मंगलवार, 11 जनवरी 2011

सफलता-सूत्र

राजनीतिक सफलता —
 "राजनेता होने के लिये" अंशतः विश्वासघात और पूर्णतः 'छल' पर आधारित है. 
एक बात और : राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के लिये नारी व नारी-हृदयों को भावनात्मक-स्तर पर और पुरुषों को विचारों और कर्म [साम, दाम, दंड, भेद] से छलना चाहिए. 

आर्थिक सफलता — 
"नगर-सेठ होने के लिये" अंशतः शील-भ्रष्टता और पूर्णतः 'मिथ्या' पर आधारित है. 

सामाजिक सफलता — 
"सन्त-महात्मा होने के लिये" अंशतः प्रदर्शन की भावना और पूर्णतः सद-आचरण पर आधारित है. 

धार्मिक सफलता — 
"अवतार-पुरुष होने के लिये" अंशतः सामान्य दिखने की भावना और पूर्णतः धृति (धैर्य], क्षमा, दम, अस्तेय [चोरी न करना], शौच [पवित्रता], इन्त्रिया-निग्रह [संयम], धी [बुद्धि], विद्या, सत्य, अक्रोध जैसे धर्म के १० लक्षणों पर आधारित है. 


[प्रातः कालीन चिंतन है. इसका कोई शास्त्रीय आधार नहीं है.]
इन सफलता-सूत्रों से हटकर भी सफल चरित्रों के अपवाद मिल सकते हैं. लेकिन वे चरित्र विरले ही मिलते हैं. 

11 टिप्‍पणियां:

  1. प्रतुल जी,

    सार्थक चिंतन है, खुबसुरत व्यंग्य।

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  2. परमात्मा से एकत्व स्थापना , आध्यात्म में सफलता तो केवल और पूर्णत: निष्काम कर्म पर आधारित है !

    क्यों प्रतुल जी !!

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  3. परमात्मा से एकत्व स्थापना, आध्यात्म में सफलता तो केवल और केवल .... पूर्णत: निष्काम कर्म पर आधारित है !

    @ सहमत हूँ.


    मैंने सोचा था कि कुछ ब्लोगर इस तरह के अन्य विचारों को भी जोड़ते चलेंगे कि ...
    यथा : ब्लोगिंग सफलता — "एक बहु अनुयायी लब्ध ब्लोगर होने के लिए" अंशतः खुरापाती [विवादास्पद बयानबाजी] और पूर्णतया आमंत्रण-पाती प्रेषक होना चाहिये.

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  4. जो इश्वर मुझे यहाँ रोटी नहीं दे सकता, वो मुझे स्वर्ग में अनंत सुख कैसे दे सकेगा
    भारत को ऊपर उठाया जाना हैं ! गरीबों की भूख

    http://meradeshmeradharm.blogspot.com/

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  5. @
    प्रतुल जी

    सौ मूर्खो से प्रशंसा पाने से अच्छा है एक बुद्धिमान से निंदा पाना !!

    ठीक उसी तरह
    (((ब्लोगिंग सफलता — "एक बहु अनुयायी लब्ध ब्लोगर होने के लिए" अंशतः खुरापाती [विवादास्पद बयानबाजी] और पूर्णतया आमंत्रण-पाती प्रेषक होना चाहिये)))
    कुछ लोग ब्लॉग्गिंग में कमेंट्स को सफलता और अधिक पढ़े जाने को ही ब्लॉग की सफलता मान लेते हैं,
    परन्तु मेरे दृष्टि सफल ब्लॉगर वह है, जो अपने विचारों से अपने जैसे विचारक पैदा कर सके भले ही वो संख्या में एक ही क्यों न हो,
    क्योंकि कुछ टिप्पडी दाताओं का क्या भरोसा कम खुश और कब नाराज

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  6. .

    हे मेरे देश और मेरे धर्म !
    मेरे सम्मुख एक समस्या आ खड़ी हुई है. आप तो मेरे नाम से मुझे संबोधन कर पाते हैं. मुझे आपसे बात करने के लिये अपने देश और धर्म को संबोधित करना पड़ जाता है.
    क्या आपकी बातों पर सहमती व्यक्त करने के लिये मुझे सम्पूर्ण भारत और सम्पूर्ण धर्म को श्रेय देते रहना होगा?

    .

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  7. @ प्रतुल जी

    मैं तो समझता था की आपको मेरा नाम ज्ञात होगा क्योंकि मैं पोस्ट के नीचे अधिकतर अपना सांसारिक नाम लिख देता हूँ ----

    मेरा देश मेरा धर्म - ==

    ये मेरे इस सांसारिक जन्म से पहले भी थे और बाद में भी रहेंगे

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  8. .

    मित्र पंकज,
    आपको मैं आपके नाम से अलग जानता था और अब पता चला कि आप ही हैं इस सांसारिक नाम के भीतर.
    क्षमा चाहता हूँ कि मुझसे इस तरह की भूल हुई.
    फिर भी आपका सांसारिक नाम 'पंकज ही है' जबकि 'मेरा देश मेरा धर्म' आपका मनोभाविक नाम है. आपकी भावनाओं का परिचायक है. आपकी विस्तृत सोच को लक्षित करता है. इस अतिव्यापी नाम में आपकी सोच के अन्य बंधुओं को भी आमंत्रित किया जा सकता है. मैं भी इस कतार में लगा हूँ और इस नाम को पाने के लिए पंजीकरण कराना चाहता हूँ. 'मेरा देश मेरा धर्म' नाम से अपने विचार रखना इस बात का भी संकेत है कि आप व्यक्ति को कार्य के बाद महत्व देते हैं. अच्छा लगा इस सोच को जानकार.

    .

    जवाब देंहटाएं
  9. .

    अरे आप तो हमारे ही ब्लॉग-लेखक मंडली के साथी हैं.
    और
    इस तरह से
    परिचय कुछ गाढ़ हुआ ....... सदा याद रहेगा.

    .

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  10. हां, प्रतुल जी,

    पंकज जी हमारे लेखक मंडल से ही है।
    चलो शानदार तरिके से परिचय हो गया।

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