भवन्ति नम्रास्तरवः फ़लोदगमैर्नवाम्बुभिर्भूमिविलम्बिनो घना:।
अनुद्धता सत्पुरुषा: समृद्धिभिः स्वभाव एवैष परोपकारिणम ॥
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- जैसे फ़ल लगने पर वृक्ष नम्र हो जाते है,जल से भरे मेघ भूमि की ओर झुक जाते है, उसी प्रकार सत्पुरुष समृद्धि पाकर नम्र हो जाते है, परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा होता है।
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अति सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसाथ में यदि ये भी लिख सकें कि प्रस्तुत् श्लोक किस ग्रन्थ से लिया गया है तो ओर अच्छा रहेगा!
निरंजन जी,
जवाब देंहटाएंकविता तो आपकी भी जीवट भरी है…।
http://mkldh6.blogspot.com/2010/10/blog-post_13.html
तुम्हारी रूचि लगन निष्ठा सतत गतिशील है, लेकिन
हमारा धैर्य बडा जीवट, उसे कब तक आजमाओगे !!
उत्तम सूक्ति...सूक्ति का स्रोत भी बताया करें तो और भी उत्तम होगा।
जवाब देंहटाएंGreat thought !...Thanks.
जवाब देंहटाएंशोभना उक्ति: सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र महोदयेन सहमति: अस्ति ममापि ।।
Ati uttam Sukti ,
जवाब देंहटाएंनिरंजन जी,
जवाब देंहटाएंमहेंद्र जी,
दिव्या जी, व
आनंद जी
आभार आपका, आपने इस सुक्त को सराहा!!
जहां से मेरे ध्यान में यह सुक्ति आई वहां सूक्ति का मूल स्रोत उपलब्ध न था। अतः न दे पाया, क्षमा करें !!
स्वामी जी का पधारना आनंदित कर गया।
जवाब देंहटाएंप्रणाम स्वीकार करें, स्वामी जी
आपने सुक्ति को सराह कर लेखन सफ़ल कर दिया।