वरण करो न अंध विचार।
हो जाता है हरण सभ्यता का इससे विस्तार।।
जीवन-तरणी डूब नहीं जाती है बिन पतवार।।
उसे बचाने वाला भी बनता है एक विचार –
"किसी तरह से पार लगूँगा, मानूँगा न हार।।"
नेत्रहीन विश्वासों की आयी है अंध बयार।।
बचो, कहीं फिर उड़ ना जाए वेदों-सा शृंगार।।
वरण करो न अंध विचार।
हो जाता है हरण सभ्यता का इससे विस्तार।।
नेत्रहीन विश्वासों की आयी है अंध बयार।।
जवाब देंहटाएंबचो, कहीं फिर उड़ ना जाए वेदों-सा शृंगार
बहुत सार्थक सन्देश
अंध बयार में दूर रहे अंध विचार।
जवाब देंहटाएंकरें शुद्ध श्रद्धा शृंगार॥
मननीय सार्थक संदेश!!
सुग्यजी इस यज्ञ में आपकी आहुति नहीं पड़ी है अभी
जवाब देंहटाएंवरण करो न अंध विचार।
जवाब देंहटाएंहो जाता है हरण सभ्यता का इससे विस्तार।।