रविवार, 7 नवंबर 2010

यज्ञ हो तो हिंसा कैसे ।। वेद विशेष ।। भाग -- १


।। सम्‍पूर्ण मन्‍त्र यहाँ देखें ।।

संकेत - अग्‍ने यं ................................................................. इद्देवेषु गच्‍छति ।। (ऋग्‍वेद - 1/1/4)


भावार्थ - हे अग्निदेव । आप जिस हिंसा रहित यज्ञ को चारों ओर से आवृत किये रहते हैं , वही यज्ञ देवताओं तक पहुँचता है ।।

विशेष - पिछले कई सौ वर्षों में वैदिक यज्ञों पर कुछ विक्षिप्‍त मस्तिष्‍क वाले देशी-विदेशी विद्वानों के द्वारा  हिंसा का मिथ्‍या आरोप लगता रहा है । आश्‍चर्य यह होता है कि ये विद्वान पूरे ग्रन्थ का सम्‍यक अध्‍ययन करने के बाद भी ग्रन्‍थारम्‍भ में ही दत्‍त उपर्युक्‍त मन्त्र को अनदेखा करते रहे । ये सत्‍य है कि ग्रन्‍थ में कई द्वयार्थी शब्‍द मध्‍य में प्रयुक्‍त हुए हैं जिनका अज्ञानता वश हिंसा अर्थ कर लिया जाता है । यथा - मेध, आलभन, बलि, माँस इत्‍यादि किन्‍तु इनका दूसरा हिंसा जनित अर्थ करने की किसी भी आवश्‍यकता का निवारण उपर्युक्‍त मन्‍त्र ग्रन्थारम्‍भ में ही कर देता है । इस मन्‍त्र में स्‍पष्‍ट लिखा गया है कि जिस हिंसा रहित यज्ञ को आप चारो ओर आवृत किये रहते हैं वही देवों तक पहुँचता है । यज्ञों का आयोजन देवों को प्रसन्‍न करने हेतु किया जाता है, यज्ञभाग का देवों तक पहुँचने का माध्‍यम अग्नि देव हैं, और अग्निदेव को ही लक्षित करके यह मन्‍त्र हिंसा का निवारण करता है । इस तरह से ग्रन्‍थ के आरम्‍भ में ही हिंसा का विरोध किया गया है । भला कौन ऐसा यज्ञ करना चाहेगा जो देवों तक उसकी विनय को पहुँचाये ही न । 


--
भवदीय: - आनन्‍द:

13 टिप्‍पणियां:

  1. aanand ji bloging jagat me hi kuchh harami ye baat faila rahe hain ki vedo me yagy me bali ka jikr hai. aap ka ye shlok un tak jaroor pahuhna chahiye.

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  2. नवीन जी
    ये लेख यदि ब्‍लाग जगत पर पूरी तरह फैला दिया जाये तो कुछ हो सकता है ।
    मैं यह अपील करता हूँ आप सभी दोस्‍तों से कृपया आप सभी इस लेख को अपने अपने ब्‍लाग पर प्रकाशित करें, अपने कान्‍टैक्‍ट में जितने भी लोग हों उनको ईमेल से भेजें , मेरे नाम के नीचे अपना नाम लिखते जाएँ, कुतर्कियों को उत्‍तर देने का यही एक तरीका हो सकता है, और हाँ जिस ब्‍लाग पर ऐसे कुतर्क हों उनका बहिष्‍कार करें । उनपर टिप्पणी करने से बचें । टिप्‍पणी से इनकी हिम्‍मत बढ जाती है ।

    आगे भी ऐसे तथ्‍य प्रकाशित करता रहूँगा । वेदों की पूर्ण वैज्ञानिकता व सत्‍य तथ्‍यों को सबके सामने लाने का जिम्‍मा उठाया है । ईश्‍वर की इच्‍छा होगी तो ब्‍लाग जगत वेदों की गरिमा को शीघ्र ही जान जायेगा ।।

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  3. @ आनंद जी , क्या मैं यह जान सकता हूं कि यह भाषार्थ किस विद्वान का है ?
    यह पूछना तो कुतर्क की श्रेणी में नहीं समझा जाना चाहिए।

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  4. ज्ञान प्रसार के आपके मिशन में सफ़लता की कामना करते हैं।

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  5. जी बिलकुल जान सकते हैं

    यह आचार्य श्रीरामशर्मा कृत ऋग्‍वेद संहिता भाग प्रथम से गृहीत है ।

    पर हाँ ये मत कहियेगा कि आचार्य जी ने गलत लिखा है, इसका ये अर्थ नहीं अमुक अन्‍य अर्थ होगा ।

    क्‍यूँकि फिर यह कुतर्क हो जायेगा ।

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  6. भला कौन ऐसा यज्ञ करना चाहेगा जो देवों तक उसकी विनय को पहुँचाये ही न ?

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  7. ..

    बुरी भावना से किया गया तर्क कुतर्क कहलाता है.
    जिज्ञासा भाव या तथ्यात्मक जानकारी देने की इच्छा कभी कुतर्क की श्रेणी में नहीं आती.

    ..

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  8. भला कौन ऐसा यज्ञ करना चाहेगा जो देवों तक उसकी विनय को पहुँचाये ही न ?

    vedo me himsaa hai hi nahi

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  9. .

    आनंद जी,

    बहुत उपयोगी पोस्ट के लिए आभार। निसंदेह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक यह बात पहुंचनी चाहिए। लोगों का मिथ्या भ्रम टूटना ही चाहिए। आपका प्रयास सराहनीय है।

    शुभ कामनाएं।

    .

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  10. आनंद जी,

    सत्य पूर्ण शोध है यह आपका विश्लेषण, वैदिक धर्म को उच्चता से गिराने के लिये ही हिंसाचारी विश्लेषकों ने ये घ्रणित अर्थ किये है।
    शुद्ध धर्म के लिये ऐसे मिथ्या भ्रम दूर होने ही चाहिए। आपका प्रयास स्तुत्य है। साधुवाद!!

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  11. स्वामी विवेकानंद ने पुराणपंथी ब्राह्मणों को उत्साहपूर्वक बतलाया कि वैदिक युग में मांसाहार प्रचलित था . जब एक दिन उनसे पूछा गया कि भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कौन सा काल था तो उन्होंने कहा कि वैदिक काल स्वर्णयुग था जब "पाँच ब्राह्मण एक गाय चट कर जाते थे ." (देखें स्वामी निखिलानंद रचित 'विवेकानंद ए बायोग्राफ़ी' प॰ स॰ 96)
    € @ अमित जी, क्या अपने विवेकानंद जी की जानकारी भी ग़लत है ?
    या वे भी सैकड़ों यज्ञ करने वाले आर्य राजा वसु की तरह असुरोँ के प्रभाव में आ गए थे ?
    2- ब्राह्मणो वृषभं हत्वा तन्मासं भिन्न भिन्नदेवताभ्यो जुहोति .
    ब्राह्मण वृषभ (बैल) को मारकर उसके मांस से भिन्न भिन्न देवताओं के लिए आहुति देता है .
    -ऋग्वेद 9/4/1 पर सायणभाष्य
    सायण से ज्यादा वेदों के यज्ञपरक अर्थ की समझ रखने वाला कोई भी नहीं है . आज भी सभी शंकराचार्य उनके भाष्य को मानते हैं । Banaras Hindu University में भी यही पढ़ाया जाता है ।
    क्या सायण और विवेकानंद की गिनती कुक्कुरों , पशुओं और असुरों में करने की धृष्टता क्षम्य है ?

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  12. भई जमाल साहब

    कदाचित् आपको वृषभ तथा मॉंस का बैल व माँस के अतिरिक्‍त अन्‍य अर्थ भी पता होता तो इस तरह के कुतर्क न करते ।

    वेदों पर तर्क करना हो तो सम्‍यक वेदार्थ पता होने चाहिये ।
    स्‍वामी विवेकानन्‍द ने क्‍या कहा ये किसे पता , जिस पुस्‍तक की बात आप कर रहे हैं वह किसी अन्‍य ने स्‍वामी जी के नाम से लिख दी हो ऐसा भी हो सकता है क्‍यूँकि आजतक स्‍वामी विवेकानन्‍द जी के बारे में ऐसा कहीं नहीं पढने को मिला कि उन्‍होने वेदों पर भाष्‍य लिखें हों या व्‍याख्‍यान दिया हो ।


    रही बात हिंसा की तो जब वेद अपने प्रारम्‍भ में स्‍वयं ही हिंसा का विरोध कर रहा है तो इससे बडा प्रमाण मेरे खयाल से और कोई नहीं हो सकता है ।


    रही बात आपको समझाने की तो वो तो कभी नहीं हो सकती क्‍यूँकि समझाया तो उसे जाता है जिसमें आस्‍था हो, आपमें तो दुराग्रह भरा पडा है ।


    वेदों पर कमेन्‍ट करने से पहले अपने धर्मग्रन्‍थ व धर्म के बारे में ठीक से पढ लीजिये और ज्‍यादा मौका न हो तो सलमान रूश्‍दी की सैटनिक वर्सेज पढ लीजिये, अन्‍य पर टांट कसने से पहले अपना जरूर देख लेना चाहिये । अगर सैटनिक वर्सेज आपके पास न हो तो बताइयेगा, हम आपको लिंक दे देंगे ।

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