tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post8325313476264791517..comments2023-08-21T20:08:03.188+05:30Comments on ॥ भारत-भारती वैभवं ॥: स्वार्थों के पुरातन गढ टूटकर रहेंगें.........Amit Sharmahttp://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-84983306799288067782010-12-09T21:18:45.563+05:302010-12-09T21:18:45.563+05:30आदर्ष लेख ! बधाई ! कृप्या म्रेरे ब्लोग पर आ कर फ़ो...आदर्ष लेख ! बधाई ! कृप्या म्रेरे ब्लोग पर आ कर फ़ोलो करें व मर्ग प्रशस्त करे !JAGDISH BALIhttps://www.blogger.com/profile/12672029642353990072noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-20055112527366557802010-12-09T18:41:35.584+05:302010-12-09T18:41:35.584+05:30"---विज्ञान,कला,साहित्य इत्यादि विश्व के समस्..."---विज्ञान,कला,साहित्य इत्यादि विश्व के समस्त विषयों की उपयोगिता की एकमात्र कसौटी मनुष्य का प्रत्यक्ष लाभ और प्रत्यक्ष जीवन है.--"--<br />---यह विचार भी असत्य, भ्रामक व अवैग्यानिक है,---आजके उन्नत विग्यान के युग में शरीर व जीवन से अपर शरीर व जीवन के तथ्य स्वीकार किये जारहे हैं...जो वस्तुतः मनोवैग्यानि , परा-मानसिक, पराभौतिक ग्यान की विषय वस्तु है...कि प्रत्यक्ष शरीर व जीवन के अतिरिक्त मानव मन का एक अन्य संसार होता है जिसका शरीर पर प्रभाव पडता है...अतः सिर्फ़ प्रत्यक्ष शारीरिक व जीवन के लाभ के अतिरिक्त भी सोचना चाहिये..<br />----व्यक्तिवादी प्रत्यक्ष सोच के कारण ही आज इतने भौतिक उन्नति के युग में भी, जन्गली युग के द्वन्द्व-द्वेष मौज़ूद हैं.... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-78041222518476010352010-12-09T18:29:24.353+05:302010-12-09T18:29:24.353+05:30सुन्दर व्याख्या-परन्तु--सिर्फ़ अर्वाचीन ही नहीं प्...सुन्दर व्याख्या-परन्तु--सिर्फ़ अर्वाचीन ही नहीं प्रत्येक युग में मानव-हर क्रिया का केन्द्र रहा है, अन्यथा कोई भी नियम, धर्म, ग्रन्थ , विचार धारा बनती कैसे व क्यों...<br />"....जो पुरातन काल था, वह मर चुका.."--वाक्य भ्रमित विचार है, कोई विचार, वस्तु,तथ्य कभी मरता नहीं.यह वैग्यानिक तथ्य व सत्य है...वस्तुतः म्रत्यु तो कुछ होती ही नहीं, बस परिवर्तन होता है...<br /><br />--सही बात तो बस यह है-- " पुराने समय के जो विचार हैं, वे तो अनेक प्रकार के हैं. कौन ऎसा है जो भली प्रकार उनकी परीक्षा किए बिना....", ...हां पुरा व सामयिक-तात्कालिक का समन्वय...ही विशाल व सम्यग द्रष्टि है... इसके लिये पुरा को जानना अत्यावश्यक है...हमें ( सभी को)..अपने इतिहास को जानकर( उसे त्यग कर, भुलाकर या उससे चिपक कर नहीं)...नवीन से तादाम्य करके आगे बढना चाहिये... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-75220338617670301582010-12-08T12:21:40.025+05:302010-12-08T12:21:40.025+05:30अच्छा प्रयास.....और इसका मैं मुखर समर्थन भी करूँ.....अच्छा प्रयास.....और इसका मैं मुखर समर्थन भी करूँ.....अगर आप आज्ञा दो तो मैं भी कुछ लिखूं यहाँ....!राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ )https://www.blogger.com/profile/07142399482899589367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-43061079553447127902010-12-08T05:07:54.456+05:302010-12-08T05:07:54.456+05:30बहुत ही रोचक पोस्ट। समय निकाल कर मेरा पोस्ट दोखिएग...बहुत ही रोचक पोस्ट। समय निकाल कर मेरा पोस्ट दोखिएगा।प्रेम सरोवरhttps://www.blogger.com/profile/17150324912108117630noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-50652911184701337562010-12-07T18:34:03.222+05:302010-12-07T18:34:03.222+05:30ज्ञानवर्धक लेख है
समय निकाल कर कृपया मेरी नई पोस्ट...ज्ञानवर्धक लेख है<br />समय निकाल कर कृपया मेरी नई पोस्ट देखिएगाKunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-21629094870249059032010-12-07T14:35:28.556+05:302010-12-07T14:35:28.556+05:30बहुत ही सुन्दर लेख.
मेरे व्लाग में आपका स्वागत है
...बहुत ही सुन्दर लेख.<br />मेरे व्लाग में आपका स्वागत है<br /><a rel="nofollow">मेरा सवाल 156 (चित्र पहचानिए)</a>ज़मीरhttps://www.blogger.com/profile/03363292131305831723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-16402087813556543292010-12-03T09:22:48.710+05:302010-12-03T09:22:48.710+05:30राम राम पण्डित जी,
एक विचारणीय लेख...आपने अपने मत...राम राम पण्डित जी,<br /><br />एक विचारणीय लेख...आपने अपने मत को संतुलित रूप में प्रस्तुत किया है...<br /><br />कुंवर जी,kunwarji'shttps://www.blogger.com/profile/03572872489845150206noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-86521114075579819162010-12-02T23:24:35.770+05:302010-12-02T23:24:35.770+05:30ये चिंतन ही मानव होने का मापदंड है . अन्यथा आज मान...ये चिंतन ही मानव होने का मापदंड है . अन्यथा आज मानव अपनी पहचान तो भूल ही चूका है .आपको बधाईAmrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-12755368246392209702010-12-02T19:19:40.318+05:302010-12-02T19:19:40.318+05:30जो पुरातन है, वो केवल इसी कारण से अच्छा नहीं माना ...जो पुरातन है, वो केवल इसी कारण से अच्छा नहीं माना जा सकता कि वो हमारे पूर्वजों की देन है. और जो नया है, उसका भी तिरस्कार करना उचित नहीं.<br />बुद्धिमान व्यक्ति सदैव दोनों को कसौटी पर कसकर किसी एक को अपनाते हैं.<br /><br /><br />आपकी ये पंक्तिया 'सुक्ति' होने का आभास कराती हैं। मैं आपके विचारों से सहमत हूँ ।वीरेंद्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17461991763603646384noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-1305176555044831692010-12-02T15:50:03.790+05:302010-12-02T15:50:03.790+05:30पंडित जी,
सत्य चिंतन तथ्यपरक हुआ है।
अवार्चीन वि...पंडित जी,<br /><br />सत्य चिंतन तथ्यपरक हुआ है।<br /><br />अवार्चीन विचारधारा मानव केन्द्रिक रही है अर्थात जीवन के प्रत्येक अनुष्ठान का मध्यवर्ती बिन्दु मनुष्य है. वही प्रयोग आज महत्वपूर्ण है, जिसका इष्टदेवता मनुष्य है. जिस कार्य का फल साक्षात इहलौकिक मानव-जीवन के लिए न हो, जो निरीह जीवों के वध में ही अपने ईश्वर/अल्लाह की खुशी देखता हो, जो मनुष्य की अपेक्षा स्वर्ग के देवताओं या जन्नत के फरिश्तों को श्रेष्ठ समझता हो----वह किसी भी रूप में आधुनिक जीवन पद्धति के अनुकूल नहीं है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-7153465038007614062010-12-02T11:44:22.917+05:302010-12-02T11:44:22.917+05:30सही कहा पंडितजी आपने, जीवन चिंतन की धारा प्रवाहमान...सही कहा पंडितजी आपने, जीवन चिंतन की धारा प्रवाहमान ही होनी चहिये, नहीं तो उसके सड़ने में देर नहीं लगती .<br />आभार आपका !Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-13154269070771665682010-12-01T21:43:52.125+05:302010-12-01T21:43:52.125+05:30..
मेरे अव्यक्त विचारों को स्वर मिल गया. मेरी मौन.....<br /><br />मेरे अव्यक्त विचारों को स्वर मिल गया. मेरी मौन संवेदनाओं को भाषा मिल गयी. गुरुदेव आप धन्य हैं इस आधुनिक चिंतन को पुराने सांचों में ढालने के लिये. आपका प्रत्येक वाक्य मनुष्य जीवन के लिये अनमोल सूत्र है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.com