मांसाहार को शाकाहार से श्रेष्ठ बतलाने की जिद।
जगमगाते सूर्यदेव को अंधियारा बतलाकर,
जुगनू की टिमटिमाहट को रौशन कहवाने की जिद।
हलाल होते हुए तड़पते जीव को "दर्द नहीं है" कह कर,
अन्नाहार में भ्रूण हत्या साबित कराने की जिद।
"गौ शुद्ध मानी गयी है" का मुखौटा ओढ़ कर,
गौमाता को वैदिक यज्ञों में बलि चढ़वाने की जिद।
गोरक्षक इन्द्रदेव को ऋषभ कंद की आहुति,
वृषभों की बलि की सीख बनाने की जिद।
कहीं और के लाये संस्कृत शब्दों को,
वेदवाणी बना कर पेश कराने की जिद।
पोषण की झूठी, घुमावदार बातों के झांसों में,
उच्चाहारियों को निम्न भोज्य पर खींच लाने की जिद।
भारत की महान संस्कृति को लीप पोतकर,
अहिंसा के आदेश को हिंसात्मक जतलाने की जिद।
शाक फलों को ग्रहण करने में पादप हिंसा ढूंढ कर,
पशु काटने को प्रभु आज्ञा साबित कराने की जिद।
टमाटर जैसे पौधे को मांसाहारी कह कर,
मछली को आलू सा शाकाहार कहलवाने की जिद।
वैदिक संस्कृत पर अपने अधूरे अर्थ थोप कर,
वेदों को पशु हिंसापूर्ण जतलाने की जिद।
बाहर की संस्कृतियों के निचोड़ों को ला ला कर,
भारतीय संस्कृति पर पानी चढाने की जिद।
किसी महापुरुष के प्रिय पुत्र कुर्बान करने को,
बकरों की कटवाई की आज्ञा बनाने की जिद।
जीभ के स्वाद के क्रूर आनंद की पूर्ति के लिए,
परमपिता को ही क्रूर साबित कराने की जिद।
जिस धर्म की आज्ञा है कि प्रतीकों को न पकड़ो,
उसी धर्म को पुरजोर प्रतीकात्मक बनाने की जिद।
गलत परम्पराओं के विरोध में खड़े ज्ञानी पुरुषों को,
स्वयं एक परंपरा भर में बदलवाने की जिद।
जुगनुओं की टिमटिमाती रौशनियों में,
खलिहान में सुई खोज लाने की जिद।
कबसे देख रही हूँ बारम्बार दुनिया में ,
आपने इस रचना के रुप में एक कडुवा सच लिखा है।
जवाब देंहटाएंis kavita ka lekhak kaun hai krapyaa spasht karen kyunki abhabhi niramish par bhi yah kavita padhi usme bhi kahi lekhak ka pata nahi chala lekhak jo bhi hai usko salaam laajabaab kavita likhi hai.
जवाब देंहटाएंक्षमा करें राजेश जी, यह कविता निरामिष लेखिका सुश्री शिल्पा मेहता की है और मूल प्रविष्टि निरामिष पर है। यहाँ इसे भारत भारती वैभवं के पाठको हेतु साझा किया गया है। आपका इंगित सुधार भी कर लिया गया है।
हटाएंकुतर्की चर्चा का सटीक अवलोकन!!
जवाब देंहटाएंशिल्पा जी आभार है, साधुवाद श्री सुज्ञ |
जवाब देंहटाएंमीन-मेख ही ढूँढ़ते, महा-कुतर्की विज्ञ |
महा-कुतर्की विज्ञ, कृत्य सब अपने भायें |
करे अनैतिक काम, सही उसको ठहराएं |
जो है शाश्वत सत्य, टिप्पणी उस पर करते |
जाने पथ्यापथ्य, मगर नित मांस डकरते ||
नतमस्तक आपकी त्वरित तीक्ष्ण धार पर, कविराज!!
हटाएंराम राम जी....
जवाब देंहटाएंकुछ कुतर्की जो है क्या अभी सो गए है या यहाँ अपनी उपस्थिति दिखाने में कतरा रहे है....
कर रहे होंगे कोई कुतर्को की नयी नौका तय्यार....
बहुत ही अच्छी व्यंग्यात्मक रचना...
कुँवर जी,