विज्ञ-जनो जैसा की नाम से ही स्पष्ट है यह ब्लॉग देव भाषा भारती (संस्कृत) तथा भारत के महान धार्मिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, सामाजिक, कला-कौशल, विज्ञान व भौतिक वैभव की गौरव गाथा को प्रगट करने के लिए प्रारंभ किया गया है । 'भारत भारती वैभवम्' किसी सम्प्रदाय, पंथ या उपासना पद्धति के प्रचार-प्रसार के हेतु से नहीं है, भारत से इसका आशय वैभवयुक्त भारतीय संस्कृति है और गौरव जगाने का प्रयोजन शुद्ध संस्कृति की पुनर्स्थापना है। संस्कृति के वैज्ञानिक चिंतन को प्रकट करते हुए उसके जगत कल्याणकारी स्वरुप को प्रकाश में लाना इस ब्लॉग का मुख्य ध्येय है।
ब्लॉग से जुड़े लेखकों और पाठकों से निवेदन है की ब्लॉग का उद्देश्य भारत-भारती का वैभव पुनर्स्थापित करने वाले तथ्यों का प्रसार करना है, इसलिये आलेख या टिप्पणियों में कोई वाक्य लिखने से पहले देखें कि कहीं वह विभाजनकारी तो नहीं। आलेख प्रकाशित करने से पहले उसे ड्राफ़्ट में रखकर अन्य लेखकों के सुझाव मांगना और तदनुसार परिवर्तन / परिवर्धन करने की प्रवृति ब्लॉग के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक हो सकती है, सभी लेखक महोदय इसका प्रयोग यथाशक्य करने की कोशिश करें । तथा पाठक गण भी अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियों में इस मंच की गरिमा की रक्षा करने में अपना योगदान दें ऐसी कामना हैं।
इसके माध्यम से देश के हर नागरिक के मन में भारतीयता की शुद्ध भावना जागृत हो उसे यह दृढ धारणा हो की हम इसी पुण्य भूमि की संतान है । हमारे पूर्वज घुमंतू, लुटेरे नहीं थे । हम उन पूर्वजो की संतान है जिन्होंने मानव के लिए उपयोगी सभ्यता का निर्माण ही नहीं किया अपितु विश्व को उद्दात ज्ञान भी दिया है ।
हमारे पूर्वजों ने सर्वभूतों के हित में रत रहने की दृष्ठी से प्राणी मात्र के कल्याण के लिए "सर्वेभवन्तु सुखिनः" , "वसुधैव कुटुम्बकम" , "आत्मवत सर्वभूतेषु " जैसे महान सिद्धांतो का सिर्फ निर्माण ही नहीं किया, बल्कि उनपर आचरण भी किया ।
जिन्होंने "भारती" (संस्कृत) भाषा में वेदों, आरण्यकों, उपनिषदों जैसे आध्यात्मिक ग्रंथों, पुराणों, रामायण-महाभारत जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों के रूप में ऐसा श्रेष्टतम साहित्य दिया जिसमें सभी के उद्भव की कामना है, किसी के नाश की कामना नहीं । अन्य भारतीय भाषओं में जो अनन्त ज्ञान रश्मियों का विस्तार हुआ है, वह भी इसी देव भाषा वृक्ष के पुष्प हैं जिनकी सुगंधी पाली-प्राकृत के रूप में श्रीमहावीर व श्रीबुद्ध की वाणी से नि:सृत हुयी थी । जिसके सौरभ-कणों के रूप में आज अनेकों बोली-भाषाएँ मौजूद हैं ।
ऐसा करना इसलिए परमावश्यक है की किसी भी देश का इतिहास उस देश में सुलभ साक्ष्यों के आधार पर ही लिखा जाना चाहिये और ऐसा होने पर ही वह अपने देश के नागरिकों में गौरव भर सकता है। लेकिन भारत में जो इतिहास हमें पढाया जाता है वह भारत के आधारों को छिपाकर उनसे छेड़खानी किया जाकर मनवांछित विदेशी आधारों को अपनाकर लिखा गया है । इसलिए आज पढाया जाने वाला इतिहास हमारा इतिहास है ही नहीं । अतः जो भारत का सत्य इतिहास है उसे यथार्थ रूप में देशवासियों के सम्मुख प्रकट करना हमारा परम पुरषार्थ होना चाहिये ।
ऐसा करना इसलिए परमावश्यक है की किसी भी देश का इतिहास उस देश में सुलभ साक्ष्यों के आधार पर ही लिखा जाना चाहिये और ऐसा होने पर ही वह अपने देश के नागरिकों में गौरव भर सकता है। लेकिन भारत में जो इतिहास हमें पढाया जाता है वह भारत के आधारों को छिपाकर उनसे छेड़खानी किया जाकर मनवांछित विदेशी आधारों को अपनाकर लिखा गया है । इसलिए आज पढाया जाने वाला इतिहास हमारा इतिहास है ही नहीं । अतः जो भारत का सत्य इतिहास है उसे यथार्थ रूप में देशवासियों के सम्मुख प्रकट करना हमारा परम पुरषार्थ होना चाहिये ।
इस ब्लॉग पर लिखे जाने वाले लेखों में प्राचीन भारत के
धर्म, ज्ञान, विश्वव्यापी संस्कृति, दर्शन, तत्वज्ञान, जीवन-मूल्य, व्यवसाय, कला-कौशल, चिकित्सा-शास्त्र, भौतिकी, रसायन, कृषि, भवन निर्माण शास्त्र, गणित-शास्त्र, नक्षत्र-विज्ञान,
जीव-विज्ञान, धातु-विज्ञान, जल-विज्ञान, अंतरिक्ष-विद्या, खनिज-शास्त्र, नौका-ज्ञान, वैमानिक-शास्त्र,
अणु-विज्ञान, लिपि व भाषा शास्त्र जीव-विज्ञान, धातु-विज्ञान, जल-विज्ञान, अंतरिक्ष-विद्या, खनिज-शास्त्र, नौका-ज्ञान, वैमानिक-शास्त्र,
आदि विद्याओं से सम्बंधित जानकारियां प्रकाशित किये जाने की योजना है।
जिनमें अधिकाधिक प्रमाणिक जानकारियों का समावेश कर, तथा यथासंभव संदर्भित ग्रन्थ / स्रोत का उल्लेख अवश्य किया जायेगा जिससे भ्रम की स्थिति ना बने।
लेखों की सामग्री यदि किसी अन्य जाल-स्थान से ली जाएगी तो सम्बंधित व्यक्ति से यथासंभव आज्ञा लेकर अथवा सूचित करके ही यहाँ प्रकाशित किया जायेगा।
धर्म सम्बन्धी लेखों में इस बात का विशेष ध्यान रखना जायेगा की इस प्रकार के लेखों में मानव-धर्म, विश्वबंधुत्व तथा जीव-दया आदि की गूंज सुनाई दे । इस मंच का मानना है की उपासना पद्दति के भेदों सम्बन्धी व्यक्तिगत मत प्रतिपादन से यथासंभव बचना चाहिये, यदि हमारा लक्ष्य भारत माता की उपासना है।
इस मंच का मत है की संस्कृति संस्कार सम्बन्धी चर्चा में सर्वपक्षी वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये । अनवरत सांस्कृतिक यात्रा में कईं विकृतियों और अशुद्धताओं का आना अवश्यंभावी है। यदि गौरवमय शुद्ध संस्कृति लक्ष्य है तो विकृतियों और अशुद्धताओं का मण्डन नहीं खण्डन करना होगा । चूँकि पुरुष एवं प्रकृति ही समस्त जगत व्यवहार के मूल हैं इसलिए संस्कार आदि के क्षरण-पोषण के लिए समान उत्तरदायी हैं। अतः किसी एक पक्ष को एकपक्षीय जिम्मेदार ठहराए जाने वाले दुराग्रहों से बचा जाना चाहिये। जब हम सांस्कृतिक गौरव के पुनर्स्थापन की बात करते है तो सांस्कृतिक पुनर्विकास समग्रता से अर्थात् धनी-निर्धन, बाल-युवा-वृद्ध, स्त्री-पुरुष में भेदभाव अथवा पक्षपात रहित होना चाहिए।
नागरिकों में में मानवता के लिए सर्वकल्याण भावना वाली जीवन-शैली को अधिकाधिक प्रोत्साहित किया जाना चाहिये , क्योंकि संस्कृति के इसी यथार्थ पक्ष पर ही गौरव किया जा सकता है।
भारत-भारती मंच का स्पष्ट मत है की चर्चा व विमर्श में विचार ही महत्वपूर्ण है, व्यक्तिगत रूचि-अरूचि को सर्वथा दरकिनार किया जाना चाहिए ।
इस मंच पर इस बात का पूरा ध्यान रखा जायेगा की लेख यथासंभव प्रमाणिकता लिए होने पर भी यदि उनका खंडन प्राप्त हो तो स्वस्थ चर्चा द्वारा शीघ्र निवारण लेखक महोदय द्वारा किया जाना चाहिये किसी विचार/तथ्य का यदि खण्डन होता है तो उसे विचार/तथ्य के ही खण्डन के रूप में लेना उचित है व्यक्ति के स्वाभिमान (ईगो) खण्डन की तरह नहीं। दृष्टिकोण को विशाल और समंवयवादी रखने का प्रयास ही हमें अपने लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक होगा।
"भारत भारती वैभवं" की परिकल्पना करते समय जो भाव मन में थे उन्हें आप सभी मनीषियों के सामने रखने का साहस कर रहा हूँ , आशा है इस महान उद्देश्य के लिए आप अपने शोध श्रमपूर्ण लेखों/टिप्पणियों से इस मंच को लाभान्वित करतें रहेंगे ।
जयतु भारतम्, जयतु भारती
स्वागत!!
जवाब देंहटाएंसम्भवतया मनोयोग से सहायता के लिये तत्पर रहेंगे!!
शुभकामनायें
sundar blog par aana hua . abhar
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