गुरुवार, 30 सितंबर 2010

न नोननुन्नो

न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु 
नुन्नोSनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्नुनुन्न नुत. 


अर्थ : 
अरे अनेक प्रकार के मुख वालों! नीच मनुष्य द्वारा बिद्ध मनुष्य, मनुष्य नहीं है, नीच मनुष्य को बिद्ध करने वाला मनुष्य भी मनुष्य नहीं है. जिसका स्वामी बिद्ध नहीं हुआ तो समझो पुरुष भी अबिद्ध है तथा अत्यंत पीड़ित को पीड़ा देने वाला मनुष्य निर्दोष नहीं होता. 

बुधवार, 29 सितंबर 2010

विश्व की बन सत्य-अर्थी दीपिका

मंगलाचरण 
_______________________________
भविष्य तेरे सामने है लेखनी! 
तू सत्य वचनों से उसे अवगत करा. 
भावों के भण्डार की हे मुक्तिका! 
खोल दे सब द्वार, तमस-पर्दा हटा. 
इतिहास पृष्ठों में जहाँ भ्रम है भरा 
प्रमाण देकर सत्य का सच-सच बता. 
लग गये जो पृष्ठ कालिख से रंगे 
हे लेखनी, उस मसि की मृषता मिटा. 
समाते जो जा रहे जन गर्त में
उन्हें तू अमरावती का पथ बता. 
अयि, कवि के कर लगी, ओ प्रेमिका! 
विश्व की बन सत्य-अर्थी दीपिका. 

राष्ट्र धर्म भावनापूर्ण वेदामृत (अथर्ववेद)

ॐ भद्रमिच्छंत ऋषयः स्वर्विदस्त्पो दीक्षामुपनिषेदुराग्रे |
ततो राष्ट्रं बलमोजश्च जातं तदस्मै देवा उपसन्नमंतु ||

प्रकाशमय ज्ञान वाले ऋषियों ने सृष्टी के आरम्भ में लोक
कल्याण की इच्छा करते हुए दीक्षापूर्वक तप किया
उससे राष्ट्र, बल और ओज की उत्पत्ति हुई
इस (राष्ट्र) के लिए देवगण उस (तप और दीक्षा)
को अवतीर्ण कर (राष्ट्रिकों अर्थात देशवाशियों में) संस्थित
अथवा, समस्त प्रबुद्ध जन इस राष्ट्रदेवता की उपासना करें 
 

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

"भारत-भारती-वैभवं"

"भारत-वैभवं"
वन्दे नितरां भारतवसुधाम्।
दिव्यहिमालय-गंगा-यमुना-सरयू-कृष्णशोभितसरसाम् ।।
मुनिजनदेवैरनिशं पूज्यां जलधितरंगैरंचितसीमाम् ।
भगवल्लीलाधाममयीं तां नानातीर्थैरभिरमणीयाम् ।।
अध्यात्मधरित्रीं गौरवपूर्णां शान्तिवहां श्रीवरदां सुखदाम् ।
सस्यश्यामलां कलिताममलां कोटि-कोटिजनसेवितमुदिताम् ।।
वीरकदम्बैरतिकमनीयां सुधिजनैश्च परमोपास्याम् ।
वेद्पुराणैः नित्यसुगीतां राष्ट्रभक्तैरीड्याम् भव्याम् ।।
नानारत्नै-र्मणिभिर्युक्तां हिरण्यरूपां हरिपदपुण्याम् ।
राधासर्वेश्वरशरणोsहं वारं वारं वन्दे रम्याम् ।।

**********************************************************************************


"देवभारती-वैभवं"

सर्वेश्वर ! सुखधाम ! नाथ् ! मे संस्कृते रुचिरस्ति ।
संस्कृतमनने संस्कृतपठने संस्कृतवरणे संस्कृतशरणे ।
चेतो नितरां भवतात्कृपया ममाsभिलाषोsस्ति ।।
श्रुतिशास्त्रेषु मनुशास्त्रेषु नयशास्त्रेषु रसशास्त्रेषु,
प्रगतिस्तीव्रा भवतादिति मे भावनाsस्ति ।।
लेखन-पटुता प्रवचनपटुता कर्मणि पटुता सेवा पटुता,
सततं माधव ! भवतादिह् मे याचनाsस्ति ।।
वचने मृदुता चेतसि रसता स्वात्मनि वरता दृष्टौ समता,
राधासर्वेश्वरशरणस्य प्रबला कामनाsस्ति ।।

*********************************************************************************

ये दोनो छन्द श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ के वर्तमान आचार्य परम् विद्वान् जगद्गुरु श्रीराधासर्वेश्वरशरण देवाचार्य जी महाराज द्वारा रचित "भारत-भारती-वैभवं" से उधृत है . आचार्यश्री द्वारा विरचित - "भारत-भारती-वैभवं" का विषय विवेचन भी विलक्षण है. ग्रन्थ की विषय वस्तु "भारत वैभवं" तथा "देव भारती वैभवं" दो शीर्षकों में वर्णित है.

"भारत-वैभवं"

भारत-भारती-वैभवं - मातृभूमि वंदना का महा गीतिकाव्य है जिसके प्रत्येक पद में भूमि वैशिष्ट्य का भावात्मक स्तवन और नमन हुआ है.
यहा प्रस्तुत इसका प्रथम वंदना-पद की अत्यंत कलात्मक,सर्वांग सुन्दर और मधुरतम है. इस पद में वर्णित भारतीयता की रागात्मक उपासना अभीष्ट भारती-भाव का बीजमंत्र है.भारत-वसुधा के वैभव का ऐसा पांडित्यपूर्ण महनीय वर्णन कवि व्यक्तित्व की गहनतम ज्ञान गरिमा और राष्ट्रभक्ति की सर्वोच्चता का परिचायक है. इस पद में संनिहत भारतीय संस्कृति और संस्कृत का अद्भुत सामंजस्य,ज्ञान और भक्ति की पराकाष्टा तथा राष्ट्र के प्रति सर्व-समर्पित-रागात्मकता, संस्कृत के प्रकांड पंडित- आचार्यश्री जैसे व्यक्तित्व से ही संभावित है.

"देवभारती-वैभवं"

ग्रन्थ के द्वितीय शीर्षक "देवभारती वैभववर्णन" में देववाणी संस्कृत का वैशिष्ट्य चित्रित किया गया है. वस्तुतः देववाणी संस्कृत ही हमारी संस्कृति का पर्याय है. प्राचीन ग्रंथों का सारा ज्ञानकोष भारतीय संस्कृति का आधार है और इन दिव्य ग्रंथों की भाषा देववाणी संस्कृत है. अतः भारतीय संस्कृति का ज्ञान संस्कृत के बिना दुर्लभ है. कृतिकार आचार्यश्री ने यहाँ संस्कृति प्रदायनी संस्कृत का भावातिरेक से स्तवन एवं वंदन किया है. संस्कृत भारतवर्ष की सभी भाषाओँ की मूल है, भावात्मक समरसता और राष्ट्रिय एकता की द्रष्टि से भी इसका अध्यन परमावश्यक है.
"देवभारती" के इस पद में संस्कृत की अत्यंत भावपरक महिमा मंडित हुई है. संस्कृत में संस्कृत के प्रति रागात्मक-कलात्मक-भक्तिपरक, पद लालित्यपूर्ण यह दैन्य निवेदन द्रष्टव्य है.
संस्कृत की उपादेयता का ज्ञान संस्कृत के प्रकांड विद्वान आचार्यश्री को है, इसीलिए इस पद में वे अपने परमाराध्य श्रीसर्वेश्वर भगवान् से संस्कृत के भाषण-प्रवचन, मनन-लेखन, वरणादि की पटुता का वरदान मांगते है.
थोडा थोडा करके इस काम को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूँ. समय की कमी आड़े आ जाती है इस लिए आप सभी का सहयोग अपेक्षित है. भारत और भारती से सम्बंधित सभी विचारों का स्वागत है.

सोमवार, 27 सितंबर 2010

"भारत भारती वैभवं"

"भारत भारती वैभवं"
विज्ञ-जनो जैसा की नाम से ही स्पष्ट है यह ब्लॉग देव भाषा भारती (संस्कृत)  तथा भारत के महान धार्मिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, सामाजिक, कला-कौशल, विज्ञान व भौतिक वैभव की  गौरव गाथा को प्रगट करने के लिए प्रारंभ किया गया है  'भारत भारती वैभवम्' किसी सम्प्रदाय, पंथ या उपासना पद्धति के प्रचार-प्रसार के हेतु से नहीं है, भारत से इसका आशय वैभवयुक्त भारतीय संस्कृति है और गौरव जगाने का प्रयोजन शुद्ध संस्कृति की पुनर्स्थापना है। संस्कृति के वैज्ञानिक चिंतन को प्रकट करते हुए उसके जगत कल्याणकारी स्वरुप को प्रकाश में लाना इस ब्लॉग का मुख्य ध्येय है

इसके  माध्यम से देश के हर नागरिक के मन में भारतीयता की शुद्ध भावना जागृत हो उसे यह दृढ धारणा हो की हम इसी पुण्य भूमि की संतान है हमारे पूर्वज घुमंतू, लुटेरे नहीं थे हम उन पूर्वजो की संतान है जिन्होंने मानव के लिए उपयोगी सभ्यता का निर्माण ही नहीं किया अपितु विश्व को उद्दात ज्ञान भी दिया है
हमारे पूर्वजों ने सर्वभूतों के हित में रत रहने की दृष्ठी से प्राणी मात्र के कल्याण के लिए "सर्वेभवन्तु सुखिनः" , "वसुधैव कुटुम्बकम" , "आत्मवत सर्वभूतेषु " जैसे महान सिद्धांतो का सिर्फ निर्माण ही नहीं किया, बल्कि उनपर आचरण भी किया
जिन्होंने  "भारती" (संस्कृत) भाषा में वेदों, आरण्यकों, उपनिषदों जैसे आध्यात्मिक ग्रंथों, पुराणों, रामायण-महाभारत जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों के रूप में ऐसा श्रेष्टतम साहित्य दिया जिसमें सभी के उद्भव की कामना है, किसी के नाश की कामना नहीं   अन्य भारतीय भाषओं में जो अनन्त ज्ञान रश्मियों का विस्तार हुआ है, वह भी इसी देव भाषा वृक्ष के पुष्प हैं जिनकी सुगंधी पाली-प्राकृत के रूप में श्रीमहावीर व श्रीबुद्ध की वाणी से नि:सृत हुयी थी । जिसके सौरभ-कणों के रूप में आज अनेकों बोली-भाषाएँ मौजूद हैं

ऐसा करना इसलिए परमावश्यक है की किसी भी देश का इतिहास उस देश में सुलभ साक्ष्यों के आधार पर ही लिखा जाना चाहिये और ऐसा होने पर ही वह अपने देश के नागरिकों में गौरव भर सकता है
लेकिन भारत में जो इतिहास हमें पढाया जाता है वह भारत के आधारों को छिपाकर उनसे छेड़खानी किया जाकर मनवांछित विदेशी आधारों को अपनाकर लिखा गया है इसलिए आज पढाया जाने वाला इतिहास हमारा इतिहास है ही नहीं अतः जो भारत का सत्य इतिहास है उसे यथार्थ रूप में देशवासियों के सम्मुख प्रकट करना हमारा परम पुरषार्थ होना चाहिये


इस ब्लॉग पर  लिखे जाने वाले लेखों में प्राचीन भारत के
धर्म, ज्ञान, विश्वव्यापी संस्कृति, दर्शन, तत्वज्ञान, जीवन-मूल्य, व्यवसाय, कला-कौशल,
चिकित्सा-शास्त्र, भौतिकी, रसायन, कृषि, भवन निर्माण शास्त्र, गणित-शास्त्र, नक्षत्र-विज्ञान,
जीव-विज्ञान, धातु-विज्ञान, जल-विज्ञान, अंतरिक्ष-विद्या, खनिज-शास्त्र, नौका-ज्ञान, वैमानिक-शास्त्र,
अणु-विज्ञान, लिपि व भाषा शास्त्र
आदि विद्याओं से सम्बंधित जानकारियां प्रकाशित किये जाने की योजना है

जिनमें अधिकाधिक प्रमाणिक जानकारियों का समावेश कर, तथा यथासंभव संदर्भित ग्रन्थ / स्रोत का उल्लेख अवश्य किया जायेगा जिससे भ्रम की स्थिति ना बने
लेखों की सामग्री यदि किसी अन्य जाल-स्थान से ली जाएगी  तो सम्बंधित व्यक्ति से यथासंभव आज्ञा लेकर अथवा सूचित करके ही यहाँ प्रकाशित किया जायेगा

धर्म सम्बन्धी लेखों में इस बात का विशेष ध्यान रखना जायेगा की  इस प्रकार के लेखों में मानव-धर्म, विश्वबंधुत्व तथा जीव-दया आदि की गूंज सुनाई दे    इस मंच का मानना है की उपासना पद्दति के भेदों सम्बन्धी व्यक्तिगत मत प्रतिपादन से यथासंभव बचना चाहिये, यदि हमारा लक्ष्य भारत माता की उपासना है

इस मंच का मत है की संस्कृति संस्कार सम्बन्धी चर्चा में सर्वपक्षी वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये अनवरत सांस्कृतिक यात्रा में कईं विकृतियों और अशुद्धताओं  का आना अवश्यंभावी है। यदि गौरवमय शुद्ध संस्कृति लक्ष्य है तो विकृतियों और अशुद्धताओं का मण्डन नहीं खण्डन करना होगा । चूँकि पुरुष एवं प्रकृति ही समस्त जगत व्यवहार के मूल हैं इसलिए संस्कार आदि के  क्षरण-पोषण के लिए समान उत्तरदायी हैं अतः किसी एक पक्ष को एकपक्षीय जिम्मेदार ठहराए जाने वाले दुराग्रहों से बचा जाना चाहिये जब हम सांस्कृतिक गौरव के पुनर्स्थापन की बात करते है तो सांस्कृतिक पुनर्विकास समग्रता से अर्थात् धनी-निर्धन, बाल-युवा-वृद्ध, स्त्री-पुरुष में भेदभाव अथवा पक्षपात रहित होना चाहिए।

नागरिकों में  में मानवता के लिए सर्वकल्याण भावना वाली जीवन-शैली को अधिकाधिक प्रोत्साहित किया जाना चाहिये , क्योंकि संस्कृति के इसी यथार्थ पक्ष पर ही  गौरव किया जा सकता है।

भारत-भारती मंच का स्पष्ट मत है की चर्चा व विमर्श में विचार ही महत्वपूर्ण है, व्यक्तिगत रूचि-अरूचि को सर्वथा दरकिनार किया जाना चाहिए ।

इस मंच पर इस बात का पूरा ध्यान रखा जायेगा  की लेख यथासंभव प्रमाणिकता लिए होने पर भी यदि उनका खंडन प्राप्त हो तो स्वस्थ चर्चा द्वारा शीघ्र निवारण लेखक महोदय द्वारा किया जाना चाहिये किसी विचार/तथ्य  का यदि खण्डन होता है तो उसे विचार/तथ्य के ही खण्डन के रूप में लेना उचित है व्यक्ति के स्वाभिमान (ईगो) खण्डन की तरह नहीं। दृष्टिकोण को विशाल और समंवयवादी रखने का प्रयास ही हमें अपने लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक होगा।

ब्लॉग से जुड़े लेखकों और पाठकों से निवेदन है की ब्लॉग का उद्देश्य भारत-भारती का वैभव पुनर्स्थापित करने वाले तथ्यों का प्रसार करना है, इसलिये आलेख या टिप्पणियों  में कोई वाक्य लिखने से पहले देखें कि कहीं वह विभाजनकारी तो नहीं। आलेख प्रकाशित करने से पहले उसे ड्राफ़्ट में रखकर अन्य लेखकों के सुझाव मांगना और तदनुसार परिवर्तन / परिवर्धन करने की प्रवृति ब्लॉग के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक हो सकती है, सभी लेखक महोदय इसका प्रयोग यथाशक्य करने की कोशिश करें । तथा पाठक गण भी अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियों में इस मंच की गरिमा की रक्षा करने में अपना योगदान दें ऐसी कामना हैं।
"भारत भारती वैभवं" की परिकल्पना करते समय जो भाव मन में थे उन्हें आप सभी मनीषियों के सामने रखने का साहस कर रहा हूँ , आशा है इस महान उद्देश्य के लिए आप अपने  शोध श्रमपूर्ण लेखों/टिप्पणियों से  इस मंच को लाभान्वित करतें रहेंगे
जयतु भारतम्, जयतु भारती
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...