गुरुवार, 7 मार्च 2013

भारतीय संस्कृति का यज्ञ है प्रतीक

यज्ञ थैरेपी के एक आयोजन में जाने पर कुछ भाव उमड़े ,जिन्हें मनहरण कवित्त में ढाला है

प्रस्तुत दोनों छंदों पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्नता होगी । 
हार्दिक मंगलकामनाएं !

8 टिप्‍पणियां:

  1. कल माँ छिन्नमस्तिके -
    के दर्शन के लिए रजरप्पा में था-
    आभार भाई जी-

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  2. अन्नाद भवन्ति भूतानि
    पर्जन्याद अन्न सम्भवः
    यज्ञाद भवन्ति पर्जन्य
    यज्ञ कर्म समुद्भवाः।

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  3. मनहरण कवित्त ने मन हरण कर लिया। वैदिक धर्म के कर्मकांड मनुष्य जीवन के मनोजगत और मित्रजगत (समाज) दोनों में ही सुख शांति की वर्षा करते हैं। मेरा अपना अनुभव भी यही है।

    राजेन्द्र जी, आप जहाँ भी रहते हैं 'भारतीय सनातन धर्म के महिमा गान से उसके वैभव की वृद्धि ही करते हैं। 'शस्वरं' पर जाकर जैसा आनंद आता है वैसा ही अपने इस ब्लॉग पर आकर लगा।

    इस कविताई के यज्ञ में मैं अपनी टिप्पणी होम कर रहा हूँ।

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  4. सुंदर रचना के माध्यम से यज्ञ की भावना का प्रकटीकरण अच्छा लगा।

    बहुजन हिताय बहुजन सुखाय यज्ञ होता है
    जनहित मे स्व होम करें अहंकार खोता है
    छोड़ विभाजन जोड़े मानव यज्ञ मिलाता है
    सुप्त जगाकर, जागृत उठकर आगे जाता है

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  5. भारत भारती के समस्त लेखक एवं पाठकों होली की हार्दिक शुभकामनायें!!!

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