हिंसामूलमध्यमास्पदमल ध्यानस्थ रौद्रस्य यदविभत्स,
रूधिराविल कृमिगृह दुर्गन्धिपूयदिकम्।
शुक्रास्रक्रप्रभव नितांतमलिनम् सदभि सदा निंदितम्,
को भुड्क्ते नरकाय राक्षससमो मासं तदात्मद्रुहम्॥
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अर्थार्त:
मांस हिंसा का मूल, हिंसा करने पर ही निष्पन्न होता है। अपवित्र है। और रौद्र (क्रूरता) का कारण है।देखने में विभत्स, रक्तसना होता है, कृमियों व सुक्षम जंतुओं का घर है। दुर्गंध युक्त मवाद वाला, शुक्र-शोणित से उत्पन्न, अत्यंत मलिन, सत्पुरुषों द्वारा निंदित है। कौन इसका भक्षण कर, राक्षस सम बन, नरक में जाना चाहेगा।
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