनिक वर्सेज आपके पास न हो तो बताइयेगा, हम आपको लिंक दे देंगे ।SANSKRITJAGAThttps://www.blogger.com/profile/12337323262720898734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-55501640211383153212010-11-16T11:30:18.268+05:302010-11-16T11:30:18.268+05:30..
अमित जी, आपकी जानकारियाँ पूरी हैं. संतोष हुआ आ.....<br /><br />अमित जी, आपकी जानकारियाँ पूरी हैं. संतोष हुआ आप पूरे अस्त्र-शास्त्रों के साथ हैं. नहीं तो मैं बिना शास्त्र की समझ के यह वैचारिक लड़ाई लड़ने की सोचने लगा था. <br />यदि मेरी बात भी कोई अनुचित लगे तो पूरे वेग से आइयेगा. क्योंकि मेरा इन दिनों स्वाध्याय छूटा हुआ है. आपके बहाने कोई-न-कोई पाठ पढ़ ही लूँगा. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-11490953806912699032010-11-16T11:19:55.018+05:302010-11-16T11:19:55.018+05:30@जमाल जी ---
अल्लाह ने कुर्बानी इब्राहीम अलैय सला...@जमाल जी ---<br />अल्लाह ने कुर्बानी इब्राहीम अलैय सलाम से उनके बेटे की मांगी थी जो की उनका इम्तिहान था, जिसे अल्लाह ने अपनी रीती से निभाया था. अब उसी लीकटी को पीटते हुए कुर्बानी की कुरीति चलाना कहाँ तक जायज है समझ में नहीं आता. अगर अल्लाह की राह में कुर्बानी ही करनी है तो पहले हजरत इब्राहीम की तरह अपनी संतान की बलि देने का उपक्रम करे फिर अल्लाह पर है की वह बन्दे की कुर्बानी कैसे क़ुबूल करता है.Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-86790518192400880792010-11-16T11:18:47.795+05:302010-11-16T11:18:47.795+05:30चाहे विवेकानंदजी हो या फिर दयानन्दजी या फिर आप और ...चाहे विवेकानंदजी हो या फिर दयानन्दजी या फिर आप और हमारे जैसे संसारी जीव यदि विवेक को साथ रखते हुए वेदार्थ पर विचार किया जाएगा तो वेद भगवान् ही ऐसी सामग्री प्रस्तुत कर देतें है, जिससे सत्य अर्थ का भान हो जाता है. जहाँ द्वयर्थक शब्दों के कारण भ्रम होने की संभावना है, वहाँ बहुतेरे स्थलों पर स्वयं वेदभगवान ने ही अर्थ का स्पस्थिकरण कर दिया है----<br />"धाना धेनुरभवद वत्सोsस्यास्तिल:" ( अथर्ववेद १८/४/३२ ) --- अर्थात धान ही धेनु है और तिल ही उसका बछडा हुआ है .<br /><br />"ऋषभ" एक प्रकार का कंद है; इसकी जद लहसुन से मिलती जुलती है. सुश्रतु और भावप्रकाश आदि में इसके नाम रूप गुण और पर्यायों का विशेष विवरण दिया गया है . ऋषभ के - वृषभ, वीर, विषाणी, वृष, श्रंगी, ककुध्यानआदि जितने भी नाम आये है, सब बैल का अर्थ रखते है. इसी भ्रम से "वृषभमांस" की वीभत्स कल्पना हुयी हुई है, जो "प्रस्थं कुमारिकामांसम" के अनुसार 'एक सेर कुमारी कन्या के मांस' की कल्पना से मेल खाती है. वैध्याक ग्रंथों में बहुत से पशु पक्षियों के नाम वाले औषध देखे जाते है. ------- वृषभ ( ऋषभकंद ), श्वान ( ग्रंथिपर्ण या कुत्ता घास) , मार्जार ( चित्ता), अश्व ( अश्वगंधा ), अज (आजमोदा), सर्प (सर्पगंधा), मयूरक (अपामार्ग), कुक्कुटी ( शाल्मली ), मेष (जिवाशाक), गौ (गौलोमी ), खर (खर्परनी) .<br />यहाँ यह भी जान लेना चहिये की फलों के गुदे को "मांस", छाल को "चर्म", गुठली को "अस्थि" , मेदा को "मेद" और रेशा को "स्नायु" कहते है -------- सुश्रुत में आम के प्रसंग में आया है----<br />"अपक्वे चूतफले स्न्नायवस्थिमज्जानः सूक्ष्मत्वान्नोपलभ्यन्ते पक्वे त्वाविभुर्ता उपलभ्यन्ते ।।"<br />'आम के कच्चे फल में सूक्ष्म होने के कारण स्नायु, हड्डी और मज्जा नहीं दिखाई देती; परन्तु पकने पर ये सब प्रकट हो जाती है.'Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-77573869522023102692010-11-16T11:18:00.817+05:302010-11-16T11:18:00.817+05:30???
त्रुटि सुधार :
यदि प्रातः स्मरणीय सूर्य भी अप...???<br />त्रुटि सुधार : <br />यदि प्रातः स्मरणीय सूर्य भी अपनी किरणों को चुभोने लगे, पाँव जलाने लगे तो उससे भी बचा जाता है. कोई महानता का तमगा पूरी उम्र के लिये नहीं पहनता.<br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-65627866855622791672010-11-16T11:14:56.328+05:302010-11-16T11:14:56.328+05:30..
जिज्ञासु जमाल जी
कोई महापुरुष तब तक ही महान क.....<br /><br />जिज्ञासु जमाल जी <br />कोई महापुरुष तब तक ही महान कहलाता है जब तक वह सद्कार्यों में लगा है. यदि इकबाल हिन्दुस्तान के लिये 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा गाते हैं" उस समय विशेष को हम मान देते हैं. लेकिन जब उसी तर्ज में पाकिस्तान के नगमे गाने लगें तो हम उसे सर माथे नहीं बैठायेंगे. समझे जमाल जी, <br />स्वयं विवेकानंद जी गौमांस खाकर बीमार पड़े और मरे. इसका मतलब यह नहीं कि उनके समस्त कार्यों से प्रेरणा ली जानी चाहिए. उनके वे कार्य उल्लेखनीय और प्रशंसनीय हैं जो उन्होंने शिकागो सम्मेलन में किया, अपने वक्तृत्व से देश का मान-गौरव बढाया. वाणी की ओजस्विता से सम्पूर्ण चरित्र का अनुमान लगाना आज भी संभव नहीं है. आपने देखें होगे आज के धर्मात्मा ............ आप स्वयं भी काफी जद्दोजहद के बाद शांत होते हैं. <br /><br />एक बात याद रखें यदि प्रातः स्मरणीय सूर्य भी अपनी किरणों को चुभोने लगे, पाँव जलाने ले तो उससे भी बचा जाता है. कोई महानता का तमगा पूरी उम्र के लिये नहीं पहनता. <br />आप सोचें : <br />यदि मैं कोई कल दुराचार करता हूँ मेरे आज के हम-खयाल साथी क्या तब भी साथी ही होंगे? <br /><br />आपके प्रश्नों का पहले अमित जी जवाब दे लें तब मैं दूँगा. इंतज़ार करियेगा. <br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-91243600321057832362010-11-16T10:55:17.043+05:302010-11-16T10:55:17.043+05:30स्वामी विवेकानंद ने पुराणपंथी ब्राह्मणों को उत्साह...स्वामी विवेकानंद ने पुराणपंथी ब्राह्मणों को उत्साहपूर्वक बतलाया कि वैदिक युग में मांसाहार प्रचलित था . जब एक दिन उनसे पूछा गया कि भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कौन सा काल था तो उन्होंने कहा कि वैदिक काल स्वर्णयुग था जब "पाँच ब्राह्मण एक गाय चट कर जाते थे ." (देखें स्वामी निखिलानंद रचित 'विवेकानंद ए बायोग्राफ़ी' प॰ स॰ 96)<br />€ @ अमित जी, क्या अपने विवेकानंद जी की जानकारी भी ग़लत है ?<br />या वे भी सैकड़ों यज्ञ करने वाले आर्य राजा वसु की तरह असुरोँ के प्रभाव में आ गए थे ?<br />2- ब्राह्मणो वृषभं हत्वा तन्मासं भिन्न भिन्नदेवताभ्यो जुहोति .<br />ब्राह्मण वृषभ (बैल) को मारकर उसके मांस से भिन्न भिन्न देवताओं के लिए आहुति देता है .<br />-ऋग्वेद 9/4/1 पर सायणभाष्य <br />सायण से ज्यादा वेदों के यज्ञपरक अर्थ की समझ रखने वाला कोई भी नहीं है . आज भी सभी शंकराचार्य उनके भाष्य को मानते हैं । Banaras Hindu University में भी यही पढ़ाया जाता है ।<br /><b>क्या सायण और विवेकानंद की गिनती कुक्कुरों , पशुओं और असुरों में करने की धृष्टता क्षम्य है ?</b>DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-2605393125539407412010-11-16T00:32:22.679+05:302010-11-16T00:32:22.679+05:30..
वैदिक युग में
जिस आचार-संहिता को जिन महत्वाका.....<br /><br />वैदिक युग में <br />जिस आचार-संहिता को जिन महत्वाकांक्षी व्यक्तियों ने नहीं स्वीकार किया. उसे मनमाना अर्थ दिया और बाद में उनके अनुगामियों ने मनमानी व्याख्याएँ कीं. वे प्रारम्भ में थे तो सुर ही, पर अंतर भेद करने के लिये उन्हें असुर कहा जाने लगा. वे नियम-कायदों को न मानने वाले, उच्छृंखल विचारों के थे, अतः उन्होंने अपने लिये <br />सुर की बजाय असुर संबोधन को चुना, कारण था :<br />साधारण तब तक ही साधारण है जब तक कि उसमें उपसर्ग के रूप में 'अ' न जुड़ जाये. [अ + साधारण = विशेष हो जाता है.] <br />सुरों के सुर में उन्होंने तब तक ही सुर मिलाया जब तक कि वे अलग नहीं कर दिए गये. जैसे ही अलग हुए उन्होंने अपने सुरत्व में 'अ' जोड़ लिया. [अ + सुर = असुर हो जाता है.]<br />मर्यादाहीन आचरण, अनैतिक सुख पाने की लालसा, भोगमय प्राथमिकताओं ने उन्हें देश से बहिष्कृत कर ही दिया. तब हुआ 'सुर-असुर संग्राम' या देवासुर (देव-असुर) संग्राम, <br />सत्ता की लड़ाई के पीछे कारण था मर्यादाओं की रक्षा, नैतिकता का बचाव और आचार-संहिताओं की ऋचाओं में होने वाली छेड़छाड़ को रोकना. <br />_______________<br />विस्तार आगे किया जाएगा. <br />स्रोत : कल्पना <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.com