रविवार, 25 दिसंबर 2011

ताजमहल की असलियत ... एक शोध -- 6


भाग -१, भाग - २, भाग - ३, भाग -४, भाग - ५  से आगे ---

०५) अन्य विदेशियों ने क्या देखा ?
आपने पढ़ा कि कुरान के लेखक अमानत खाँ शीराजी ने कुरान लेखन सन्‌ १६३९ में पूरा कर लिया था। अर्थात्‌ ताजमहल सन्‌ १६३१ तक कम से कम कुरान लेखन की ऊँचाई तक तो बन ही चुका था। उसके पश्चात्‌ ताजमहल  के चारों ओर बनाया गया ईंटों का मचान हटा दिया गया होगा, क्योंकि इसके ऊपर जाने के लिये भवन के अन्दर ही जीना बना हुआहै। इसके लगभग एक वर्ष बाद टैवर्नियर इस देश में आया था। उस समय तक ताजमहल पूरा हो चुका था अथवा कम से कम कुरान लिखे भाग तक तो पूरा हो ही चुका था। मचान हटाया ही जा चुका था। उसने सुना कि मचान बनाने पर जितना व्यय हुआ उतना सम्पूर्ण कार्य (कुरान लेखन) पर भी नहीं हुआ, अस्तु उसके द्वारा 'कहा जाता है' लिखना स्वाभाविक ही था। (इट इज सेड दैट दि स्काफोल्डिंग एलोन कॉस्ट मोर दैन दि एनटायरवर्क) यदि टैवर्नियर ने सन्‌ १६४० में मचान बना हुआ स्वयं देखा होता तो उसकी लेखन शैली कुछ इस प्रकार होती 'मैंने देखा कि' (उसे) इतना बड़ा मचान बनाना पड़ा कि उस पर आया व्यय मुख्य भवन से भी अधिक था'। मुख्य भवन इसलिये कि टैवनिर्यर के भक्तों के अनुसार टैवर्नियर का तात्पर्य पूरे ताजमहल के बनने से था, और सही भी है। २२ वर्ष में पूरा ताजमहल ही तो बनेगा। कुरान लेखन तो ८ वर्ष में ही हो गयाथा। पर यह सत्य नहीं है कि टैवर्नियर ने पूरा ताजमहल बनते देखा था। सत्य यह है कि ताजमहल को टैवर्नियर ने बना बनाया कुरान युक्त देखा था। ऊपर के आख्यान से सिद्ध है कि कुरान लेखन टैवर्नियर के आगमन से एक वर्ष से भी पूर्व समाप्त हो चुकाथा। कुरान लेखन की ऊँचाई के ऊपर मुख्य गुम्बज है, परन्तु इस गुम्बज का बनना कुरान लेखन के बाद प्रारम्भ नहीं हुआ था अपितु उससे पहले, बहुत पहले बन चुका था। कैसे ?

बादशाहनामा <http://tajmahal.gaupal.in/parishishtha/badasahanama> पर ध्यान दीजिए। पृष्ठ ४०३ की पंक्ति क्र. ३६, ३७ तथा ३८ के अनुसार 'उस आकाश चुम्बी बड़ी समाधि के अन्दर' ......... 'उस महान्‌ भवन में गुम्बज है'.........'जो आकार में बहुत ऊँचा  है'..........'वा इमारत ए आलीशान वा गुम्बजे'.... आदि आदि। अर्थात्‌ जिस समय सम्राज्ञाी के शव को दफन किया गया उस समय 'आकाश चुम्बी उस महान भवन पर गुम्बज था जो आकार में बहुत ऊँचा था।' तथा रानी के शव को दफन कब किया गया था ?अगले वर्ष। देखिये उसी पृष्ठ की पंक्ति ३५ अर्थात्‌ सन्‌ १०४२ हि. तदनुसार सन्‌१६३२ की जुलाई या उसके बाद।टैवर्नियर ने मात्र २० सहस्र कार्मिक कार्यरत बताये हैं, परन्तु कितने कर्मचारी क्या-क्या काम कर रहे थे, यह नहीं बताया है। इसके विपरीत सेबेस्टियन मनरिक का कथन अधिक स्पष्ट, सटीक एवं अधिकार पूर्ण प्रतीत होता है। कार्मिकों में उसे, अधिकारी, ओवरसियर एवं कारीगर मिले वे बगीचे, मार्ग, जल आदि के कार्य में लगे थे। इस प्रकार सन्‌ १६४० में मनरिक ने ताजमहल देखा तो उस समय ताजमहल के बाहर (मुख्य भवन से दूर) कार्य चल रहा था। कारीगरों में कोई भी फूल पत्ती बनाने वाला, पत्थर की कटाई या बेल बूटा बनाने वाला या कुरान लिखने वाला या राजमिस्त्री मनरिक को नहीं मिला था। इसके साथ ही मनरिक ने मुख्य भवन तो क्या किसी भी भवन को बनते हुए नहीं देखा। 

पाठकों की जिज्ञासा को शान्त करने के लिये यह स्पष्ट कर दूंकि से बेस्टियन मनरिक एक पुर्तगाली मिशनरी था तथा वह आगरा २४ दिसम्बर १६४० कोआया था तथा यहाँ पर २० जनवरी १६४१ तक रहा था। एक अन्य जर्मन यात्री अक्टूबर सन्‌ १६३८ में आया था, परन्तु उसे ताजमहल के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है। उसका नाम जे. ए. डी मैनडेल्सलो था। इसने किले का विस्तृत वर्णन किया है। आगरा नगर तथा यहां की गतिविधियों का भी उसने विस्तार से वर्णन किया है। 

एक अन्य अंग्रेज जो ईस्ट इण्डिया कम्पनी का कर्मचारी था, पीटर मुण्डी, वह सन्‌ १६३१-१६३३ में आगरा आया था। वह १ जनवरी १६३१ से १७ दिसम्बर १६३१; १६ जनवरी १६३२ से ६ अगस्त १६३२ तथा २२ दिसम्बर १६३२ से २५ फरवरी १६३३ तक आगरा में रहा। १७ जून सन्‌ १६३१ को महारानी का देहान्त बरहानपुर में हुआ था। इस वर्ष वह आगरा में ही था, परन्तु रानी के देहान्त का समाचार आगरा आने के बारे में अथवा किसी राजकीय शोक के बारे में कुछ ने कुछ नहीं लिखा है। ८ जरवरी १६३२ को रानी का पार्थिव शरीर आगरा लाया गया था। १६ जनवरी १६३२ को मुण्डी पुनः आगरा आ गया था,परन्तु इस बारे में भी वह मौन है। पीटर मुण्डी के अनुसार शाहजहाँ आगरा में १ जिल्हाज सन्‌ १०४१ हिजरी तदनुसार १ जून सन्‌ १६३२ को आया था। यह १०४१ हि. काअन्तिम मास था और बादशाहनामा में लिखे अगले वर्ष के अनुसार रानी के शव को जुलाईमें अथवा उसके बाद दफनाया गया होगा। पीटर मुण्डी के बारे में विशेष बात यह है कि वह लिखता है कि आगरा में देखने योग्य वस्तुएं हैं, अकबर का मकबरा, किला, ताजमहल तथा बाजार। है न आश्चर्यजनक। पीटर मुण्डी २५ फरवरी १६३३ को आगरा से चला गया था, परन्तु साथ में ताजमहल की मधुर स्मृति भी ले गया था। अध बने नहीं, पूरे बने ताजमहल की स्पष्ट सिद्ध है कि ताजमहल २५ फरवरी १६३३ तक बन चुका था। बनने का प्रश्न ही नहीं है क्योंकि १ जनवरी १६३१ से २५ फरवरी १६३३ तक लगभग कुछ मासों को छोड़ कर वह आगरा में ही था। इस बीच ताजमहल के बनने की कोई कार्यवाही यदि हुई होती तो वह अवश्य लिखता। 


२०जून १६३१ को सम्राज्ञी के देहान्त के पश्चात्‌ २५ फरवरी १६३३ तक के १ वर्ष ८मास के समय में ताजमहल बन कर खड़ा हो गया, ऐसा तो केवल अलादीन के चिराग से ही सम्भव है, अन्यथा आज के मशीनी युग में भी २० हजार तो क्या २० लाख व्यक्ति लगानेपर भी इतने कम समय में ताजमहल का निर्माण सम्भव नहीं हैं बादशाहनामा के अनुसार जुलाई १६३२में (१ जून १६३२ को शाहजहाँ के आगरा आगमन के बाद) रानी के शव को 'बने हुए भवन में' दफन किया गया था जिसे पीटर मुण्डी ने भी बनी हुई दशा में देखा था। बाद में सन्‌ १६४० में टैवर्नियर ने भी देखकर लिखा 'कहा जाता है'... आदि।

इस प्रकार स्पष्ट है कि ताजमहल को शाहजहाँ ने बनवाया नहीं था अपितु राजामानसिंह के भवन में दफनाया था जो उसने उनके पोते राजा जयसिंह से लिया था।अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि सन्‌ १६३१-३२ के बाद तो अनेक विदेशियों नेताजमहल देखा जिसमें से कइयों ने तो उसे बनते हुए भी देखा, चाहे उसे मैं कुरान लिखना मात्र मान रहा हूँ यदि ताजमहल रानी के देहान्त के पूर्व भी था तथा इसी दशा में था तो किसी अन्य विदेशी यात्री ने भी देखा होता अन्यथा यही सिद्ध होगा कि ताजमहल को सम्राज्ञी का शव दफन करने के बाद ही बनाया गया था।

आइये डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी का लेखा देखें। फ्रँासिस्को पालसेर्ट उनका मुख्य अधिकारी आगरा में सन्‌ १६२० से १६२७ तक था। वह स्थानीय भाषा में पारंगत था। उसने सन्‌ १६२६ में एक रिपोर्ट बनाई थी। इस रिपोर्ट में वह आगरा का वर्णन निम्न प्रकार से करता है- इस नगर की चौड़ाई-लम्बाई का अनुपात बहुत कम है। इसका कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति नदी के किनारे ही बसना चाहता है। फलतः नदी के सामने अनेक भवन उच्चाधिकारियों के बने हैं, जिसके कारण यह भाग अत्यन्त सुन्दर एवं मनोरम हो गया। इसका विस्तार ६ कोस व ३ १/२ हालेन्ड के मी अथवा १० १/२ ब्रिटिश मील है। 

मैं इनमें से मुख्य भवनों का वर्णन क्रमानुसार कर रहा हूँ। उत्तर दिशा की ओर से प्रारम्भ करते हुए जो महल हैं, वे हैं बहादुर खान, राजाभोजराज १, इब्राहिम खान, रुस्तम कन्धारी, राजा किशनदास, इतिगाद खान २, शहजादाखानम ३, गौलजेऱ बेगम, खवाजा मुहम्मद थक्कर, खवाजा बन्सी, बजीर खान, योग फोरा (एक विशाल बाड़ा जिसमें स्वर्गीय सम्राट अकबर की विधवायें निवास करती हैं)  एहतिबारखाँ, बागड़ खान, मिर्जा अबू सगील, आसफ खान, इतिमादउद्‌दौला, खवाजा अब्दुल हसन,रुचिया सुल्तान बेगम के।इसके पश्चात्‌ किला है। किला पार करने के पश्चात्‌ नक्खास है, जो बड़ा बाजार है इसके आगे के भवन ऊँचे ओहदेदारों के हैं जैसे, मिर्जा अब्दुला, आगरा नूर, जहान खान, मिर्जा खुर्रम, राजा बेतसिंह४, स्वर्गीय राजामान सिंह, राजा माधौसिंह५। नदी के दूसरे छोर पर स्थित है नगर सिकन्दरा। सुन्दर बना हुआ जिसमें अधिकांश बनिया व्यापारी रहते हैं। क्या अब किसी को शंका रह जाती है कि सन्‌ १६२६ में किले से आगे राजा मानसिंह का महल था, जो शाहजहाँ के राज्याभिषेक से २ वर्ष पूर्व तथा सम्राज्ञी के देहान्त के ५ वर्ष पूर्व की रिपोर्ट में उल्लिखित है। १ से ४ : यह नाम शाहजहाँ के फरमानों में आये हैं। देखे परिशिष्ट  <http://tajmahal.gaupal.in/parishishtha/pharamana>

जारी ....
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"ताजमहल की असलियत"  पोस्ट-माला की प्रकाशित पोस्टें --

5 टिप्‍पणियां:

  1. कैसे इतिहास को बादल कर रख दिया लोगों ने ... सच्चाई जानकार अफ़सोस होता है ..

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  2. बहुत श्रमसाध्य आलेख है। पढकर समझने का प्रयास कर रहा हूँ।

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  3. गहन और यथार्थ तथ्यों की शोध है, इसे प्रस्तुत करने के लिए आभार प्रतुल जी।

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  4. सटीक सत्य उजागर करती यह लेखमाला है।

    बहुत बहुत आभार इस प्रस्तुति के लिए………

    कृपया यहाँ भी पधारें……

    निरामिष: कॉलेस्टरॉल किस चिड़िया का नाम है?

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