शनिवार, 18 जून 2011

सत्याग्रह और अनशन योग के ही तो भाग हैं...

अब तक कई विचारकों और बुद्धिजीवियों के विचार पढ़े. शायद ही किसी ने योग को वृहत रूप में समझा हो! पतंजलि के 'अष्टांग योग' में यदि वे योग के प्रारम्भिक दो भेदों पर दृष्टिपात करेंगे तो पायेंगे कि यम और नियम में ही 'सत्याग्रह' और 'भ्रष्टाचार-विरोध' का स्पष्ट उल्लेख है. 

कभी आपने 'अहिंसा', 'सत्य', अस्तेय', 'अपरिग्रह', 'ब्रह्मचर्य', 'शौच', संतोष', 'तप', 'स्वाध्याय', ईश्वरप्रणिधान' के बारे में सुना है. यदि नहीं तो योग पर विस्तार से जानने के लिये आसन और प्राणायाम के दायरे से बाहर आइये. योग केवल आसन मात्र नहीं हैं और न ही प्राणायामों का प्रदर्शन निमित्त धरना है. "स्थिरसुखमासनम्" आसन तो कुछ देर स्थिरता से और सुखपूर्वक बैठने की स्थिति मात्र है जिससे ध्यानादि क्रियायें निर्विघ्न रूप से की जाती हैं और 'प्राणायाम' आसन के स्थिर हो जाने पर श्वास और प्रश्वास की गति को रोकना ही तो है. दोनों ही साधन हैं कुछ 'विशेष' पाने के लिये. यह 'विशेष' कुछ भी हो सकता है चित्त को विषय-वासना से हटाना या परमात्मा का सानिध्य पाना. 

अब यम और नियम तो अपने आगामी साधनों को पुष्ट ही करने के लिये बने हैं. जब तक यम और नियम के अंतर्गत आने वाले 'सामाजिक मूल्य' और 'वैयक्तिक मूल्य' जीवन का हिस्सा नहीं बनेगे तब तक योग के नाम पर की जाने वाली सभी क्रियायें नाटक ही मानी जानी चाहियें.

सभी 'यम' सामाजिक जीवन को व्यवस्थित रखने के लिये ही हैं — 

१] अहिंसा : मन, वचन, कर्म से किसी भी प्राणी को पीड़ा न देना, सबसे वैरभाव त्यागना. 
२] सत्य : जैसा देखा हो, जैसा सुना हो और जैसा अपने मन में हो उसको वैसा ही कहना और मानना, परन्तु वह सत्य मधुर तथा परोपकारक होना चाहिए.
३] अस्तेय : [चोरी न करना] मन, वचन, कर्म से चोरी का सर्वथा परित्याग; बिना आज्ञा किसी की वस्तु को न लेना. 
४] ब्रह्मचर्य : उपस्थेन्द्रीय् का संयम, वीर्य का रक्षण करना. [विस्तार कभी किसी अन्य लेख में..."वर्तमान संदर्भ में ब्रह्मचर्य की प्रासंगिकता" ]
५} अपरिग्रह : [संग्रह न करना] बिना विशेष कारण के किसी भी तरह का संग्रह न करना. यदि संग्रह एक बड़े वर्ग [समाज, राष्ट्र] के लिये है तो वह कारण-विशेष से सही ठहराया जा सकता है अन्यथा संग्रहण वृत्ति से किसी के अधिकारों का हनन स्वतः ही हो जाता है. 

इन सभी कसौटियों पर यदि 'योग शिविर' के बहाने किये गये 'सत्याग्रह को कसेंगे तो परिणाम सामने आयेगा. कुंद मति वाले जिस योग को केवल हाथ-पैरों की उलटी-सीधी स्थितियाँ बनाना ही मानते हैं, वे थोड़ी देर के लिये गहरी श्वास लें और छोड़ें, तब निश्चित ही मस्तिष्क में बने सभी पूर्वाग्रहों से मुक्ति मिलेगी. 

इसके बाद 'नियम' में शामिल पाँच वैयक्तिक मूल्यों के बारे में भी जानें. व्यक्तिगत जीवन के लिये इनका पालन आवश्यक ठहराया गया है. 
१] शौच : [बाह्य-आभ्यंतर शुद्धि] मृत्तिका जलादि से बाह्य शरीर तथा सात्विक भोजन, सत्य भाषण, ज्ञानादि से मन, बुद्धि को पवित्र रखना. [विस्तार ... प्रश्न करने पर ही किया जायेगा.]
२] संतोष : किये हुए पुरुषार्थ में ही संतुष्ट रहना. 
३] तप : जिस प्रकार कुशल 'सारथी' घोड़ों को साधता है उसी प्रकार शरीर, प्राण, इन्द्रिय और मन को बाह्यविषयों से हटाकर योगमार्ग में प्रवृत्त करना. द्वन्द्वों को सहना. [प्रश्न आमंत्रित हैं]
४] स्वाध्याय : आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन और प्रणव का जप करना. [आधुनिक सन्दर्भ में भी प्रासंगिक है..... जिज्ञासा पर ही विमर्श किया जायेगा.]
५] ईश्वरप्रणिधान : सर्वस्व ईश्वर के अर्पण कर देना. [ऎसी इच्छा विरलों में ही देखने को मिलती है, जो सचमुच आस्तिक हैं वे अपने भविष्य के अर्थाभाव से नहीं घबराते.]

इन सभी कसौटियों पर भी हम अपने नवोदित सन्त 'रामदेव बाबा' को आँक सकते हैं. और उनके 'अनशन' की पुनःसमीक्षा भी कर सकते हैं. 'अनशन' मन के संकल्प को दृढ करने के लिये एक अच्छा औजार है और साथ ही 'हठयोग' के अंतर्गत आता है... ऋषियों ने 'हठयोग' की स्वीकृति उसी स्थिति में दी है जब शरीर में रोग घर कर जाये. आलस्य और प्रमाद से इच्छाशक्ति शिथिल पड़ती हो. 

उदाहरणार्थ : कोष्ठबद्धता हो जाने पर आप उपवास करते हैं या फिर उसके निवारण के लिये सामान्य से हटकर कुछ असामान्य खाते हैं. कुछ शारीरिक (विशेष) स्थितियाँ बनाते हैं. सभी आसन-प्राणायाम और यौगिक {कुंजल, नेति, बस्ति, नौली} क्रियायें हठयोग ही हैं. 
तब क्या समाज या राष्ट्र के लिये किये गये प्रतीकात्मक 'आमरण अनशन' को योगी पुरुष का हठयोग नहीं कहा जाना चाहिए? 
— क्या हमें 'आमरण अनशन' की सफलता किसी के जीवन समाप्ति से आंकनी चाहिए? 
— यदि कोई प्राण का त्याग करे तभी क्या 'आमरण अनशन' सफल होगा?  क्या साधनों के बीच रहकर भी विरक्ति भाव बरकरार नहीं रह सकता?
— जरूरी है कि मैं अपनी बात आज पर्चों के माध्यम से आप तक पहुँचाऊँ? नेट यूज़ न करूँ? क्या कम्प्यूटर और नेट का प्रयोग करने से मैंने अपनी आध्यात्मिक और नैतिक छवि को विकृत कर लिया है? क्या इन सब साधनों का उपयोग करते हुए मैं स्वदेशी की बात नहीं कर सकता? 
— झूठ बोलने वाला यदि कहे कि "झूठ नहीं बोलना चाहिए", सिगरेट या शराब पीने वाला कहे कि "धूम्रपान करना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है" और "शराब पीने से बुद्धि भ्रष्ट होती है" तब क्या उनकी बात का प्रचार नहीं करना चाहिए? 

एक बार की बात है मेरे एक साथी ने कोलिज का चुनाव लड़ा. मैंने कहा "मित्र, आप चुनाव को बिना धन की बरबादी किये लड़ें. मैं पोस्टर, पर्चे और बेनर के खिलाफ हूँ." लेकिन उसके लिये भी हमने एक परचा छपवाया उसपर स्लोगन दिया "पोस्टर बेनर पर्चे, बढ़ा देते हैं खर्चे". सीमित दायरे में प्रचार-प्रसार किया... हमारा उद्देश्य था सभी छात्रों को उस उम्मीदवार साथी का परिचय देना. कोलिज के प्रधानाचार्य ने पूछा "आप तो पोस्टर बेनर पर्चों के खिलाफ हैं.. तब क्यों पर्चे छपवाए हैं?" उन्हें उत्तर दिया गया "हम जिस बात का विरोध करना चाहते हैं उसकी भावना समझी जाये. बिना प्रचार माध्यमों के अपनी बात एक व्यापक समुदाय तक नहीं पहुँचायी जा सकती."

यदि मैं आज हर पोस्ट के लिये अलग-अलग ब्लॉग लोंच करता रहूँ या फिर मुफ्त में मिली सुविधा का दुरूपयोग करना शुरू कर दूँ तब क्या यह एक वृहत नज़रिए से 'परिग्रह' नहीं कहलायेगा जिसकी योग 'अपरिग्रह' कहकर मनाही करता है. एक प्रकार की हवस ही 'परिग्रह' है. अर्थात भंडारण का अतिरेक वर्तमान में अघोषित असीमित धन [काला धन] भी योग का विषय है. योग इसका भी निषेध करता है. 





मैंने फिलहाल अपने बिखरे भाव आज़ अति शीघ्रता में रखे हैं... यदि इनसे सम्बंधित प्रश्नों के उत्तर देने में मुझे किञ्चित विलम्ब होता है तो कृपया मेरी सहायता के लिये सभी विद्वान् साथी उपस्थित रहें. 
आदरणीय पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी , कौशलेन्द्र जी, हंसराज सुज्ञ जी, अजित गुप्ता जी, दिव्या श्रीवास्तव जी, अमित शर्मा जी, गौरव अग्रवाल जी, राजेन्द्र स्वर्णकार जी, रविकर जी, रोहित जी, दिनेश गौर जी मुझे अपने पीछे खड़े दिखायी देते हैं, इसी कारण अपनी बात खुले भाव से कह पाया हूँ.

यदि भाव असीमित हो जाएँ तो उसे 'टिप्पणी' में न सही  'नयी पोस्ट' में अवश्य रखें और उसका यहाँ लिंक देना न भूलें. 

21 टिप्‍पणियां:

  1. प्रतुल जी,

    आपने बहुत ही सरलता से योग के यम और नियम को जीवनमूल्यों के उपयुक्त निरूपण किया है। एक गम्य शैली में।

    यही सत्य भी है।

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  2. आदरणीय प्रतुल भाई गज़ब की जानकारी, यह सही कहा आपने...साधुवाद...

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  3. बहुत उम्दा ज्ञानमयी लेख ... सत्य को उजागर करता और भ्रांतियों को मिटाता हवा.. मैं आपकी बात से सहमत हूँ ..

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  4. आदरणीय प्रतुल जी
    आपने अष्टांग योग के रहस्य को बहुत अच्छे तरीके से बताया है.
    बाबा के सत्याग्रह का विरोध करने वालो की अक्ल से पर्दे आपके इस लेख से जरुर हटेँगे.
    लोगो को समझ मे आना चाहिये कि बाबा का सत्याग्रह आज के समय की माँग है.
    क्यो कि ये भारत अब कांग्रेसी सड़ाधं को अब और नही झेल सकता.
    अब अति हो चुकी है.
    और ये बात भी तय है कि कोई बाबा के आंदोलन का लाख विरोध करे .लेकिन इस आंदोलन का कोई कुछ भी नही उखाड़ सकता.
    बल्कि दुर्जनो के द्वारा इस आंदोलन का इतना भयंकर आक्रामक तरीके से विरोध करना ही ये दर्शाता है कि इस आंदोलन ने सफलता पूर्वक अपना पहला चरण पार कर लिया है.

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  5. .

    प्रतुल जी ,

    आष्टांग योग को सही अर्थों में समझा आपने और हम पाठकों के लिए बोधगम्य बनाकर प्रस्तुत किया जो अति सराहनीय है। अक्सर लोग कुछ बातें बिना विचारे बोलते और प्रचारित करते हैं , जिसके कारण किसी की छवि और विश्वसनीयता तो चोट पहुँचती है। मेरे विचार से यह कृत्य अति-निंदनीय है।

    बाबा रामदेव ने एक योगी की दृष्टि से , योग की दृष्टि से , देश के जिम्मेदार नागरिक की दृष्टि से , जो भी किया वह स्तुत्य है। हम जैसी आम जनता तो उनकी ऋणी है की हमारे देश के उद्धार के लिए किसी ने तो स्वयं को प्रस्तुत किया। मेरी आस्था भारत स्वाभिमान के लिए अखंड है। मेरा पूरा विश्वास है बाबा में , योग में और बाबा की जन-सेवा में ।

    अन्धकार में प्रकाश फैलाने वाले इस आलेख के लिए आभार एवं बधाई।

    .

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  6. प्रतुल जी बहुत अच्छा विवरण है योग के विषय मे लेकिन भ्रष्टाचार को भ्रष्टाचार से ही मिटाया जाये ये बात हज़्म नही होती क्या योगी कुछ वर्षौं मे बिना अवैध धन के करोडों का मालिक बन सकता है? अगर नही तो दूसरों को नसीहत देने का हक उसे किसने दिया? धर्म तो यही कहता है कि जैसे आचरण की दूसरों से आपे़क्षा करते हो पहले खुद उसे अपनाओ। आपका तर्क शायद किसी नेता की तरह अपने पूर्वाग्रहों घडा गया है। माफ करें मुझे सही नही लगा। बुरा मत माने मैने योग पर प्रश्न नही उठाया प्रश्न सिर्फ आपके भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तर्क के लिये उठाया है। अगर बुरा लगे तो क्षमा प्रार्थी हूँ। लेकिन सच सच है अगर धर्म पर चलें तो।

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  7. आदरणीया निर्मला जी,
    आपके जितने भी प्रश्न हों उनका जवाब मित्र अंकित जी ने अपने ब्लॉग 'मुक्त सत्य' तार्किक रूप से दिया है.. फिर भी उस सम्पूर्ण सामग्री को यहाँ भी दे रहा हूँ.

    देव के विरुद्ध मीडिया का दुष्प्रचार : उनके तर्कसंगत उत्तर
    _________________________________________
    योग गुरु बाबा रामदेव और उनके भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के विरुद्ध मीडिया का दुष्प्रचार चल रहा है और निश्चित रूप से यह सब मूल विषय से ध्यान हटाने के लिए , इस आन्दोलन को कमजोर करने के लिए उन व्यक्तियों के इशारे पर हो रहा है जो स्वयं ही भ्रष्ट हैं और ये आरोप कितने तथ्यहीन हैं आइये ये देख लेते हैं |

    Q. बाबा रामदेव को उतना जन समर्थन नहीं मिला जितना की अन्ना हजारे को?
    Ans. अन्ना हजारे ने अपना अनशन जंतर मंतर पर किया था | यह स्थान एक सड़क का छोटा सा हिस्सा है जो की धरना प्रदर्शनों के लिए आरक्षित है , अन्ना हजारे का धरना स्थल केवल ५ हजार लोगों से भार गया था जबकी स्वामी बाबा रामदेव ने तो अपने सत्याग्रह का प्रारंभ ही ४० जहर लोगों के साथ किया था |इसके अतिरिक्त अन्ना हजारे का अनशन शुरू हेने से कुछ दिन पहले से ही मीडिया ने उसके पक्ष में माहौल बनाना शुरू कर दिया था और इस प्रकार का प्रचार किया था जिससे अन्ना का समर्थन करना फैशन बन गया था और जंतर-मंतर पर उपस्थित लोगों में से अधिकांश ऐसे ही थे जो की शायद सोशल नेट्वर्किंग के लिए फोटो खिचवाने गए थे उनको ना तो लोकपाल या जनलोकपाल के बारे में पता था और ना ही इसके प्रभाव के बारे में और दिल्ली के ही लोग थे जो एक दिन की पिकनिक पर आये थे जबकी बाबा रामदेव के सत्याग्रह में भारत के प्रत्येक स्थान से प्रत्येक आयु , प्रत्येक आर्थिक और सामाजिक वर्ग के लोग (दिल्ली के लोगों की भी संख्या काम नहीं थी) आये हुए थे और उन सबको पता था की सत्याग्रह की मांगें क्या हैं और उनका क्या प्रभाव होगा और उसमे से अधिकांश आमरण अनशन के लिए आये थे ना की फोटो इकट्ठी करने के लिए तो किसका समर्थन ज्यादा था इसका निर्णय आप ही करिए |

    Q. बाबा रामदेव के पांच सितारा सुविधाएं
    Ans. एक और दुष्प्रचार , बाबा स्वामी रामदेव जी के सत्याग्रह में १० लाख लोगों के आने का अनुमान था और उसमे से अधिकांश लोग आमरण अनशन के लिए आ रहे थे ,और भारत के सुदोर स्थानों से आ रहे थे जो की अन्न को त्याग कर केवल जल पीकर ही रामलीला मैदान में बैठने वाले थे | उन सत्याग्रहियों की सुविधा के लिए टेंट लगवाया गया था और पीने के पानी की व्यवस्था की गयी थी | क्या जून की तपती दोपहर में जब की दिल्ली का तापमान ४८ डिग्री तक सेल्सियस पहुँच जाता है तब पंखों और पानी की व्यवस्था करना पांच सितारा व्यवस्था है ?? और पंडाल ही नहीं मंच पर भी केवल इतनी ही व्यवस्था थी | हा र्किसी ने चित्रों में देखा होगा की लोग जमीन पर सो रहे थे | जहाँ तक वातानुकूलन की बात है तो तो केवल वहां पर बने चिकित्सालय में था |अब क्या रोगियों को कुछ सुविधाएँ देना भी आपत्ति जनक है ??

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  8. Q. बाबा रामदेव ने अन्ना से प्रतिस्पर्धा के लिए आन्दोलन प्रारंभ किया
    Ans. बाबा रामदेव तब से भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन चेतना जागृत करने का प्रयास कर रहे थे जब अन्ना को महाराष्ट्र के बाहर कोई जनता भी नहीं था | बाबा रामदेव १ लाख किलोमीटर जी जन चेतना यात्रा कर रहे थे बाबा रामदेव इस यात्रा ने बाद अपने आश्रम में तो नहीं बैठने वाले थे | वास्तव में अन्ना हजारे , जन्लोक्पल और IAC अचानक से सामने आ गये थे बाबा के सभी कार्यक्रम तो पूर्व निर्धारित थे |


    Q. बाबा रामदेव द्वारा सरकार को दी गए चिट्ठी
    Ans. बहुत से लोग आचार्य बालकृष्ण की उस चिट्ठी को बाबा की गलती बता रहे हैं जिसको देश की जनता ने प्रथम दृष्टया ही नकार दिया है और जिसमे केवल इतना ही लिखा है की अगर सरकार ६ जून तक बाबा रामदेव की सभी मांगें मान लेती है तो बाबा ६ जून को अनशन ख़तम कर देंगे | अब इसमें आपत्तिजनक क्या हिया मुझे ये अभी तक समझ में नहीं आ रहा है अगर सरकार सभी बातें मान लेती है तो अनशन तो ख़तम होना ही है | हां अगर कोई ये पूछता है की तब ये चिट्ठी लिखी ही गयी तो इसका सीधा सा उत्तर है सरकार ने धमकी दी थी क्योंकी जिस समय ये चिट्ठी लिखी गयी थी उस समय पुलिस बाबा को गिरफ्तार करने के लिए भी तैयार खादी थी और रामलीला मैदान में भी भारी पुलिस बल उस समय आ चुका था |

    Q. बाबा रामदेव महिलाओं के कपडे पहन कर क्यों भागे उन्होंने गिरफ्तारी क्यों नहीं दी ??
    Ans. यह तथ्य कुतर्क शास्त्रियों को सबसे ज्यादा पसंद आ रहा है | सबसे पहली बात तो यह की "किसी महिला के लिए कोई काम करना केवल इसलिए गर्व का विषय हो जाना की उसको साधारणतयःपुरुष करते हैं या किसी पुरुष के लिए कोई काम करना केवल इसलिए ग्लानी का विषय बन जाना की उसे साधारणतयः महिलायें करती हैं " यह भारतीय संस्कृति नहीं है यां तो अरबी या पाश्चात्य संस्कृति का अंश हिया जिसमे महिलाओं को हीनतर माना गया है तो महिलाओं के कपडे पहनने में कोई खराबी मुझे तो नहीं दिखती है | इसके बाद जहाँ तक बाबा के भागने का प्रश्न है तो शिवाजी भी छिपकर भागे थे और महाराणा प्रताप भी अपना छात्र दुआरे को देकर भाग गए थे फिर भी वो हमारे नायक है | आचार चाणक्य ने भी कहा है "बलिदान साधन है साध्य नहीं इसलिए बलिदान पौरुषहीन नहीं होना चाहिए व्यर्थ नहीं होना चाहिए |" | अब अंतिम प्रश्न बाबा ने गिरफ्तारी क्यों नहीं दी , मैं स्वयं इस बात का प्रत्यक्षदर्शी हूँ की पुलिस बाबा को गिरफ्तार करने के लिए नहीं अपितु उनकी हत्या करने के लिए आयी थी | पुलिस के पास ना तो वारंट था और ना ही वो वो बाबा की बातें सुन रही थी पुलिस वहां पर केवल उपद्रव कर रही थी |

    Q. बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण जैसे रोते हुए व्यक्ति हमारे नायक कैसे हो सकते हैं -
    Ans. लोग कह रहे हैं की बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण मीडिया के सामने रो रहे थे इसलिए उनका समर्थन काम हो गया है और रोने वाले कमजोर व्यक्ति नायक कैसे हो सकते हैं ??पुनः आदर्शों की समस्या , क्या केवल रोने से ही कोई व्यक्ति कमजोर सिद्ध हो जाता है ?? सीता हरण के बाद राम भो रोते हुए कह रहे थे "हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी , तुम देखि सीता मृगनयनी " , इसी तरह लक्ष्मण को शक्ति लगाने के बाद भी राम ने विलाप किया था परन्तु आज भारत का जनमानस उनको अनंतकोटी ब्रहमांड नायक कहता है | बाबा राम देव या आचार्य बालकृष्ण अपने घावों के कारण नहीं रो रहे थे , अपने अपमान के कारण नहीं रो रहे थे अपने कष्ट के कारण नहीं रो रहे थे या अपने आन्दोलन पर हुए कुठाराघात के कारण नहीं रो रहे थे | उनके रोने का कारण सत्याग्रहियों पा रहुये अत्याचार थे देश सेवा के लिए आये हुए लोगों की बुरी हालत थी और सत्याग्रहियों पर हुए अत्याचार अगर नायकों की आँखों में आंसूं ला देते हैं तो यह उनके प्रति सम्मान को बढ़ने वाला होगा |

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  9. Q. बाबा रामदेव ने आन्दोलन समाप्त कर दिया- बाबा रामदेव का आन्दोलन असफल हो गया
    Ans. नहीं आन्दोलन असफल नहीं हुआ है | लक्ष्य बलिदान नहीं अपितु जान चेतना थी और पुरे भारत में जन चेतना आ चुकी है |सोनिया गांधी बाबा के डर से अपने 12 निकट सम्बन्धियों के साथ स्वित्ज़रलैंड चली गयी थीं और सारे देश को मीडिया का भी असली चेहरा दिख गया और भ्रष्टाचारी कौन है ये भी पता चल गया |

    Q. बाबा रामदेव के पास इतना पैसा कैसे -
    Ans. बाबा के पास ट्रस्ट हैं जिसमे दान आता है कई कपनियां हैं और बाबा ने योग और आयुर्वेद का इतना अधिक प्रचार किया है की इतना धनोपार्जन कोई बड़ी बात नहीं है और इसके अतिरिक्त बाबा सदैव अपनी संपत्ति की जांच के लिए तैयार रहे हैं और अभी भी हैं |

    Q. बाबा अपनी सपत्ति विकास में क्यों नहीं लगते - योग शिविर का शुल्क क्यों - दवाइयां बाजार से महंगी क्यों
    Ans. सबसे पहली बात जिसे साधारण भाषा में लोग विकास कहते हैं उससे केवल पूंजी पतियों का विकास होता हिया जनता का तो विनाश ही होता है लाल गलियारा उस विकास चक्र का ही परिणाम है | बाबा रामदेव के योग शिविर के कोई फीस नहीं होती बस जो लोग नियमित रूप से दान देते हैं वो शिविर में मंच के निकट बैठते हैं |इसके अतिरिक बाबा रामदेव के सभी कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण होता है और जो लोग शिविर में होते हैं वो भी बाबा को स्र्क्रीन पर देखते हैं जो की tv पर देखने जैसा ही होता है | बाबा के दिव्या फार्मेसी की कुछ दवाइयां कुछ महंगी इसलिए हो सकती हैं की वो विशुद्ध तरीके से बनाई जाती हैं और वो केवल स्वर के लिए नहीं अपितु स्वास्थ्य के लिए बनाई जाती हैं |

    Q. बाबा रामदेव के राजनैतिक लक्ष्य हैं
    Ans. एक तरफ तो लोग कहते हैं की की राजनीती में सारे भ्रष्ट लोग हैं कोई भी सही व्यक्ति नहीं आना चाहता है राजनीती में और अब अगर आ रहा है तो उसका भी विरोध | इसके अतिरिक्त बाबा रामदेव ने स्वयं कहा है की वो कोई भी मंत्री पद ग्रहण नहीं करेंगे |

    _______________________________
    अब भी किसी की कोई और भी शंका हो तो पूछ लीजिये उसका भी समाधान कर दिया जाएगा .....Ankit

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  10. पुनश्च :
    राम देव के विरुद्ध मीडिया का दुष्प्रचार : उनके तर्कसंगत उत्तर
    ________________________________
    Q. बाबा रामदेव के पास इतना पैसा कैसे -
    Ans. बाबा के पास ट्रस्ट हैं जिसमे दान आता है कई कपनियां हैं और बाबा ने योग और आयुर्वेद का इतना अधिक प्रचार किया है की इतना धनोपार्जन कोई बड़ी बात नहीं है और इसके अतिरिक्त बाबा सदैव अपनी संपत्ति की जांच के लिए तैयार रहे हैं और अभी भी हैं |

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  11. चर्चा में कार्यालय के कार्यों की समाप्ति के बाद ही भाग लूँगा.... निर्मला जी अपने शब्दों में बातों के उत्तर देने के लिये फिर से लौटूँगा.

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  12. निर्मला कपिला जी.
    किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हुये बिना
    जरा थोड़ा ध्यान लगाकर सोचिये.

    अगर बाबा रामदेव खुद भ्रष्टाचारी होते है या उनके पास कालाधन होता तो क्या वो इस मुद्धे को इतने जोर शोर से डंके की चोट पे उठा सकते थे.

    क्या उनमे इतनी हिम्मत इतनी निडरता आ सकती थी की वो सरकार जैसी ताकतवर चीज को चुनौती दे.

    क्या उनको इस बात का डर नही होता कि उनकी छवि को दागदार बनाने को आतुर ये सरकार उनकी जाँच करवा कर उनकी असलियत जनता के सामने ले आयेगी.
    और उनकी जन प्रिय छवि की धज्जियाँ उड़ जायेँगी.

    चूँकि बाबा रामदेव बिल्कुल बेदाग थे. और सत्य के साथ होने के कारण वो निडर थे. इसीलिये उन्होने सरकार जैसी ताकतवर चीज से पंगा लिया.
    वरना उनको क्या पड़ी थी.
    वो भी चाहते तो और साधुओ की तरह देश की समस्याओ को नजर अंदाज कर चैन से रह सकते थे.

    जिस साहस और निडरता के साथ बाबा ने सबसे ताकतवर चीज सरकार को चुनौती दी.
    ऐसा साहस और निडरता आदमी के बेदाग होने पर ही उत्पन्न होता है.

    दागी आदमी मे इतना साहस नही होता है कि वो ऐसा आंदोलन चलाये.
    और न ही दागी आदमी के पीछे इतना अपार जनसमूह जुड़ता है.

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  13. हमें भी प्रतिक्षा है, प्रतुल जी निर्मला दीदी को किस प्रकार संयमित प्रतिउत्तर देते है। यहाँ 'पूर्वाग्रह' शब्द पर कुछ विवेचना हो जाय तो ज्ञानरंजन हो जाय।

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  14. निर्मला कपिला जी,
    हम जिससे अत्यधिक प्रेम करते हैं या जिस पर अत्यधिक आस्था रखते हैं अथवा जो हमारे प्रेम का पात्र होता है या आस्था का केंद्र होता है ... उसे सबसे अधिक सावधान होकर रहना होता है... उसकी एक ज़रा-सी भूल उसके प्रेमी या भक्त को सबसे बड़े दुश्मन में बदल सकती है.

    इसी प्रकार जिसके प्रति बेहद कटुता भरी हुई हो... एक लम्बे समय की निगरानी के उपरान्त भी उसकी छवि बेदाग़ रही हो... वह मज़बूत प्रेम के पात्र में बदल सकता है.

    वर्षों पहले छोटे-मोटे सैकड़ों छिद्र मैं स्वयं भी रामदेव जी में निकालता रहा हूँ और आज़ भी निकाल सकता हूँ.... परन्तु इसका परिणाम बेहद गंभीर होगा.... कोई भी फिर से साहस नहीं कर सकेगा अनैतिकता और राष्ट्रद्रोह को चुनौती देने की. हैं तो रामदेव जी भी एक मनुष्य ही ... व्यक्ति गर्भ से महान बनकर नहीं पैदा होता ... आपने गाइड फिल्म देखी होगी... जिसमें 'राजू' गाइड आरम्भ में दैहिक प्रेम में अंधा होता है लेकिन फिर उसे परिस्थितयाँ विरक्त बनाती हैं. ... जनता के विश्वास की सुरक्षा के लिये अनशन करता है... प्राणोत्सर्ग करता है... अतः किसी भी सन्त का सहसा निर्माण नहीं होता... जनता का विश्वास उसे सन्त बना देता है...

    प्रारम्भ में मैं रामदेव जी की अतिवादिता पर जमकर लिखा करता था... और आर्यसमाज के पत्रों में उनपर लिखे लेख प्रायः विरोधी स्वर वाले ही होते थे... अपने आचार्य से इस विषय पर वाद-विवाद रहता था कि ये भी अन्य संतों और संन्यासियों की भाँति कुछ समय बाद अपनी पूजा करवाना शुरू कर देंगे... उनके अतिवादी बडबोलेपन पर मेरी लेखनी उनके छिद्र ढूँढकर ही संतुष्ट थी... लेकिन जब मैंने निष्पक्ष भाव से, बिना पूर्वाग्रह के उनके कार्यों की समीक्षा की तो पाया आज़ यही अतिवादी भाषा जनता के समझ में आती है. जब तक बीमार व्यक्ति को ये नहीं कहा जायेगा कि तुम अमुक पत्ती खाकर मृत्यु के मुख से बाहर आ जाओगे, वह मानेगा ही नहीं बात... यहाँ मैंने बाजारवादी मानसिकता नहीं देखी... अपितु यहाँ मुझे उपभोक्तावाद को चुनौती देते सन्त दिखायी दिये. यदि आने वाले दस वर्षों में व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं आया तो हम स्वयं को कभी क्षमा नहीं कर पायेंगे.

    जो भी राष्ट्र-निर्माण की बात करेगा, जो भी राष्ट्र के नगमे गायेगा वह हमारा आराध्य होगा.
    कोई कब तक एक्टिंग कर सकता है. कोई कब तक कपट व्यवहार कर सकता है.
    यदि कल कोई मुझपर राष्ट्रद्रोह के कार्यों में लिप्त होने का आक्षेप लगा दे... तब मेरा स्पष्टीकरण देना उतना महत्व नहीं रखेगा जितना मेरे परिचितों का मेरे चरित्र के बारे में बयान देना.... इसी वजह से हर उस व्यक्ति के लिये हम मुहीम चलाये हैं... जो राष्ट्र के लिये जीवन समर्पित किये है. उनकी पहचान उनके विचारों से हो भी रही है.

    हमारा किसी के प्रति पूर्वाग्रह नहीं .... न तो आज तक रामदेव जी मैंने देखा है... न ही अपने ब्लॉग साथियों को ही. आपके तो भी एक बार दर्शन कर चुका हूँ.

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  15. इतने विस्तार से प्रतुल वशिष्ठ जी द्वारा उत्तर देने के बाद निर्मला कपिला का फर्ज बनता था कि प्रतुल वशिष्ठ जी को धन्यवाद कहती । इतने समय बाद भी ऐसा न करना सच सामने आने पर चोरों की तरहा भागने जैसा है ,जो कांग्रेस समर्थकों की हमेशा की आदत है । बस चले तो हमला बोलो , सच का जवाब न दे पाओ तो बोलती बंद ।

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  16. प्रिय बेनामी,
    जीवन में हमारा परिचय अनेक व्यक्तियों से होता है. इनमें बहुत से हमारे प्रिय बन जाते हैं, किन्तु जब सामाजिक और याश्त्रीय विषयों पर उन्कीइ स्वार्थ लोलुप विचारधारा/सोच का पता चलता है तब भविष्य के लिये हम उनसे सतर्क हो जाते हैं. तब से हम उनसे उतना ही वास्ता रखते हैं जितना शिष्टाचारवश रखना चाहिए.
    मन में कभी-कभी वे लोग भी स्थान पा जाते हैं जिनसे क्षण-भर की मुलाक़ात हुई हो... शायद आप उनमें से ही हों. .. आपकी निराकार छवि मानस में अमिट रहेगी.

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  17. @प्रतुल जी
    पोस्ट में तो आनन्द आ गया ..
    और यहाँ मौजूद चर्चा पढ़ कर चित्त प्रसन्न हो गया..एक और युवा मित्र से परिचय करवाने के लिए आभार

    मैं आदरणीया निर्मला कपिला जी को अपनी ओर से धन्यवाद देना चाहूंगा

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  18. nice post
    I feel everyone should support the demand of Anna and Ramdev baba

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  19. गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर सभी मित्रों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ

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  20. आदरणीय प्रतुल जी, ब्रह्मचर्य के विषय पर मैंने एक ब्लॉग लिखने की विनम्र शुरुआत की है: http://brahmacharyam.blogspot.com , हो सके तो पधारें व अपने अमूल्य सुझाव दें। सादर धन्यवाद।

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