रविवार, 16 सितंबर 2012

हिंसा माँगे दुष्कर्म अधिकार


7 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे नहीं लगता इस चर्चा को ध्यान से सुनने के बाद कोई सवाल या भ्रम मन में रह जाता है|

    सभी से शेयर करने के लिए बहुत बहुत आभार सुज्ञ जी!

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  2. आज जब देश पहले से अनेक समस्याओं में उलझा हुआ है, उनके हल के लिये सहयोग करने के बजाय कुछ मक्कार निठल्ले बैठे बिठाये नई समस्यायें पैदा करने में लगे हुए हैं। बड़े शर्म की बात है कि जनभावनायें भड़काने के लिये ये ग़ैरज़िम्मेदार तत्व बाकायदा सूचना देकर ऐसे अवैधानिक कृत्य एक शिक्षण संस्थान में करने को तैयार हैं। कानूनी प्रावधानों का समुचित प्रयोग करके दुष्कृत्यों की सज़ा दिलाकर हमारे विश्वविद्यालयों को बूचड़खाना बनाने से रोका जाना चाहिये।

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  3. रिशल - एक भ्रमित युवा है, महत्वाकांक्षी है, किसी भी तरह चर्चित होना चाहता है,

    जैसा कि 'सुदर्शन' टीवी के उदघोषक और स्वामी जी ने भी महसूस किया है कि 'वामपंथियों' ने फिर से चर्चा में आने के लिये ये 'शुगुफा' छोड़ा है... उलटे काम करके ही कुछ लोग 'लाइट' में आते हैं.

    आजादी पूर्व देशभक्ति की लहर में वामपंथियों ने 'देश के बिखराव' के नगमे गाये, एकसूत्र में पिरने वाले राष्ट्र के राह में काँटे बिछाए... और अब जेएनयू चुनावों में 'लाल सलाम' के बाद पशुओं में सबसे पवित्र पशु का 'लाल कलाम' करने जा रहे हैं... इन्हें लगता है इस तरह ये समस्त भारत को 'मांसाहारी' बनाम 'शाकाहारी' दो समूहों में बाँटकर एक सबसे बड़े 'मांसाहारी' समूह के अगुआ बन जायेंगे. और इस तरह तात्कालिक प्रभावी मुद्दे के कारण बँटे दो समूहों (भ्रष्टाचार में संलिप्त कोंग्रेस बनाम उससे बेहतर मज़बूत विकल्पी 'मोदी' छवि लिये बीजेपी) में सेंध भी लगा लेंगे. फिलहाल सभी अन्य पार्टियाँ चिंतित हैं कि कैसे जनता का ध्यान अपनी ओर किया जाये.... इसलिये कम्यूनिस्ट और मार्क्सवादी पार्टियाँ मुस्लिम, दलित और आदिम जातियों के वोट को रिझाने के कर्म (दुष्कर्म) करने की प्लानिंग कर रही हैं.

    स्वामी जी - जैसा कि विदित है... समस्त भारतीयों को एकसूत्र में बाँधने की इच्छा लिये एक सुलझे हुए विचारक हैं, राजनीतिक विकल्प के रूप में हमेशा तैयार रहते हैं... लेकिन अपनी महत्वाकांक्षा फलीभूत करने के लिये तिकड़म लगाने के फिराक में नहीं रहते.... इसलिये आज़ ऐसे व्यक्ति अकेले खड़े दिखायी देते हैं... लेकिन होते ये सभी संभावी सोच वालों के साथ हैं.

    आर्य जी - 'तर्क' सम्मत तथ्यों' से किसी भी बात को मानने वाले समाजी हैं... ऐसे व्यक्ति ही सभ्यता और असभ्यता में अंतर कर पाते हैं...बेशक कुछ वैदिक साहित्य इन्होंने मार्गदर्शन लिया है लेकिन अपने पक्ष को प्रति-प्रश्नों से रखने में इन्हें दक्षता है.

    ..... कुलमिलाकर इस वीडिओ क्लिप में 'गौमांस' पार्टी के 'पक्ष' को रखने वाला युवा 'तालीबानी' सोच का कम्यूनिस्ट जिहादी लग रहा है और बाक़ी तीनों विपक्षी (उदघोषक समेत) उसके मंसूबों से सचेत लग रहे हैं.

    हम जैसे पाठक इतना तो जानते ही हैं कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का गान करने वालों में लोकतंत्र की दुहाई देकर कोई जमूरा-मदारी आकर बेहूदे करतब दिखाने लगे तो उसपर ताली नहीं पीटनी. सबसे बड़ी बात कि वहाँ भीड़ ही नहीं लगानी.

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  4. इस प्रस्‍तुति को साझा करने के लिये आभार

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  5. इस बारे में जानकारी केलिए धन्यवाद

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