बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

नम्रता


भवन्ति नम्रास्तरवः फ़लोदगमैर्नवाम्बुभिर्भूमिविलम्बिनो घना:।
अनुद्धता सत्पुरुषा: समृद्धिभिः स्वभाव एवैष परोपकारिणम ॥

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- जैसे फ़ल लगने पर वृक्ष नम्र हो जाते है,जल से भरे मेघ भूमि की ओर झुक जाते है, उसी प्रकार सत्पुरुष  समृद्धि पाकर नम्र हो जाते है, परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा होता है।
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8 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुन्दर!
    साथ में यदि ये भी लिख सकें कि प्रस्तुत् श्लोक किस ग्रन्थ से लिया गया है तो ओर अच्छा रहेगा!

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  2. निरंजन जी,
    कविता तो आपकी भी जीवट भरी है…।
    http://mkldh6.blogspot.com/2010/10/blog-post_13.html

    तुम्हारी रूचि लगन निष्ठा सतत गतिशील है, लेकिन
    हमारा धैर्य बडा जीवट, उसे कब तक आजमाओगे !!

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  3. उत्तम सूक्ति...सूक्ति का स्रोत भी बताया करें तो और भी उत्तम होगा।

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  4. शोभना उक्ति: सुज्ञ जी

    महेन्‍द्र महोदयेन सहमति: अस्ति ममापि ।।

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  5. निरंजन जी,
    महेंद्र जी,
    दिव्या जी, व
    आनंद जी

    आभार आपका, आपने इस सुक्त को सराहा!!
    जहां से मेरे ध्यान में यह सुक्ति आई वहां सूक्ति का मूल स्रोत उपलब्ध न था। अतः न दे पाया, क्षमा करें !!

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  6. स्वामी जी का पधारना आनंदित कर गया।
    प्रणाम स्वीकार करें, स्वामी जी
    आपने सुक्ति को सराह कर लेखन सफ़ल कर दिया।

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