सोमरस के विषय में कुछ प्रचलित विवादो का निराकरण – वेदरहस्यम्
बहुत दिनों के पहले हमने सोमरस पर एक लेख लिखा था जिसमें कई वैदेशिक विद्वानों के मतों का उल्लेख तथा यथाशक्य उनका दुराग्रह खण्डन किया गया था । किन्तु पर्याप्त अध्ययन के अभाव में लेख पूर्णता को प्राप्त नहीं हुआ । किन्तु अब जब कि ईश्वर की कृपा से शोध के सन्दर्भ में वेद भगवान के अध्ययन का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो कई बातें स्पष्ट होती जा रही हैं ।
इसी क्रम में सोम के विषय में प्रचलित कुछ अपवादों का निराकरण निम्नोक्त मन्त्रों के द्वारा करने का प्रयास कर रहा हूँ ।
मन्त्र:-सुतपात्रे सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये । सोमासो दध्याशिर: ।। (ऋग्वेद-1/5/5)
मन्त्रार्थ: -यह निचोडा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस , सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इन्द्र देव को प्राप्त हो ।।
मन्त्र: - तीव्रा:सोमास आ गह्याशीर्वन्त:सुता इमे । वायो तान्प्रस्थितान्पिब ।। (ऋग्वेद-1/23/1)
मन्त्रार्थ: - हे वायुदव यह निचोडा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिश्रित करके तैयार किया गया है । आइये और इसका पान कीजिये ।।
मन्त्र: - शतं वा य: शुचीनां सहस्रं वा समाशिराम् । एदु निम्नं न रीयते ।। (ऋग्वेद-1/30/2)
मन्त्रार्थ: - नीचे की ओर बहते हुए जल के समान प्रवाहित होते सैकडो घडे सोमरस में मिले हुए हजारों घडे दुग्ध मिल करके इन्द्र देव को प्राप्त हों ।।
उपर्युक्त मन्त्रों में सोम में दधि और दुग्ध मिश्रण की बात कही गयी है । आजतक मैने किसी भी व्यक्ति को शराब में दूध या दही मिलाते हुए नहीं देखा है अत: इस बात का तो सीधा निराकरण हो जाता है कि सोम शराब है । कुछ विद्वानों ने सोम को एक विशेष प्रकार का कुकुरमुत्ता माना है । किन्तु क्या आपने कुकुरमुत्ते की सब्जी में दूध या दही मिलाये जाते देखा है । मैने तो नहीं देखा । खैर कदाचित् ऐसा कहीं होता भी तो कुकुरमुत्ते की सब्जी तो सुनी थी पर किसी ने कुकुरमुत्ते को निचोड कर पिया हो ऐसा तो कभी नहीं सुना है और उूपर साफ वर्णित है कि सोम को ताजा निचोडा जाता है ।
ऋग्वेद में आगे सोम का और भी वर्णन है , एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि मनुष्यों के साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाये और पिलाये जाने की बात कही गई है । कुकुरमुत्ता तो पशु खाते ही नहीं फिर तो समस्या स्वयं ही और भी निराकृत हो जाती है ।
विचार करने पर सोम आज के चाय की तरह ही कोई सामान्य प्रचलित पेय पदार्थ लगता है, जिसे सामान्य जन भी प्रतिदिन पान किया करते थे ।।
क्रमश: ……….
भवदीय:- आनन्द:
प्यारे भाई अमित जी ! आपसे नाराज़ होने का तो सवाल ही नहीं है। शालीनता से आप कोई सवाल पूछना आपका हक़ है। मनभेद तो आपसे है ही नहीं और हो सकता है कि मतभेद भी समय के साथ न्यून होते चले जाएं।
जवाब देंहटाएंआपने मुझे अपने लिए उत्प्रेरक का दर्जा दिया है। आपका आभार। अस्ल बात तो आपके दिल में जगह पा लेना है, उस जगह की उपाधि कोई भी हो। आप मेरे लेख पर ध्यान देते हैं, मैं समझता हूं कि मेरा लेखन सफल है।
प्रस्तुत पोस्ट के ‘लोकों को मैंने पाक्षिक पत्र से लिखा है और फिर ‘संस्कृति संस्थान, बरेली‘ से छपी मनु स्मृति से भी उनका मिलान किया है। कृप्या इन्हें ग़ौर से देखें कोई ग़लती रह गई हो तो अवश्य सूचित करें। मैं सुधार कल लूंगा।
वेद भगवान के संबंध में सबके लिए पठनीय अच्छा आलेख। आपकी शोधी प्रवृत्ति को मेरा नमन।
जवाब देंहटाएंआज जो मनुस्मृति उपलब्ध है उसे आप ही के बौद्ध भाइयों ने अपनी कला से रंग दिया है । मनुस्मृति अब वास्तविक रूप में उपलब्ध ही नहीं है अन्यथा स्मृतियाँ तो वेदों का अनुशरण करती हैं ।।
जवाब देंहटाएंजमाल साहब,
जवाब देंहटाएंमनुस्मृति में उससे आगे के श्रलोकों का लोपन कर देंगे………
यद्ध्यायति यतकुरुते धृतिं बध्नाति यत्र च
तद्वाप्नोत्ययत्नेन यो हिनस्ति न किञ्चन ॥ (मनुस्मृति-5:47)
अर्थ -ऐसा व्यक्ति जो किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करता तो उसमें इतनी शक्ति आ जाती है कि वह जो चिंतन या कर्म करता है तथा जिसमें एकाग्र होकर ध्यान करता है, वह उसको बिना किसी विशेष प्रयत्न के प्राप्त हो जाता है
नाऽकृत्वा प्राणिनां हिंसां मांसमुत्पद्यते क्वचित्
न च प्राणिवशः स्वर्ग् यस्तस्मान्मांसं क्विर्जयेत् ॥ (मनुस्मृति-5:48)
अर्थ -किसी दूसरे जीव का वध किया जाये तभी मांस की प्राप्ति होती है पर यह निश्चित है कि जीव हिंसा से कभी स्वर्ग नही मिलता, इसलिए सुख तथा स्वर्ग को पाने की कामना रखने वाले लोगों को मांस भक्षण त्याग देना चाहिए।
अनुमंता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी ।
संस्कर्त्ता चोपहर्त्ता च खादकश्चेति घातका: ॥ (मनुस्मृति-5:51)
अर्थ - अनुमति = मारने की आज्ञा देने, मांस के काटने, पशु आदि के मारने, उनको मारने के लिए लेने और बेचने, मांस के पकाने, परोसने और खाने वाले - ये आठों प्रकार के मनुष्य घातक, हिंसक अर्थात् ये सब एक समान पापी हैं ।
मां स भक्षयिताऽमुत्र यस्य मांसमिहाद् म्यहम्।
एतत्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः॥ (मनुस्मृति -5:47)
भावार्थ – जिस प्राणी को मैं इस जीवन में खाउँगा, अगामी जीवन मे वह मुझे खायेगा।
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जवाब देंहटाएंमित्र आनंद,
मुझे आपके द्वारा दी गयी जानकारियाँ मन भायीं.
वैसे मैंने सोमरस पान किया है.
राका के प्रकाश में मैंने कई कविताओं को गुनगुनाया है. वैसा आनंद मुझे कहीं नहीं मिलता.
अपने काव्य जीवन के प्रारम्भ में बिना दूधिया किरणों को पिये मैं आनंदित नहीं हो सकता था.
मुझ पर प्रमाण है कि सोमरस चन्द्रमा को निचोड़ कर निकाला जाता है.
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जवाब देंहटाएंदिनकर ने सोमरस के भण्डार 'रजनीचर' के बारे में क्या खूब कहा है :
"वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सँभालो.
चट्टानों की छाती से दूध निकालो.
है रुकी जहाँ भी धार शिलाएँ तोड़ो.
'पीयूष' चन्द्रमाओं को पकड़ निचोड़ो.
चढ़ तुंग शैल-शिखरों पर सोम पियो रे !
योगियों नहीं, विजयी के सदृश्य जियो रे !
मत टिको मदिर, मधुमयी, शांत छाया में.
भूलो मत उज्ज्वल ध्येय, मोह-माया में.
लौलुप्य-लालसा जहाँ, वहीं पर क्षय है.
आनंद नहीं, जीवन का लक्ष्य विजय है."
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जवाब देंहटाएंमित्र है न अजीब बात !
एक तरफ मैं सोम पीकर आनंदित होता हूँ.
दूसरी तरह मैं आनंद नहीं विजय को जीवन का लक्ष्य बताता हूँ.
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@ आनंद जी ! कृप्या वाल्मीकि रामायण के बारे में भी अपने विचार प्रकट करें , मेरी ताजा पोस्ट 'हज' के संदर्भ में ।
जवाब देंहटाएंभ्रमों का निराकरण करता उन्नत जानकारीपूर्ण लेख के लिए आनंद जी आपका धन्यवाद ! आशा है आप अपने अध्यन के ज्ञान को इसी तरह हमारे ज्ञानवर्धन के लिए प्रस्तुत करते रहेंगे .
जवाब देंहटाएंएक निवेदन यह भी था की अगर संभव हो सके तो पूरे मंत्र को ही देने का कष्ट करे, इससे मंत्र विषयक शब्दार्थ जानने में भी आसानी रहेगी .
जवाब देंहटाएंप्रिय श्री आनन्द जी,
जवाब देंहटाएंआपके लेख पर प्रतिक्रिया देनी थी लेकिन मेरा भी जमाल साहब का दुराग्रह खण्डन आवश्यक हो गया था।
अतः विषयांतर के लिये क्षमा!
** अगर सोमरस कोई तीव्र मादक रसायन होता तो दूध के साथ उसका मेल न होता। यह तथ्य है……रहस्य जाननें के लिये आपके अगले अंक की प्रतिक्षा।
अमित जी प्रतुल वशिष्ठ जी सतीश सक्सेना जी सुज्ञ जी गौरव
जवाब देंहटाएंअग्रवाल जी एवं सभी टिप्पड़ी कर्ता जी
मै आप लोगो से एक सवाल पूछना चाहता हूं अगर हो सके तो
जरुर जवाब दीजिये गा।
आप लोग मुसलमानो को जानवरो की हत्या करने से रोकने
का प्रयास कर रहे हो जानवरो की हत्या करना घ्रणित कृत्य है।
मुसलमान लोग अवने बचाव मे आपको वेदों मे से निकाल कर
बताते है कि पहले हिन्दू धर्म मे भी बलिया चढ़ाई जाती थीं
फिर आप सफाई देते हो।
फिर आप इंसानियत की बात करने लगते हैं।
जबकी मै देख रहा हूं कि दोनो एक दूसरे के कट्टर विरोधी
हो। यानी इंसान विरोधी हो
आप हिन्दू कट्टर वादी विचार धारा के हो गुजरात उड़ीसा
वगैरा उदाहरण है।
मुसलमान भी कट्टर मुस्लिम विचारधारा के है इनके कारनामे
भी सबको मालूम है।
दोनो के धर्म अलग लेकिन रास्ते एक हैं। मतलब
मार काट मे दगां फसाद में एक जैसे है फर्क कोई नही है
आप इंन्सान को मार के माने तो ठीक नही तो मार डालो
इंसान को हिन्दू बनाना चाहते हो । हिन्दू राष्ट्र् बनाना है।
मुसलमान का भी यही उद्ेश्य है कि भारत को अंशांत कर दो। उड़ा दो।
मेरा सवाल है कि जानवर इंसान से ज्यादा महत्व पूर्ण है क्या
और इंसानियत की परिभाषा क्या है।
बेनामी बंधु
जवाब देंहटाएंइन्सानियत का पाठ तो जोरदार है, लेकिन इन्सानियत बुझदिल छुपे भेष में थोडे ही आती है। सच्चे इन्सान के साथ साहस भी होता है।
जानवरों से द्वेषपूर्ण स्वार्थी 'इन्सानियत', सभ्य मानवता तो नहिं हो सकती।
इन्सानियत का पाठ पढाने से पहले ह्रदय से क्रूरता निकाल कर कोमल भावों को धारण करो।
हिन्दू और हिदू राष्ट्र के सन्दर्भ में कहता हूँ. ....
जवाब देंहटाएं@ आप अपने घर में सुख शांति के लिये पहले क्या करते हैं.
क्या दो मानसिकता के लोग एक घर में रह सकते हैं?
पिछले दिनों मेरे घर में एक किरायेदार था मुझे उससे और उसे मुझसे कोई प्रोब्लम नहीं थी. लेकिन एक दिन रात को उसने आमलेट बनाया तो पूरे घर में बदबू फ़ैल गई. उसे उसने गैस खुली छोड़ कर उसकी गंध में दबाना भी चाहा लेकिन मैंने उसे समझाया कि वह ऐसा न करे जैसा की मकान देते समय शर्त रखी गयी थी. पर उसने यह कार्य चोरी-छिपे जारी रखा. दो बार उसे मैंने फिर चेताया कि वह ऐसा न करे.
>>>>>>>>>> जब वह नहीं माना तो मैंने अपने पिता से कहा कि मेरा जीना दूभर हो रहा है. इसे यहाँ से छोड़ने को कहो.
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और वह महीना समाप्त होते ही चला गया.
अब आप बताइये कि मुझे किससे द्वेष था?
क्या मैं सब कुछ बर्दाश्त करूँ क्योंकि यह घर उसका भी हो गया है.
या फिर मैं वह उपक्रम करूँ जिससे मैं भी जी पाऊँ. और इस हवा में खुलकर सांस ले पाऊँ.
यदि कोई अन्य समस्या हो तो वह भी लिखना ........ पर एक शपथ-पत्रक के साथ लिखें.. चोरी-छिपकर नहीं. ........ समझे...
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आपने अपने पिता से कहा क्यो ???
आप खुद क्यो नही खाली करा सके ???
इसमे सरा जवब है मगर आप ने लिख दिया और आपको पता नही ये आपकी न समझी है
आपने पिता जी से कहा इस लिये क्योकि वो मालिक है मेरे और मकान के भी =========
इसी तरह इंसानों का मालिक भी है जिसने दुनिया को बनाया है आप उससे न बोल कर खुद खाली करा रहे हो ।
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जानकारी के लिए साधुवाद!
जवाब देंहटाएंप्रेमरस.कॉम
अथातो सोम जिज्ञासा ..चलती रहे ...
जवाब देंहटाएं@ सुज्ञ जैन जी ! आप ग़लत कह रहे हैं कि आपकी दया सभी जीवों के प्रति है । मृत शरीरों को आप जला देते हैं और तब आप उसमें वास करने वाले जीवों की कतई चिंता नहीं करते बल्कि उन्हें क्रूरतापूर्वक जिंदा जला डालते हैं अपने महान धर्म के अनुसार और दूसरों को जीवों के प्रति बेरहम मान लेते हैं ।
जवाब देंहटाएं2- क्या कभी आपने जैन मत पर निष्पक्षतापूर्वक विचार करके उसकी अमानवीय प्रथाओं पर भी कोई पोस्ट बनाई है ?
3- आप अपने विचार के अनुसार अक्सर मेरा 'दुराग्रह' (?) दूर करने की कोशिश करते रहते हैं , लेकिन मैंने हमेशा आपकी बेजा गुस्ताख़ियों को नजरअंदाज ही किया है कभी आपके दुराग्रह को दूर नहीं किया जबकि मैंने आपको भंडाफोड़ू का उत्साहवर्धन करते हुए भी पाया है ।
क्या कभी आपको डर नहीं लगा कि अगर अनवर ने मेरा दुराग्रह दूर कर दिया तो क्या होगा ?
4- आप अपने अमल से साबित कर रहे हैं कि आप मुग़ालते में जी रहे हैं । अगर आपका मुग़ालता दूर कर दिया जाए तो आप बुरा तो नहीं मानेंगे ?
5- आप मेरे ब्लाग पर खुदा को दोग़ला बर्ताव करने वाला कह चुके हैं । मैंने आपको ध्यान दिलाया तब भी आपने अपनी गलती नहीं मानी । आपने खुदा को दोग़ला क्यों कहा ?
अनवर जमाल साहब,
जवाब देंहटाएंआज कल धमकियां बहुत दे रहे हो, क्या हो गया,तबीयत तो ठीक है ना?
मैं डरनेंवालो में से नहिं, आज किसी को सहिष्णुता से जवाब क्या दे दिया आपकी तो बांछे ही खिल गई। जाओ जो इच्छा हो करो…मुझे क्या?
सच्चाई की कद्र करता हूं सच बात पाता हूँ तो भंडाफ़ोडू पर भी जाता हूं, क्यों आपने कोई बेन लगाया हुआ था? जाईये आप क्या करेंगे दूर,मैं स्वयं आपके दुराग्रह वाले ब्लोग की तरफ़ ताकने वाला भी नहिं।
मै यदि किसी मुग़ालते में हूं तो वह मै मेरे स्वप्रयत्न दूर कर लूंगा। हां आपको शौक चर्राया हो तो जो करना वो करें।
और खुदा का सम्मान करता हूं, वह आपसे प्रश्न था कि खुदा ने यह किया तो वो दोगलापन नहिं हैं? जिसका आपने कोई जवाब नहिं दिया था। उन पर यह आरोप लगने क्यों दिया? क्या मंशा थी तब आपकी?
मुझे अहसास है प्रश्नों के लिये मैं गलत जगह पर था, सभी प्रश्न अनुत्तरित है। पर अब मुझे जवाब चाहिए भी नहिं।
अन्त में आप से जो बन पडे करो, मैं निर्भय हूँ।
@ सुज्ञ जैन जी ! आप डरपोक न होते तो अपनी पहचान और पता जाहिर कर देते ।
जवाब देंहटाएंआपने खुद को बहुत दिनों तक वैदिक भाइयों की आड़ में छिपाए रखा । अब आपका मत भी पता चल चुका है मन भी ।
बहुत शौक है आपको भांडे फूटते देखने का ?
क्या हमेँ आपका शौक़ पूरा करने का अवसर मिल सकता है ?
वादा करता हूँ आपको निराश नहीं करूँगा ।
तब पता चलेगा कि आपको सत्य के प्रति कितनी जिज्ञासा है ?
दूसरों के घरों में आग लगती देखकर पहुँच जाते हैं साथ सेकने ।
अब दिखावा करते रहना निर्भय बने रहने का ।
अनवर साहब,
जवाब देंहटाएंपहचान और पता मालूम करके क्या करते हो, सीधा हमला? ब्लोगींग से इतना समय कैसे निकाल लेते हो? और आपको डर नहिं लगता कानून को यह पता चला तो क्या होगा?
मेरे सभी भाईयों की मुझे सुरक्षित आड है, आपकी मंशा सफ़ल होने वाली नहिं।
लड सकते हो तो वैचारिक लडाई बी एन शर्मा जी से लडो, और अपने तर्को से स्वयं की विचारधारा का बचाव करो। क्या उन बातों का कोई जवाब नहिं है?
परनिंदा का कार्य छोड दो, वैदिक विचारधारा को अपने समकक्ष लाने का विचार त्याग दो। यही आपके लिये उत्तम रहेगा।
आनन्द जी,
जवाब देंहटाएंआलेख ने और जानकारी पाने की उत्सुकता बढा दी, अगली कड़ी का लिंक भी दे दीजिये। टिप्पणियाँ रोचक हैं।
सुज्ञ जी,
आप शाकाहार के प्रसार के साथ-साथ मानवता के मूलभूत गुण करुणा और भूतदया के प्रचार का जो सत्कार्य कर रहे हैं उसके लिये हार्दिक आभार!