शनिवार, 24 दिसंबर 2011

विटामिन बी-12, और मात्र मांसाहार निर्भरता? दुग्ध-पदार्थों में है पर्याप्त उपस्थिति (आहार वैभव)


दूध, दही, खमीर, अंकुरित दालें, शैवाल
संतुलित भोजन अच्छे स्वास्थ्य की और पहला कदम है। स्वस्थ भोजन में प्रोटीन, शर्करा, वसा, खनिज पदार्थों आदि के अतिरिक्त सूक्ष्म मात्रा में भी बहुत से ऐसे पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिन्हें विटामिन कहते हैं। संतुलित शाकाहारी भोजन विभिन्न विटामिनों सहित उपरोक्त सभी तत्वों को प्रदान करने में सक्षम है। तो भी शाकाहार के विरोध में कभी-कभी ऐसे बयान पढने या सुनने में आते हैं कि ऐसी शंका हो सकती है कि निरामिष भोजन में सभी तत्व भरपूर हैं कि नहीं। शाकाहार-विरोधी ऐसे ही प्रचार को ध्यान में रखते हुये निरामिष सम्पादक मण्डल ने समय समय पर शाकाहारी भोजन में उपस्थित पोषक तत्वों की जानकारी देने के उद्देश्य से स्वास्थ्य के लिये आवश्यक खनिजों व विटामिनों के बारे में जानकारीपूर्ण आलेख प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है। पिछले दिनों आपने विटामिन डी सम्बन्धी जानकारी के लिय "विटामिन डी - सूर्य नमस्कार से पोषण" पढा था। इसी शृंखला में आज प्रस्तुत है विटामिन बी 12 के बारे में तथ्यात्मक जानकारी।

विटामिन बी के नाम से पुकारा जाने वाला समूह बहुत से विटामिनों का ऐसा समूह है जिसके अधिकांश घटक शाकाहारी भोजन में निसन्देह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। केवल एक घटक "बी12" के बारे में बार-बार यह बात कही जाती है कि यह वनस्पति जगत में नहीं होता। आइये सत्यान्वेषण पर आगे चलने से पहले इस तर्क को परख लिया जाये। यदि बी12 वनस्पति जगत में न बनकर केवल प्राणियों के शरीरों में उत्पन्न होता है तब तो उसके लिये चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि तब वह हमारे शरीर में भी आवश्यकतानुसार उत्पन्न होना ही चाहिये। और तथ्य यह है कि ऐसा होता भी है। अंतर केवल इतना है कि वह मांस का उत्पाद न होकर सूक्ष्म जीवों(Streptomyces griseus, Propionibacterium shermanii, Pseudomonas denitrificans) द्वारा ही उत्पादित पोषक तत्व है। अधिकांश प्राणियों की तरह हमारे शरीर में भी पाचन-तंत्र के कुछ अवयवों में इन्हीं सूक्ष्म जीवों की सहायता से बी 12 की भारी मात्रा उत्पन्न होती है। मांस में भी यह जिन अवयवों में अधिक मात्रा में पाया जाता है उन भागों को तो अधिकांश मांसाहारी भी अभक्ष्य मानते हैं।
विटामिन बी12 के लिये मांसाहार अनिवार्य नहीं है। सभी शाकाहारी प्राणी अपने शरीर में विटामिन बी 12 की पर्याप्त मात्रा उत्पन्न करते हैं।
यह सच है कि पौधे विटामिन बी12 के महत्वपूर्ण स्रोत हैं या नहीं, इस पर बहुत खोज हुई ही नहीं है। पोषण सम्बन्धी अधिकांश आधुनिक अध्ययन पश्चिमी देशों में हुए हैं जहाँ मांस और दुग्धाहार सामान्य है इसलिये किसी वैकल्पिक स्रोत की जाँच की आवश्यकता नहीं पड़ती। परंतु यह कहना बिल्कुल ग़लत है कि वनस्पति स्रोतों में बी12 का पूर्णाभाव है। हाल के वर्षों में पश्चिम में शाकाहार के बढते प्रचलन के कारण विटामिन बी12 के स्रोतों पर शोधों में भी वृद्धि हुई है। गोबर आदि जैविक खादों से पोषित भूमि में उगाई गयी फसलों में बी12 की जांच योग्य मात्रा पाये जाने के प्रमाण हैं। पशुओं के दूध और दुग्ध-उत्पादों यथा दही, पनीर, खोया, मट्ठा आदि से भी बी12 की पर्याप्त मात्रा प्राप्त होती है। अन्य प्राणियों की तरह ही मानव शरीर भी बी12 को लम्बे समय तक सुरक्षित रखता है और इसके सार को नष्ट किये बिना बारम्बार इसका उपयोग करता है। नई आपूर्ति के बिना भी हमारा शरीर विटामिन "बी12" को 30 वर्षों तक सुरक्षित रख सकता है, ऐसे चिकित्सकीय प्रमाण हैं। इसका कारण यह है कि अन्य विटामिनों के विपरीत, विटामिन बी12 अन्य प्राणियों की तरह हमारी मांसपेशियों और शरीर के अन्य अंगों विशेषकर यकृत में भंडारित रहता है। लेकिन यह वहाँ उत्पन्न नहीं होता है।

घास, चारा, पत्तियाँ और अनाज खाने वाले मवेशियों के मांस और दूध में पाया जाने वाला विटामिन बी12 उनके जठरांत्र संबंधी मार्ग में जहाँ-तहाँ रहते सूक्ष्मजीवों द्वारा संश्लेषित होता है। सच तो यह है कि शाकाहारी प्राणियों में विटामिन बी12 का संश्लेषण मांसाहारी पशुओं के मुकाबले इतना अधिक है कि उनके दूध और मांस ही अधिकांश मानवों के लिये बी12 का स्रोत हैं। वास्तव में यह सारा बी12 उन्हीं सूक्ष्म जीवों बैक्टीरिया द्वारा आया है जो हमारे पाचन-तंत्र में ही निवास करते हैं। संतुलित शाकाहारी भोजन से हम उन सूक्ष्म-जीवों की वृद्धि के लिये अनुकूल वातावरण उत्पन्न करते हैं और इस प्रकार बी12 पर बाह्य निर्भरता को कम कर सकते हैं। विटामिन बी12 के उत्पादक सूक्ष्म जीवों के लिये ऐसा अनुकूलन करने के लिये दूध, दही, पनीर, खमीर उचित आहार है। जानकारी के कुछ स्रोतों के अनुसार सोयाबीन, मूंगफली, दालें और अंकुरित बीज भी अच्छे हैं। समुद्री शैवाल स्पाइरुलिना भी अन्य विटामिनों के साथ बी12 का भी अच्छा स्रोत है। यीस्ट के एक विशिष्ट प्रकार टी 6635+ (Red Star T-6635+) में ऐक्टिव बी12 पाया गया है।
कोबाल्ट का यौगिक विटामिन बी12 मांस या शाक से नहीं बल्कि सूक्ष्मजीव बैक्टीरिया से उत्पन्न होता है।
वयस्कों के लिये बी12 की सुझाई हुई दैनिक मात्रा 2.4 माइक्रोग्राम है। विटामिन बी12 की कमी के बहुत से मामले दरअसल उसके अवशोषण की कमी के मामले होते हैं। चालीस से अधिक वय के लोगों की बी12 अवशोषण की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है। बहुत सी दवाइयाँ भी लम्बे समय तक प्रयोग किये जाने पर बी12 के अवशोषण को अस्थाई रूप से या सदा के बाधित करती हैं। इसके अलावा भोजन में नियमित रूप से बी12 की अधिकता होने पर शरीर उसकी आरक्षित मात्रा में कमी कर देता है। आहार में लिये गये विटामिन बी12 का अवशोषण प्राणियों की छोटी आंत के अंत में आंतों की दीवार की कोशिकाओं द्वारा छोड़े गये एक जैव-रासायनिक अणु (intrinsic factor, a glycoprotein) की सहायता से सूक्ष्मजीवों द्वारा होता है। यदि आपके शरीर में इस जैव-रासायनिक अणु की कमी है तो हम भोजन में कितना भी बी12 लें, हमारा शरीर उसे ग्रहण करने में असमर्थ रहता है। इसी प्रकार , कोबाल्ट धातु/खनिज की आपूर्ति या विशिष्ट सूक्ष्मजीवों की अनुपस्थिति में प्राणियों के शरीर में इसका निर्माण संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त भोजन में भले ही बी12 होने का दावा किया जाये, अधिक पकाये हुए भोजन में बी12 नष्ट हो जाता है। ऐसी स्थिति में लम्बे समय तक विटामिन बी12 की कमी रहने पर मस्तिष्क सम्बन्धी गतिविधियाँ और रक्त निर्माण जैसी प्रक्रियाओं पर असर पड़ता है और चिकित्सकों की सलाह से सुइयों या नासिका के द्वारा विटामिन बी की पूरक मात्रा शरीर में पहुँचाई जा सकती है।

भोजन के प्राकृतिक स्रोतों और शरीर के भीतर निर्मित होने वाले विटामिन बी12 के अतिरिक्त हम इसकी आपूर्ति पूरक स्रोतों, जैसे विटामिन की गोलियों द्वारा भी कर सकते हैं। पूरक स्रोतों में पाया जाने वाला विटामिन बी12 प्रयोगशाला में संश्लेषित होता है। इसमें किसी पशु-उत्पाद का प्रयोग नहीं होता है। पश्चिमी देशों में प्रचलित डब्बाबन्द शाकाहारी नाश्ता (फ़ोर्टिफ़ाइड सेरियल) और चिक्की/पट्टी (ग्रेनोला बार) बी12 सहित आवश्यक विटामिनों और खनिजों से भरपूर होता है।

तो देर मत कीजिये। अपने नाश्ते में दूध का गिलास और अंकुरित दालों को शामिल कीजिये, और भोजन में गाहे-बगाहे खमीरी रोटी और स्पाइरुलिना भी ले लिया कीजिये, विशेषकर यदि आप चालीस के निकट हैं या उससे आगे पहुँच चुके हैं। संतुलित भोजन कीजिये और शाकाहारी रहिये, यह आपके लिये तो अच्छा है ही, हमारे पर्यावरण के लिये भी उपयोगी है।

सार:
शरीर को रक्त-निर्माण जैसे कार्यों के लिये विटामिन बी12 (कोबालअमीन) की अत्यल्प मात्रा की आवश्यकता होती है। बी12 को बैक्टीरिया बनाते हैं जो हमारे पाचन-तंत्र के आंतरिक अंगों में रहते हैं। खमीर, अंकुरित दालों, शैवालों, दुग्ध-उत्पादों तथा विशिष्ट शाकाहारी भोजन और इन सूक्ष्म-जीवों की सहायता से बी12 की पर्याप्त मात्रा प्राप्त कर सकते हैं। हमारा शरीर बी12 को लम्बे समय तक आरक्षित रख सकता है। मांसाहार आदि करने वालों में होने वाली अधिक आमद में शरीर बी12 का संचित कोष रखना बन्द कर देता है; अतः, मांस से शाक की ओर आने वालों को दूध आदि न लेने पर नया कोष बनने तक बी12 की कमी हो सकती है जिसे दूध, दही आदि के संतुलित आहार से पूरा किया जा सकता है।

सम्पूर्ण आलेख को देखें निरामिष पर


3 टिप्‍पणियां:

  1. महत्वपूर्ण जानकारी देता हुआ एक और बेहतरीन लेख, सभी को पढ़ना चाहिए

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  2. शाकाहार में ही सारे पोषक तत्व उपस्थित हैं।

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  3. अत्यंत हितकारी जानकारियां...
    लोगों में शाकाहार की प्रवृत्ति बढे, यही मंगलकामना है...
    साधुवाद इस सुन्दर आलेख को सांझा करने हेतु...

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