यह लेख किसी सज्जन का है जो मैंने एक पत्रिका से कुछ वर्षों पहले संग्रहित किया था। जिसे मैंने सार्वदेशिक आर्य वीर दल के मुखपत्र 'आदर्श आर्यवीर' में प्रकाशित किया था। किञ्चित सम्पादन के बाद यह पुनः प्रकाशित कर रहा हूँ। मेरा उद्देश्य केवल विषय से सम्बंधित जानकारी की तथ्यात्मक जाँच करना है। जो भी महानुभाव विषय सम्बंधित कुछ तथ्य-सामग्री देगा, हम उपकृत होंगे।
एड्स को रोग नहीं, 'विश्वव्यापी महारोग', 'कलियुगी भस्मासुर' - कहकर परिभाषित किया गया। अपवाद को छोड़ दें तो पूरी दुनिया अभी तक एड्स को लाइलाज बीमारी और मौत के पर्याय के रूप में ही ले रही है, लेकिन दूसरी तरफ संसार के बहुत से स्वास्थ्यविद व चिकित्सा वैज्ञानिक आज़ एड्स के अस्तित्व से ही इनकार कर रहे हैं। कुछ वर्षों पहले लन्दन की अंतरराष्ट्रीय वीकली मैगजीन "द टाइम्स हायर एजुकेशन सेंटलमेंट" सप्लीमेंट में प्रकाशित अपने शोध में ब्रिटेन के विख्यात चिकित्सा शाष्त्री डॉ. केरी मुलीज़ ने एड्स को सीधे चुनौती देते हुए कहा है, "कोई एड्स समर्थक डॉक्टर या वैज्ञानिक यदि यह साबित कर दे कि एच.आई.वी. नामक कोई वायरस है अथवा एड्स नाम का कोई रोग अस्तित्व में आया है तो मैं किसी भी भाँति की सजा भुगतने को तैयार हूँ।"
यकीन नहीं होता इस तरह की बातों पर। लेकिन इस तरह की बातें महज़ बकवास हैं, यह मान लेना भी आसान नहीं है। जाहिर है डॉक्टर मुलीज़ कोई ऐरे-गैरे शख्स नहीं हैं। उन्हें मोलीक्यूलर बायोलोजी के संशोधन में अति उपयोगी रासायनिक तत्वों [पोलीमरज के चेन रिएक्शन के शोध हेतु] की खोज के लिये नोबल पुरस्कार मिल चुका है. वे इस तरह की राष्ट्रद्रोही, नहीं-नहीं, बल्कि विश्वद्रोही बातें करने का पागलपन क्यों करेंगे।
उनकी इस चुनौती को स्वीकारने का साहस दुनियाभर के तमाम एड्स विशेषज्ञ-शोधकर्ता-वैज्ञानिक नहीं कर पा रहे हैं। डॉ. मुलीज़ ने कहा है कि "एड्स सैक्स की उत्पत्ति अथवा कोई नैसर्गिक निष्पत्ति नहीं, मनुष्यता विरोधी अमरीकी किरदारों की साजिश है. मात्र १५ वर्ष पूर्व अमरीका के एटलान्टिक शहर स्थित अमरीकी रोग नियंत्रण केंद्र तथा वहाँ की बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निहित स्वार्थ के तहत वित्तीय वजहों से सांख्यिकी रोगों के झमेलों को इकट्ठा करके उसे एड्स नाम दे दिया गया है।
एड्स विरोधी विद्वानों के चर्चित समूह 'पर्थ ग्रुप' का नाम आपने सुना होगा। इसके तहत विश्वभर के लगभग एक हज़ार अहं डॉक्टरों व वैज्ञानिकों ने एड्स के झूठ का पर्दापाश करने के लिये कमर कस ली है। इस ग्रुप ने यह साबित कर दिया है कि 'एच.आई.वी.' नामक कोई वायरस नहीं है. व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता उसके खान-पान, आहार-विहार, विचार-व्यवहार के कारण घटती है, न कि इस कथित वायरस के कारण। यह समस्या पहले के जमाने में भी रही है. ये वैज्ञानिक खुलेआम ये एलान कर रहे हैं कि "एच.आई.वी. जाँच अथवा एड्स परीक्षण के नाम पर जो नाटक खेला जा रहा है वह जनता की जेब पर ही नहीं, उसके तन-मन-मस्तिष्क पर भी डाका है।" यदि यह सच है तो फिर एड्स सर्वाधिक विश्वास स्थापित करने वाली व प्रभाव छोड़ने वाली विश्व की सबसे अनूठी और घातक गप है जिसे २०वी सदी का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक घोटाला कहा जा सकता है।
इस यथार्थ से अवगत होने के बाद जापान सरकार के स्वास्थ्य विभाग के चेयरमेन डॉ. अकीरा नाकाजीयो ने जनता से टेक्सों द्वारा वसूले गये धन के एड्स के नाम पर हो रहे अपव्यय की कड़ी खिलाफत की है। यही नहीं, दुनिया के तमाम देश सावधान हो गये हैं। पिछले दिनों लुसाका में एड्स पर आयोजित सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन में शिरकत करने से अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने साफ़ मना कर दिया। अचानक उठे ऐसे क्रांतिकारी क़दमों से एड्स उद्योग का बौखलाना स्वाभाविक था. उसे लगा कि विद्रोह की यह लहर यदि सर्वत्र फ़ैल गयी तो न सिर्फ उसका भंडाफोड़ होगा, बल्कि अरबों-खरबों डालर के उसके व्यापार का भी भट्ठा बैठ जाएगा। फलतः मीडिया द्वारा एक बार फिर एड्स और उसकी भयंकर सर्व-व्याप्त विनाश का व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया। तमाम देश जो जाग रहे थे, फिर गुमराह हुए। भारत ने तो एड्स नियंत्रक कार्यक्रम करने का प्रस्ताव भी घोषित कर दिया और उसे इस नेक काम के नाम पर विश्व बैंक से ११२५ करोड़ का क़र्ज़ भी जारी हो गया।
उल्लेखनीय है कि उस कर्ज से देश के लुटेरे अपना खजाना नहीं भर सकेंगे। इस धन का उपयोग एड्स का आतंक फैलाने में ही होगा। शर्तों के मुताबिक़ इस धन को खर्चने का काम ब्रिटिश सरकार की एजेंसी डी.एफ.आई.डी. तथा अमरीका सरकार की एजेंसी यू.एस.ए.आई.डी.एस. द्वारा होगा। ये दोनों एजेंसियां क्रमशः इंग्लैण्ड और अमरीकी सरकारों के मंत्रालयों के समान हैं। आजादी के बाद यह पहला मौक़ा है जब भारत सरकार द्वारा विदेशी सरकारों को यहाँ इस तरह से मनमानी करने की छूट दी गयी है, वह भी स्वदेशी का दम भरने वाली एक '.....' पार्टी एड्स के खिलाफ चेतना फैलाने हेतु करोड़ों रुपये का अनुदान लेकर जाने-अनजाने इस उद्योग के ठेकेदारों का प्रतिनिधित्व ही कर रही है।
आपको यह जानकार आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि हरियाणा के छोछी नामक गाँव को अघोषित तौर पर 'एड्स ग्राम' मान लिया गया है, जहाँ के सारे रोग उपेक्षा-कुंठा, व तिरस्कार-बहिस्कार के शिकार हैं. रोहतक मेडिकल कोलेज, जिसने वहाँ के कुछ लोगों को एच.आई.वी. पोजिटिव बताया है, इसके लिये अधिकृत नहीं है। यह कोलेज उन अधिकृत केन्द्रों में से नहीं जहाँ एच.आई.वी. कन्फमेंटरी टेस्ट किये जाते हैं. इस प्रत्यक्ष सत्य को भी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है कि गत आठ-दस वर्षों से एड्स विषयक कथ्यों-तथ्यों, सर्वेक्षणों-आँकड़ों के ज़रिये जितनी भविष्यवाणियों के लिहाज़ से भारत सदृश्य देशों को अब तक साफ़ हो जाना चाहिए था, जबकि आज़ हम अपनी आबादी को एक अरब से ऊपर ले जाते हुए 'गौरवान्वित' हैं। बड़े-बड़े अस्पतालों में भी लाइलाज घोषित इस महारोग से मरने वाले नज़र नहीं आते। इक्का-दुक्का खबरें ही जाती हैं।
एड्स विरोधी आन्दोलन कामयाबी हासिल करेगा, इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है। हाँ, सफलता कब-कैसे और किस सीमा तक प्राप्त होगी, इस बारे में कुछ कहना ज़रा मुश्किल है। मुश्किल इसलिये है कि य प्रयास 'सरकारी' नहीं हैं. दूसरे इसे मीडिया की पर्याप्त मदद मिलेगी, इसमें भी संदेह है. एड्स के आतंकवाद की असलियत लोगों तक जितनी शीघ्रता से पहुँचे, उतना ही अच्छा है।
...वस्तुतः आयुर्वेद में जिसे 'ओजःक्षय' कहा है जिसके लक्षण वर्तमान में एड्स से मिलते हैं।... सुरक्षित वीर्य का अंतिम रूपांतरण ओज के रूप में होता है जिसका परिमाण अंजलीभर बतलाया गया है।... अनियंत्रित योनाचार, असंयम, अव्यवस्थित दिनचर्या, खान-पान, चिंता आदि के कारण ओज का क्षय हो जाता है।...
— स्वामी देवव्रत सरस्वती
— स्वामी देवव्रत सरस्वती
आदरणीय प्रतुल वशिष्ठ जी नमस्कार
जवाब देंहटाएंआज एडस के बारे में एक नई ज्ञानवर्द्धक जानकारी मिली ...... आभार ।
आपने तो बड़ा सुन्दर लेख प्रस्तुत किया.....बधाई.
जवाब देंहटाएं________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!
अगर यह भ्रमित करने वाला षड्यंत्र है,तो मानवता पर उपकार के लिये शीघ्र इसका भांडा फ़ूटना जरूरी है।
जवाब देंहटाएंएक जागरूक दृष्टिकोण की प्रस्तुति के लिये आभार!!
एक बार 'सत्ता' में विद्वान् और देशभक्त मानसिकता के लोग बैठ जाएँ. फिर षडयंत्रों का भांडा फोड़ने वालों का तांता लग जाएगा. अभी न जाने कितने और 'झूठ' सच का नकाब पहनकर घूम रहे हैं. न जाने कितने फरेब 'जन-हितैषी' योजनाओं का बुरखा ओढ़कर शिक्षित(?) समाज में सम्मानित हैं.
जवाब देंहटाएंहाँ इस विषय में पहले भी कुछ पढ़ा -सुना है..... अगर सत्य है पूरे विश्व समुदाय के साथ बड़ा खिलवाड़ है....
जवाब देंहटाएंयह हम ने पहले भी सुना हे, अच्छी जान्कारी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबढिया आलेख है !!
जवाब देंहटाएंBahut badhiya aalekh hai aapka.gyanvardhak.
जवाब देंहटाएंbahut achchha lag yaha aakar. kripya. halla bol me bhi yogdan de.
जवाब देंहटाएंhttp://vishvguru.blogspot.com
jadajankari hetu yaha dekhe http://aayushved4aids.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी! यह मुद्दा विवादास्पद है। हाँ! यह सत्य है कि भारत एक वृहद प्रयोगशाला है जिसमें भारत की निर्धन जनता को गिनी पिग की तरह विभिन्न ट्रायल्स के लिये निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। प्रयोगकर्ता हैं पश्चिम के विकसित देश। प्रतिबन्धित औषधियाँ हमारे यहाँ निर्मित होती हैं और खुले आम बेची जाती हैं क्योंकि क्लीनिकल ट्रायल जो चल रहा है। एड्स की तरह ही टीकाकरण भी एक विवादास्पद वैज्ञानिक छलावे के रूप में जब-तब चर्चा में आता रहता है। एड्स पर आजकल हमारे यहाँ ट्रेनिंग चल रही है....बड़े-बड़े शोधों का दावा किया जा रहा है। अनैतिक कार्यों को सावधानी पूर्वक करने की सलाह दी जा रही है। नैतिक पतन को वैज्ञानिक शोधों का ज़ामा पहनाया जा रहा है। कालांतर में एक और म्यूटेशन की तैयारी चल रही है।
जवाब देंहटाएंहम सब गिनीपिग हैं। राधे-राधे !