०६ शाहजहाँ के फरमान
अब तक आपको भली-भाँति ज्ञात हो चुका है कि बादशाहनामा के अनुसार हिज़री १०४१ में सम्राज्ञी का शव बुरहानपुर से आगरा लाया गया था। उसी पुस्तक के अनुसार उसे अगले वर्ष हिजरी १०४२ तदनुसार सन् १६३२ में मिर्जा राजा जयसिंह से प्राप्त हुए 'भवन' में दफन कर दिया गया था। इस भवन (ताजमहल) को पीटर मुण्डी ने २५/०/१६३३ को आगरा से प्रस्थान करने से पूर्व देखा था तथा आगरा के उस समय के दर्शनीय स्थलों यथा अकबर का मकबरा, किला आदि की श्रेणी में भी रखा था। मनरिक ने भी ताजमहल सन् १६४० में देखा था तथा मजदूरों को सड़क बनाते, बाग में काम करते एवं स्वच्छ जल की व्यवस्था करते पाया था। परन्तु अधिक विश्वसनीय कहे जाने वाले टैवर्नियर ने सन् १६४० में ताजमहल को पाया ही नहीं तथा सौभाग्य से उसके सामने ही इस भवन (ताजमहल) का बनना प्रारम्भ हुआ था।
टैवर्नियर अपनी छः यात्राओं में अन्तिम पाँच में भारत आया था। यह यात्राएँ उसने निम्न रूप में की थीं –
१. सन् १६३१-३३ इस्पहान-बगदाद-सिकन्दरिया-माल्टा-इटली
२. सन् १६३८-४३ अलेप्पो-परशिया-भारत (आगरा-गोलकुण्डा) (नवम्बर १६४० में आगरा आया)
३. सन् १६४३-४९ भारत-जावा-केप आदि (आगरा नहीं आया)
४. सन् १६५७-६२ भारत (आगरा नहीं आया)
५. सन् १६६४-६८ भारत (नवम्बर १६६५ में आगरा आया)
उपरिलिखित आधार पर स्पष्ट है कि टैवर्नियर आगरा में सन् १६४० में पहली बार तथा सन् १६६५ में दूसरी बार आया था। यदि टैवर्नियर पर विश्वास करने वाले सत्य हैं तो ताजमहल के बनने का काल सन् १६४० से सन् १६६५ हुआ अर्थात् २५ वर्ष। यदि यह काल सत्य हो तभी यह स्वीकार किया जा सकता है कि टैवर्नियर ने ताजमहल का बनना, प्रारम्भ होना तथा परिपूर्ण होना स्वयं देखा था। इसके लिये एक ही वाक्य कहना पर्याप्त होगा कि सन् १६५८ में ही शाहजहाँ को उसके क्रूर पुत्र औरंगजे़ब ने बन्दी बना लिया था तथा वह सन् १६६५ तक तो क्या अपनी मृत्यु-पर्यन्त कारागार में ही रहा था। अतः शाहजहाँ द्वारा सन् १६६५ तक ताजमहल बनाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
शाहजहाँ द्वारा ताजमहल बनाये जाने के पक्ष में एक अन्य अत्यन्त पुष्ट प्रमाण दिया जाता है, उसके द्वारा जारी किये गये 'फरमान'। यह फरमान सम्राट् शाहजहाँ ने मिर्जा राजा जयसिंह के नाम जारी किये थे तथा इन फरमानों की फोटोप्रति ताजमहल स्थित संग्रहालय (नक्कारखाना) में रखी हुई हैं। पुरातत्व विभाग के प्रकाश में इनका विस्तृत विवरण लिखा हुआ है।
शाहजहाँ द्वारा जारी किये गये मात्र चार फरमान आज उपलब्ध हैं (जिनमें से तीन का विवरण यहाँ पर दो अध्यायों में दिया जाएगा)। इन फरमानों को पढ़ने से ज्ञात होता है कि यह फरमान अपने में परिपूर्ण हैं तथा इनके अतिरिक्त सम्भवतः कोई अन्य फरमान जारी नहीं किया गया था। वास्तवकिता यह है कि यदि शाहजहाँ ने स्वयं ताजमहल बनवाया होता जैसा कि कहा जाता है, उस दशा में शाहजहाँ द्वारा सैकड़ों फरमान जारी किये गये होते, यथा ताजमहल के लिये अभिकल्प मांगने के लिये, किसी एक अभिकल्प की स्वीकृति का, ताजमहल बनाने के लिये अधिकारी की नियुक्ति, अनेक देशों से बहुमूल्य रत्नों के आयात सम्बन्धी आदि-आदि। प्रतिदिन की क्रय की गई सामग्री का विवरण आदि अनेक पर्चियाँ जारी हुई होतीं तथा उनका विवरण तत्कालीन साहित्य में
मुल्ला अब्दुल हमीद लाहोरी,
मुहम्मद अमीना काजबिनी (पादशाह नामा),
मुहम्मद सलीह कम्बू (अमल-ए-सलीह)
इनायत खान (शाहजहाँनामा)
मुहम्मद वारिस (बादशाह नामा)
मुहम्मद सादिक (शाहजहाँनामा)
मुहम्मद शरीफ हनफी (मजलिस-उस-सुल्तान)
द्वारा अपने ग्रन्थों में अवश्य लिखा जाता। परन्तु सम्पूर्ण रूप से प्राप्त, विषय में परिपूर्ण इन फरमानों के अतिरिक्त कोई अन्य अभिलेख अथवा पुर्जा भी जारी न होना आश्चर्यजनक ही नहीं शाहजहाँ द्वारा ताजमहल का निर्माण न किये जाने के पक्ष में प्रबल प्रमाण है।
उपयुक्त तीन फरमान शाहजहाँ ने राजा जयसिंह, जो आमेर (आधुनिक जयपुर) के शासक थे तथा जिनके राज्य के अन्तर्गत मकराना नामक स्थान पर सफेद पत्थर (संगमरमर) की खाने हैं, के नाम जारी किये गये थे। इन तीनों का मूल विषय मकराना से ताजमहल के लिये संगमरमर भेजने की व्यवस्था करना है।
जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि इस पूरे घटनाक्रम की तिथियों पर विद्वान एक मत नहीं है। यद्यपि तिथियों के व्यतिक्रम के कारण हमारे लेखन का विषय-वस्तु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना है, परन्तु इन फरमानों की तिथ्यिों की गड़बड़ी के कारण एक बहुत बड़ा भ्रम उत्पन्न हो गया। मुगल दरबार की परम्परा के अनुसार फरमानों पर तारीख मुसलमानी महीने तथा हिजरी दिये गये हैं। इन तारीखों का ईसवी महीना तथा सन् इतिहासकारों ने गणना करके निकाला है। इस गणना में कहीं पर भारी भूल हुई जिसके कारण पहला फरमान दूसरा हो गया तथा दूसरा फरमान पहला स्वीकार कर लिया गया। यद्यपि दोनों दोनों फरमानों की भाषा लगभग एक ही है। इस कारण इस भूल से कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ना चाहिए था, परन्तु दूसरे फरमान में शाहजहाँ ने लिखा था, 'और इससे पूर्व भी एक प्रतिष्ठित एवं कल्याणकारी राजकीय आदेश (शाही फरमान) जो समानों में श्रेष्ठ (राजा जयसिंह) के नाम इस सम्बन्ध में भेजा गया था।' इस प्रकार दूसरे फरमान को पहला मान लेने के कारण उपरोक्त भाषा इस तथाकथित पहले फरमान में होने के कारण यह मान लिया गया कि इन तीनों फरमानों से पहले भी शाहजहाँ द्वारा एक अन्य फरमान भी इस विषय पर राजा जयसिंह को भेजा गया था। पर्याप्त खोज के पश्चात् भी जब चौथा (पहला) फरमान नहीं मिला तो उसे लुप्त हो गया मान लिया गया। जब मैंने इस विषय पर खोज की तो फारीस तारीखों के अनुसार यह सिद्ध हो गया कि वास्तव में दूसरा मान लिया गया फरमान ही पहला है तथा पहला फरमान वास्तव में दूसरा है। इस प्रकार दूसरे फरमान में यह सत्य ही लिखा है कि इससे पूर्व भी आपको इस विषय पर लिखा जा चुका है। इस सत्य खोज के पश्चात् हिन्दी में पहली बार इन फरमानों का अक्षरशः अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ।
प्रथम फरमान
'..........ज्ञात हो कि हमने मुल्कशाह को नई खानों से सफेद संगमरमर लाने के लिये आम्बेर (आमेर) भेजा है। और हम एतद् द्वारा आदेश देते हैं कि आवश्यक संख्या में पत्थर काटने वाले और किराये की गाड़ियाँ पत्थर लाने के लिये जिनकी उपरोक्त मुल्कशाह को आवश्यकता पड़े, को राजा उपलब्ध करायेगा। और पत्थर काटने वालों का वेतन तथा गाड़ियों के किराये की व्यवस्था वह राजकीय कोषागार की राशि से करेगा। यह आवश्यक है कि राजा मुल्कशाह को इस मामले में हर प्रकार से सहायता करे और वह इसे अति आवश्यक समझे तथा इस आदेश के परिपालन में भूल न करें।'
लिखा गया तारीख २८ शनिवार, इलाही वर्ष ५
४ रवि अल अव्वल १०४२ हिजरी. दि २० सितम्बर सन् १६३२।
दूसरा फरमान
'.... ज्ञात हो कि अकबराबाद तक इमारतों के लिये सफेद संगमरमर लाने के लिए बड़ी संखया में गाड़ियों की आवश्यकता है, और इससे पूर्व भी एक प्रतिष्ठित एवं कल्याणकारी राजकीय आदेश ........................ .......... आपके नाम भेजा गया था; इस सम्बन्ध में, इस समय अधिक महत्व देने के लिये हमने सय्यद इलाहादाद को आमेर तथा अन्य स्थानों को जाने के लिये जिनका विवरण इसके पृष्ठ पर टिप्पणी में दिया है तथा आवश्यक संख्या में किराये पर गाड़ियाँ सूची में दिये प्रत्येक भवन के लिये नियोजित करने के लिये नियुक्त किया है, और राजा ने पहले जितनी गाड़ियों का उन स्थानों से सफेद संगमरमर मकराना की खानों से लाने के लिये प्रबन्ध किया हो, उनका पूर्ण योग में नियोजन कर शेष (गाड़ियों) को उपरोक्त (सय्यद इलाहादाद) को उपलब्ध करा दे जिनको वह मकराना खानों तक सुरक्षित ले जाएगा।
और यह अति आवश्यक है कि यदि किसी विषय पर उपरोक्त (सय्यद इलाहादाद) राजा के पास जाये तो राजा हर प्रकार की सहायता और सहयोग देते हुए, कठोर परिपालन दर्शाते हुए ओर इस विषय में सभी सम्भव सावधानी बरते और न तो इस आदेश की अवज्ञा करें और न भूल।'
लिखा गया १५ बहमन, इलाही वर्ष ५
२३ रजब १०४२ हिजरी दिनांक ३ फरवरी सन् १६३३।
[इस दूसरे फरमान के पृष्ठ पर नौ प्रशासनिक जिलों यथा आमेर, मुइज्जाबाद, फगुई, झाग, नरैना, रोशनपुर जाबनेर, महरोत तथा परबतसर से २३० गाड़ियों की व्यवस्था का विवरण है। साथ ही दिये गये जिले राजा जयसिंह की जागीर के अतिरिक्त राजा भोजराज, राजा गिरधर दास, राजा बेंत मल, राजा चेत सिंह, राजा बेथलदास तथा राजा राजसिंह सुपुत्र बिहारी दास की जागीरों के हैं।]
तीसरा फरमान
'.......ज्ञात हो कि हमारे ध्यान में लाया गया है कि आपके कर्मचारी आमेर तथा राजनगर में पत्थर काटने वालों को एकत्र कर रहे हैं। फलस्वरूप मकराना में पत्थर काटने वाले नहीं पहुँच रहे हैं। फलतः वहाँ पर कम काम हो रहा है। अस्तु।
हम आदेश देते हैं कि आप अपने आदमियों पर कठोर प्रभाव डालें कि वे किसी प्रकार भी आमेर एवं राजनगर में पत्थर काटने वालों को एकत्र न करें और जो भी पत्थर काटने वाले उपलब्ध हों उन्हें राजकीय प्रतिनिधियों के पास मकराना भेज दें। ओर इस विषय में निश्चित कार्यवाही करें और इस आदेश की न अवज्ञा करें और न ही भूलें और इसे अपना दायित्व समझें।'
लिखा गया आज के दिन तीर के नवें महीने में, इलाही वर्ष १०
७वां दिन सफर मास का, इसकी समाप्ति सुन्दर ढंग से तथा विजय से हो-हिजरी १०४७ वर्ष। १ जुलाई सन्१६३७।
उपरोक्त फरमानों को पढ़कर मेरे वह पाठक मित्र अवश्य ही रोमांचित हो उठे होंगे जिनका अभी भी यह विश्वास है कि ताजमहल का निर्माता शाहजहाँ ही था। क्यों न हो ? इन फरमानों में मकराना की खानों से संगमरमर पत्थर लाने के लिये दो अधिकारियों की नामित नियुक्ति की बात कही गई है। ताजमहल संगमरमर से बना है, तथा इन फरमानों में संगमरमर को राजधानी अकबराबाद (आगरा) लाने की बात ही कही गई है।
आइये इन फरमानों की सूक्ष्म समीक्षा करें।
फरमानों की समीक्षा के लिए अगले अंक का इंतज़ार करिए....
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"ताजमहल की असलियत" पोस्ट-माला की प्रकाशित पोस्टें --
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जवाब देंहटाएंरोचक .... भारत में ही झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है ...
जवाब देंहटाएंसंगमरमर धीरे धीरे साफ होता जा रहा है। गहन शोध का सुनियोजित प्रस्तुतिकरण।
जवाब देंहटाएंबहुत गहन शोध का सुनियोजित प्रस्तुतिकरण। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंपी. एन. ओक के बाद दूसरा लेख आपका पढ़ रहा हूँ जो गहन शोध और परिश्रम के बाद प्रामाणिक रूप से तैयार किया गया है. किन्तु........
जवाब देंहटाएंकिन्तु ...आप सत्य प्रमाणित करने की जिद ही क्यों कर रहे हैं ? देश की अवाम का एक बड़ा हिसा ख़फ़ा हो जाएगा तो हमें वोट कौन देगा ? आप हमारे वोट बैंक की ह्त्या क्यों करना चाहते हैं ? ठीक है, हम भी ज़िद करते हैं कि आपके सारे सत्य प्रमाणों को स्वीकार कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की बेवकूफ़ी हम नहीं करेंगे. लगातार एक झूठ को बोल-बोल कर जैसे-तैसे उसे पूरी दुनिया में हम प्रतिष्ठित कर पाए हैं अब आपके सत्य को हम क्यों माने ? तो यह तय रहा कि हम तो झूठ वाला सत्य ही मानेगे. लिहाजा, हमारे इस फ़रमान को आज की तारीख़ में नोट किया जाय ....
:)
हटाएंआदरणीय कौशलेन्द्र जी,
हटाएंइतिहासम्मत इन शोधपरक लेखों की शृंखला के लिये पंडित अमित शर्मा जी बधाई के पात्र हैं.... जिन्होंने मुझे इनके प्रकाशन का दायित्व दिया... इसलिये इन लेखों को पढ़कर सम्पादन के साथ समय-समय पर कुछ-कुछ अंश प्रकाशित करता रहता हूँ.... इतिहास को तथ्यात्मक और गौरवपूर्ण बनाने के लिये अमित जी का यह प्रयास सराहनीय है... वे इतिहास प्रेमी हैं अवश्य .... लेकिन वर्तमान की विकृतियों को इंगित करके वे भावी भारतीयों के मानस पर डाले जाने वाले तम-पटों को हटा देने की इच्छा रखते हैं.
# आप सत्य प्रमाणित करने की जिद ही क्यों कर रहे हैं? देश की अवाम का एक बड़ा हिसा ख़फ़ा हो जाएगा तो हमें वोट कौन देगा? आप हमारे वोट बैंक की ह्त्या क्यों करना चाहते हैं?
@ आपकी प्रश्नात्मक विपरीत लाक्षणिक शैली में भ्रमपूर्ण इतिहास पर तीखा कटाक्ष किया है..... आभार
ये परतें स्पष्ट हो खुलनी चाहिये..
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ. मयंक जी,
जवाब देंहटाएंइन तथ्यपूर्ण विवरणों का वास्तविक श्रेय पंडित कृष्ण कुमार पाण्डेय जी को जाता है.... जिनके शोधपूर्ण प्रयासों ने दूध-का-दूध, पानी-का-पानी कर दिया है..... हम सभी पाठकों को उतना तो श्रम करना ही चाहिए कि जिससे हमें मूर्ख बनाने के प्रयास निष्फल हो जाएँ.....
कल मैं विश्व पुस्तक मेले में एक सेमीनार में शामिल हुआ तो एक छात्रा ने एक बाल-साहित्यकार से प्रश्न किया कि "स्कूली बच्चे इतिहास आधारित किन बाल कथाओं पर विश्वास करें?"... "उनके लिये कौन-सा इतिहास बुरा है और कौन-सा अच्छा है?" "बुरे चरित्रों की उजले पक्ष वाली कथाओं पर वे असमंजस में पड़ जाते हैं?" ............ बाल-कथाओं की लेखिका और अन्य लेखकों के बीच इस प्रश्न से कुछ मतभेद नज़र आया....
— एक ने कहा ... 'जिसमें निर्दोष जनहानि अधिक हुई हो... वह चरित्र बुरा, वह इतिहास बुरा'
— दूसरे ने कहा .... अशोक ने कलिंग-विजय में एक लाख की जन क्षति की.... महाभारत में अपार जनहानि हुई... उसे धर्मयुद्ध नाम दिया गया"
समय-सीमा निर्धारित होने के कारण इसे विमर्श के लिये अवसर न मिला...
पंडित साथियों से इस विषय पर चर्चा करने का मन है और उनके पक्ष को जानने का भी... अपने सभी आचार्यों से अनुरोध भी है कि वे ऎसी बाल-उलझनों को सुलझाएँ.
आपने इस आलेख को चर्चामंच पर स्थान दिया ... इसके लिये आभार.
श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ( जो 'पी. एन. ओक' के नाम से प्रसिद्ध हैं और जो 'नेताजी सुभाष चन्द्र बोस' की 'आजाद हिंद फ़ौज' में रहकर भारत के स्वाधीनता-संग्राम में भाग ले चुके हैं) ने "ताजमहल" के विषय में एक पुस्तक लिखी है जिसमें "ताजमहल" को वैज्ञानिक प्रमाणों द्वारा "भगवान शिव का मन्दिर" सिद्ध किया गया है
जवाब देंहटाएंइसके अलावा भी----- श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अन्य अनेक पुस्तकें भी लिखी हैं | इन सभी पुस्तकों में भी यही सिद्ध किया गया है कि---- भारत देश के प्राय: सभी प्राचीन भवन हिन्दुओं द्वारा बनवाये गये थे और फिर जब बाद में मुसलमानों ने हमारे भारत देश पर आक्रमण किया तो उन्होंने उन भवनों पर जबरन कब्जा कर लिया था |
श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ने जितनी भी पुस्तकें लिखी हैं, उन पुस्तकों को कोई भी व्यक्ति गलत सिद्ध नहीं कर पाया है |
श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक द्वारा लिखी गई सभी पुस्तकों को------ "हिंदी साहित्य सदन, १०/५४, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, करौल बाग़, नई दिल्ली..पिन-- ११०००५" ने छापा है | जिसे शंका हो, इन पुस्तकों को मँगाकर पढ़ लें |