शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

मैं किसी से कोई बदला नहीं चाहता — प्रो. बकरा हलाल







एक बकरे की आत्मकथा अब आगे ...............
धीरे-धीरे मेरी आँखों के आगे अन्धेरा छाने लगा व चेतना लुप्त होने लगी. शायद साँस चलना भी बंद हो गया था. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे प्राण निकल चुके हैं और यमदूत मुझे आकाश में कहीं उडाये लिये जा रहे हों, किन्तु यह क्या? मेरा शरीर तो अभी भी वहीं कत्लखाने में पड़ा था और अब तो दो आदमी मेरे शरीर की खाल को भी मांस चरबी व हड्डियों से अलग कर रहे थे. उन्होंने मेरी सारी खाल अलग करके एक तरफ फैंक ड़ी व मांस एक तरफ. वहाँ एक आदमी ने छुरी से मेरे मांस के अनगिनत टुकडे कर करके उसका बिलकुल भुरता ही बना दिया. वह सब जुल्म भी शायद इस देवता स्वरुप इंसान के लिये कम था क्योंकि कटे पर नमक मिर्च लगाना जो इनकी पुश्तैनी आदत व शौक है. वह तो अभी बाक़ी था सो उसे यह मेरे लिये ही क्यों छोड़ते? अतः मेरे मांस का भुरता बनाने के बाद उसमें न केवल नमक मिर्च बल्कि कई अन्य मसाले डालकर व आग पर भूनकर पूरी तरह अपनी क्रूरता का परिचय दे दिया. अब इसके आगे क्या होगा मैं यह देख ही रहा था कि तभी एक आदमी ने मेरे मांस को एक प्लेट में सजाकर एक शानदार कमरे में बैठे एक नौजवान जोड़े के सामने ला कर रख दिया. आदमी ने तो बड़ी शान जताते हुए मुझे खाना शुरू कर दिया किन्तु उसके सामने बैठी औरत को मेरा मांस खाना शायद अच्छा नहीं लग रहा था और वह केवल अपने पति का साथ निभाती-सी प्रतीत हो रही थी. 

अब तक मैं धर्मराज के दरबार में पहुँच जीवात्माओं की लाइन में लग चुका था और चित्रगुप्त जी की आवाज़ ने जो सबका लेखा-जोखा बता रहे थे मेरा ध्यान अपनी ओर खेंच लिया. मेरी बारी बाने पर चित्रगुप्त जी ने बताया कि पिछले जन्म में मैंने एक बकरे का मांस खाया था जिसके परिणामस्वरूप मुझे इस जन्म में एक बकरा बनना पड़ा व अपना मांस दूसरों के भोजन के लिये देना पड़ा. उन्होंने यह भी बताया कि इस समय जो व्यक्ति होटल में बैठे तुम्हारा मांस खा रहे हैं वे तुम्हारे पूर्व जन्म की अपनी संतान ही हैं जिसके लिये तुमने उस जन्म में अपना पूरा जीवन दाँव पर लगाया था. अब ये इस जन्म में जो तुम्हारा मांस खा रहे हैं इसका दंड इन्हें अगले जन्म में भुगतना पड़ेगा. इतना सुनते ही मेरी आत्मा थरथरा उठी. मैं यह कैसे पसंद कर सकता था कि मेरी संतान को भी मेरी भाँति यंत्रणा सहनी पड़े. अतः मैंने धर्मराज जी से प्रार्थना की, कि इन सबको वे क्षमा कर दें क्योंकि मैंने भी इन सबको क्षमा कर दिया है, मैं किसी से कोई बदला नहीं चाहता. धर्मराज जी ने मुझ पर कृपा की और कहा कि चूँकि तुमने बकरे की योनि में केवल बेल पत्ते ही खाए हैं व किसी का अहित नहीं किया और अब सबको क्षमा कर दिया है अतएव अब तुम्हें मनुष्य योनि में भेजा जा रहा है और उन्होंने मेरी आत्मा को पुनः मनुष्य जन्म के लिये भेज दिया. 

दूसरे जन्म के लिये जाते हुए मैंने निश्चय किया कि अब मैं दया, सत्य व सदआचरण ही करूँगा और कभी भी किसी भी जीव की ह्त्या करना व उसका मांस खाना तो दूर किसी भी जीव को कोई कष्ट तक नहीं दूँगा और न ही किसी को कोई नुकसान पहुँचाऊँगा. मैं सदैव हर जीव की रक्षा करूँगा. इन्हीं विचारों के साथ मैं अपनी नहीं माँ की कोख में चला गया. 






लेखक श्री गोपीनाथ अग्रवाल द्वारा रचित इस आत्मकथा का मैं केवल टंकणकर्ता हूँ. कृपया मुझे इस कथा का श्रेय न दें. मैं भी आपकी ही तरह इसका केवल पाठक भर हूँ. मैं इस कथा में निहित संवेदनाओं का समर्थक भी हूँ इसलिये इस कथा को सार्वजनिक करना मुझे प्रेरित कर रहा था. 

कथा से जन्में सभी प्रश्नों का उत्तर देने को मैं सदा तत्पर रहूँगा. बस जिज्ञासु पाठक केवल अपना धैर्य बनाकर रखें. मुझे आने वाले दिनों में कुछ परीक्षाएँ देनी हैं इसलिये प्रतिक्रिया देने में विलम्ब हो सकता है. 

16 टिप्‍पणियां:

  1. लेखक श्री गोपीनाथ अग्रवाल जी के हम आभारी हैं, क्योंकि उन्होंने इस आत्म कथा से बहुत से शक दूर कर दिया. बकरे का यह भी एक इस्तेमाल है. आज पाता लगा. आखिर बकरा बेजुबान है यह तो साबित कर ही गए लेखक श्री गोपीनाथ अग्रवाल.

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  2. आपके भ्रम के ग़ुब्बारे में हकीकत की पिन मैं आज बिल्कुल न चुभाऊगा क्योंकि जो इश्यू आज मैंने उठाया है उससे आप कुछ न कुछ तो जरूर सहमत होंगे ।
    वाद विवाद फिर कर लेंगे आज एक स्वर होने की जरूरत है ।
    हमारी बहस बौद्धिक है हम में कोई रंजिश नहीं है ।
    सादर आप विद्वानों से यही विनम्र विनती है ।

    ज़ालिम कौन Father Manu या आज के So called intellectuals ?
    एक अनुपम रचना जिसके सामने हरेक विरोधी पस्त है और सारे श्रद्धालु मस्त हैं ।
    देखें हिंदी कलम का एक अद्भुत चमत्कार
    ahsaskiparten.blogspot.com
    पर आज ही , अभी ,तुरंत ।
    महर्षि मनु की महानता और पवित्रता को सिद्ध करने वाला कोई तथ्य अगर आपके पास है तो कृप्या उसे कमेँट बॉक्स में add करना न भूलें ।
    जगत के सभी सदाचारियों की जय !
    धर्म की जय !!

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  3. बकरे की आत्मकथा मर्मभेदक है।

    और मर्म भेद ही दिया………

    आभार आपका, इसीतरह ख्वाहिशें बेनकाब होती है।

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  4. पाचन प्रॉब्लम कि वजह से मांसाहार नहीं करता . मुसलमान होने के लिए गोश्त खाना ज़रूरी नहीं है लेकिन हकीक़त कि दुनिया में रहना ज़रूरी है . मानव जाति के लगभग ७ अरब सदस्यों का पालन बिना मांसाहार के संभव नहीं है. =======================================

    वैसे जमाल साहब आपका जन्म होने के बाद पालन कैसे हुआ होगा उस टाइम तो आप मांस नहीं न खा पाते होंगे !!!!

    एक ठो विचारणीय तथ्य है -

    प्रारब्ध पहले रचा, पीछे रचा शरीर
    तुलसी चिंता क्यों करें भज ले श्री रघुवीर !!!!

    तो जमाल चिंता क्यों करे !-
    भज ले किसी प्यारे को - रोटी की चिंता क्यों !!!
    रोटी तो वो रह कीमत पर देगा ये उसका वादा है तुझसे !!!

    पर बोटी के लिए मेहनत करनी ही पड़ती है -------------

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  5. @गोपीनाथ जी बकरे की आत्मकथा तो आपने लिख दी पर "गाय की आत्मकथा" कब लिखोगे कि कैसे गऊ माता को आप जैसे लोग जवान रहने तक तो खूब दूध पीतें है और जब वें बूढ़ी हो जाती हैं तो कैसे उन्हे तिल तिल कर मरने के लिए सड़कों छोड़ दिया जाता है जहाँ पर वें पॉलिथीन आदि हानिकारक वस्तुएँ खाकर अपना गुज़ारा करती हैं और अपने मरने की दुआएँ माँगती हैं और उन बकरोँ से ईर्ष्या करती हैं जो इस अवस्था मे पहुँचने से पहले ही इस दुनिया से चले जाते हैं

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  6. .
    Dr. Ayaz Ahmad jii,
    शीघ्र ही aapko गाय की ढेरों कहानियों के साथ 'गोपीनाथ की गौशाला' में ले जाऊँगा.
    थोड़ा धैर्य रखें, आपकी मनोकामना पूर्ण की जायेगी.
    इस मुद्दे पर मैं किसी को बक्शने के मूड में बिलकुल भी नहीं हूँ.
    तब तक आप इस 'बकरे की आत्मकथा' से मिली संवेदनाओं को आत्मसात करें.

    .

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  7. आप सभी को सूचित करते हुए ख़ुशी हो रही है की, पंडित डी. के. शर्मा "वत्स" जी और राजेंद्र स्वर्णकार जी भी इस ब्लॉग से जुड़ चुके है .
    अब तो इन्तजार हैं भारतमाता और संस्कृत के वैभवगान से सिक्त इनकी रचनाओं का .

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  8. .

    मित्र,
    हमारा उत्साह द्विगुणित हुआ यह हर्ष समाचार सुनकर.
    स्वागत हेतु हस्त-द्वय उठते हैं, आओ आपस में आज़ गले मिलते हैं.


    धर्म-विरोधियों को चेतावनी :

    "मेरी वाणी को सुन पापी तड़पेगा
    अन्दर से मरकर बाहर से भड़केगा.
    पर मैं क्यूँकर उनसे डरने वाला हूँ.
    मैं कलम छोड़कर न भगने वाला हूँ."

    दो आशी माता! कलम सत्य ही बोले
    बेशक कषाय कटु तिक्त सदा ही बोले.
    ..

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  9. पंडित डी. के. शर्मा "वत्स" जी और राजेंद्र स्वर्णकार जी,
    का हम,…
    ॥भारत भारती वैभवम्॥ पर
    भावभीना स्वागत करते है।
    व्यवस्थापक अमित जी,सभी सदस्य एवं सहयोगी समर्थकों को बधाई!!

    जवाब देंहटाएं
  10. लक्ष्य है उँचा हमारा, हम विजय के गीत गाएँ।
    चीर कर कठिनाईयों को, दीप बन हम जगमगाएं॥
    तेज सूरज सा लिए हम, ,शुभ्रता शशि सी लिए हम।
    पवन सा गति वेग लेकर, चरण यह आगे बढाएँ॥
    हम न रूकना जानते है, हम न झुकना जानते है।
    हो प्रबल संकल्प ऐसा, आपदाएँ सर झुकाएँ॥
    हम अभय निर्मल निरामय, हैं अटल जैसे हिमालय।
    हर कठिन जीवन घडी में फ़ूल बन हम मुस्कराएँ॥
    http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/10/blog-post_25.html

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  11. MERI OR SE BHEE -

    पंडित डी. के. शर्मा "वत्स" जी और राजेंद्र स्वर्णकार जी,
    का
    ॥भारत भारती वैभवम्॥ पर
    भावभीना स्वागत करते है।
    व्यवस्थापक अमित जी,सभी सदस्य एवं सहयोगी समर्थकों को बधाई!!

    जवाब देंहटाएं
  12. आप सभी को सूचित करते हुए ख़ुशी हो रही है की, भारत भारती वैभवं ब्लॉग पर एक और उर्जावान युवा लेखक जुड़ चुके है .
    उर्जावान युवा लेखक हरदीप राणा जी का स्वागत कीजियें जो अपने ब्लॉग "कुंवरजी" पर अपने उजस्वी लेखन के लिए जाने जाते है .

    जवाब देंहटाएं
  13. हरदीप राणा जी,"कुंवरजी"
    ॥भारत भारती वैभवम्॥ पर जुडे
    बहुत ही हर्ष हुआ, भावभीना स्वागत करते है।

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  14. बहुत ही मर्मभेदी और शिक्षाप्रद कहानी थी पढ़कर दिल द्रवित हो उठा .

    जवाब देंहटाएं
  15. "धर्मराज जी ने ..........विचारों के साथ मैं अपनी नहीं माँ की कोख में चला गया."

    आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आने वले समय में यह पंक्तियाँ जगह जगह बिखरी मिलेंगी, इस निष्कर्ष के साथ कि यह सदगति इसलिये हुई क्योंकि जिबह करने के लिये फ़लां विधि का प्रयोग किया गया था।

    कमेंट मात्र है, कोई प्रश्न नहीं फ़िलहाल। परीक्षाओं के लिये शुभकामनायें, ये सब तो चलता रहा है और चलता रहेगा।

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  16. आदर्णीय प्रतुल जी,
    चरण स्पर्श...
    गोपीनाथ जी की इस कहानी को आपने हम सबसे बांटा,इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद|
    कहानी बहुत ही अच्छी है|
    इंसान से बुरा जानवर कोई नहीं|
    धन्यवाद|

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