शाक, सब्जी या अन्य शाकाहारी पदार्थों के उत्पादन, तोड़ने तथा सेवन करने पर क्या जीव हिंसा नहीं होती ?
क्रूर सच्चाई तो यह है कि माँसाहार समर्थकों का यह तर्क, सूक्ष्म और वनस्पति जीवन के प्रति करुणा से नहीं उपजा है। बल्कि यह क्रूरतम पशु हिंसा को सामान्य बताकर महिमामण्डित करने की दुर्भावना से उपजा है।
शाकाहार की तुलना मांसाहार से करना और दोनों को समान ठहराना न केवल अवैज्ञानिक और असत्य है बल्कि अनुचित व अविवेक पूर्ण कृत्य है। एक ओर तो साक्षात जीता जागता प्राणी , अपनी जान बचाने के लिए भागता, संघर्ष करता, बेबसी महसुस करता प्राणी , सहायता के लिए याचना भरी निगाहों से आपकी ओर ताकता आतंकित प्राणी , चोट व घात पर दर्द और पीड़ा से आर्तनाद कर तड़पता, छटपटाता प्राणी और उसे मरते देख रोते –बिलखते अन्य प्राणी? तब भी यदि करूणा नहीं जगती तो निश्चित ही यह मानव मन के निष्ठुर व क्रूर भावों की पराकाष्टा होनी चाहिए।
शाकाहार और मांसाहार के विषय पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हिंसा में अंतर स्पष्ट है। पशु-पक्षी आघात और हत्या के समय मरणांतक पीड़ा महसुस करते है, और बेहद भयभीत होते है जबकि पेड़-पौधे ऐसी सम्वेदना से मुक्त हैं।
किसी भी जीव का प्राण-घात, करूण प्रसंग है। क्रूर भावों के निष्कासन के लिए, करूणा भाव जरूरी है। हमारा विवेक अहिंसक या अल्पहिंसक विकल्प का आग्रह करता है।
संवेदनात्मक है शाकाहार..
जवाब देंहटाएंक्रूर भावों के निष्कासन के लिए करुणा भाव जरूरी है। हमारा विवेक अहिंसक या अल्पहिंसक विकल्प का आग्रह करता है।
जवाब देंहटाएं@ सुज्ञ जी,
आपके सभी विचार 'सूत्र' बन पड़े हैं... किस-किस को संग्रहित करूँ... समूचा लेख ही शाकाहार पर अनूठी तार्किक व संवेदनात्मक शृंखला है.