मंगलवार, 1 मार्च 2011

ओ भारत के नायको इक बार आ जाओ

ओ भारत के नायको इक बार आ जाओ
हमारे मृत शरीरों में प्राण बन समा जाओ

राम तुम्हारी थापी मर्यादा हो रही तार तार

आदर्श तुम्हारे जीवन के अब लगते बेकार

ओ गायक गीता के तुम तो फिर से आओ
विनाशाय च दुष्कृताम सिद्ध कर दिखलाओ

प्रताप ! तुम्हारी कीर्ति का ताप अब ढल रहा

निज राष्ट्र गौरव स्वाधीनता स्वप्न बिखर रहा

शिवा ! शिव-प्रेरणा को हमने अब भुला दिया

अटल छत्र जो रोपा तुमने उसे छितरा दिया

सवा सवा लाख का काल एक को बनाने वाले

गुरु नाम की लाज रख अमृतपान करा जाओ

ओ मर्दानी झांसी वाली देख देश की लाचारी

फिरंगी नहीं अपने बैठे सिंहासन पर अत्याचारी

तम-नीलिमा नाश को प्राची से हो उदित आ जाओ

भारत वैभव को अटल करने अमित शौर्य बन आओ
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कृपाकांक्षी
अमित शर्मा
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8 टिप्‍पणियां:

  1. कविता का एक एक शब्द प्रेरित करता हुआ और जागृत करता हुआ. समय को ऐसी ही रचनाओं कि ज़रुरत है.

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  2. बहुत अच्छी ओर जाग्रुक करती कविता, धन्यवाद

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  3. जिसको शर्म होगी उसे शर्म आ ही जायेगी....जिनको नहीं है उनके लिए तो सारे प्रयास "बहुत बढ़िया लिखा है" तक ही असर कर पायेंगे....

    कुंवर जी,

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  4. .

    प्रिय अमित जी, नमस्ते.

    आपने भारत के जिन नायक और नायिकाओं का नाम लेकर टेर लगायी है.
    उसमें शांत चित्त से निकलती वेदना भली-भाँति चित्रित हो रही है.
    हमारे मृत लोलुप शरीरों को आज़ ओजस्वी वचन भी जिलाते नहीं.
    राम-कृष्ण-बुद्ध-नानक-गुरु गोविन्द आदि को केवल गुरुद्वारे और मंदिरों में पूज-पूजकर उन्हें वास्तव में जड़ बना दिया है.
    अब तो लगता है कि उनके आदर्श भी जड़ हो चुके हैं. वे केवल पुस्तकों में पढ़ने में ही अच्छे लगते हैं.
    उन्हें व्यावहारिक जीवन में उतारने को तो अब माता-पिता-गुरु भी मना करने लगे हैं.

    आज़ उसे पिछड़ा और रूढ़िवादी समझा जाने लगा है जो नियम और मर्यादा की बात करता है.

    फिर भी ऐसे समय में आप अपना कर्तव्य निभा रहे हैं. मुझे प्रसन्नता है. यह भक्ति का धीमा स्वर गुरुद्वारे के सबद-कीर्तन सा सुख देता है और इसमें बसी वेदना हृदय को फाड़े डालती है.

    .

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  5. युवाओं में पूरी जानकारी का अभाव
    ऊपर से नकली स्वतंत्रता के सपने का प्रभाव
    सच्ची डरता हूँ कभी कभी
    नकली किनारे दिखा दिखा के
    कुछ लोगों को
    हथिया ना ले कोई
    विश्व की सबसे रिलाएबल नाव
    अभी तो सबको ईजीली अवेलेबल है
    बाद में अभाव में बढ़ेंगे भाव

    ~~~~~~~~~~~~~~~~
    पूरी जानकारी = मौजूद जानकारी की प्रमाणिकता
    किनारे = लक्ष्य (अक्सर स्वतंत्रता का )
    नाव = संस्कृति

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  6. मेरी उलटी सीधी कविता के बाद मैंने पढ़े कमेन्ट .......और नजर जा कर रुकी इस लाइन पर

    "आज़ उसे पिछड़ा और रूढ़िवादी समझा जाने लगा है जो नियम और मर्यादा की बात करता है."

    प्रतुल जी ,
    सही कहा ..बिलकुल सही कहा

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  7. आधुनिकता की धुन पर
    नाच रहा पागल मन
    मन की इच्छा पूरी करने में
    खर्च हो रहा जीवन का इंधन
    इसीलिए आव्हान कर रहे हैं
    तुम में बैठे राम का
    हर पल कर क्षण
    dont waste your life
    just for freedom[?] and fun[?]

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  8. बहुत सुन्दर
    अच्छी कविता
    बहुत बहुत धन्यवाद

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