tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post895256361289581158..comments2023-08-21T20:08:03.188+05:30Comments on ॥ भारत-भारती वैभवं ॥: स्वप्न का रहस्य – अंतिम भागAmit Sharmahttp://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-17699761719902089702012-03-18T22:25:16.359+05:302012-03-18T22:25:16.359+05:30एक बेहतरीन श्रृंखला के लिए बहुत बहुत आभारएक बेहतरीन श्रृंखला के लिए बहुत बहुत आभारएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-16611838364646274072012-03-18T15:50:43.143+05:302012-03-18T15:50:43.143+05:30ज्ञान गंगा बहती रही है, बहती रहेगी।ज्ञान गंगा बहती रही है, बहती रहेगी।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-71766335116178001722012-03-18T10:00:56.142+05:302012-03-18T10:00:56.142+05:30कथा है, निबन्ध है, इतिहास है, जो भी है - एकदम अलग,...कथा है, निबन्ध है, इतिहास है, जो भी है - एकदम अलग, रोचक और सारपूर्ण लगी यह शृंखला! आभार!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-67871733915804588952012-03-18T09:44:05.249+05:302012-03-18T09:44:05.249+05:30कौशलेन्द्र जी,
बडा ही अद्भुत और सुक्ष्म निरीक्षण!...कौशलेन्द्र जी,<br /><br />बडा ही अद्भुत और सुक्ष्म निरीक्षण!! मानव के कलयुगी स्वभाव का कर्म, कारक, परिणाम और समाधान का गम्भीर विवेचन!! शुद्ध और स्पष्ट विचारधारा को नमन !!<br /><br />‘अकरणीय’ करणीय हो जाते हैं और ‘करणीय’ अकरणीय। ‘कुविचार’ स्वीकार्य हो जाते हैं और ‘सुविचार’ वर्ज्य एवम उपेक्षित। वृत्तियाँ अधोगामी हो जाती हैं, लोग वेदों में अनर्थ का आरोपण करने लगते हैं, भ्रष्ट आचरण और नैतिक पतन स्वार्थ सिद्धि के स्वीकार्य साधन बन जाते हैं, लोग मांसाहार में अहिंसा और शाकाहार में हिंसा देखने लगते हैं, ईश्वर की सृष्टि पर अनधिकृत अधिकार करने की चेष्टा कर प्रकृति के विरुद्ध आचरण करने के लिये उद्द्यत हो उठते हैं और न केवल दैहिक अपितु मानसिक हिंसा भी प्रशस्त मानी जाने लगती है। यह आभासी सत्य वैश्विक व्यापार बनकर उभरता है और प्रतिक्षण अपने हिंसक प्रभाव से न केवल मनुष्य समाज में अपितु चराचर जगत में विनाश लीला का कारण बनता है। हिंसक शक्तियों का प्रभाव जीवन और समाज के हर क्षेत्र में प्रबल हो जाता है। प्राणों के रक्षण के स्थान पर उनके हरण की गतिविधियों में समाज की रुचि अधिक रहती इसी कारण सबल अत्याचार ‘करने’ के लिये स्वतंत्र और दुर्बल अत्याचार ‘सहने’ के लिये बाध्य हो जाते हैं। बौद्धिक प्रवाह की गति प्राणिमात्र के लिये भोजन की नहीं अपितु अस्त्र-शस्त्र की व्यवस्था की ओर हो जाती है ताकि हिंसा के वर्चस्व को स्थापित किया जा सके।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1075080103501088483.post-74822078657582303612012-03-18T08:10:00.789+05:302012-03-18T08:10:00.789+05:30सिद्ध पुरुषों की आवश्यकता सम्पूर्ण विश्व को है..सा...सिद्ध पुरुषों की आवश्यकता सम्पूर्ण विश्व को है..सारगर्भित लेख श्रंखला।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com