गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

गर्व रहित ज्ञान


दानं प्रियवाक्सहितं, ज्ञानमगर्व क्षमान्वितं शौर्यम्।
वित्तं त्यागनियुक्तं, दुर्लभमेतच्च्तुष्ट्यं लोके॥
--विष्णुश्रम
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अर्थ:
 
प्रियवचन सहित दान, गर्व रहित ज्ञान, क्षमा युक्त शौर्य, त्याग सहित धन। लोक में यह चार बातें बडी दुर्लभ है।
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शास्त्र-विवेचन

1-शास्त्रों का अध्यन, शास्त्र के मूल आशय को समझने के लिये निराग्रह मनस्थिति होनी चाहिए।

2-शास्त्रकारों का अभिप्राय समझकर, उसी दृष्टि से अर्थ और भावार्थ करना चाहिए।

3-जो विषय बुद्धिग्राह्य न हो, उसे सही परिपेक्ष में समझने का प्रयास होना चाहिए, व्यर्थ उपहास नहिं करना चाहिए।

विचार विमर्श, चर्चा आदि तो धर्म-शास्त्रार्थ के ही अंग है, संशय-समाधान दर्शन-मंथन में आवश्यक तत्व है।
बिना जाने ही तथ्य खारिज करना मिथ्यात्व का लक्षण है। और यहां मिथ्यात्वी ही पाखण्डी
माना गया है।

धर्म-तत्व में मूढता, संसार तर्क में शूर।
कर्म-बंध के कारकों पर, गारव और गरूर?

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5 टिप्‍पणियां:

  1. "मो सम कौन" वाले भाई साहब ने ये लिंक दी थी, चला आया । आकर बहुत खुशी हुयी । मेरे समान न जाने कितने संस्कृत भाषा से अपरिचित और अनपढ़ों के लिये यह ब्लाग गोमुख के समान है । बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. बहुत गंभीर अनुभव को इस श्लोक में समेटा गया है।

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  3. बहुत बढ़िया ज्ञानोक्ति है जी.........गर्व (अहंकार,घमंड वाला) तो हर अवस्था में नुक्सान दायक ही है


    @ शास्त्रकारों का अभिप्राय समझकर, उसी दृष्टि से अर्थ और भावार्थ करना चाहिए।

    # उनका क्या कीजियेगा जो अपने सड़े दिमाग से शास्त्रों का मनमाना अर्थ करके, इधर उधर पोस्ट से असम्बद्ध टिप्पणियां किये जा रहे है.

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  4. अमित जी,

    @उनका क्या कीजियेगा जो अपने सड़े दिमाग से शास्त्रों का मनमाना अर्थ करके, इधर उधर पोस्ट से असम्बद्ध टिप्पणियां किये जा रहे है.

    --शास्त्रों का मनमाना अर्थ कर अपनी मनोविकृति समाज पर थोपने वाले इन बगुलों को अनावृत करना ही हमारे इस ब्लोग का उद्देश्य होना चाहिए।

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  5. अमित जी,

    उन सभी सात्विक विचारधारा वाले बंधुओं को इस ब्लोग पर योगदान आमंत्रित किजिये जो धर्म की शरण से संस्कार और मानवता के उत्थान को समर्पित है।

    पंडित 'वत्स'जी को पुन: आमंत्रण लिंक भेजा या नहिं?

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