गुरुवार, 30 सितंबर 2010

न नोननुन्नो

न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु 
नुन्नोSनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्नुनुन्न नुत. 


अर्थ : 
अरे अनेक प्रकार के मुख वालों! नीच मनुष्य द्वारा बिद्ध मनुष्य, मनुष्य नहीं है, नीच मनुष्य को बिद्ध करने वाला मनुष्य भी मनुष्य नहीं है. जिसका स्वामी बिद्ध नहीं हुआ तो समझो पुरुष भी अबिद्ध है तथा अत्यंत पीड़ित को पीड़ा देने वाला मनुष्य निर्दोष नहीं होता. 


[किरातार्नुनीय - १५.१४]   

9 टिप्‍पणियां:

  1. चकित चित चमत्कारी चातुरी चितवनि
    मधुरकरणीय माननीय महनीय मंत्रनी

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  2. क्या खूब शब्द चमत्कार से चमत्कारी उपदेश है धन्य हो!

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  3. भारवि ने अपने महाकाव्य 'किरातार्जुनीय' में शब्द चमत्कार का प्रदर्शन भी किया है. एक ही 'न' वर्ण को लेकर लिखा पद्य इसका उदाहरण है.
    भाषा का यह चमत्कृत रूप देखकर ही मैं संस्कृत भाषा की धरोहर पर इतराने लगता हूँ.
    वैसे भी तो आज प्रदर्शन ही माध्यम बन गया है प्रकाश में आने का. तवज्जो पाने का.

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  4. अद्भुत प्रस्‍तुति: प्रतुल जी

    पूर्वं पठितमासीत् किन्‍तु विस्‍मरणं जातमासीत् ।
    पुन: स्‍मारणार्थं धन्‍यवादा:

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  5. @भारवि ने अपने महाकाव्य 'किरातार्जुनीय' में शब्द चमत्कार का प्रदर्शन भी किया है. एक ही 'न' वर्ण को लेकर लिखा पद्य इसका उदाहरण है.-

    पढ़कर एकबारगी तो चकित ही रह गया था, फ़िर कमेंट में यही कहने वाला था कि इसका स्रोत और बताना चाहिये था। शंका निराकरण हो गया।

    दशम गुरू श्री गुरू गोबिंद सिंह जी द्वारा रचित ’विचित्र नाटक’ में भी ऐसा ही प्रयोग पढ़ा था। सिर्फ़ ह वर्ण ओ लेकर कवित्त रचा हुआ है, इस प्रस्तुति से वह याद फ़िर से ताजा हो गई।

    बहुत अच्छा प्रयास है आप सबका, इस ब्लॉग के माध्यम से। सकारात्मकता से कार्यसिद्धि में लगे रहें आप, ईश्वर से यही कामना है।

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  6. मान गए गुरूजी - नन्हे-२, शब्दों से इतना बड़ा ज्ञान - वाह! वाह!!---२५५५

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  7. महाकवि भारवि के अद्भुत श्लोक से परिचित कराने के लिए आभार

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