वेदों में गूढ़ विज्ञान-सम्बन्धी सामग्री विस्तृत मात्रा में संचित है। जिसमें से बहुत ही अल्प मात्रा में अबतक जानकारी हो सकी है,कारण यह है कि वैज्ञानिक सामग्री ऋचाओं में अलंकारिक भाषा में है जिसका शाब्दिक अर्थ या तो सामान्य सा दिखाई पड़ता है या वर्तमान सभ्यता के संदर्भ में प्रथम दृष्टितया कुछ तर्क संगत नहीं दिखलाई पड़ता जबकि उसी पर गहन विचार करनें के पश्चात उसका कुछ अंश जब समझ में आता है तो बहुत ही आश्चर्य होता है कि वेद की छोटी-छोटी ऋचाओं(सूत्रों) के रूप में कितने गूढ़ एवं कितने उच्च स्तर के वैज्ञानिक रहस्य छिपे हुए हैं।
कुछ ही समय पूर्व साइन्स रिपोर्टर नामक अंग्रेजी पत्रिका जो नेशनल इंस्टीच्युट आफ साइन्स कम्युनिकेशन्स ऐन्ड इन्फार्मेशन रिसोर्सेज (NISCAIR)/CSIR,डा०के० यस० कृष्णन मार्ग नई दिल्ली ११००१२ द्वारा प्रकाशित हुई थी,में माह मई २००७ के अंक में एक लेख ANTIMATTER The ultimate fuel के नाम के शीर्षक से छपा था। इस लेख के लेखक श्री डी०पी०सिहं एवं सुखमनी कौर ने यह लिखा है कि सर्वाधिक कीमती वस्तु संसार में हीरा, यूरेनियम, प्लैटिनम, यहाँ तक कि कोई पदार्थ भी नहीं है बल्कि अपदार्थ/या प्रतिपदार्थ अर्थात ANTIMATTER है।
वैज्ञानिकों ने लम्बे समय तक किये गये अनुसंधानों एवं सिद्धान्तो के आधार यह माना है कि ब्रह्मांड में पदार्थ के साथ-साथ अपदार्थ या प्रतिपदार्थ भी समान रूप से मौजूद है। इस सम्बन्ध में वेदों में ऋग्वेद के अन्तर्गत नासदीय सूक्त जो संसार में वैज्ञानिक चिंतन में उच्चतम श्रेणी का माना जाता की एक ऋचा में लिखा है किः-
तम आसीत्तमसा गू---हमग्रे----प्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम्।
तुच्छेच्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम्।।
(ऋग्वेद १०।१२९।३)
अर्थात्
सृष्टि से पूर्व प्रलयकाल में सम्पूर्ण विश्व मायावी अज्ञान(अन्धकार) से ग्रस्त था, सभी अव्यक्त और सर्वत्र एक ही प्रवाह था, वह चारो ओर से सत्-असत्(MATTER AND ANTIMATTER) से आच्छादित था। वही एक अविनाशी तत्व तपश्चर्या के प्रभाव से उत्पन्न हुआ। वेद की उक्त ऋचा से यह स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मांड के प्रारम्भ में सत् के साथ-साथ असत् भी मौजूद था (सत् का अर्थ है पदार्थ) ।
यह कितने आश्चर्य का विषय है कि वर्तमान युग में वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान पर अनुसंधान करने के पश्चात कई वर्षों में यह अनुमान लगाया गया कि विश्व में पदार्थ एवं अपदार्थ/प्रतिपदार्थ(Matter and Antimatter) समान रूप से उपलब्ध है। जबकि ऋग्वेद में एक छोटी सी ऋचा में यह वैज्ञानिक सूत्र पहले से ही अंकित है। उक्त लेख में यह भी कहा गया है कि Matter and Antimatter जब पूर्ण रूप से मिल जाते हैं तो पूर्ण उर्जा में बदल जाते है। वेदों में भी यही कहा गया है कि सत् और असत् का विलय होने के पश्चात केवल परमात्मा की सत्ता या चेतना बचती है जिससे कालान्तर में पुनः सृष्टि (ब्रह्मांड) का निर्माण होता है।
छान्दोग्योपनषद् में भी ब्रह्म एवं सृष्टि के बारे में यह उल्लेख आता है कि आदित्य (केवल वर्तमान अर्थ सूर्य नहीं,बल्कि व्यापक अर्थ में) ब्रह्म है। उसी की व्याख्या की जाती है। तत्सदासीत्-वह असत् शब्द से कहा जाने वाला तत्व, उत्पत्ति से पूर्व स्तब्ध, स्पन्दनरहित, और असत् के समान था, सत् यानि कार्याभिमुख होकर कुछ प्रवृति पैदा होने से सत् हो गया। फिर उसमें भी कुछ स्पन्दन प्राप्तकर वह अकुरित हुआ। वह एक अण्डे में परणित होगया। वह कुछ समय पर्यन्त फूटा; वह अण्डे के दोनों खण्ड रजत एवं सुवर्णरूप हो गये। फिर उससे जो उत्पन्न हुआ वह यह आदित्य है। उससे उत्पन्न होते ही बड़े जोरों का शब्द हुआ तथा उसी से सम्पूर्ण प्राणी और सारे भोग पैदा हुए हैं। इसीसे उसका उदय और अस्त होने पर दीर्घशब्दयुक्त घोष उत्पन्न होते हैं तथा सम्पूर्ण प्राणी और सारे भोग भी उत्पन्न होते हैं।
अथ यत्तदजायत सोऽसावादित्यस्ततं जायमानं घोषा
उलूलवोऽनुदतिष्ठन्त्सर्वाणि च भूतानि सर्वे च
कामास्तस्मात्तस्योदयं प्रति प्रत्या यनं प्रति घोषा
उलूलवोऽनुत्तिष्ठन्ति सर्वाणि च भूतानि सर्वे च कामाः।
(छान्दग्योपनिषद् -शाङ्करभाष्यार्थ खण्ड १९ ।।३।।
(अधुनिक वैज्ञानिक भी ब्रह्माण्ड के पैदा होने पर जोर की ध्वनि होना ही मानते है। स्टीफेन हाँकिंग महाविज्ञानी आंइस्टाइन के आपेक्षिकता सिद्धान्त की व्याख्या करते हुये घोषित करते है कि दिक् और काल (Time and space) का आरम्भ महाविस्फोट (Big bang) से हुआ और इसकी परणति ब्लैक होल से होगी।
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एंटीमैटर क्या है ?
कणीय भौतिकी में, एंटीमैटर पदार्थ के एंटीपार्टिकल के सिद्धांत का विस्तार होता है, जहां एंटीमैटर उसी प्रकार एंटीपार्टिकलों से बना होता है, जिस प्रकार पदार्थ कणों का बना होता है। उदाहरण के लिये, एक एंटीइलेक्ट्रॉन (एक पॉज़ीट्रॉन, जो एक घनात्मक आवेश सहित एक इलेक्ट्रॉन होता है) एवं एक एंटीप्रोटोन (ऋणात्मक आवेश सहित एक प्रोटोन) मिल कर एक एंटीहाईड्रोजन परमाणु ठीक उसी प्रकार बना सकते हैं, जिस प्रकार एक इलेक्ट्रॉन एवं एक प्रोटोन मिल कर हाईड्रोजन परमाणु बनाते हैं। साथ ही पदार्थ एवं एंटीमैटर के संगम का परिणाम दोनों का विनाश (एनिहिलेशन) होता है, ठीक वैसे ही जैसे एंटीपार्टिकल एवं कण का संगम होता है। जिसके परिणामस्वरूप उच्च-ऊर्जा फोटोन (गामा किरण) या अन्य पार्टिकल-एंटीपार्टिकल युगल बनते हैं। वैसे विज्ञान कथाओं और साइंस फिक्शन चलचित्रों में कई बार एंटीमैटर का नाम सुना जाता रहा है।
एंटीमैटर केवल एक काल्पनिक तत्व नहीं, बल्कि असली तत्व होता है। इसकी खोज बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में हुई थी। तब से यह आज तक वैज्ञानिकों के लिए कौतुहल का विषय बना हुआ है। जिस तरह सभी भौतिक वस्तुएं मैटर यानी पदार्थ से बनती हैं और स्वयं मैटर में प्रोटोन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन होते हैं, उसी तरह एंटीमैटर में एंटीप्रोटोन, पोसिट्रॉन्स और एंटीन्यूट्रॉन होते हैं।
एंटीमैटर इन सभी सूक्ष्म तत्वों को दिया गया एक नाम है। सभी पार्टिकल और एंटीपार्टिकल्स का आकार एक समान किन्तु आवेश भिन्न होते हैं, जैसे कि एक इलैक्ट्रॉन ऋणावेशी होता है जबकि पॉजिट्रॉन घनावेशी चार्ज होता है। जब मैटर और एंटीमैटर एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तो दोनों नष्ट हो जाते हैं। ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सिद्धांत महाविस्फोट (बिग बैंग) ऐसी ही टकराहट का परिणाम था। हालांकि, आज आसपास के ब्रह्मांड में ये नहीं मिलते हैं लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड के आरंभ के लिए उत्तरदायी बिग बैंग के एकदम बाद हर जगह मैटर और एंटीमैटर बिखरा हुआ था। विरोधी कण आपस में टकराए और भारी मात्रा में ऊर्जा गामा किरणों के रूप में निकली। इस टक्कर में अधिकांश पदार्थ नष्ट हो गया और बहुत थोड़ी मात्रा में मैटर ही बचा है निकटवर्ती ब्रह्मांड में। इस क्षेत्र में ५० करोड़ प्रकाश वर्ष दूर तक स्थित तारे और आकाशगंगा शामिल हैं। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार सुदूर ब्रह्मांड में एंटीमैटर मिलने की संभावना है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर के खगोलशास्त्रियों के एक समूह ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के गामा-रे वेधशाला से मिले चार साल के आंकड़ों के अध्ययन के बाद बताया है कि आकाश गंगा के मध्य में दिखने वाले बादल असल में गामा किरणें हैं, जो एंटीमैटर के पोजिट्रान और इलेक्ट्रान से टकराने पर निकलती हैं। पोजिट्रान और इलेक्ट्रान के बीच टक्कर से लगभग ५११ हजार इलेक्ट्रान वोल्ट ऊर्जा उत्सर्जित होती है।इन रहस्यमयी बादलों की आकृति आकाशगंगा के केंद्र से परे, पूरी तरह गोल नहीं है। इसके गोलाई वाले मध्य क्षेत्र का दूसरा सिरा अनियमित आकृति के साथ करीब दोगुना विस्तार लिए हुए है।
एंटीमैटर की खोज में रत वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्लैक होल द्वारा तारों को दो हिस्सों में चीरने की घटना में एंटीमैटर अवश्य उत्पन्न होता होगा। इसके अलावा वे लार्ज हैडरन कोलाइडर जैसे उच्च-ऊर्जा कण-त्वरकों द्वारा एंटी पार्टिकल उत्पन्न करने का प्रयास भी कर रहे हैं।
पृथ्वी पर एंटीमैटर की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्रयोगशालाओं में बहुत थोड़ी मात्रा में एंटीमैटर का निर्माण किया है। प्राकृतिक रूप में एंटीमैटर पृथ्वी पर अंतरिक्ष तरंगों के पृथ्वी के वातावरण में आ जाने पर अस्तित्व में आता है या फिर रेडियोधर्मी पदार्थ के ब्रेकडाउन से अस्तित्व में आता है। शीघ्र नष्ट हो जाने के कारण यह पृथ्वी पर अस्तित्व में नहीं आता, लेकिन बाह्य अंतरिक्ष में यह बड़ी मात्र में उपलब्ध है जिसे अत्याधुनिक यंत्रों की सहायता से देखा जा सकता है।
एंटीमैटर नवीकृत ईंधन के रूप में बहुत उपयोगी होता है। लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया फिल्हाल इसके ईंधन के तौर पर अंतत: होने वाले प्रयोग से कहीं अधिक महंगी पड़ती है। इसके अलावा आयुर्विज्ञान में भी यह कैंसर का पेट स्कैन (पोजिस्ट्रान एमिशन टोमोग्राफी) के द्वारा पता लगाने में भी इसका प्रयोग होता है। साथ ही कई रेडिएशन तकनीकों में भी इसका प्रयोग प्रयोग होता है।
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इस विषय पर विभिन्न समाचार पत्रों (News Papers) में प्रकाशित लेखों के लिंक अंग्रेजी वर्णों (English Words) में नीले रंग (blue color) से दिए गए हैं !!!
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साभार : पूर्वांश भाग "वेद-विद्या" वेबसाइट से लिया गया है, जो कि वहाँ मन्त्रों का वैज्ञानिक महत्त्व नामक लेख में उपलब्ध है.
पंकज जी,
जवाब देंहटाएंतथ्यपरक आलेख का प्रस्तुतिकरण किया।
जानकारी में वृद्धि हुई। आभार
.
जवाब देंहटाएंमित्र पंकज, आपने इस पूरी जानकारी को वैदिक आधार दिया, बेहद अच्छा लगा. मैंने इस जानकारी को अपने काव्य-जीवन के प्रारम्भ में जब जाना था तब एक रचना लिखी थी. मैं उसे यहाँ भी सुनाना चाहता हूँ. क्योंकि उस रचना के श्रोता मुझे कम मिलते हैं, आपके इस लेख के बहाने व्यक्त कर रहा हूँ.
कविता का शीर्षक है : "सृष्टि" इस पूरी कविता को दो श्वासों में ही पढ़ा जाता है. इस कविता पाठ से मेरा प्राणायाम भी हो जाता है.
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वह काल बड़ा भयानक था
न था अम्बर न था दिनकर
न धरा कहीं न धार कहीं
बहती थी, न थे नद-निर्झर.
न चाँद कहीं न तारे थे
न ग्रह से ही बंजारे थे
बस नग्न मग्न था छिपा खड़ा
अंधेतम में अंधा ईश्वर.
स्वच्छंद घूमती थी मारुत
मंजुल अंगों को किये हुए
थे प्रौत तत्व के बने हुए
उत्तेजित उर करने वाले.
आसक्त किये तम को, सत्वर
दौड़ा करती आलिंगन को
आलिंगन से दव का उदभव
होता तो ईश्वर की ईहा
भी चख बनकर देखा करती
तम-मारुत के सम्मिलन को.
तम मारुत के पट फाड़-फाड़
भड़काता मन्मथ दावानल
धूँ-धूँ कर उठती लिप्साएँ
कानन-सी, सारे तत्व जले.
तत्वों के जलने से मारुत
वृषली के अंगों का दिखना
तम-तिय मारुत की आँहों में
भावी सृष्टि का नाद घना
आता था तम के कानों में
तम विट बनकरके भाग गया.
बस रही अकेली बेचारी
हर दिक् में तम को ताक रही
तक-तक कर वह बनी वापिका
नाम पड़ा उसका निहारिका.
रुक-रूककर उत्पन्न किये कुछ
सुत, सुता मात्र वसुधा मैया
जिस पर ममता मारुत-माँ की
औ' नेह करे चन्दा-भैया.
औ' नेह करे चन्दा-भैया.
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[रचना काल है : २६ फरवरी १९९१]
>>>>> इस कविता में अंत में मुझे कुछ कच्चापन लगता रहा, शायद कम आयु की सीमित क्षमता हो. परन्तु जस-की-तस आपके समक्ष प्रस्तुत की है.
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प्रतुल जी! एक दशक पुरानी कविता पढ़्कर आनन्द आ गया। बहुत अच्छी रचना।
हटाएंआचार्यवर कौशलेन्द्र जी,
हटाएंआपकी सराहना चहुँ ओर छिटकी पड़ी है... गदगद हूँ.
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जवाब देंहटाएंइस लेख को मैं अपने संग्रह में ले रहा हूँ. भविष्य में मेरे प्रातः काल के चिंतन की विषयवस्तु बनेगा.
आभारी हूँ आपने इतने श्रम से यह जानकारी संजोई.
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पंकज जी ! यह पोस्ट इस ब्लॉग के उद्देश्य के सर्वाधिक या यों कहिये की शत-प्रतिशत निकट पहुंची है . आभार आपका इस गहन जानकारीपूर्ण लेख के लिए जो भारत के ज्ञान वैभव की कहानी प्रखरता से बयान कर रहा है.
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ नया जानने को मिला
जवाब देंहटाएंआपका आभार
http://anubhutiras.blogspot.com
जब तक cmindia की नई क्विज़ प्रस्तुत हो, इस पुरानी क्विज़ को
जवाब देंहटाएंहल करें। http://rythmsoprano.blogspot.com/2011/01/blog-post_3129.html
शोधात्मक सामग्री के लिए
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद .
http://abhinavanugrah.blogspot.com/
मैं जब भी मैटर-एंटीमैटर, ऋणावेश-धनावेश, एलेक्ट्रॉन-प्रोटॉन और गर्भ में भूण के विकास की क़्रमिक प्रक्रिया के बारे में सोचता हूँ तो मुझे हर जगह अर्धनारीश्वर के ही दर्शन होते हैं।
जवाब देंहटाएंगवेषणात्मक आलेख के लिये साधुवाद। इस ब्लॉग का उद्देश्य सार्थक हो रहा है।
चिंतनश्रेष्ठ कौशलेन्द्र जी,
हटाएंआपकी सोच का वृहत दायरा दृष्टि की पहुँच-क्षमता के कारण है.
अर्धनारीश्वर के दर्शन की कल्पना बाँटने के लिए आभार.
चिंतनश्रेष्ठ=चिन्तकश्रेष्ठ कौशलेन्द्र जी!
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