"अहिंसा सकलो धर्मः।" (अनुशासन पर्व- महाभारत)
भावार्थ:- सभी प्रकार की धार्मिक और सात्विक प्रवृत्तियों का समावेश केवल अहिंसा में हो जाता है।
"हिंसा परो दमः।" (अनुशासन पर्व- महाभारत)
भावार्थ:- अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ आत्मनिग्रह है।
"अहिंसा परमं दानम्।" (पद्म-पुराण)
भावार्थ:- अहिंसा स्वरूप अभयदान ही परम दान है।
"अहिंसा परमं तपः।" (योग-वशिष्ट)
भावार्थ:- अहिंसा ही सबसे बड़ी तपस्या है।
"अहिंसा परमं ज्ञानम्।" (भागवत-स्कंध)
भावार्थ:- अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान है।
"अहिंसा परमं पदम्।" (भागवत-स्कंध)
भावार्थ:- अहिंसा ही सर्वोत्तम आत्मविकास अवस्था है।
"अहिंसा परमं ध्यानम्।" (योग-वशिष्ट)
भावार्थ:- अहिंसा की परिपालना ही उत्कृष्ट ध्यान है।
"अहिंसैव हि संसारमरावमृतसारणिः।" (योग-शास्त्र)
भावार्थ:- अहिंसा ही संसार रूप मरूस्थल में अमृत का मधुर झरना है।
"रूपमारोग्यमैश्वर्यमहिंसाफलमश्नुते।" (बृहस्पति स्मृति)
भावार्थ:- सौन्दर्य, नीरोगता एवं ऐश्वर्य सभी अहिंसा के फल है।
"अहिंसया च भूतानानमृतत्वाय कल्पते।" (मनु-स्मृति)
भावार्थ:- अहिंसा के फल स्वरूप, प्राणियों को अमरत्व पद की प्राप्ति होती है।
"ये न हिंसन्ति भूतानि शुद्धात्मानो दयापराः।" (वराह-पुराण)
भावार्थ:- जो प्राण-भूत जीवों की हिंसा नहीं करते, वे ही आत्माएं पवित्र और दयावान है।
भावार्थ:- सभी प्रकार की धार्मिक और सात्विक प्रवृत्तियों का समावेश केवल अहिंसा में हो जाता है।
"हिंसा परो दमः।" (अनुशासन पर्व- महाभारत)
भावार्थ:- अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ आत्मनिग्रह है।
"अहिंसा परमं दानम्।" (पद्म-पुराण)
भावार्थ:- अहिंसा स्वरूप अभयदान ही परम दान है।
"अहिंसा परमं तपः।" (योग-वशिष्ट)
भावार्थ:- अहिंसा ही सबसे बड़ी तपस्या है।
"अहिंसा परमं ज्ञानम्।" (भागवत-स्कंध)
भावार्थ:- अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान है।
"अहिंसा परमं पदम्।" (भागवत-स्कंध)
भावार्थ:- अहिंसा ही सर्वोत्तम आत्मविकास अवस्था है।
"अहिंसा परमं ध्यानम्।" (योग-वशिष्ट)
भावार्थ:- अहिंसा की परिपालना ही उत्कृष्ट ध्यान है।
"अहिंसैव हि संसारमरावमृतसारणिः।" (योग-शास्त्र)
भावार्थ:- अहिंसा ही संसार रूप मरूस्थल में अमृत का मधुर झरना है।
"रूपमारोग्यमैश्वर्यमहिंसाफलमश्नुते।" (बृहस्पति स्मृति)
भावार्थ:- सौन्दर्य, नीरोगता एवं ऐश्वर्य सभी अहिंसा के फल है।
"अहिंसया च भूतानानमृतत्वाय कल्पते।" (मनु-स्मृति)
भावार्थ:- अहिंसा के फल स्वरूप, प्राणियों को अमरत्व पद की प्राप्ति होती है।
"ये न हिंसन्ति भूतानि शुद्धात्मानो दयापराः।" (वराह-पुराण)
भावार्थ:- जो प्राण-भूत जीवों की हिंसा नहीं करते, वे ही आत्माएं पवित्र और दयावान है।