मंगलवार, 8 मार्च 2011

उठो राष्ट्र प्रहरियो !



दिशाएँ सब विक्षिप्त हैं. 
मृत्यु दीर्घजीवी पर, जीवन आयु संक्षिप्त है. 


स्वप्न ध्वस्त हो गये, सौभाग्य अस्त हो गये. 
षडयंत्रों के जंगलों में, हवा तक संलिप्त है.  


देवत्व वनवासी हुए, दुरित अधिवासी हुए. 
'सुसंकल्प' गरल पीकर, चिरनिद्रा में तृप्त हैं.


उठो राष्ट्र प्रहरियो ! ... ग्रामीणो व शहरियो !!
गली-गली आवाज़ दो, यहाँ डगर-डगर सुप्त है. 


आर्यत्व घोष गुंजार दो, गांडीव को टंकार दो. 
चहुँमुखी शत्रु नाश का, यही समय उपयुक्त है. 

आँसुओं को उल्लास दो, अंधेरों को उजास दो. 
आँख दो - अरे आँख दो, एक राष्ट्रभाव लुप्त है. 

— आचार्य भगवानदेव 'चैतन्य' की रचना

एक विचार :
पशुओं के झुण्ड को देखें तो जिस झुण्ड में जितने अधिक पशु [हाथी, हरिन, गो आदि] दिखायी दें, उसका यूथपति उतना ही बलवान, सुन्दर और प्रबुद्ध दिखलायी देगा. 
जड़ जगत की ओर निहारें तो जिसके चारों ओर जितने ग्रह-उपग्रह गति कर रहे हैं, उसका रुतबा उतना ही बड़ा होगा. ठीक उसी प्रकार किसी भी संगठन के 'कार्यकर्ता' नौका के 'चप्पू' हैं जिनसे संगठन की नौका चलती है. 'नेता' केवल दिशा-दर्शक और दिशा-प्रवर्तक 'पतवार' ही होता है. 

8 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ अरब देश इस स्थिति से दो-चार हो रहे हैं। न जाने हमारा जागना कब होगा।

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  2. उठो राष्ट्र प्रहरियो ! ... ग्रामीणो व शहरियो !!
    गली-गली आवाज़ दो, यहाँ डगर-डगर सुप्त है.



    आर्यत्व घोष गुंजार दो, गांडीव को टंकार दो.
    चहुँमुखी शत्रु नाश का, यही समय उपयुक्त है.
    बहुत ओज भरी कविता! आज ऐसे ही कविता की जरूरत है सोए हुवे मानव मान को झझकोरने के लिए! कोई भी संगठन तभी सफल होता है जब उसके सभी सदस्य भी उस विचार के प्रति समर्पित हों
    बहुत सारी शुभ कामनाएं आपको !!

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  3. राधारमण, मदन शर्मा अरु राज भाटिया आये.
    टिप्पणियों से लगा प्रहरी-स्वर को वे सुन पाये.
    अरब देश के लोगों ने डाला कानों में तेल.
    किन्तु हमारे घर वालों के कान कपासी-जेल.

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  4. आर्यत्व घोष गुंजार दो, गांडीव को टंकार दो.
    चहुँमुखी शत्रु नाश का, यही समय उपयुक्त है.

    आभार प्रतुल जी, आचार्य चैतन्य जी की इस रचना की प्रस्तुति के लिये।

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  5. उठो राष्ट्र प्रहरियो ! ... ग्रामीणो व शहरियो !!
    गली-गली आवाज़ दो, यहाँ डगर-डगर सुप्त है.

    प्रतुलजी आचार्य चैतन्य जी की यह ओजपूर्ण रचना पढवाने का आभार ...
    विचार बहुत सुंदर लगा....

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  6. अद्भुत ओजस्वी शब्द रचना ............... तन-मन के तार झंकृत हो उठे ...................... पर ये सारे आव्हान सिर्फ आव्हान ही रह जाते दिखे हम इन्हें जीवन में किस तरह उतार रहे है .........

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  7. इस आव्हान स्वर ने कुछ में बीज क्रान्ति का बोया.
    सुज्ञ मोनिका अमित जगे, पर गाने वाला सोया.
    अमित उलाहना नहीं छोड़ता अपने बन्धु को भी.
    दोहरे चरित्र वाले प्रहरी का स्वर होता है लोभी.

    मैं जानता हूँ अमित जी ने केवल शब्द रचना की प्रशंसा की है.
    .... वे उसमें निहित अर्थ से मुझे ही सीख लेने को कह रहे हैं.
    लेकिन बड़े ही शालीनता से.

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