शनिवार, 17 अगस्त 2013

इण्डोनेशिया की प्राचीन हिन्दू संस्कृति | Hindu-Vedic Culture of Ancient Indonesia



७वीं - ८वीं सदी तक इण्डोनेशिया में पूर्णतया हिन्दू-वैदिक संस्कृति ही विद्यमान थी इसके आज भी अनेकों प्रमाण मिल रहे है तथा कई तो निर्भय होकर मूरत रूप में खड़े है

 निम्न जानकारी लाल कृष्ण आडवाणी जी के ब्लॉग से ली गई है --

कुछ वर्ष पूर्व मेरे एक मित्र ने दुनिया के सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले देश इण्डोनेशिया से लौटने के बाद कच्छ के आदीपुर (गुजरात) में मुझे एक 20 हजार रुपया वहां की करेंसी का नोट दिखाया जिस पर भगवान गणेश मुद्रित थे। मैं आश्चर्यचकित हुआ और प्रभावित भी ।

जब पिछले महीने इण्डोनेशिया की राजधानी जकार्ता से सिंधी समुदाय के कुछ महानुभावों के समूह ने 9,10 तथा 11 जुलाई 2010 को जकार्ता में होने वाले विश्व सिंधी सम्मेलन में आने का न्यौता दिया तो मैंने इसे तुरन्त स्वीकारा । इसका कारण यह था कि मैं इस देश पर भारतीय सभ्यता और विशेष रुप से रामायण और महाभारत जैसे महाग्रंथों के प्रभाव के बारे में अक्सर सुनता रहता था। करेंसी नोट पर गणेशजी का छपा चित्र इसका एक उदाहरण है।

मेरी पत्नी कमला, सुपुत्री प्रतिभा, दशकों से मेरे सहयोगी दीपक चोपड़ा और उनकी पत्नी वीना के साथ मैं 8 जुलाई को यहां से रवाना हुआ तथा 13 जुलाई को इस यात्रा की अविस्मरणीय स्मृतियां लेकर लौटा। इण्डोनेशिया में 13,677 द्वीप हैं जिनमें से 6000 से ज्यादा पर आबादी है। वहां की कुल जनसंख्या 20.28 करोड़ में से 88 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम और 10 प्रतिशत ईसाई हैं। यहां की 2 प्रतिशत हिन्दू आबादी मुख्य रुप से बाली द्वीप में रहती है।
Bali  Brand Logo
बाली द्वीप के लिए हाल ही में स्वीकृत किया गया नया ब्राण्ड ‘लोगो’ (प्रतीक चिन्ह) देश की हिन्दू परम्परा का प्रकटीकरण है। इण्डोनेशिया के पर्यटन मंत्रालय का प्रकाशन इस प्रतीक चिन्ह को इस प्रकार बताता है, त्रिकोण (प्रतीक चिन्ह की आकृति) स्थायित्व और संतुलन का प्रतीक है। यह तीन सीधी रेखाओं से बना है जिनमें दोनों सिरे मिलते हैं, जो सास्वत, अग्नि (ब्रह्मा- सृष्टि निर्माता), लिंग या लिंग प्रतिमान के प्रतीक हैं। त्रिकोण् ब्रहमाण्ड के तीनों भगवानों - (त्रिमूर्ति- ब्रह्मा, विष्णु और शिव), प्रकृति के तीन चरणों (भूर, भुव और स्वाहा लोक) और जीवन के तीन चरणों (उत्पत्ति, जीवन और मृत्यु ) को भी अभिव्यक्त करते हैं। प्रतीक चिन्ह के नीचे लिखा बोधवाक्य शान्ति, शान्ति, शान्ति भुवना अलित दन अगुंग (स्वयं और विश्व) पर शान्ति, जोकि एक पावन और पवित्र सिरहन देती है, जिससे गहन दिव्य ज्योति जागृत होती है जो सभी जीवित प्राणियों में संतुलन और शान्ति कायम करती है।

यहां 20000 रुपये के करेंसी नोट का नमूना दिया गया है। जैसा मैंने ऊपर वर्णन किया कि कुछ वर्ष पूर्व मैंने इसे देखा था और तभी तय किया था कि यदि मुझे इस देश की यात्रा करने का अवसर मिला तो मै स्वयं जा कर इसे प्राप्त करुंगा तथा औरों को दिखाऊंगा।
Indonesian Rupiah with Ganesha inscription

जकार्ता जाने वाले यात्रियों के लिए इण्डोनेशिया की राजधानी जकार्ता के उत्तर-पश्चिम तट पर स्थित शहर के बीचोंबीच भव्य निर्मित अनेक घोड़ों से खिंचने वाले रथ पर श्री कृष्ण-अर्जुन की प्रतिमा सर्वाधिक आकर्षित करने वाली है।
Krishna-Arjuna statue at Jakarta main square


इण्डोनेशिया में स्थानों, व्यक्तियों के नाम और संस्थानों का नामकरण संस्कृत प्रभाव की स्पष्ट छाप छोड़ता है
Bheema statue


निश्चित रूप से यह जानकर कि इण्डोनेशिया में सैन्य गुप्तचर का अधिकारिक शुभांकर (mascot) हनुमान हैं, काफी प्रसन्नता हुई। इसके पीछे के औचित्य को वहां के एक स्थानीय व्यक्ति ने यूं बताया कि हनुमान ने ही रावण द्वारा अपहृत सीता को जिन्हें अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा गया था, का पता लगाने में सफलता पाई थी।

हमारे परिवार ने चार दिन इण्डोनेशिया - दो दिन जकार्ता और दो दिन बाली में बिताए।

बाली इस देश के सर्वाधिक बड़े द्वीपों में से एक है। यहां के उद्योगों में सोने और चांदी के काम, लकड़ी का काम, बुनाई, नारियल, नमक और कॉफी शामिल हैं। लेकिन जैसे ही आप इस क्षेत्र में पहुंचते हैं तो आप साफ तौर पर पाएंगे कि यह पर्यटकों से भरा हुआ है। लगभग तीन मिलियन आबादी वाले बाली में प्रतिवर्ष एक मिलियन पर्यटक आते हैं।

इस द्वीप की राजधानी देनपासर है। हमारे ठहरने का स्थान मनोरम दृश्य वाला फोर सीजंस रिसॉर्ट था जो समुद्र के किनारे पर है और हवाई अड्डे से ज्यादा दूर नहीं है। रिसॉर्ट जाते समय रास्ते में मैंने जकार्ता में कृष्ण-अर्जुन जैसी विशाल पत्थर पर बनी आकृति देखी हालांकि यह जकार्ता में देखी गई आकृति से अलग किस्म की थी।

मैंने अपनी कार के ड्राइवर से पूछा: यह किसकी प्रतिमा है? और क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जब उसने जवाब दिया तो मैं आश्चर्यचकित रह गया। उसने बताया, ”यह महाभारत के घटोत्कच की प्रतिमा है।” उसने आगे बताया ”और शहर में इस आकृति में घटोत्कच के पिता भीम को भी दिखाया गया है जो दानव से भीषण युध्द कर रहे हैं!”
Ghatotakacha (Son of Bheema) statue near the Ngurah Rai International Airport

भारत में, इन दोनों महाकाव्यों रामायण और महाभारत में से सामान्य नागरिक रामायण के अधिकांश चरित्रों को पहचानते हैं। लेकिन महाभारत के चरित्र कम जाने जाते है।वस्तुत:, भारत में भी बहुत कम होंगे जिन्हें पता होगा कि घटोत्कच कौन है? और वहां हमारी कार का ड्राइवर भीम से उसके रिश्ते के बारे में भी पूरी तरह से जानता था। : D

जकार्ता में सिंधी सम्मेलन और बाली में हमें रामायण के दृश्यों के मंचन की झलक देखने को मिली जो भारत में प्रचलित परम्परागत रुप से थोड़ा भिन्न थी। कलाकारों का प्रदर्शन तथा प्रस्तुति और जिन स्थानों पर यह प्रदर्शन देखने को मिले वहां का सामान्य वातावरण भी पर्याप्त श्रध्दा और भक्ति से परिपूर्ण था।

मैं यह अवश्य कहूंगा कि इण्डोनेशिया के लोग हमसे ज्यादा अच्छे ढंग से रामायण और महाभारत को जानते हैं और संजोए हुए है।

-- लाल कृष्ण आडवाणी
नयी दिल्ली

१७ जुलाई, २०१०

Archaeology--
इसके अतिरिक्त शिव जी तथा गणेश जी का एक १००० वर्ष पुराना मंदिर भी खुदाई में प्राप्त हुआ है शोधकर्ताओं का कहना है की १० वीं सदी में हुए भयंकर ज्वालामुखी विस्फोट के कारन ये मंदिर लावे की तह में दब गया था तथा उनका कहना है की अब तक पूरी दुनियां में प्राप्त हुई  विरासतों में यह सबसे उत्तम अवस्था में है

"This temple is a quite significant and very valuable because we have never found a temple as whole and intact as this one," said archaeologist Dr Budhy Sancoyo, who is one of the researchers painstakingly cleaning up the temple.




इण्डोनेशिया की विमान सेवा का नाम भी विष्णु जी के वाहन गरुड़ के नाम पर रक्खा गया है


Garuda , the vehicle ( Vimana ) of Lord Vishnu , holds an important role for Indonesia, as it serves as the national symbol of Indonesia.

इण्डोनेशिया के प्राचीन हिन्दू मंदिरों की कई अन्य तस्वीरें --


Archaeologists found a statue of Ganesha, a Hindu deity, during their excavations on the campus of the Islamic University, Indonesia










EVEN MORE --

Bali, Indonesia - 
Mother Temple of Besakih, Karangasem Regency (the biggest Hindu temple in Indonesia)
Pura Ulun Danu Bratan
Pura Luhur Ulu Watu
Kehen Temple, southern slope of Bangli hill
Makori temple, Bali
Batur Temple (Ulun Danu temple), Kalanganyar Batur village, Kintamani
Watukaru Temple, Wangaya Gede village, Tabanan
Pucak Penulisan, Kintamani
Pancering Jagat, Trunyan village, Kintamani
Jagadnatha, Jalan Mayor Wisnu, Puputan Square
Maospahit Denpasar, Banjar Gerenceng
Tanah Lot, Marga
Goalawah
Tirtha Empul Temple
Sakenan, boat Pirelli, Klungkung Regency
Taman Ayun
Pengerebongan, Kesiman Culture Village, Kesiman Petilan Village, District of East Denpasar

Lombok
Lingsar Temple, 7 kilometer from Narmada, one hour drive to east from Mataram, Hindu Temple, but at some occasions is used also by Animism Islamic Wektu Telu which only do the prayer 3 times a day
Java

Prambanan Temples
Parahyangan Agung Jagat Kartta Temple, Warung Loak Village, Taman Sari, Bogor Regency (the second biggest Hindu temple in Indonesia)
Ijo Temple
Barong Temple
Sambisari Temple
Kedulan Temple
Gebang Temple
Pustakasala Temple
Dieng Temples
Sukuh Temple
Cetho Temple
Penataran Temple
Kidal Temple
Surawana Temple

North Sumatra
Shri Sithi Vinayagar Kuil, Karang Sari, Polonia Medan
Shri Balaji Venkateshwara Koil, Jln.Bunga Wijaya Kesuma/Pasar IV,Padang Bulan, Medan
Shri Mariamman Kuil, Jalan Teuku Umar, Kampung Madras, Medan
Thandayuthapani Temple, Medan
Shri Kaliamman Kuil, Jalan Zainul Arifin, Medan
Maha Muniswarar Temple, Medan
Arulmigu Shri Maha Mariamman Koil, Sampali
Shri Thendayudhabani Koil, Jln.Sultan Hasanuddin, Lubuk Pakam
Shri Subramaniam Nagarattar Kuil (Chettiar Kuil), Jalan Kejaksaan, Kebun Bunga, Medan
Shri Maha Shiva Shakti Kuil, Karang Sari, Medan
Shri Mariamman Kuil, Medan Helvetia
Shri Singgama Kali Kuil, Jalan Karya, Medan Barat
Shri Kaliamman Kuil, Jalan Karya, Medan Barat (persis di sebelah Vihara Manggala)
Shri Mariamman Kuil, Bekala, Medan Simalingkar B
Shri Rajarajeshvari Amman Kuil, Selesai, Binjai Barat
dan puluhan kuil lainnya namun berukuran kecil dan tersebar di hampir seluruh kota Medan

Jakarta
Sri Siva Temple, Pluit (Indian Hindu Style)
Shri Bathra Kaliamman Koil, Komplek Perumahan Puri Metropolitan, Jl. Krisan Asri V, Blok B3, No. 20-22, Gondrong Petir, Cipondoh - Tangerang

Pura Aditya Jaya, Jl. Daksinapati Raya 10, Jakarta, Indonesia

अब बताइए हिन्दुत्व  की इतनी गहरी छाप तो हिन्दुस्थान में भी नही है !!

http://www.telegraph.co.uk/news/worldnews/asia/indonesia/9632337/Largest-ancient-Hindu-temple-discovered-in-Indonesia.html

Thanks to :
L.K Advani



TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 

सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

रविवार, 28 जुलाई 2013

संस्कृत बनेगी नासा की भाषा | Mission Sanskrit - Sanskrit As Computer Language : NASA


A.  NASA to echo Sanskrit in space

देवभाषा संस्कृत की गूंज कुछ साल बाद अंतरिक्ष में सुनाई दे सकती है। इसके वैज्ञानिक पहलू जानकर अमेरिका नासा की भाषा बनाने की कसरत में जुटा हुआ है । इस प्रोजेक्ट पर भारतीय संस्कृत विद्वानों के इन्कार के बाद अमेरिका अपनी नई पीढ़ी को इस भाषा में पारंगत करने में जुट गया है।

गत दिनों आगरा दौरे पर आए अरविंद फाउंडेशन [इंडियन कल्चर] पांडिचेरी के निदेशक संपदानंद मिश्रा ने 'जागरण' से बातचीत में यह रहस्योद्घाटन किया। उन्होंने बताया कि नासा के वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने 1985 में भारत से संस्कृत के एक हजार प्रकांड विद्वानों को बुलाया था। उन्हें नासा में नौकरी का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने बताया कि संस्कृत ऐसी प्राकृतिक भाषा है, जिसमें सूत्र के रूप में कंप्यूटर के जरिए कोई भी संदेश कम से कम शब्दों में भेजा जा सकता है। विदेशी उपयोग में अपनी भाषा की मदद देने से उन विद्वानों ने इन्कार कर दिया था।

इसके बाद कई अन्य वैज्ञानिक पहलू समझते हुए अमेरिका ने वहां नर्सरी क्लास से ही बच्चों को संस्कृत की शिक्षा शुरू कर दी है। नासा के 'मिशन संस्कृत' की पुष्टि उसकी वेबसाइट भी करती है। उसमें स्पष्ट लिखा है कि 20 साल से नासा संस्कृत पर काफी पैसा और मेहनत कर चुकी है। साथ ही इसके कंप्यूटर प्रयोग के लिए सर्वश्रेष्ठ भाषा का भी उल्लेख है।


http://www.scribd.com/doc/86558555/Sanskrit-is-Fun

स्पीच थैरेपी भी : वैज्ञानिकों का मानना है कि संस्कृत पढ़ने से गणित और विज्ञान की शिक्षा में आसानी होती है, क्योंकि इसके पढ़ने से मन में एकाग्रता आती है। वर्णमाला भी वैज्ञानिक है। इसके उच्चारण मात्र से ही गले का स्वर स्पष्ट होता है। रचनात्मक और कल्पना शक्ति को बढ़ावा मिलता है। स्मरण शक्ति के लिए भी संस्कृत काफी कारगर है। मिश्रा ने बताया कि कॉल सेंटर में कार्य करने वाले युवक-युवती भी संस्कृत का उच्चारण करके अपनी वाणी को शुद्ध कर रहे हैं। न्यूज रीडर, फिल्म और थिएटर के आर्टिस्ट के लिए यह एक उपचार साबित हो रहा है। अमेरिका में संस्कृत को स्पीच थेरेपी के रूप में स्वीकृति मिल चुकी है।

http://hindi.ibtl.in/news/international/1978/article.ibtl
http://post.jagran.com/NASA-to-use-Sanskrit-as-computer-language-1332758613
http://www.ibtl.in/news/international/1815/nasa-to-echo-sanskrit-in-space-website-confirms-its-mission-sanskrit/


B. Oxford University में संस्कृत का कोर्स लागू 

Sanskrit is the key to Indian civilization, and is taught in this spirit at Oxford. While India may be best known in the West for its religious leaders from the Buddha to Gandhi, it has excelled in fields from logic to music. Sanskrit literature, both sacred and secular, is immensely rich and varied.

http://www.ox.ac.uk/admissions/undergraduate_courses /courses/oriental_studies/sanskrit.html



 C. बुध पर पहुंचे संस्कृत के महान कवि कालिदास (1 OR 3 BC) :

नासा को बुध  के सतह पर एक विशेष विशाल गड्ढा (crater) पाया गया है जिसका व्यास (diameter) 107 किमी है , नासा ने इस गड्ढे का नाम संस्कृत के महान कवि कालिदास के सम्मान में कालिदास गड्ढा (Kalidasa crater) रखा है

This image, taken with the Narrow Angle Camera (NAC), gives us a close-up look at the crater Kalidasa, named for the renowned classical Sanskrit writer Kālidāsa.
 - NASA
http://photojournal.jpl.nasa.gov/catalog/PIA15155

D. NASA to use Sanskrit as computer language

America is creating 6th and 7th generation super computers based on Sanskrit language. Project deadline is 2025 for 6th generation and 2034 for 7th generation computer. After this there will be a revolution all over the world to learn Sanskrit.
-A NASA scientist

http://www.ariseindiaforum.org/they-broke-our-vedic-back-bone/


E. संस्कृत के बारे में अन्य  तथ्य ————-

1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा।
संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1987

2. नासा के वैज्ञानिक Rick Briggs ने Artificial Intelligence AI Mazagine में संस्कृत की गुणवत्ता के बारे में लिखा  है
आजकल कंप्यूटर के क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence Programming) का प्रयोग करके कंप्यूटर को बुद्धिमान बनाने का कार्य चल रहा है अर्थात स्वयं निर्णय लेने की क्षमता  होना
AI का एक अच्छा खासा उदहारण आपको कंप्यूटर के Chess गेम के रूप में मिल सकता है जहा कंप्यूटर स्वयं निर्णय लेकर चालें चलता है और आपको हरा भी देता है
Rick Briggs  की रिपोर्ट यहाँ पढ़े :
http://www.scribd.com/doc/32049984/Sanskrit-NASA-Report-by-Rick-Briggs

2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, हिंदू कैलेंडर है (जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है)
संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी

3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति स्वस्थ और बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।
संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद)

4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी(Technology) रखती है।
संदर्भ: रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी, नासा आदि

(नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं)
(असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं। दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्तकरने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय इंडिया (भारत) में नहीं है।

5. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है।
संदर्भ: यूएनओ

6. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके।
परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।

7. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है।
संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985

8. संस्कृत भाषा वर्तमान में “उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी” तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज “सरल किर्लियन फोटोग्राफी” भी नहीं है )

9. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरतनाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव या नटराज की एक मूर्ति है )

http://hinduexistence.org/2012/07/14/god-particle-cern-lord-shiva-nataraj/

http://www.fritjofcapra.net/shiva.html



10. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र (श्री यन्त्र) पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है।
http://www.vedicbharat.com/2013/04/Om-Cymatics-ShriYantra.html
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2011/11/brain-massage-with-sri-yantra-capt-ajit.html

लेकिन यहाँ यह बात अवश्य सोचने की है,की आज जहाँ पूरे विश्व में संस्कृत पर शोध चल रहे हैं,रिसर्च हो रहीं हैं वहीँ हमारे देश के लुच्चे नेता संस्कृत को मृत भाषा बताने में बाज नहीं आ रहे हैं अभी ३ वर्ष पहले हमारा एक केन्द्रीय मंत्री बी. एच .यू . में गया था तब उसने वहां पर संस्कृत को मृत भाषा बताया था. यह बात कहकर वह अपनी माँ को गाली दे गया, और ये वही लोग हैं जो भारत की संस्कृति को समाप्त करने के लिए यहाँ की जनता पर अंग्रेजी और उर्दू को जबरदस्ती थोप रहे हैं.
संस्कृत को सिर्फ धर्म-कर्म की भाषा नहीं समझना चाहिए-यह लौकिक प्रयोजनों की भी भाषा है. संस्कृत में अद्भुत कविताएं लिखी गई हैं, चिकित्सा, गणित, ज्योतिर्विज्ञान, व्याकरण, दशर्न आदि की महत्वपूर्ण पुस्तकें उपलब्ध हैं. केवल आध्यात्मिक चिंतन ही नहीं है, बल्कि दाशर्निक ग्रंथ भी उपलब्ध हैं,किन्तु रामायण,और गीता की भाषा को आज भारत में केवल हंसी मजाक की भाषा बनाकर रख दिया गया है,भारतीय फिल्मे हों या टी.वी. प्रोग्राम ,उनमे जोकरों को संस्कृत के ऐसे ऐसे शब्द बनाकर लोगों को हँसाने की कोशिश की जाती है जो संस्कृत के होते ही नहीं हैं, और हमारी नई पीढी जिसे संस्कृत से लगातार दूर किया जा रहा है,वो संस्कृत की महिमा को जाने बिना ही उन कॉमेडी सीनों पर दात दिखाती है.
अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया जैसे देशों में नर्सरी से ही बच्चों को संस्कृत पढ़ाई जाने लगी है, कहीं एसा न हो की हमारी संस्कृत कल वैश्विक भाषा बन जाये और हमारे नवयुवक संस्कृत को केवल भोंडे और भद्दे मसखरों के भाषा समझते रहें. अपने इस लेख से मै भारत के यूवाओं को आह्वान करता हूँ की आने वाले समय में संस्कृत कम्पुटर की भाषा बन्ने जा रही है ,सन २०२५ तक नासा ने संस्कृत में कार्य करने का लक्ष्य रखा है. अतः अंग्रेजी भाषा के साथ साथ वे अपने बच्चों को संस्कृत का ज्ञान जरूर दिलाएं ,और संस्कृत भाषा को भारत में उपहास का कारन न बनाये ,क्यों की संस्कृत हमारी देव भाषा है ,संस्कृत का उपहास करके हम अपनी जननी का उपहास कर रहे है



http://www.thehindu.com/news/hindi-is-gaining-popularity-over-sanskrit-among-germans/article615719.ece

http://www.rtc-idyll.com/shell_dyll/contents/misc_articles/spoken_sanskrit/conversational_sanskrit.html

http://ajitvadakayil.blogspot.in/2010/11/sanskrit-digital-language-versus-versus.html

http://www.stephen-knapp.com/sanskrit_its_importance_to_language.htm

साभार : वैदिक धर्म -
 http://vaidikdharma.wordpress.com/2013/01/16/2013/01/16/संस्कृतsanskrit-को-मृत-भाषा-कहने/


F. अरे वाह !! :) क्या भारत में भी ________??

१. अभी ३ वर्ष पहले हमारा एक केन्द्रीय मंत्री बी. एच .यू . में गया था तब उसने वहां पर संस्कृत को मृत भाषा बताया था. यह बात कहकर वह अपनी माँ को गाली ($%**@$) दे गया, और ये वही लोग हैं जो भारत की संस्कृति को समाप्त करने के लिए यहाँ की जनता पर अंग्रेजी और उर्दू को जबरदस्ती थोप रहे हैं.

२. 


३. जैसा की अभी आपने ऊपर पढ़ा की  नासा के वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने 1985 में भारत से संस्कृत के एक हजार प्रकांड विद्वानों को बुलाया था। उन्हें नासा में नौकरी का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने बताया कि संस्कृत ऐसी प्राकृतिक भाषा है,  विदेशी उपयोग में अपनी भाषा की मदद देने से भारतीय विद्वानों ने इन्कार कर दिया था।
अब बारी अंग्रेजों की आने वाली है , भविष्य में कदाचित भारत को संस्कृत के अध्यापक बाहर से मंगवाने पड़े वो समय विदेशियों का इंकार कर बदला लेने का होगा


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वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

गति के नियम : महर्षि कणाद | Laws of Motion by Maharishi Kanada : 600BC

जी हाँ दोस्तों ,
शीर्षक बिलकुल सही है इस संसार को गति के नियम महर्षि कणाद ने दिए है ना की कोई न्यूटन फ्यूटन ने ।


वैशेषिक दर्शन (Vaisheshika Sutra) के रचनाकार महर्षि कणाद लगभग २ या ६ ईसा पूर्व प्रभास क्षेत्र द्वारका के निकट गुजरात में जन्मे ।
दुनिया को पहला परमाणु का ज्ञान देने वाले भी ऋषि कणाद ही है । इन्ही के नाम पर परमाणु का एक नाम कण पड़ा ।
 यहाँ देखें :- http://www.vedicbharat.com/2013/02/blog-post_4711.html

वैशेषिक दर्शन  में इन्होने गति के लिए कर्म शब्द प्रयुक्त किया है । इसके पांच प्रकार हैं यथा :

उत्क्षेपण (upward motion)
अवक्षेपण (downward motion)
आकुञ्चन (Motion due to the release of tensile stress)
प्रसारण (Shearing motion)
गमन (General Type of motion)

विभिन्न कर्म या motion को उसके कारण के आधार पर जानने का विश्लेषण वैशेषिक में किया है।

(१) नोदन के कारण-लगातार दबाव
(२) प्रयत्न के कारण- जैसे हाथ हिलाना
(३) गुरुत्व के कारण-कोई वस्तु नीचे गिरती है
(४) द्रवत्व के कारण-सूक्ष्म कणों के प्रवाह से

Dr. N.G. Dongre अपनी पुस्तक 'Physics in Ancient India'  में वैशेषिक सूत्रों  के ईसा की प्रथम शताब्दी में लिखे गए  प्रशस्तपाद भाष्य में उल्लिखित वेग संस्कार और न्यूटन द्वारा 1675 में खोजे गए गति के नियमों की तुलना की है ।

महर्षि प्रशस्तपाद लिखते हैं
‘वेगो पञ्चसु द्रव्येषु निमित्त-विशेषापेक्षात्‌ कर्मणो जायते नियतदिक्‌ क्रिया प्रबंध हेतु: स्पर्शवद्‌ द्रव्यसंयोग विशेष विरोधी क्वचित्‌ कारण गुण पूर्ण क्रमेणोत्पद्यते।‘

 अर्थात्‌ वेग या मोशन पांचों द्रव्यों (ठोस, तरल, गैसीय) पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है।

उपर्युक्त प्रशस्तिपाद के भाष्य को तीन भागों में विभाजित करें तो न्यूटन के गति सम्बंधी नियमों से इसकी समानता ध्यान आती है।

(१) वेग: निमित्तविशेषात्‌ कर्मणो जायते

The change of motion is due to impressed force (Principia)

(२) वेग निमित्तापेक्षात्‌ कर्मणो जायते नियत्दिक्‌ क्रिया प्रबंध हेतु

The change of motion is proportional‌ to the motive force impressed and is made in the direction of the right line in which‌ the force is impressed (Principia)

(३) वेग: संयोगविशेषाविरोधी

To every‌ action there is always an equal‌ and opposite reaction (Principia)


वैशेषिक सूत्र में गति के साथ साथ ब्रह्माण्ड , समय तथा अणु /परमाणु  का ज्ञान भी है जिसके  अंग्रेज भी बहुत दीवाने है देखिये , ये निम्न एक पीडीऍफ़ फाइल दे रहा हूँ ये मुझे अमेरिका के एक कॉलेज  की  साईट पर मिली

Division of Electrical & Computer Engineering, School of Electrical Engineering and Computer Science
3101 P. F. Taylor Hall • Louisiana State University • Baton Rouge, LA 70803, USA

Space, Time and Anu (Atom) in Vaisheshika -> http://www.ece.lsu.edu/kak/roopa51.pdf

 चाहे तो http://www.ece.lsu.edu/ में जाएँ और सर्च बॉक्स में kanad  लिखें

अंग्रेज  हमारी चीजें पढ़ कर हमें पढ़ा रहे है वो भी अपने नाम से , कैसे दिन आ गये !!
दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश में आर्यों की ऐसी स्थति पर बड़ा दुःख व्यक्त किया है
http://phys.org/news106238636.html

वैशेषिक सूत्र आप पढना चाहें तो यहाँ से डाउनलोड कर सकते है :--
http://www.jainlibrary.org/elib_master/jlib/002501_book_hindi_21/Vaisheshika_Sutra_002759.pdf
http://darshanapress.com/The%20Vaisheshika%20Darshana.pdf





                                                            सनातन्  धर्मं: नमो नमः



TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

सोमवार, 1 जुलाई 2013

रावण के ४ हवाईअड्डे मिले | 4 Airports of King Ravana Discovered : 7323BC

रामायण तथा उसमे वर्णित पुष्पक विमान आदि को कपोलकल्पित कहने  वालो के मुख पर एक और कड़क चमाट 

जी हाँ दोस्तों , रावन के रामायण कालीन ४ हवाईअड्डे खोजने का दावा किया है श्री लंका की रामायण अनुसन्धान कमेटी ने ।
पिछले ९ वर्षों  से ये कमेटी  श्री लंका का कोना कोना छान रही थी जिसके तहत कई छुट पुट जानकारी व् अवशेष भी मिलते रहे परन्तु पिछले ४ सालो में लंका के दुर्गम स्थानों में की गई खोज के दोरान रावण के  ४ हवाईअड्डे हाथ लगे है ।

कमेटी  के अध्यक्ष अशोक केंथ का कहना है की रामायण में वर्णित लंका वास्तव में श्री लंका ही है जहाँ उसानगोडा , गुरुलोपोथा , तोतुपोलाकंदा तथा वरियापोला नामक चार हवाईअड्डे मिले है ।
उसानगोडा रावण का निजी हवाईअड्डा था  तथा यहाँ का रनवे लाल रंग का है । इसके आसपास की जमीं कहीं काली तो कहीं हरी घास वाली है । जब हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका गये तो वहां से लौटते समय उन्होंने रावण के निजी उसानगोडा को नष्ट कर दिया था ।
आगे केंथ ने बताया की अब तक उनकी टीम ने लंका के ५० दुर्गम स्थानों की खोज की है । इससे पूर्व पंजाब के अशोक केंथ सन २ ० ० ४ में लंका में स्थित अशोक वाटिका खोजने के कारन सुर्खियों में आये थे ।
तत्पश्चात श्री लंका सर्कार ने २ ० ० ७ में 'श्री रामायण अनुसन्धान कमेटी' का गठन किया तथा केंथ को इसका अध्यक्ष बनाया था ।

श्री रामायण अनुसन्धान कमेटी के मुख्य सदस्य :
इस कमिटी में श्री लंका के पर्यटन मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल क्लाइव सिलबम , आस्ट्रेलिया के हेरिक बाक्सी , लंका के पीवाई सुदेशम, जर्मनी के उर्सला मुलर , इंग्लॅण्ड की हिमी जायज शामिल है ।

अब तक क्या क्या पाया ? 
अशोक वाटिका,
रावण के ४ हवाईअड्डे : उसानगोडा , गुरुलोपोथा , तोतुपोलाकंदा , वरियापोला
रावण का महल ,
विभीषण का महल
आदि ।

http://www.bhaskar.com/article/PUN-JAL-airport-prevailed-in-raavan-regime-4264114-PHO.html

http://www.bhaskar.com/article/c-3-811668-NOR.html

ये स्थान व् हवाईअड्डे आदि कितने पुराने ?
वेद विज्ञानं मंडल, पुणे के डा० वर्तक जी ने वालमिकी रामायण में वर्णित ग्रहों नक्षत्रों की स्थति(astronomical calculations) तथा उन्ही ग्रहों नक्षत्रों की वर्तमान स्थति पर गहन शोध कर रामायण काल को  लगभग 7323 ईसा पूर्व अर्थात आज से लगभग 9336 वर्ष पूर्व का बताया है । इस विषय पर उन्होंने एक पूरी पुस्तक भी लिख डाली है जिसमे उन्होंने लगभग सभी मुख्य घटनाओं की तिथि निर्धारित की है । इनकी पुस्तक की एक प्रति निम्न है :


इसके साथ साथ ये भी बता दिया जाये की आधुनिक समय में भी सबसे पहले विमान भारत में ही बनाया गया था , विदेशी वेज्ञानिक राईट बंधुओं से ८ वर्ष पहले ।
यहाँ देखे : http://www.vedicbharat.com/2013/01/a.html


                                        

                                                             सनातन्  धर्मं: नमो नमः

TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

गुरुवार, 20 जून 2013

इन्द्र अहल्या और गौतम का सत्य | Truth of Indra Ahalya and Gautama

Truth of Indra Ahalya and Gautama
Truth of Indra Ahalya and Gautama
सबसे पहले इन्द्र और अहल्या की कथा जो अब तक प्रचलित है वो देखते है फिर भांडा फोड़ेंगे .

देवों का राजा इन्द्र देवलोक में देहधारी देव था। वह गोतम ऋषि की स्त्री अहल्या के साथ जारकर्म किया करता था। एक दिन जब उन दोनों को गोतम ऋषि ने देख लिया, तब इस प्रकार शाप दिया की हे इन्द्र ! तू हजार भगवाला हो जा । तथा अहल्या को शाप दिया की तू पाषाणरूप हो जा। परन्तु जब उन्होंने गोतम ऋषि की प्रार्थना की कि हमारे शाप को मोक्षरण कैसे व कब मिलेगा, तब इन्द्र से तो कहा कि तुम्हारे हजार भग के स्थान में हजार नेत्र हो जायें, और अहल्या को वचन दिया कि जिस समय रामचन्द्र अवतार लेकर तेरे पर अपना चरण लगाएंगे, उस समय तू फिर अपने स्वरुप में आ जाओगी।

दोस्तों उपरोक्त कथा और सत्य कथा में कुछ कुछ उतना ही अंतर है जितना :
आज दुकान बंद रखा गया है 
आज दुकान बंदर खा गया है 
में है । 

इन्द्रा गच्छेति । .. गौरावस्कन्दिन्नहल्यायै जारेति । तधान्येवास्य चरणानि तैरेवैनमेंत्प्रमोदयिषति ।। 
शत ० का ० ३ । अ ० ३ । ब्रा ० ४ । कं ० १ ८ 
रेतः सोम ।।  शत ० का ० ३ । अ ० ३ । ब्रा ० २  । कं ० १
रात्रिरादित्यस्यादित्योददयेर्धीयते  निरू ० अ ० १२ । खं० १ १ 
सुर्य्यरश्पिचन्द्रमा गन्धर्वः।। इत्यपि निगमो भवति । सोअपि गौरुच्यते।। निरू ० अ ० २ । खं० ६ 
जार आ भगः जार इव भगम्।। आदित्योअत्र जार उच्यते, रात्रेर्जरयिता।। निरू ० अ ० ३  । खं० १ ६ 

(इन्द्रागच्छेती०) अर्थात उनमें इस रीति से है कि सूर्य का नाम इन्द्र ,रात्रि का नाम अहल्या तथा चन्द्रमा का गोतम है। यहाँ रात्रि और चन्द्रमा का स्त्री-पुरुष के समान रूपकालंकार है। चन्द्रमा अपनी स्त्री रात्रि के साथ सब प्राणियों को आनन्द कराता है और उस रात्रि का जार आदित्य है। अर्थात जिसके उदय होने से रात्रि अन्तर्धान हो जाती है। और जार अर्थात यह सूर्य ही रात्रि के वर्तमान रूप श्रंगार को बिगाड़ने वाला है। इसीलिए यह स्त्रीपुरुष का रूपकालंकार बांधा है, कि जिस प्रकार स्त्रीपुरुष मिलकर रहते हैं, वैसे ही चन्द्रमा और रात्रि भी साथ-२ रहते हैं।

चन्द्रमा का नाम गोतम इसलिए है कि वह अत्यन्त वेग से चलता है। और रात्रि को अहल्या इसलिये कहते हैं कि उसमें दिन लय हो जाता है । तथा सूर्य रात्रि को निवृत्त कर देता है, इसलिये वह उसका जार कहाता है।

इस उत्तम रूपकालंकार को अल्पबुद्धि पुरुषों ने बिगाड़ के सब मनुष्य में हानिकारक मिथ्या सन्देश फैलाया है। इसलिये सब सज्जन लोग पुराणोक्त मिथ्या कथाओं का मूल से ही त्याग कर दें।

--: ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका , महर्षि दयानंद सरस्वती 

तर्क शास्त्र से किसी भी प्रकार से यह संभव ही नहीं हैं की मानव शरीर पहले पत्थर बन जाये और फिर चरण छूने से वापिस शरीर रूप में आ जाये।

दूसरा वाल्मीकि रामायण में अहिल्या का वन में गौतम ऋषि के साथ तप करने का वर्णन हैं कहीं भी वाल्मीकि मुनि ने पत्थर वाली कथा का वर्णन नहीं किया हैं। वाल्मीकि रामायण की रचना के बहुत बाद की रचना तुलसीदास रचित रामचरितमानस में इसका वर्णन हैं।

वाल्मीकि रामायण 49/19 में लिखा हैं की राम और लक्ष्मण ने अहिल्या के पैर छुए। यही नहीं राम और लक्ष्मण को अहिल्या ने अतिथि रूप में स्वीकार किया और पाद्य तथा अधर्य से उनका स्वागत किया। यदि अहिल्या का चरित्र सदिग्ध होता तो क्या राम और लक्ष्मण उनका आतिथ्य स्वीकार करते?

विश्वामित्र ऋषि से तपोनिष्ठ अहिल्या का वर्णन सुनकर जब राम और लक्ष्मण ने गौतम मुनि के आश्रम में प्रवेश किया तब उन्होंने अहिल्या को जिस रूप में वर्णन किया हैं उसका वर्णन वाल्मीकि ऋषि ने बाल कांड 49/15-17 में इस प्रकार किया हैं

स तुषार आवृताम् स अभ्राम् पूर्ण चन्द्र प्रभाम् इव |
मध्ये अंभसो दुराधर्षाम् दीप्ताम् सूर्य प्रभाम् इव || ४९-१५

सस् हि गौतम वाक्येन दुर्निरीक्ष्या बभूव ह |
त्रयाणाम् अपि लोकानाम् यावत् रामस्य दर्शनम् |४९-१६

तप से देदिप्तमान रूप वाली, बादलों से मुक्त पूर्ण चन्द्रमा की प्रभा के समान तथा प्रदीप्त अग्नि शिखा और सूर्य से तेज के समान अहिल्या तपस्या में लीन थी।

सत्य यह हैं की देवी अहिल्या महान तपस्वी थी जिनके तप की महिमा को सुनकर राम और लक्ष्मण उनके दर्शन करने गए थे। विश्वामित्र जैसे ऋषि राम और लक्ष्मण को शिक्षा देने के लिए और शत्रुयों का संहार करने के लिए वन जैसे कठिन प्रदेश में लाये थे।

किसी सामान्य महिला के दर्शन कराने हेतु नहीं लाये थे।

कालांतर में कुछ अज्ञानी लोगो ने ब्राह्मण ग्रंथों में  “अहल्यायैजार” शब्द  के रहस्य को न समझ कर इन्द्र द्वारा अहिल्या से व्यभिचार की कथा गढ़ ली। प्रथम इन्द्र को जिसे हम देवता कहते हैं व्यभिचारी बना दिया। भला जो व्यभिचारी होता हैं वह देवता कहाँ से हुआ?

द्वितीय अहिल्या को गौतम मुनि से शापित करवा कर उस पत्थर का बना दिया जो असंभव हैं।

तीसरे उस शाप से मुक्ति का साधन श्री राम जी के चरणों से उस शिला को छुना बना दिया।

जबकि महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या श्रेष्ठ आचरण वाले थे । 
ये वही महर्षि गौतम है जिन्होंने वैदिक काल में न्यायशास्त्र की रचना की थी । 
->न्याय के प्रवर्तक ऋषि गौतम {Justice Formula by Gautama Maharishi}


मध्यकाल को पतन काल भी कहा जाता हैं क्यूंकि उससे पहले नारी जाति को जहाँ सर्वश्रेष्ठ और पूजा के योग्य समझा जाता था वही मध्यकाल में वही ताड़न की अधिकारी और अधम समझी जाने लगी।

इसी विकृत मानसिकता का परिणाम अहिल्या इन्द्र की कथा का विकृत रूप हैं।

तो क्या इस प्रकार की मुर्खता भरी बाते होने के कारण सब पुराणादि मिथ्या है ?
बिलकुल नही !!! यदि समस्त पुराणादि को मिथ्या माने ने पुराणो में जो विज्ञानं आदि की बाते है वो कहाँ से आई ?
-> पृथ्वी पर प्रजातियां | पुनर्जन्म : पद्म पुराण (Life Forms on Earth & Rebirth : Padma Purana)
->भ्रूणविज्ञान : श्री मदभागवतम् {Embryology in Bhagwatam}
->ॐ, साइमेटिक्स और श्री यन्त्र (Om, Cymatics and Shri Yantra)
->ब्रह्माण्ड की आयु (Universe Age - Vedas|ShriMadBhagwatam)
->सापेक्षता का सिद्धांत (Theory of relativity)
->महर्षि अगस्त्य का विद्युत्-शास्त्र {Ancient Electricity}
आदि ।
इसके अतिरिक्त जो जो बाते वेदादि विरुद्ध है वे निश्चित रूप से मूर्खों की भ्रमित बुद्धि के प्रलाप अथवा मुगल समय में  बलपूर्वक  गर्दन पर तलवार रख कर लिखवाएं गये है ॥ 


                                                             सनातन्  धर्मं: नमो नमः

जय सियाराम !!

TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

शनिवार, 8 जून 2013

हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता ? | 33 Crore Gods in Hinduism ?


हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता है , असुरों ने ऐसा उत्पात मचाया हुआ है .. वेदों के आधार पर आज इसका भंडाफोड़ करेंगे ..

सर्वप्रथम ये देखते है की देवता शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है ?

देवो दानाद्वा, दीपनाद्वा  घोतनाद्वा, घुस्थानो भवतीति व । ।     : निरुक्त अ०  ७ । खं०  १५ 

दान देने से देव नाम पड़ता है ।  और दान कहते है  अपनी चीज दुसरे के अर्थ दे देना ।
दीपन कहते है प्रकाश करने को, धोतन कहते है सत्योपदेश को, इनमे से दान का दाता मुख्य एक ईश्वर ही है कि जिसने जगत को सब पदार्थ दे रखे है , तथा विद्वान मनुष्य भी विधादि पदार्थों के देने वाले होने से देव कहाते है ।
दीपन अर्थात सब मूर्तिमान द्रव्यों का प्रकाश करने से सुर्यादि लोको का नाम भी देव है ।
देव शब्द में 'तल्' प्रत्यय करने से देवता शब्द सिद्ध होता है ।

नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्शत्   : यजुर्वेद अ०  ४० । मं०  ४ 

इस वचन में देव शब्द से इन्द्रियों का ग्रहण होता है । जोकि श्रोत्र , त्वचा , नेत्र , जीभ , नाक और मन , ये छ : देव कहाते है । क्योकि शब्द , स्पर्श, रूप, रस, गंध , सत्य तथा असत्य आदि अर्थों का इनके प्रकाश होता है अर्थात इन्ही ६  इन्द्रियों से हमें उपरोक्त ६ लक्षणों (शब्द , स्पर्श, रूप .....) का ज्ञान होता है ।
देव कहने का अभिप्राय ये नही की श्रोत्र , त्वचा , नेत्र ... आदि पूजनीय हो गये .

मातृदेवो भव , पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव अतिथिदेवो भव  । प्रपा ० । अनु ० ११ 

माता पिता , आचार्य और अतिथि भी पालन , विद्या  और सत्योपदेशादि के करने से देव कहाते है वैसे ही सूर्यादि लोकों का भी जो प्रकाश करने वाला है , सो ही ईश्वर सब मनुष्यों को उपासना करने के योग्य इष्टदेव है , अन्य  कोई नही ।  इसमें कठोपनिषद का भी प्रमाण है :

न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विधुतो भान्ति कुतोSयमग्नि : । 
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति । । 
-कठ ० वल्ली ५ । मं ० १५ 

सूर्य , चन्द्रमा , तारे , बिजली और अग्नि ये सब परमेश्वर में प्रकाश नही कर सकते , किन्तु इन सबका प्रकाश  करने वाला एक वही है क्योकि परमेश्वर के प्रकाश से ही सूर्य आदि सब जगत प्रकाशित हो रहा है । इसमें यह जानना चाहिए कि ईश्वर से भिन्न कोई पदार्थ स्वतंत्र प्रकाश करने वाला नही है, इससे एक परमेश्वर ही मुख्य देव है ।

अब ३३ देवता (न की करोड़) के विषय में देखते है :

ये त्रिंशति त्रयस्परो देवासो बर्हिरासदन् | विदन्नह द्वितासनन् || 
ऋग्वेद अ ० ६ । अ ० २ । व० ३५ । मं ० १ 

त्रयस्त्रिं;शतास्तुवत भूतान्यशाम्यन् प्रजापति : परमेष्ठय्द्हिपतिरासीत्   ||
यजुर्वेद अ०  १४   मं०  ३१ 

त्रयस्त्रिं;शत् अर्थात व्यवहार के ये (33) देवता है : 
8 वसु ,
11 रुद्र ,
12 आदित्य ,
1 इन्द्र ओर 
1 प्रजापति |

उन्मे से 8 वसु ये है :- अग्नि , पृथिवि , वायु , अन्तरिक्ष , आदित्य , घौ: , चन्द्रमा ओर नक्षत्र |
इनक नाम वसु इसलिये है कि सब पदार्थ इन्ही में वास करते है और ये ही सबके निवास करने के स्थान है । 


१ १ रूद्र ये कहाते है - जो शरीर में दश प्राण है अर्थात प्राण, अपान , व्यान , समान , उदान , नाग , कुर्म , कृकल , देवदत्त, धनज्जय और १ १ वां  जीवात्मा । क्योंकि जब वे इस शरीर से निकल जाते है तब मरण होने से उसके सब सम्बन्धी लोग रोते है ।  वे निकलते हुए उनको रुलाते है , इससे इनका नाम रूद्र है । 

इसीप्रकार आदित्य 1२ महीनो को कहते है, क्योकि वे सब जगत के पदार्थों का आदान अर्थात सबकी आयु को ग्रहण करते चले जाते है , इसी से इनका नाम आदित्य है । 

ऐसे ही इंद्र नाम बिजली का है , क्योकी वह उत्तम ऐश्वर्य की विधा का मुख्य हेतु है और यज्ञ को प्रजापति इसलिए कहते है की उससे वायु और वृष्टिजल की शुद्धि द्वारा प्रजा का पालन होता है । तथा पशुओं की यज्ञसंज्ञा होने का यह कारण है कि उनसे भी प्रजा का जीवन होता है ।  ये सब मिलके अपने दिव्यगुणों से ३ ३ देव कहाते है । 

इनमे से कोई भी उपासना के योग्य नही है, किन्तु व्यवहार मात्र की सिद्धि के लिए ये सब देव है, और सब मनुष्यों के उपासना के योग्य तो देव एक ब्रह्म ही है ।  

स ब्रह्मा स विष्णु : स रुद्रस्य शिवस्सोअक्षरस्स परम: स्वरातट । -केवल्य उपनिषत खंड १ । मंत्र ८

सब जगत के बनाने से ब्रह्मा , सर्वत्र व्यापक होने से विष्णु , दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से रूद्र , मंगलमय और सबका कल्याणकर्ता होने से शिव है ।

--: ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका , महर्षि दयानंद सरस्वती 



                                                              सनातन्  धर्मं: नमो नमः


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सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

रविवार, 2 जून 2013

प्रकाश की गति : ऋग्वेद | Speed of light in Rigveda


माना जाता है की आधुनिक काल में प्रकाश की गति की गणना Scotland के एक भोतिक विज्ञानी James Clerk Maxwell (13 June 1831 – 5 November 1879) ने की थी । 
जबकि आधुनिक समय में महर्षि सायण , जो वेदों के महान भाष्यकार थे ,  ने १४वीं सदी में प्रकाश की गति की गणना कर डाली थी जिसका आधार ऋग्वेद के प्रथम मंडल के ५ ० वें सूक्त का चोथा  श्लोक था ।

तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य ।
विश्वमा भासि रोचनम् ॥ १. ५ ० .४ 

 अर्थात् हे सूर्य, तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो।

Swift and all beautiful art thou, O Surya (Surya=Sun), maker of the light, Illuming all the radiant realm.

उपरोक्त श्लोक पर टिप्पणी/भाष्य  करते हुए महर्षि सायण ने निम्न श्लोक प्रस्तुत किया 

तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥ 
-सायण ऋग्वेद भाष्य 

अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है

[O light,] bow to you, you who traverse 2,202 yojanas in half a nimesha..
-Sage Sayana  14th AD

http://en.wikipedia.org/wiki/Sayana

yojana and nimesha are ancient unit of distance and time respectively.

उपरोक्त श्लोक से हमें प्रकाश के आधे निमिष में 2202  योजन चलने का पता चलता है अब समय की ईकाई निमिष तथा दुरी की ईकाई योजन को आधुनिक ईकाईयों में परिवर्तित कर सकते है । 

किन्तु उससे पूर्व प्राचीन समय व् दुरी की इन ईकाईयों के मान जानने होंगे .


निमेषे दश चाष्टौ च काष्ठा त्रिंशत्तु ताः कलाः |
त्रिंशत्कला मुहूर्तः स्यात् अहोरात्रं तु तावतः || ........मनुस्मृति 1-64

Manusmriti 1-64 

मनुस्मृति 1-64 के अनुसार :

पलक झपकने के समय को 1 निमिष कहा जाता है !

18 निमीष = 1 काष्ठ; 
30 काष्ठ = 1 कला; 
30 कला = 1 मुहूर्त; 
30 मुहूर्त = 1 दिन व् रात  (लगभग 24 घंटे )

As per Manusmriti 1/64 18 nimisha equals 1 kashta, 30 kashta equals 1 kala, 30 kala equals 1 muhurta, 30 muhurta equals 1 day+night 

अतः एक दिन (24 घंटे) में निमिष हुए :
24 घंटे = 30*30*30*18= 486000  निमिष 

hence, in 24 hours there are 486000 nimishas.

24 घंटे में सेकंड हुए = 24*60*60 = 86400  सेकंड 

86400 सेकंड =486000 निमिष 

अतः 1 सेकंड में निमिष हुए :
निमिष 86400 /486000  =  .17778 सेकंड 
1/2 निमिष =.08889 सेकंड 

in 1/2 nimisha approx .08889 seconds

अब योजन ज्ञान करना है , श्रीमद्भागवतम 3.30.24, 5.1.33, 5.20.43 आदि के अनुसार 
1 योजन = 8 मील लगभग 
2202 योजन = 8 * 2202 = 17616 मील 

As per Shrimadbhagwatam 1 yojana equals to approx 8 miles.

सूर्य प्रकाश 1/2 (आधे) निमिष में 2202 योजन चलता है अर्थात 
.08889 सेकंड में 17616  मील चलता है । 
.08889 सेकंड में प्रकाश की गति =  17616   मील
1 सेक में =  17616 / .08889   =  198177  मील लगभग 

Speed of light in vedas 198177 miles per second approximately .

आज की प्रकाश गति गणना 186000 मील प्रति सेकंड लगभग 

In morden science , its 186000 miles per second approximately.


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्


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